ऑस्ट्रेलिया अमीर मुल्क है, भारत गरीब. ऐसा इसलिए कह सकते हैं क्यूंकि स्लमडॉग मिलेनियर भारत में बनी थी. वह हमसे उसी तरह कुछ भी कह सकता है, जिस तरह हर अमीर आदमी, गरीब आदमी से कभी भी कुछ भी कह सकता है. फुटपाथ पर सोये हुए लोगों को गाड़ी के नीचे कुचलने वाले बिना किसी पश्चाताप के आराम से कह सकते है '' फुटपाथ कोई सोने की जगह नहीं है''
शरद पवार जनता से कह सकते हैं देशवासी अगर चीनी नहीं खाएंगे तो, मर नहीं जाएंगे .उन्हें क्या पता कि गरीबों के घर कोई भी आ जाए तो बिस्कुट भले ही ना रख पाएं लेकिन बिना चाय पिलाए नहीं भेजा जाता है, और पसीना बहाने वालों यी रगों में अभी भी चीनी दौडती है शुगर नहीं.. अमीरों के यहाँ चाय पीने - पिलाने के रिवाज़ अभी तक शुरू नहीं हुए हैं . ऐसा मैं दावे के साथ इसलिए कह सकती हूँ कि मैंने कभी भी हिन्दी फिल्मों में या धारावाहिकों में करोड़ों की बातें करने वाले लोगों को अपने घर आये किसी मेहमान को चाय पिलाते नहीं देखा, हाँ देश - विदेश से ली हुई क्रोकरी दीवारों में ठुकी हुई कांच की अलमारियों में करीने से सजी हुई अवश्य देखी हैं.
महामहिम बुश, भारत से पूरे हक़ के साथ कह सकते हैं '' भारत के पेटुओं खाना कम खाओ, क्यूंकि तुम्हारे वजह से दुनिया में खाद्य संकट खड़ा हो गया है''
ठाकरे सीना ठोक के कह सकते हैं '' मेरे राज्य में रहना है तो मराठी सीखनी होगी''.
आजकल हर जगह इस तरह की धौंस भरी आवाजें गूंजती सुनाई दे रही हैं..
ऑस्टेलिया का कहना है कि भारत वाले हमारे देश में सुरक्षित रहना चाहते हैं तो गरीब दिखें. यह बताना वे भूल गए कि गरीब कैसे दिखा जाता है? क्या गरीब दिखने की कोई स्पेशल किट बाज़ार में उपलब्ध हो गई है? कौन इस किट के कपड़ों को डिजाइन करेंगे? डिज़ाईनर भारतीय होंगे या ऑस्ट्रेलियाई? गरीब दिखने के सौन्दर्य प्रसाधन कौन कौन से होंगे? भारत के हिसाब से गरीब दिखना होगा या ऑस्ट्रेलिया के हिसाब से?
ऑस्ट्रेलिया शायद यह कहना चाहता है कि बेशक तुम भारतवर्ष में अमीरजादे हो, यहाँ के क्लबों और पब में ज़रूर जाओ, लेकिन ऐसा लगे कि अन्दर पड़ी खाली शराब की बोतलें बटोरने जा रहे हों, लम्बी - लम्बी गाड़ियों में बैठो,ज़रूर, लेकिन ऐसा कि लगे कि मालिक का सताया हुआ गरीब ड्रायवर बैठा है, बड़ी - बड़ी डिग्रियां लो लेकिन उन्हें ऑस्ट्रेलियाई रणछोड़ दासों के लिए छोड़ जाओ.
वैसे यह भी बड़ी अजीब बात है. कि जो अपने देश में मिलेनियर है वही दूसरे देश में उन्नति करे या करने की कोशिश भी करे तो स्लमडॉग की तरह मारा जाता है. क्या कारण है कि भारतीय युवक भारत में शिक्षा ग्रहण करते हैं और वैल एजुकेट होने के लिए ऑस्ट्रेलिया या अमेरिका का मुँह ताकते हैं .वहां जाकर विदेश का ठप्पा माथे पर तो नहीं लग पाता हाँ, शरीर पर घाव और दिल में गहरे ज़ख्म लेकर हम बैरंग वापिस चले आते हैं.
यह भी सच है कि जो जैसा होता है वह वैसा दिखना नहीं चाहता है. गरीब लोग मौका मिलते ही अमीर की तरह दिखना चाहते है, और उन्हीं की तरह आचरण करना चाहते है. अगर मौक़ा नहीं मिले तो कर्जे लेकर मौका बनाते हैं.
शरद पवार जनता से कह सकते हैं देशवासी अगर चीनी नहीं खाएंगे तो, मर नहीं जाएंगे .उन्हें क्या पता कि गरीबों के घर कोई भी आ जाए तो बिस्कुट भले ही ना रख पाएं लेकिन बिना चाय पिलाए नहीं भेजा जाता है, और पसीना बहाने वालों यी रगों में अभी भी चीनी दौडती है शुगर नहीं.. अमीरों के यहाँ चाय पीने - पिलाने के रिवाज़ अभी तक शुरू नहीं हुए हैं . ऐसा मैं दावे के साथ इसलिए कह सकती हूँ कि मैंने कभी भी हिन्दी फिल्मों में या धारावाहिकों में करोड़ों की बातें करने वाले लोगों को अपने घर आये किसी मेहमान को चाय पिलाते नहीं देखा, हाँ देश - विदेश से ली हुई क्रोकरी दीवारों में ठुकी हुई कांच की अलमारियों में करीने से सजी हुई अवश्य देखी हैं.
महामहिम बुश, भारत से पूरे हक़ के साथ कह सकते हैं '' भारत के पेटुओं खाना कम खाओ, क्यूंकि तुम्हारे वजह से दुनिया में खाद्य संकट खड़ा हो गया है''
ठाकरे सीना ठोक के कह सकते हैं '' मेरे राज्य में रहना है तो मराठी सीखनी होगी''.
आजकल हर जगह इस तरह की धौंस भरी आवाजें गूंजती सुनाई दे रही हैं..
ऑस्टेलिया का कहना है कि भारत वाले हमारे देश में सुरक्षित रहना चाहते हैं तो गरीब दिखें. यह बताना वे भूल गए कि गरीब कैसे दिखा जाता है? क्या गरीब दिखने की कोई स्पेशल किट बाज़ार में उपलब्ध हो गई है? कौन इस किट के कपड़ों को डिजाइन करेंगे? डिज़ाईनर भारतीय होंगे या ऑस्ट्रेलियाई? गरीब दिखने के सौन्दर्य प्रसाधन कौन कौन से होंगे? भारत के हिसाब से गरीब दिखना होगा या ऑस्ट्रेलिया के हिसाब से?
ऑस्ट्रेलिया शायद यह कहना चाहता है कि बेशक तुम भारतवर्ष में अमीरजादे हो, यहाँ के क्लबों और पब में ज़रूर जाओ, लेकिन ऐसा लगे कि अन्दर पड़ी खाली शराब की बोतलें बटोरने जा रहे हों, लम्बी - लम्बी गाड़ियों में बैठो,ज़रूर, लेकिन ऐसा कि लगे कि मालिक का सताया हुआ गरीब ड्रायवर बैठा है, बड़ी - बड़ी डिग्रियां लो लेकिन उन्हें ऑस्ट्रेलियाई रणछोड़ दासों के लिए छोड़ जाओ.
वैसे यह भी बड़ी अजीब बात है. कि जो अपने देश में मिलेनियर है वही दूसरे देश में उन्नति करे या करने की कोशिश भी करे तो स्लमडॉग की तरह मारा जाता है. क्या कारण है कि भारतीय युवक भारत में शिक्षा ग्रहण करते हैं और वैल एजुकेट होने के लिए ऑस्ट्रेलिया या अमेरिका का मुँह ताकते हैं .वहां जाकर विदेश का ठप्पा माथे पर तो नहीं लग पाता हाँ, शरीर पर घाव और दिल में गहरे ज़ख्म लेकर हम बैरंग वापिस चले आते हैं.
यह भी सच है कि जो जैसा होता है वह वैसा दिखना नहीं चाहता है. गरीब लोग मौका मिलते ही अमीर की तरह दिखना चाहते है, और उन्हीं की तरह आचरण करना चाहते है. अगर मौक़ा नहीं मिले तो कर्जे लेकर मौका बनाते हैं.
वैसा मेरा भी यही मानना है कि इंसान को सदा गरीब दिखना चाहिए. इससे एक तो व्यक्तित्व से विनम्रता टपक टपक कर बहती रहती है, और जाने अनजाने कई तरह के फायदे हो जाते हैं, आप फटे हुए बैग में लाखों रूपये भरकर बेंक से पैसा लेकर बिना लूटे हुए घर आ सकते है, डॉक्टर सैम्पल की दवाएं फ्री में दे देता है, वह भी शर्म के साथ कि मैं बस सिर्फ़ इतनी ही सेवा कर पा रहा हूँ , राशन वाला १०० - २०० ग्राम राशन अतिरिक्त तोल देता है, आते जाते मुफ्त में लिफ्ट मिल जाती है, कोई चंदा लेने वाला आपके नाम की रसीद नहीं काट सकता, चोर, चोरी करने आता है और गरीबी की दिखावट देखकर अपना जाली काटने वाला चाकू और ताले तोड़ने वाला सब्बल भी छोड़ कर चला जाता है. मेहमान कभी घर की ओर गलती से भी रुख नहीं करते. अमीर उसके सामने आने से कतराता है, उसे लगता है इसकी गरीबी का एक कारण मेरी अमीरी है.
एक और विनम्र दृश्य मेरे सामने बार बार आ रहा है -
अम्बानी, जब मित्तल से मिलेंगे तो कहेंगे,
अम्बानी, जब मित्तल से मिलेंगे तो कहेंगे,
"गरीब को मुकेश कहते हैं"
और मित्तल का जवाब होगा,
"कभी मेरे गरीबखाने में भी तशरीफ़ लाइए"|
"कभी मेरे गरीबखाने में भी तशरीफ़ लाइए"|