रविवार, 20 जनवरी 2013

आह जनाब ! वाह जनाब ! क्या खूब कह डाला जनाब !

आह जनाब ! वाह जनाब ! क्या खूब कह डाला जनाब !

हमारे लिए इंडिया और भारत और भारत में फर्क कर डाला जनाब ! इतना बड़ा घोटाला जनाब !

व्यभिचारी हैं हम, दुराचारी हैं हम, बलात्कारी हैं हम । पूरा वतन है शिकार हमारा ।

श्रीमान ! जब हम राजनीति में आएँगे, तब भारत और इंडिया को अलग कर पाएंगे ।

हमारे लिए क्या भारत क्या इंडिया ! क्या पक्की सड़क क्या पगडण्डीयाँ !

हमारा स्त्री से इतना ही नाता है । पचास की हो या पांच की, हमारी नज़रों में सिर्फ मादा है । 

आपकी इस बात में सच्चाई है । देश तो एक है लेकिन दूसरी उससे अलग चलने वाली परछाई है ।

दोनों जगह हमारे चरित्र एक, पर रूप अलग हैं,  भारत हो या इण्डिया स्वरुप अलग - अलग हैं

इण्डिया में हम गाड़ियों में काले शीशों के अन्दर, ऑफिस में केबिन के अन्दर, सुनसान गलियों, व्यस्त चौराहों में शिकार की तलाश में चला करते हैं वाचमैन, ड्रायवर, कंडक्टर, घरेलू नौकर का रूप धरकर, कभी मित्र कभी अजनबी बनकर मिला करते हैं ।


चाहे आपको घिन आए चाहे आपका मन खिन्न हो जाए पर भारत में हमारा रूप ज़रा भिन्न किस्म का होता है ।

यहाँ हम घरों के अन्दर आस्तीनों में पला करते हैं । पड़ोसी, नातेदार, रिश्तेदार, परम पूज्य, परम  हितैषी, पास - पड़ोसी, जान - पहचान वाले, सौतेले और सगे, वन्दनीय, आदरणीय, दूर पास के रिश्तों वाले, हम प्याले, हम निवाले, स्कूलों में शिक्षा देने वाले, पास करने का लालच, फेल करने की  धमकी देने वाले का रूप लिया करते हैं ।

साहेबान ! यहाँ दूर तक फैले हुए खेत - खलिहान, हमारे छिपने के लिए हैं सर्वोत्तम स्थान ।

इधर भारत में बलात्कार पर भारी पड़ता है लोकाचार । जीत जाती है शर्म और लाज । दुराचार की बात रह जाती है राज।

हकीकत ये है कि भारत में रिपोर्टें दर्ज होती ही नहीं। और आप हैं कि फरमाते हैं बलात्कार इण्डिया में होते हैं भारत में नहीं ।