सोमवार, 18 नवंबर 2013

तोता, मिर्च और महिलाओं का सम्मान ....

तोता मिर्च खाना पसंद करता है, यह बात मालूम तो थी लेकिन पहली बार देखा कि तोता न केवल मिर्च खाता है बल्कि मिर्च उगलता भी है ।
 
भला हो माननीय महोदय के इस बयान का कि मुझे सी. बी. आई. के निदेशक का नाम याद हो गया । मैं अभी तक जोगिन्दर सिंह को ही सी. बी. आई. का निदेशक समझती थी । विगत कुछ समय से ऐसा महसूस किया गया है कि इस प्रकार के बयान आम आदमी के सामान्य ज्ञान को बढ़ाने में बहुत मददगार सिद्ध हुए हैं  । इन्ही बयानों की वजह से मुझे भिन्न - भिन्न पदों पर बैठे अभिन्न लोग और उनके बड़े - बड़े पदों के नाम याद हो गए ।

 बहुत छोटी सी बात थी, जिसका बिला वजह बतंगड़ बनाया गया ।  एक निदेशक जैसी हस्ती को महिलाओं ने माफी मांगने पर मजबूर किया गया । जबकि बाद में उन्होंने यह बात स्पष्ट रूप से कही कि महिलाओं वे का बहुत सम्मान करते हैं । जहाँ सम्मान की मात्रा ज्यादा होने लगता है, वहाँ सम्मान - सम्मान में ऐसी बातें अक्सर मुंह से निकल जाती है । इसमें मेरी बहिनों को हंगामा नहीं खड़ा करना चाहिए ।

हमारे देश में महिलाओं को सम्मान देने की बहुत प्राचीन परंपरा है । उन्हें सदा सम्मान के साथ देखा जाता है । ऐसा सम्मान दुनिया के किसी भी देश में देखने को नहीं मिलता । नवरात्र के दिनों में लोग कन्या पूजन के दिन जिस श्रद्धा से कन्याओं के चरण स्पर्श करते हैं उसी श्रद्धा से बाकी दिन उसके शरीर के बाकी हिस्सों को स्पर्श करते हैं ।

बात सिर्फ इतनी है कि हमारे देश में महिलाओं के सम्मान की आपूर्ति इसकी मांग के अपेक्षा काफी कम है । मांग और पूर्ति में संतुलन न होने के कारण अक्सर इस तरह की गलतफहमियां पैदा हो जाती हैं । महिलाएं कहती हैं उन्हें सम्मान नहीं चाहिए बल्कि उनके साथ एक आम इंसान की तरह पेश आया जाए । लेकिन वे हैं कि सम्मान करने पर तुले हुए हैं । उनका कहना भी सही है '' हम तुम्हें सम्मान दे सकते हैं लेकिन इंसान नहीं समझ सकते '' ।

ऐसा नहीं है कि सिर्फ पुरुष ही महिलाओं का सम्मान करते हैं । कई महिलाएं भी महिलाओं को बहुत सम्मान देती हैं । इनमे से एक महिला आयोग की अध्यक्ष हैं । ये वही हैं जो कभी कहा करती थीं '' महिलाओं को '' सैक्सी'' शब्द पर ज्यादा परेशान नहीं होना चाहिए, बल्कि सैक्सी शब्द को सुनकर खुश होना चाहिए । उनके ऐसे उदगार सुनकर देश में खुशी की लहर दौड़ गयी थी । लड़का, लड़की को  देखने जाता, पसंद आती तो कहता ''मैं शादी के लिए तैयार हूँ लड़की बहुत सैक्सी हैं '' या जब कोई किसी की नवजात कन्या को देखता तो कहता '' कितनी सैक्सी बच्ची है, बिलकुल अपनी माँ पर गयी है ''। वह तो भला हो उन्होंने अपने शब्द वापिस ले लिए वर्ना आज देश में एक नई भाषाई क्रान्ति का सूत्रपात हो गया होता । 'सुन्दर' शब्द को 'सैक्सी' शब्द ने रीप्लेस कर दिया होता । वही अध्यक्षा आज बहुत व्यथित हैं और निदेशक महोदय का इस्तीफ़ा मांगने में सबसे आगे हैं । वे इस्तीफा मांग रही हैं तो बात अवश्य बहुत गम्भीर होगी । सिन्हा साहब को फ़ौरन इस्तीफ़ा दे देना चाहिए ।
 
 विरोध करने वाली महिलाओं का यह स्पष्ट मानना है कि किसी ज़िम्मेदार पद पर बैठे हुए व्यक्ति को ऐसा बयान नहीं देना चाहिए । हाँ, अगर वे इस पद पर नहीं होते तो कोई कुछ नहीं कहता । इस तरह की बात न केवल कहने की बल्कि करने की भी स्वतंत्रता तो सिर्फ आम आदमी को है, जिसका इस्तेमाल वह जब चाहे तब कर सकता है, और करता भी रहता है ।
 
इससे अच्छे तो वह लोग होते हैं जो महिलाओं का सम्मान नहीं करते बल्कि उनके साथ बराबरी का व्यवहार करते हैं । सम्मान देने वाला व्यक्ति '' बेटी यहाँ बैठ जाओ '' कहकर बस या ट्रैन में तुरंत अपनी सीट को छोड़ देता है । खुद खड़े हो जाता है और मौका मिलते ही लगे हाथ खड़े - खड़े ही सम्मान देना शुरू कर देता है । बेटी शब्द के सम्मान के बोझ तले दबी महिला कुछ कह भी नहीं पाती है, क्यूंकि आस - पास बैठे सभी यात्रियों ने उसे ''बेटी'' कहते हुए सुना होता है । 
 
अभी हाल ही में एक अभिनेत्री को सांसद ने बार - बार स्पर्श किया । अभिनेत्री ने ऍफ़ आई आर करा दी, फिर वापिस भी ले ली । शायद सांसद महोदय ने यह कहा होगा कि 'तुम गलत  समझीं । मैं तो तुम्हे बेटी मानकर छू रहा था'' ।

कमी हम महिलाओं के अंदर है जो हम पुरुषों का इस स्तर पर सम्मान नहीं करती हैं । दरअसल हम महिलाओं का शब्द भण्डार ज़रा कम होता है, या यह भी हो सकता है कि सच बोलने में हम महिलाएं शर्म महसूस करती हों । हमें उपयुक्त शब्द को उपयुक्त समय पर प्रयोग करना नहीं आता ।  हम पुरुषों को ''चंट माल '' नहीं कह पाती हैं । हम यह भी नहीं कह पातीं कि '' रेप करने वाले न भारत में होते हैं, न इण्डिया में, बल्कि मंगल गृह से आते हैं' '। हम यह भी नहीं कहती हैं कि '' पति जवान हो चाहे बूढ़ा, मन का न हो किसी भी उम्र में मज़ा नहीं देता'' । और तो और यह कहते भी हमसे नहीं बनता कि '' पुरुष घरों से बाहर ही न निकलें तो बलात्कार जैसी घटनाएं नही होंगी '', या यह कि '' शोक सभा में भी कतिपय पुरुषों की नज़रें स्त्री के शरीर पर  ही जमी रहतीं 
  हैं'' ।