बस यूँ ही ..............
जय - जयपुर में .......
गहन चिन्तन था ।
थोडा मंथन था ।
थोडा क्रंदन था ।
एक का नन्दन था ।
जिसका वंदन था ।
उसके खानदान का ।
सामूहिक अभिनन्दन था ।
घटकरी जी के लिए ........
कभी हँसना है कभी रोना है
मानो या न मानो
ज़िंदगी एक खिलौना है
ये सरासर बदमाशी है किस्मत की
कि एक तरफ सर पे ताजपोशी है
दूसरी ओर अदालत में पेश होना है