मंगलवार, 17 मार्च 2009

मैंने उगली आग ....सदा मर्दों के खिलाफ

मुझे

मर्दों के खिलाफ़

आग उगलनी थी   

स्त्री विमर्श पर

थीसिस लिखनी थी   

पिता ने मुझको

किताबें लाकर दीं

भाई ने इन्टरनेट

खंगाल दिया

बूढ़े ससुर ने

गृहस्थी संभाल ली

पति ने देर रात तक   

जाग कर

पन्ने टाइप किए

बहुत थक गयी तो

बेटे ने पैर दबा दिए

मैं गहरी नींद सो गयी   

मर्दों के खिलाफ़ 

सोचते सोचते