साथियों, इन दिनों मेरे शिक्षा विभाग में ट्रांसफर को लेकर बड़ी उथल पुथल मची हुई है, सुगम और दुर्गम को लेकर भारी बमचक मची है | दुर्गम में फंसे हुए अध्यापक सुगम में आने को बेकरार हैं और सुगम में जमे हुए अध्यापक दुर्गम से बचने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं | इसी को ध्यान में रखते हुए एक कविता प्रस्तुत है |
दुर्गम ..........
साफ़ - सुथरी आबो - हवा
मीठा - मीठा ठंडा पानी
शुद्ध है दूध दही यहाँ
लौट के आए गई जवानी |
घर - गृहस्थी का जंजाल नहीं
बीवी - बच्चों का मायाजाल नहीं
सब्जी लाने को मना कर दे
ऐसा माई का कोई लाल नहीं |
स्नेह प्रेम और मान मिलेगा
आँखों में सम्मान मिलेगा
आप पढ़ा रहे उनके बच्चे
हर दिल में यह एहसान मिलेगा |
अफसर की फटकार नहीं
छापों की भरमार नहीं
छुट्टी को अर्ज़ी की दरकार नहीं
एक दूजे के के करने में साइन
हम जैसा फ़नकार नहीं |
दूर पहाड़ों पर हम
चढ़ते और उतरते हैं
हर बीमारी को अपनी
मुट्ठी में रखते हैं
और जिस घर से जा गुज़रते हैं
डिनर के बाद ही उठते हैं |
यहाँ पढना क्या पढ़ाना क्या
जोड़ क्या घटना क्या
कहाँ की घंटी वादन कैसा
धेले भर का खर्च नहीं
खाते में पूरा पैसा |
सुगम .......................
मीडिया, पत्रकार, रिपोर्टर
एक टीचर हज़ार नज़र
अफसरों का सुलभ शौचालय
पिघलता नहीं कभी उनकी
शिकायतों का हिमालय |
हर आहट पर दिल
काँपता ज़रूर है
कुत्ता भी गुज़रे सड़क से
एक बार झांकता ज़रूर है |
कोई सफ़ेद गाड़ी
दूर से भी दे दिखाई
डाउन हो जाए शुगर
ब्लड प्रेशर हाई |
अभिभावक हैं अफसर
हर छुट्टी पर रखें नज़र
फ्रेंच की बात तो दूर रही
कैजुअल पर भी टेढ़ी नज़र |
पाई - पाई का हिसाब दीजिये
एक दिन की सौ डाक दीजिये
राजमा की जगह छोले
बच्चा कापी किताब ना खोले
दो - दूनी चार ना बोले
तब भी आप ही जवाब दीजिये |
रोज़ - रोज़ नित नए प्रशिक्षण
सुबह से शाम की कार्यशाला
सिवाय पढ़ाने के बच्चों को
बाकी सब है कर डाला |
हर साल ट्रांसफर की तलवार
सिर में लटकती है
सुगम की नौकरी साथियों
सबकी आंख में खटकती है |
अतः ........................
सुगम के माने सौ - सौ ग़म, यह मान लीजिये
दुर्गम माने दूर हैं गम, यह जान लीजिये |