गुरुवार, 28 नवंबर 2013

आओ गुडलक निकालें .......

आओ गुडलक निकालें ....... 
 
''आप'' -------  आप के ऊपर कॉन्ग्रेस और भाजपा दोनों की दशा एक साथ आई है, जिस कारण से आप की दुर्दशा होने की प्रबल सम्भावना है । आपकी ज़ुबान पर राहु बैठा रहेगा जो किसी न किसी प्रकार कष्ट देता रहेगा । याद रखें  ''ईश्वर और स्टिंग किसी भी भेस में आ सकता है ''। इस दौरान लोगों की सेवा अवश्य करें पर मेवा न लें । सबको अपनी फूंक से उड़ाने की कोशिश करें, लेकिन स्वयं हर कदम फूंक - फूंक कर रखें । घर के बुज़ुर्ग की उपेक्षा न करें । उनकी सेहत का ख्याल रखें अन्यथा वे आपकी सेहत बिगाड़ सकते हैं । 
 
क्या करें ---    इस अवधि में दिन के चौबीस घंटों में से अठारह घंटे सिर्फ '' भ्रष्टाचार'' और ''लोकपाल'' का जाप करें । इनके अलावा कोई और शब्द ज़ुबान पर न लाएं । ध्यान रहे सोते समय भी मुंह खुला न रहने पाए ।   
 
क्या न करें ---  चुनाव होने तक आप अपने बाप पर भी भरोसा न करें । रुपया, पैसा  या  ''हो जाएगा'' जैसे शब्दों से यथासम्भव परहेज़ करें ।


तेजपाल  ----- पिछले कई सालों तक आपकी दृष्टि कन्या राशि वाले जातकों पर पडी हुई थी, लेकिन अब आपके ग्रह चाल उल्टी चल रही है । आजकल आपके ऊपर कन्या राशि की वक्र दृष्टि पड़ रही है, जो आने वाले समय में आपको बहुत कष्ट पहुँचाने वाली है । दाम्पत्य जीवन में कटुता रहेगी । आपके करीबी मित्र आपके साथ विश्वासघात करेंगे । स्त्री पक्ष से सहयोग मिलेगा । इस अवधि में आप धैर्य न खोएं। उच्च संपर्कों का लाभ मिलेगा । आपका कोई भी कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा । 
 
क्या करें ----   इस दौरान आप छह महीने तक सुबह - शाम  चींटियों को चीनी खिलाएं । ध्यान रहे चींटियाँ छोटी और काली हों, लाल नही । लाल चींटियाँ चीनी डाले जाने पर काट भी सकती हैं । 
 
क्या न करें  ---- इस अवधि में ना मछली खाएं, ना उन्हें किसी प्रकार से चारा डालने की कोशिश करें । अगर किसी को चारा डाला हुआ है तो उसे वापिस खींच लें । चिड़ियों को दाना डाल सकते हैं, लेकिन पहले उनके परों को भली प्रकार से तौल लें । 
 
  
 राहुल गांधी -----आपकी राशि पर राहु की महादशा चल रही है । इस दौरान आपकी हर बात का उल्टा अर्थ लगाया जाएगा । इसके अतिरिक्त '' सिंह '' के ऊपर आपकी दशा या फिर कह सकते हैं कि आपके ऊपर '' सिंह  ''राशि की दशा पिछले नौ साल से चल रही है । उम्मीद है कि आगामी वर्ष में आप दोनों इस दशा से मुक्त हो जाएंगे । इस कारण से माता के स्वास्थ्य को कष्ट हो सकता है । यूँ तो आपने व आपके पूरे परिवार ने ज़िंदगी भर चुपड़ी रोटियां खाईं हैं और खिलाईं भीं हैं, लेकिन इस दौरान आप स्वयं सूखी रोटी खाएं और चुपड़ी रोटी दान करें । भाई या बहिन अचल संपत्ति का क्रय कर सकते हैं । 

क्या करें ----रैलियों में भाषण देते समय भावनाओं पर काबू रखें । भावावेग में न खुद बहें, बल्कि सुनने वालों को बहाएं । 
 
क्या न करें ---- इस अवधि में क्रोध न करें । क्रोध की अधिकता, आपके या वोटर , दोनों में से किसके लिए हानिकारक होगी, कहा नहीं जा सकता  । बाहर का भोजन स्वास्थ्य के लिए हितकर नहीं होगा ।
 
 
मोदी -------- आपकी राशि पर इस समय वृहस्पति की दशा चल रही है । वृहस्पति ज्ञान के देवता भी हैं । यह समय आपके सामान्य ज्ञान की परीक्षा का है । विद्याभ्यास के लिए अनुकूल समय है । मित्रों का सहयोग लाभकारी रहेगा । प्रेम प्रसंगों के लिए समय अनुकूल नहीं है । शत्रु पक्ष पर प्रभाव बना रहेगा । वाणी पर संयम बनाये रखना आपके लिए हितकर नहीं होगा । 

क्या करें --- इस दौरान आप किसी भी रैली में भाषण देने से पहले १००८ बार ''ऊँ वृहस्पति देवाय नमः ''का जाप करें, इससे आपके सामान्य ज्ञान में अभूतपूर्व वृद्धि हो जाएगी । विरोधियों पर बिना सबूत के आरोप लगाते रहें । सफलता मिलेगी ।
 
क्या न करें --- आपके ग्रह - नक्षत्र आपकी राशि का पीछा कर रहे हैं अतः आप किसी का पीछा न करें । उपयुक्त समय आने की प्रतीक्षा करें । 

 
महिलाएं ------- महिलाओं के ऊपर राहु, केतु, शनि सबकी दशा एक साथ चल रही है, जो आने वाले कई सालों में भी ऐसी ही रहने वाली है । महिलाएं जिसकी भी ओर नज़र उठाकर देखेंगी वही नर निकल जाएगा । 
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क्या करें ---- पैसा निकालना हो तो बैंक में जाकर लाइन लगाएं या अपने पति की जेब में हाथ साफ़ करें । ऊपर चढ़ना है तो किसी को सीढ़ी न बनाएं बल्कि स्वयं सीढ़ियों का उपयोग करना सीखें । इससे सी. डी. बनने की सम्भावनाएं कम हो जाएँगी एवं स्वास्थ्य और इज्जत दोनों बरक़रार रहेंगे । 
 
क्या न करें -------शादीशुदा महिलाएं इस दौरान ए टी एम् न जाएं । इससे फ़िज़ूलखर्ची पर नियंत्रण रहेगा । कुंवारी कन्याएं लिफ्ट का उपयोग भूल कर भी न करें । 


 
आम आदमी ------ आम आदमी की राशि का स्वामी कोई नहीं होता । बल्कि उसकी तो राशि के होने में भी संदेह है । आम आदमी अपना स्वामी खुद होता है । राहु, केतु इत्यादि उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाते हैं । उसका बिगाड़ कोई कर सकता है तो वह है आलू, टमाटर, प्याज या आटा और दाल । लगभग पूरे वर्ष आम आदमी को ख़ास आदमियों के झक्कास बयानों की वजह से मनोरंजन के भरपूर अवसर प्राप्त होते रहेंगे । 
  
क्या करें ---- आम आदमी को कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं है । इधर हर पार्टी उसी के लिए सोच रही है, और दुबली हो रही है । आम आदमी सुबह, शाम नमो चालीसा का पाठ करते रहे । हमेशा चढ़ते सूरज को अर्घ्य दे , और नमस्कार करे । बहते पानी में हाथ धोए चाहे पूरा नहा ले, उसका कल्याण न कभी हुआ है न कभी होगा । 
 
क्या न करें -----वोट देने से पहले नोट को देखें, नोटा बटन को नहीं । नोट आपका कल्याण कर सकता है, नोटा बटन नहीं । 


 
सरकार ------ आपकी सरकार का स्वामी [ सुब्रह्मण्यम ] आजकल अस्त चल रहा है, इसलिए निश्चिन्त रहें ।  याद रखें मौन एक ब्रह्मास्त्र है । आपकी शान्ति से सभी समस्याओं का समाधान स्वयं हो जाएगा । ईश्वर पर भरोसा रखें, जैसे अभी तक ईश्वर ने आपके ऊपर और आपने ईश्वर के ऊपर रखा हुआ है । उसके सहारे इस साल भी नैया पार हो जाएगी । 
 
क्या करें ----- क्लीन चिटों से विरोधियों को चारों खाने चित्त कर दें । चिटें देते समय चित्त में ज़रा भी विकार न रखें । सरकारी संपत्ति समझकर उन्हें मुक्त हस्त से दान करें । तोता पालें लेकिन उसे राम - राम न सिखाएं । 
 
क्या न करें ----घोटालों की जांच जैसे व्यर्थ के कार्यों में अपनी ऊर्जा एवं समय को नष्ट न करें, उन्हें २०१४ में होने वाले आम चुनावों के लिए बचाकर रखें ।    
[मास्टरनी ]
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 

गुरुवार, 21 नवंबर 2013

अच्छा है इन दिनों.......

अच्छा है इन दिनों....... 
 
तहलका, हल्का हो गया । तेजपाल का तेज निकल गया । एक ज़रा सी की थी गलती , कोई और सज़ा  देगा क्या  ?  क़ुबूल कर लिया गुनाह अपना, छह महीने की ले ली छुट्टी , इतनी सजा कम है क्या ?
 
''आप'' ने कर दिए आप से, ढेर सारे चुनावी वादे । ख़त्म होगा भ्रष्टाचार अब जड़ से , बिजली, पानी के बिल होंगे आधे । 
 
चेले की रफ़्तार से, चंदे की भरमार से, अन्ना जी नाराज़ हैं, सिक्कों की छनकार से । हिसाब मांग रहे पाई -पाई । अब जाकर सरकार को कुछ राहत आई । सांस में अटकी सांस वापिस लौट के आई ।
 
दक्षिण में हेलेन के तूफ़ान की आहट है । उत्तर में रामदेव की आफत है । एक दिन में मुक़दमे इक्यासी, इसको कहते योग सियासी । 
 
जिनको  सम्मन चाहिए, उनको सम्मान मिल गया । जेल से भी लड़ सकेंगे चुनाव मान्यवर, अब ऐसा वरदान मिल गया । 
 
मुम्बई में शुरू हो गया महिलाओं का बैंक पहला । ए. टी. एम. के अंदर हुआ बंगलुरु में हमला । 
जासूसी में टूट गए रिकॉर्ड सारे अगले - पिछले  । ये साहेब तो छुपे हुए रुस्तम निकले । 
 
शुक्र है ! फिर से क्रिकेट को, मिल गया अपना भगवान् । उनका जाना था, इनका आना था । बिन भक्तों के एक भी दिन, रह न सके करुणानिधान ।   
 
रैलियों के दिन आ गए । एक - दूसरे के बैरियों के दिन आ गए । आँखें टी वी पर चिपकाए हुए हम, ज़ुबानी जंग देखेंगे । लोकतंत्र के नित नए, निराले रंग देखेंगे ।    [ मास्टरनी ]
 
 
 
   
 
 

सोमवार, 18 नवंबर 2013

तोता, मिर्च और महिलाओं का सम्मान ....

तोता मिर्च खाना पसंद करता है, यह बात मालूम तो थी लेकिन पहली बार देखा कि तोता न केवल मिर्च खाता है बल्कि मिर्च उगलता भी है ।
 
भला हो माननीय महोदय के इस बयान का कि मुझे सी. बी. आई. के निदेशक का नाम याद हो गया । मैं अभी तक जोगिन्दर सिंह को ही सी. बी. आई. का निदेशक समझती थी । विगत कुछ समय से ऐसा महसूस किया गया है कि इस प्रकार के बयान आम आदमी के सामान्य ज्ञान को बढ़ाने में बहुत मददगार सिद्ध हुए हैं  । इन्ही बयानों की वजह से मुझे भिन्न - भिन्न पदों पर बैठे अभिन्न लोग और उनके बड़े - बड़े पदों के नाम याद हो गए ।

 बहुत छोटी सी बात थी, जिसका बिला वजह बतंगड़ बनाया गया ।  एक निदेशक जैसी हस्ती को महिलाओं ने माफी मांगने पर मजबूर किया गया । जबकि बाद में उन्होंने यह बात स्पष्ट रूप से कही कि महिलाओं वे का बहुत सम्मान करते हैं । जहाँ सम्मान की मात्रा ज्यादा होने लगता है, वहाँ सम्मान - सम्मान में ऐसी बातें अक्सर मुंह से निकल जाती है । इसमें मेरी बहिनों को हंगामा नहीं खड़ा करना चाहिए ।

हमारे देश में महिलाओं को सम्मान देने की बहुत प्राचीन परंपरा है । उन्हें सदा सम्मान के साथ देखा जाता है । ऐसा सम्मान दुनिया के किसी भी देश में देखने को नहीं मिलता । नवरात्र के दिनों में लोग कन्या पूजन के दिन जिस श्रद्धा से कन्याओं के चरण स्पर्श करते हैं उसी श्रद्धा से बाकी दिन उसके शरीर के बाकी हिस्सों को स्पर्श करते हैं ।

बात सिर्फ इतनी है कि हमारे देश में महिलाओं के सम्मान की आपूर्ति इसकी मांग के अपेक्षा काफी कम है । मांग और पूर्ति में संतुलन न होने के कारण अक्सर इस तरह की गलतफहमियां पैदा हो जाती हैं । महिलाएं कहती हैं उन्हें सम्मान नहीं चाहिए बल्कि उनके साथ एक आम इंसान की तरह पेश आया जाए । लेकिन वे हैं कि सम्मान करने पर तुले हुए हैं । उनका कहना भी सही है '' हम तुम्हें सम्मान दे सकते हैं लेकिन इंसान नहीं समझ सकते '' ।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ पुरुष ही महिलाओं का सम्मान करते हैं । कई महिलाएं भी महिलाओं को बहुत सम्मान देती हैं । इनमे से एक महिला आयोग की अध्यक्ष हैं । ये वही हैं जो कभी कहा करती थीं '' महिलाओं को '' सैक्सी'' शब्द पर ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिए, बल्कि सैक्सी शब्द को सुनकर खुश होना चाहिए । उनके ऐसे उदगार सुनकर देश में खुशी की लहर दौड़ गयी थी । लड़का, लड़की को  देखने जाता, पसंद आती तो कहता ''मैं शादी के लिए तैयार हूँ लड़की बहुत सैक्सी हैं '' या जब कोई किसी की नवजात कन्या को देखता तो कहता '' कितनी सैक्सी बच्ची है, बिलकुल अपनी माँ पर गयी है ''। वह तो भला हो उन्होंने अपने शब्द वापिस ले लिए वर्ना आज देश में एक नई भाषाई क्रान्ति का सूत्रपात हो गया होता । 'सुन्दर' शब्द को 'सैक्सी' शब्द ने रीप्लेस कर दिया होता । वही अध्यक्षा आज बहुत व्यथित हैं और निदेशक महोदय का इस्तीफ़ा मांगने में सबसे आगे हैं । वे इस्तीफा मांग रही हैं तो बात अवश्य बहुत गम्भीर होगी । सिन्हा साहब को फ़ौरन इस्तीफ़ा दे देना चाहिए ।
 
 विरोध करने वाली महिलाओं का यह स्पष्ट मानना है कि किसी ज़िम्मेदार पद पर बैठे हुए व्यक्ति को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए । हाँ, अगर वे इस पद पर नहीं होते तो कोई कुछ नहीं कहता । इस तरह की बात न केवल कहने की बल्कि करने की भी स्वतंत्रता तो सिर्फ आम आदमी को है, जिसका इस्तेमाल वह जब चाहे तब कर सकता है, और करता भी रहता है ।
 
इससे अच्छे तो वह लोग होते हैं जो महिलाओं का सम्मान नहीं करते बल्कि उनके साथ बराबरी का व्यवहार करते हैं । सम्मान देने वाला व्यक्ति '' बेटी यहाँ बैठ जाओ '' कहकर बस या ट्रैन में तुरंत अपनी सीट को छोड़ देता है । खुद खड़े हो जाता है और मौका मिलते ही लगे हाथ खड़े - खड़े ही सम्मान देना शुरू कर देता है । बेटी शब्द के सम्मान के बोझ तले दबी महिला कुछ कह भी नहीं पाती है, क्यूंकि आस - पास बैठे सभी यात्रियों ने उसे ''बेटी'' कहते हुए सुना होता है । 
 
अभी हाल ही में एक अभिनेत्री को सांसद ने बार - बार स्पर्श किया । अभिनेत्री ने ऍफ़ आई आर करा दी, फिर वापिस भी ले ली । शायद सांसद महोदय ने यह कहा होगा कि 'तुम गलत  समझीं । मैं तो तुम्हे बेटी मानकर छू रहा था'' ।

कमी हम महिलाओं के अंदर है जो हम पुरुषों का इस स्तर पर सम्मान नहीं करती हैं । दरअसल हम महिलाओं का शब्द भण्डार ज़रा कम होता है, या यह भी हो सकता है कि सच बोलने में हम महिलाएं शर्म महसूस करती हों । हमें उपयुक्त शब्द को उपयुक्त समय पर प्रयोग करना नहीं आता ।  हम पुरुषों को ''चंट माल '' नहीं कह पाती हैं । हम यह भी नहीं कह पातीं कि '' रेप करने वाले न भारत में होते हैं, न इण्डिया में, बल्कि मंगल गृह से आते हैं' '। हम यह भी नहीं कहती हैं कि '' पति जवान हो चाहे बूढ़ा, मन का न हो किसी भी उम्र में मज़ा नहीं देता'' । और तो और यह कहते भी हमसे नहीं बनता कि '' पुरुष घरों से बाहर ही न निकलें तो बलात्कार जैसी घटनाएं नही होंगी '', या यह कि '' शोक सभा में भी कतिपय पुरुषों की नज़रें स्त्री के शरीर पर  ही जमी रहतीं 
  हैं'' ।

गुरुवार, 7 नवंबर 2013

, ''एक नेता ने टिकट ना मिलने के कारण आत्महत्या कर ली ''

आज अचानक टेलीविज़न  के खबरिया चैनल बदलते - बदलते, सहसा एक ख़बर पर नज़र पड़ गई | यूँ आजकल नज़रें या तो मोदी पर पड़ती हैं या राहुल पर ।  लेकिन इस अप्रत्याशित खबर पर नज़र क्या पड़ी, वहीं अटक कर रह गई | खबर थी, ''एक नेता ने टिकट ना मिलने के कारण आत्महत्या कर ली '' । इस तरह की ख़बरें विरले ही देखने को मिलती हैं । एक बार कुछ साल पहले भी ऐसी ही अखबार में पढ़ने को मिली थी । तब खबर दूसरे तरह की थी । उसमे नेताजी ने अपनी पत्नी को टिकट न मिल पाने के कारण आत्महत्या कर ली थी | पेज-थ्री की नग्न तस्वीरों और तथाकथिक सोशलाइट्स की आये दिन होने वाली पार्टियों की  चकाचौंध को देखने की आदी नज़रें इस ख़बर को देखकर ठिठक कर रह गईं | लगा कि भारत - वर्ष में एक नई और स्वस्थ परंपरा की शुरुआत हो गई है |
 
आज तक लोगों ने आत्महत्या के परम्परागत कारण ही सुने होंगे, यथा - ग़रीबी और बेकारी से तंग नौजवान; किसानों द्वारा फसल न होने या क़र्ज़ न चुका पाने की स्थिति में सामूहिक रूप से; ससुराल से तंग या दहेज़ की मांग पूरी न हो पाने के कारण सदियों से प्रताड़ित बहुएँ; साथी  की बेवफ़ाई के कारण;  कुंवारी,  गरीब लड़कियों की सामूहिक तौर पर और एक्ज़ाम में फ़ेल होने पर तो लोग अक्सर आत्महत्या कर लेते हैं | इधर बीते कुछ सालों से लेटेस्ट मोबाईल या बाइक न मिल पाने के कारण; घर में माँ - बाप की ज़रा सी डांट खाकर; स्कूलों में टीचर द्वारा फटकार दिए जाने पर,और  डिप्रेशन जैसी अत्याधुनिक बीमारी, जिसे हमने विदेशों से खासतौर पर देश के ख़ास लोगों के लिए एक्सपोर्ट किया है, के कारण  भी युवा वर्ग आत्महत्या  करने  लगा है | हां, प्रेम में असफल लोगों द्वारा मौत को गले लगाने का ग्राफ तेजी से नीचे  गिर रहा है | प्रेम समझदार हो चला है, असफल रहने पर आत्महत्या करने की आवश्यकता नहीं समझता, अपितु प्रेम  में जितनी ज्यादा असफलताएं  मिलती हैं, व्यक्तित्व उतना निखरता जाता है.  
   

बंधुओं, सदियों से आम लोगों को नेतागणों  से यह शिकायत रही है कि हमेशा उन्हें ही नेताओं के द्वारे जा-जाकर आत्महत्या करनी पड़ती है, किसी नेता को कभी किसी ने आत्महत्या करते न देखा न सुना | ऐसे, सदा-शिकायती लोगों की ज़ुबान को नेताजी ने अपने  अमूल्य जीवन का  बलिदान देकर सदा के लिए चुप करा  दिया है | आम जन को इस शहीद नेता की नीयत  पर ज़रा भी शक नहीं करना चाहिए | हमारे देशवासियों की यह बहुत ही ग़लत आदत है कि नेता के अच्छे काम को भी  वे शक की नज़र  से ही देखते हैं | हो न हो यह स्वर्गीय नेता अपनी पत्नी से बेपनाह मुहब्बत करता होगा और आजकल की पत्नियां किस पल क्या मांग बैठें, कुछ नहीं कहा जा सकता । नेता  जी ने अपनी पत्नी से पूछा होगा,  ''कहो प्रिये! तुम्हें क्या लाकर दूँ? कहो तो आसमान में जाकर चाँद-तारे तोड़ लाऊं''? पत्नी ने कहा होगा, ''चाँद का क्या अचार डालूंगी ? और तारों से मेरा क्या भला होगा? मुझे तो तुम फ़लानी पार्टी का टिकट लाकर दो, तभी मानूंगी कि तुम मुझसे सच्चा प्यार करते हो |'' पति चाँद-तारों को तोड़ने की तैयारी  कर रहा होगा कि अचानक चुनाव का टिकट बीच  में आ गया | कहना न होगा कि पति ने तरह-तरह के प्रलोभन दिए होंगे - होनोलूलू से लेकर टिम्बकटू तक का टिकट सेवा में प्रस्तुत किया होगा | मल्टीप्लेक्स का महंगा से महंगा टिकट भी पत्नी की इस अनोखी मांग को रिप्लेस नहीं कर पाया होगा । ''सारी खुदाई एक तरफ, पार्टी की टिकट कटाई एक तरफ'' सच है कि राजनीति का दुनिया की कोई भी भौतिक वस्तु मुकाबला नहीं कर सकती । जन सेवा की भावना ऐसी ही होती है, जब उछाल मारती है तो उसे दुनिया का कोई प्रलोभन नहीं रोक सकता ।

 

लेकिन टिकट काटने वालों ने यानी हाईकमान ने पत्नी के प्रति उनका समर्पण और निष्ठा को  नहीं देखा होगा | टिकट उसी का कटा जिसने  काटा होगा । चेक जितना बड़ा कटता है, पार्टी के प्रति  निष्ठा उतनी बड़ी समझी जाती है | चेक की बड़ी राशि की निष्ठा ने पत्नी के प्रति छोटी निष्ठा को धराशाही कर दिया होगा |


सरकार को इस प्रेमपुजारी, शहीद नेता की याद में डाक टिकट जारी करना चाहिए, उसकी पत्नी के लिए हर पार्टी अपने द्वार खुले रखे, वो चाहे तो किसी पार्टी का दामन थाम सकती है या चाहे तो निर्दलीय चुनाव लड़ सकती है, क्यूंकि भारतीय लोकतंत्र में उसकी जीत हर हाल में तय है ।