इतराती, इठलाती, बलखाती और लहराती
आ गयी हो तुम सड़कों पर
दिल में मेरे फंस गयी हो
आँखों में भी बस गयी हो
बात इतनी सी में समझ ना पाऊं
अब और सड़क कहाँ से लाऊं?
चीर दूँ आकाश को या
पाताल में सड़क बनवाऊं
पैर रखने की यहाँ जगह नहीं
पैदल चलने में होती टक्कर
जाम में पैदा होते बच्चे
मौत भी होती जाम में फंसकर
सिग्नल में ही पौ फटती है
सिग्नल में ही गुज़रे शाम
ऐसे देश में नैनो प्यारी
बोलो तुम्हारा है क्या काम