शनिवार, 5 सितंबर 2009
हास्य व्यंग्य लिखने वाले हाथों को ये क्यूँ लिखना पड़ा ?
मैं शिक्षा के क्षेत्र से जुडी हूँ ,मुझे गर्व है कि मेरे खानदान में शिक्षा को एक पवित्र कर्म माना जाता है .मेरे पिता डिग्री कॉलेज से अंग्रेजी के प्रोफेसर के पद सेवानिवृत्त हुए ,और माँ अभी भी एक स्कूल में पढ़ाती है ,बहिन भी कॉलेज में है, भाभी भी शिक्षिका है ,दोनों ननदें भी युनिवेर्सिटी में हैं ,नंदोई भी शिक्षा से जुड़े हैं ,पति एक तकनीकी कोलेज में पढाते हैं ,मैं स्वयं एक इंटर कॉलेज में अंग्रेजी पढ़ाती हूँ .
मैं अपनी पारिवारिक इतिहास को बताना नहीं चाहती थी ,लेकिन आज ब्लोग्वानी में कुछ पोस्टों को देखकर मन खिन्न हो गया ,जिसको देखो वही टीचरों को गाली दे रहा है ,गोया किसी के पास और कोई काम ही नहीं बचा ,वे लिखने वाले ये क्यूँ भूल जाते हैं कि आज जिस कलम से वे इतनी आग उगल रहे हैं , उन्हें शब्दों को पहचानना , कलम थामना ,सही सही बोलना भी किसी टीचर ने ही सिखाया होगा, अनुशासन सिखाया होगा ,अच्छे बातें सिखाई होंगी ,जब पहली बार माँ की गोद से उतर कर स्कूल गए होंगे तो किसी ने अपनी गोद में बिठा कर प्यार करा होगा ,आँसू पोछे होंगे .... उन हाथों को भी याद कीजिए ,उस गोद को भी याद कर लीजिए .
और याद कीजिए उन हाथों को जिन्होंने आपका भविष्य बनाने के लिए आपको मारा भी होगा ,लेकिन यह भी सच है कि मारने के बाद जितना आप रोते हैं उससे ज्यादा आपका टीचर रोता होगा. आपको टीचर का मारना याद रहता है ,लेकिन इतना मत भूलिए ,जिस दिन टीचर विद्यार्थियों को मारना छोड़ देता है ,उसी दिन से वह उनके भविष्य की परवाह करना भी करना बंद देता है .
मैं ये नहीं कहूंगी कि मैं बहुत अच्छा काम करती हूँ ,लेकिन कुछ निर्धन छात्रों की फीस भरती हूँ ,किताबें देती हूँ ,और भी कई तरीकों से मदद करने की कोशिश करती हूँ ,ताकि सिर्फ पैसे की कमी के कारण किसी की पढाई ना छूटे.आप सिर्फ दो चार भ्रष्ट टीचरों का उदाहरण देकर समस्त शिक्षकों पर उंगली नहीं उठा सकते ,
ऐसे सैकडों टीचरों को मैं व्यक्तिगत रूप से जानती हूँ ,जो बच्चों की आर्थिक सहायता किया करते हैं ,उनकी पढ़ाई का पूरा खर्चा उठाते हैं .अतिरिक्त कक्षाएं लगाकर पढ़ाई करते हैं .क्या और किसी व्यवसाय में ये संभव है ?
जहाँ तक यौन शोषण की बात है एक बात और कहूंगी , मैं एक सह -शिक्षा वाले कोलेज में हूँ मैं छात्राओं को रोज़ देखती हूँ कि वे अपने फेवरेट टीचर्स के पीछे हाथ धोकर पड़ जाती हैं ,रोज़ एस .एम् .एस .करती हैं ,प्रेम पत्र लिखती हैं ,और जो अकेले रहते हैं ,उनसे मिलने उनके कमरों में तक चली जाती हैं ,उन्हें उनके साथ बिस्तर तक चले जाने में भी कोई आपत्ति नहीं होतीहै , वे उन्हें पटाने के हर संभव उपाय करती हैं ,कोई अगर कुंवारा हुआ तो उनके प्रयास दोगुने हो जाते हैं ,किसी काम से पास भी जाती हैं तो बिलकुल सट कर खड़ी हो जाती हैं ,कक्षा में सारा समय उन्हें घूरती रहती हैं ,और उन्हें देख देख कर मुस्कुराती रहती हैं .
क्या अब भी आप सारा दोष अध्यापकों को ही देंगे ?