आज फिर बदली गयी हूँ मैं
आज फिर छली गयी हूँ मैं
आज फिर टूट गया
ममता का बंधन
रूठ गयी माँ की उमड़ती छाती
छूट गया प्यारा सा बचपन
पिता ने नज़रें फेर लीं आज फिर
लड़के के बदले रखा गया मुझको
आज फिर बोझ समझा गया मुझको
आज फिर डी. एन. ए. टेस्ट होगा
आज फिर एक महाभारत होगा
किसकी किस्मत में लिखी जाउंगी
किसको राहत पंहुचाउंगी, फैसला होगा
तब तक यूँ ही पड़ी रहूंगी
माँ के आँचल को तरसती रहूंगी
हँस देती हूँ मैं पालने में पड़ी पड़ी अकेली
कब सुलझेगी मेरे जीवन की ये अनबूझ पहेली