तीस की उम्र में पचास की लगती हैं
पहाड़ की औरतें उदास सी लगती हैं
काली हथेलियाँ, पैर बिवाइयां
पत्थर हाथ, पहाड़ जिम्मेदारियां
चांदनी में अमावस की रात लगती हैं
कड़ी मेहनत सूखी रोटियाँ
किस माटी की हैं ये बहू, बेटियाँ
नियति का किया मज़ाक लगती हैं
दिन बोझिल, रात उदास
धुँआ बन उड़ गई हर आस
भोर की किरण में रात की पदचाप लगती हैं
पीली आँखें, सूना चेहरा
आठों पहर दुखों का पहरा
देवभूमि को मिला अभिशाप लगती हैं
तीस की उम्र में पचास की लगती हैं
पहाड़ की औरतें उदास सी लगती हैं