क्यूँ ???????????
क्यूँ.............इनके लिए नियुक्त हों वकील ? क्यूँ सुनी जाए दलील ? अपराध क़ुबूल कर लिया, फिर क्यूँ मिले ढील ? जगह - जगह क्यूँ बदलें अदालतें ? क्यूँ बख्शी जाएं इन्हें सुनवाई की राहतें ? राक्षसों को पक्ष रखने का मौका क्यूँ मिले आखिर ? जब सजा के सारे रास्ते साफ़ हैं, तब इतनी देर किसकी खातिर ?
क्यूँ ..........इनको मानसिक बीमार ठहराया जाए ? परिस्थितियों को ज़िम्मेदार क्यूँ माना जाए ? लानत है ऐसी बहसों पर, तर्कों और वितर्कों पर । शर्म हो धिक्कार हो, इन क्षुद्र जीवियों को भी कड़ी फटकार हो ।
क्यूँ नहीं .........तुरंत होता है फांसी का निर्धारण, हर चैनल दिखलाए सीधा प्रसारण । जब इनको लटकाया जाए, चेहरे से नकाब हटाया जाए । क्लिपिंग दिखलाई जाए लगातार, दुनिया देखे इनकी चीत्कार । दरिंदों के जब दहलेंगे दिल, तब कारगर होगा एंटी रेप बिल । दिल में जब खौफ भरेगा, तभी सच्चा इन्साफ मिलेगा ।