सोहनी की मटकी फूटी, निकली बाहर अनुराधा,
देखे मजनूँ 'चंदू' को, मेरा भूत कहाँ से आया?
कहती वो, हमारा मिलन है जन्मों का वादा,
उसके नाम से 'मोहन' जुड़ा, मेरे नाम से 'राधा',
हम से पूछो हम बताएँ
'रा' निकालो अनुराधा से, 'ह' निकालो मोहन से,
'ऊ' की मात्रा जोड़ जो आए, वही हो तुम कसम से.
राधा के प्यार से टक्कर लोगी, नए ज़माने की तुम नार.
इतनी बड़ी वकील हो, तर्क भी सब के सब हैं बेकार.
पर इतना तो दुनिया जानती है
राधा ने ना धर्म बदला, ना तोड़ा कोई घर बार.........शेफाली
प्रिय शेफाली जी, अनुराधा और चन्द्र मोहन का प्रसंग कुछ दिमाग मे घुस नहीं पाया. अंत की बात कुछ समझ आयी. सच मे राधा ने किसी का घर नहीं बिगाडा. और धरम बदलने की जरूरत नहीं थी क्योकि वो सिर्फ एक धर्म को जानती थी.
जवाब देंहटाएंyour poem is very fine
जवाब देंहटाएंsas bahu wali kavita bhi bahut achi lagi i like your poem
जवाब देंहटाएंples give me your gmail.id
जवाब देंहटाएंजय हो!
जवाब देंहटाएंव्यंगकारी अच्छी, कलम तेज धार है।
जवाब देंहटाएंविचार उम्दा हैं,
राहू... ! भई वाह
जवाब देंहटाएंराहू... ! भई वाह
जवाब देंहटाएं