शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

नैनो की बुकिंग टाँय टाँय फिस्स क्यूँ हुई .....

साथियों .....नैनो आम आदमी के नैनों को तो भा गयी थी लेकिन उसकी बुकिंग क्यूँ फिस्स हो गयी ? यह बात पता लगाना बहुत ज़रूरी था .. इसीलिए हमने एक आम आदमी को रोक कर पूछा  ...तो उसने क्या जवाब दिया देखिये ......................
 
नैनो की बुकिंग ,
क्यूँ हुई इतनी कम  
आम आदमी से पूछे बिना  
रह ना पाए हम
 
मिला हमें एक दिन वह
जो था मोटर साइकिल पर सवार  
साथ में लदा था उसके
चार लोगों का परिवार
 
पूछा हमने , क्यूँ मेरे भाई ?
तुम्हारे चक्कर में बेचारे टाटा को
तीन साल से नींद नहीं आई
फिर भी तुमने
नैनो बुक नहीं करवाई
 
अरे ! छठे वेतनमान का
कुछ तो मान रखा होता
भरी हुई जेब को ,थोडा सा
हल्का कर लिया होता
चार ना सही , कम से कम
एक नैनो को तो बुक किया होता
 
वह बोला मैडम !
घर से लेकर स्कूल तक
इतनी बक बक करती हो
फटों में टांग अडा अडा कर 
क्यूँ नहीं तुम थकती हो ?
 
पूछ ही बैठी हो तो सुन लो  
अन्दर की बात
कहता हूँ मैं आज
जिस भ्रम के साथ
रात दिन रहता हूँ
सूखी रोटी खाता हूँ
ठंडा पानी पीता हूँ
 
अपनी नज़रों में मेरा
स्थान है बेहद ख़ास
धुंधला ही सही , लेकिन
बहुत खूबसूरत है यह एहसास
 
जिस दिन मैं आम आदमी की
कार खरीदूंगा
टूट कर बिखर जाऊँगा
अभी तो घर वालों की
नज़रों में गिरा हुआ हूँ
फिर अपनी नज़रों में गिर जाऊंगा  
 
इसीलिए ......
अपनी नज़रों में ही सही
मुझको ख़ास रहने दो
जैसे सहता आया हूँ
सारी तकलीफें अब तक
आज भी मुझको सहने दो
 
मेरे बड़े बड़े सपनों को
जो छोटा कर दे
ऐसी कोई भी तकनीक
मुझको नहीं स्वीकार
कह दो टाटा से तुम जाकर
कही और ले  जाकर बेचे
अपनी छोटी सी यह कार