साथियों, वर्तमान भारत में तीन तरह के लोग हैं| एक वे जिन्हें छठा वेतनमान मिल चुका है, दूसरे वे जिन्हें अभी नहीं मिला है लेकिन निकट भविष्य में मिलने की संभावना है और तीसरे वे जिन्हें किसी भी प्रकार का वेतनमान न कभी मिला था और न ही कभी मिलेगा|
छठा वेतनमान किसे मिलना चाहिए और किसे नहीं, यह फ़ैसला करने में सरकार एक बार को भ्रमित हो सकती है लेकिन अन्य विभागों के कर्मचारी इस विषय में फ़ैसला करने में एक मिनट की भी देर नहीं लगाते कि मास्टरों को यह किसी भी हालत में नहीं दिया जाना चाहिए| इसमें सभी वर्गों के मास्टर आ जाते हैं| डिग्री वाले किसी मुगालते में न रहें| उच्च शिक्षा से जुड़े होने के कारण इस लिस्ट में भी उनका नाम सबसे ऊपर है|
इन लोगों का यह भी मानना है कि शिक्षण कार्य को कार्य की श्रेणी से निकाल देना चाहिए| काम तो वह होता है जो उनके विभाग में होता है| सभी धर्मों के मतावलंबी इस विषय में समान राय रखते हैं| कभी-कभी तो ये इतने आक्रोशित हो जाते हैं कि लगता है कि निकट भविष्य में यदि इन्हें हड़ताल करने का कोई कारण नहीं मिलेगा तो ये इसी विषय पर हड़ताल कर सकते हैं|
विभिन्न लोगों की इस विषय में विभिन्न धारणाएं हैं| एक पक्ष यह मानता है कि मास्टरों को सिर्फ़ वेतन मिलना चाहिए, मान नहीं| दूसरा पक्ष मानता है कि मास्टरों को सिर्फ़ मान मिलना चाहिए, वेतन नहीं| तीसरे वे लोग हैं जो ये मानते हैं कि मास्टरों को न मान मिलना चाहिए और न ही वेतन| चूँकि इनके बच्चे सरकारी स्कूलों में नहीं पढ़ते इसीलिये ये मानते हैं कि मास्टर बच्चों को विद्या का दान करे और खुद घर-घर से दान मांग कर अपना जीवनयापन करे| वह ज़िंदगी भर दरिद्र रहे और उसके शिष्य अमीर बनकर उसका नाम रौशन करते रहें|
'घायल की गति घायल जाने ..........', अतः वे लोग मेरी व्यथा नहीं समझ सकते जिन्हें इस वेतनमान के कारण अपनों की उपेक्षा का दंश न झेलना पड़ा हो| इसने मेरे पड़ोसियों को मुझसे दूर कर दिया| आपस में बरसों से चला आ रहा कटोरी तंत्र, अर्थात कटोरियों में सब्जियों का आदान-प्रदान, बंद हो गया| मायके वालों ने और भाइयों ने टीका भेजना बंद कर दिया| बरसों से लिफ़्ट दे रहे भले-मानुसों ने नज़रें चुराना शुरू कर दिया| मकान मालिक ने किराया बढ़ा दिया| दुकानदारों ने अचानक उधार देने पर रोक लगा दी| वर्गभेद की खाई को पाटना एक बार को संभव हो सकता है, लेकिन इस वेतनमान के द्वारा पैदा की गई खाई को पाटना असंभव है|
कहते हैं कि मुसीबतें चारों ओर से आती हैं| छठा वेतनमान क्या मिला, इन मुसीबतों ने सेल्स-मैन या गर्ल का रूप धर कर आये दिन दरवाज़ों पर दस्तक देना आरम्भ कर दिया| जिस वर्ग का मानना है कि मास्टरों को सिर्फ़ वेतन मिले, वह यही वर्ग है| पहले जो छठे-छमाहे हमारे सरकारी स्कूलों का रुख किया करते थे, वह भी नाउम्मीदी के साथ, अब हर दूसरे दिन बड़ा सा बैग कंधे पर लटकाए नमूदार हो जाते हैं| ये स्वयं को सेल्स-मैन या सेल्स गर्ल कहने के बजाय किसी नामी-गिरामी इंस्टिट्यूट के प्रशिक्षु कहते हैं और प्रोडक्ट बेचने को अपना असाइंमेंट बताते हैं| इस असाइंमेंट को पूरा करने, अर्थात अपने पास होने की ज़िम्मेदारी वे बड़े आराम से हमारे ऊपर डाल देते हैं| हम, जो कि अपना पाठ्यक्रम पूरा करने में अपनी सहायता नहीं कर पाते, उनको पास करवाने की भरसक कोशिश करते हैं|
हालांकि यह बात भी सत्य है कि मास्टर की जेब से पैसा निकलवाना बहुत कम लोगों के भाग्य में होता है| सच्चा मास्टर वही होता है जो बैग में बंद हर प्रोडक्ट को खुलवा कर देखे, जांचे, परखे, पंद्रह मिनट तक चला कर देखे, चारों दिशाओं से ठोक-पीटकर, ज़मीन पर पटककर उसकी मजबूती का आंकलन करे, उपयोगिता और अनुपयोगिता पर पूरे घंटे भर तक चर्चा करे, घर वालों से फ़ोन पर मशविरा करे और जब सेल्स मैन की आँखों में आखिरकार प्रोडक्ट बिक जाने की चमक तैरने लग जाए और वह पर्ची काटने के लिए नाम पूछे, ठीक उसी समय अपना सिर इंकार में हिला दे|
इधर इस धंधे में भी मिलावटी लोग आने लगे हैं, जो कुछ न बन पाने के कारण इस पेशे में आ गए हैं| ये लोग बिना जांचे-परखे, फट से नोट निकाल कर सामने रख देते हैं| ऐसे नकली मास्टरों की वजह से शिक्षा-विभाग की छवि बिगडती जा रही है| बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि मैं भी इनमें से एक हूँ| अभी तक मेरे घर में इन सेल्स वालों की बदौलत कैल्क्यूलेटर, च्यवनप्राश, कटलरी-सेट, कैसरोल, मच्छर भगाने की मशीन, मोमबत्ती-स्टैंड, सिर की मालिश करने वाला यंत्र, शहद की बोतलें, मोज़े, रुमाल, सौना-बेल्ट, जैकेट, ट्रैवल-बैग और दो फाइनेंस कंपनियों के म्युचुअल-फंड बौंड आ चुके हैं|
कुछ सेल्स वाले हमेशा याद रहते हैं, ख़ास तौर से हसीन और खूबसूरत सेल्स-गर्ल्स| जाड़ों के दिनों में ज़ुकाम होने पर भाप लेने का यंत्र बेचने वाली वह ख़ूबसूरत लडकी हमेशा याद रहेगी| ख़ुद उसे ज़ुकाम था, जिस कारण वह इशारों-इशारों में हमें उस यन्त्र की खासियत बता रही थी| सुन्दर लडकियां झूठ नहीं बोलती होंगी यह सोचकर सबने उस यंत्र को मिनटों में खरीद लिया| आख़िर हमारे घरों में अधिकतर वस्तुएं, टी. वी. के माध्यम से, सुंदरियों की सिफारिश के चलते लाई जाती हैं| उसने बार-बार कहा कि मार्केट में यह यंत्र आपको इससे दुगुनी कीमत में मिलेगा| एक-आध लोगों ने दबे-छिपे स्वरों में कहा भी कि जब हमें ज़रुरत ही नहीं है तो मार्केट से हम इसे क्यों खरीदेंगे? लेकिन इस तरह की हवा में तैरती अफवाहों को उसने अनसुना कर दिया| सच्चा सेल्सपर्सन वही है जो आपको कुर्सी पर बैठे-बैठे बाज़ार की सैर करवाए और दिखाए कि बाज़ार में यह प्रोडक्ट वाकई दुगुनी कीमत में मिलता है और हम उसे सिर्फ़ इसलिए खरीदें कि यह यहाँ आधी कीमत में मिल रहा है|
कुछ वस्तुओं के खरीदे जाने की कहानी बहुत ही रोचक है, जिनमें से एक थी चमड़े की जैकेट| बेचने वाले सेल्समैन ने उसे लाइटर से जला कर दिखाया था| हमें उसने इस तरह से उसकी महिमा के बारे में बताया कि हमें यह विश्वास हो गया कि आत्मा के बाद अगर कोई वस्तु है तो यही जैकेट, जिसे न पानी गला सकता है और न ही आग जला सकती है| यह अजर अमर है| घर आकर बड़े ही शान के साथ घरवालों के सामने रौब गांठकर कि है कोई माई का लाल जो इतनी सस्ती जैकेट खरीद के दिखा दे, उसे खोलने लगे और खोलने के बाद यह राज़ खुला कि दिखाने की जेकेट अलग होती हैं और बेचने की अलग| जगह-जगह से कटी हुई जैकेट जाड़ों का पूरा मज़ा लेने के लिए बनाई गई थी| वो मास्टर ही क्या जो आसानी से स्वयं को ठगे जाने दे, यह सोचकर उसके दिए हुए नंबर पर उसे फ़ोन मिलाया तब दूसरे राज़ का फाश हुआ कि बेचने के पहले और बेचने के बाद नंबर अलग-अलग हो जाते हैं|
बढ़ती हुई कमर के घेरों को बिना पसीना बहाए कम करने के प्रोडक्ट अन्य सभी आइटमों पर भारी पड़े| यूँ लगा जैसे हम भारतीयों के मोटा होने से सिर्फ़ ओबामा ही चिंतित नहीं है| सौना-बेल्ट के नाम से हमने सोचा कि यह सोने का अंडा देने वाली मुर्गी हमारे हाथ लग गई है, सो एक ही दिन में उसका पेट फाड़ कर सारे अंडे बाहर निकालने की तर्ज़ पर एक ही दिन में दो घंटे तक पेट पर लगा दिया| फलस्वरूप जली हुई त्वचा को लेकर डॉक्टर के पास जाकर मरहम पट्टी करवानी पड़ी, कई सालों के लिए दाग पड़े सो अलग|
घुटने के दर्द से आराम पाने के लिए एक गाड़ी-नुमा यंत्र बेचने वाली उस लडकी ने खुद सबके घुटनों पर उसे चला कर दिखाया| साथ ही बार-बार वह कहती भी जा रही थी कि यह तो बच्चों का खेल है| हमने सोचा आज नहीं तो कल हम सभी को इस घुटने के दर्द के आगे घुटने टेकने होंगे और सबने एक-एक पीस खरीद लिया| एक हफ्ते बाद जब वह चलते-चलते अचानक रुक गई तब समझ में आया कि उसके कहने का मतलब यह था कि आने वाले दिनों में बच्चों के खेलने के काम आएगी|
बाल काले करने वाला वह सेल्समैन बड़े-बड़े मार्केटिंग वालों को पछाड़ने की क्षमता रखता था| उसने हमसे कहा कि यह तेल मैं आपको इस साल फ़्री में दे रहा हूँ, पैसे लेने अगले साल आऊंगा जब आप लोगों के बाल काले हो जाएँगे| दुनिया जानती है कि हमारी नसों में खून के साथ जो इकलौता शब्द दौड़ता है वह शब्द है फ़्री और इस दबी हुई नस को पकड़ना ये सेल्समैन बखूबी जानते हैं| यहाँ तक कि ठेले वाले भी हमारे इस मनोविज्ञान को समझते हैं| सीधे-सीधे पाँच रूपये किलो टमाटर न कहकर दस का दो किलो कहते हैं| ठेले वालों को फटकारने की सुविधा जहाँ हमारे पास रहती है वहीं इन सेल्समैन के मुँह से 'एक के साथ एक फ्री' सुनने से दिल को सुकून हासिल होता है| सभी ने तेल की शीशियाँ झपट लीं| कईयों ने सील खोलकर सिर पर भी चुपड़ लिया| ऐन छुट्टी के समय, जब हम जाने लगे, उसने अपना तुरुप का इक्का चला कि यह तेल तभी काम आएगा जब इसमें यह २०० रुपयों का पाउडर मिलाया जाएगा| मैं आपसे कुछ नहीं ले रहा हूँ, यह तो पाउडर के पैसे हैं| बस पकड़ने की जल्दी, शीशी की सील खोल देने और बहस करने का समय नहीं मिल पाने के कारण सभी को दौ सौ रूपये ढीले करने पड़े|
शहद बेचने वाले वह बुजुर्गवार, जिनकी शहद जैसी ज़ुबान और बुढ़ापे पर तरस खाकर हमने डेढ़ सौ रूपये में दो किलो शहद खरीदा उस शहद को बच्चों ने चखकर और चींटियों ने सूंघकर छोड़ दिया| चश्मा बेचने वाले वे दो सज्जन इतने प्यार से चश्मा पहना जाते थे कि मना करने का सवाल ही नहीं उठता था| वे हर तीन महीने में आकर हमारा पुराना चश्मा ले जाते और मात्र दो-तीन सौ रुपयों में नया चश्मा हमारी आँखों पर शोभायमान हो जाता| हमारे चश्मों का वह क्या करते थे, यह राज़ हम पर तब खुला जब एक दिन मीटिंग में हमारे पड़ोस के स्कूल की अध्यापिका को अपना वही वाला चश्मा पहने हुए देखा| एक स्कूल से दूसरे स्कूल में चश्मों के आदान-प्रदान के द्वारा शायद वे दृष्टिकोणों का आदान प्रदान किया करते थे |
ऐसा नहीं है कि हम अनजान लोगों द्वारा ठगे जाते हैं| कोई न कोई सेल्समैन किसी न किसी अध्यापक के गाँव का ज़रूर निकल जाता है| अपने गाँव वाला कोई परदेस में मिल जाए तो हम बहुत खुश हो जाते हैं| गाँव में चाहे उसे कभी घास भी न डाली हो लेकिन इस समय वह सगे से भी बढ़कर हो जाता है| हम खुद तो ठगे जाते ही हैं साथ में और लोग भी ठगे जा सकें, इसका भरपूर प्रयास करते हैं| यूँ एक बार मैंने एक सेल्सगर्ल की पोल खोलने का असफल प्रयास भी किया था| सी. आई. डी. की तर्ज़ पर मैंने उससे पूछा कि आजकल कौन है तुम्हारे मार्केटिंग विभाग का एच . ओ. डी? मैंने सोचा कि यह घबरा जाएगी, तब मैं इसकी असलियत जान जाउंगी| लेकिन आत्मविश्वास के मामले में वह लडकी किसी से कम नहीं थी| बोली, "मैं तो छः महीने से फील्ड में हूँ| आजकल कौन है मुझे नहीं पता, पहले नीलम मैडम थीं|" मैं निरुत्तर हो गई| सेल्समैन से जहाँ हम घंटों तक माथापच्ची करने की क्षमता रखते हैं, वहीं सेल्सगर्ल की बातों से हम एक दो बार में ही कन्विंस हो जाते हैं|
इन सेल्स वालों की सताई हुई, मैं अक्सर सोचती हूँ कि न यह छठा वेतनमान मिला होता न ही मुझे इन प्रोडक्ट्स को सँभालने में छठी का दूध याद आता|