साथियों महिलाओं का सरनेम कैसे बदलता है ....इस पर मैंने बहुत रिसर्च करी ...कई बहिनों के इंटरव्यू लिए ..उनके सरनेम के इतिहास को जाना ....जिनके आधार पर यह निष्कर्ष निकला ....
एक महिला का ऐसे बदला सरनेम
जब में नई नवेली
दुल्हन बनी थी अलबेली
कहा मैंने नए -नवेले से
तुम करना मुझको इतना प्यार
मुझ पर करना सारे नोट निसार
सरनेम की तो बात ही छोड़ो
हैं खानदान में तुम्हारे जितने नेम
अपने नेम में लगा लूंगी
चरणों में तुम्हारे पड़ी रहूंगी
हो जाए जो करवा चौथ हर महीने
सुबूत प्रेम के दिया करूंगी
खुद को आज से श्रीमती
मीना राज तिवारी कहूंगी
खबर दे दी है मैके को
सारे मित्रों रिश्तेदारों को
अबसे मेरा नाम यही पढ़ना
ख़त मुझको इस नाम से लिखना
जब हुई सास से मेरी तकरार
छः माह में पहली बार
प्राणनाथ ने लिया था
अपनी मम्मा का फेवर
तब पहली बार मैंने
दिखलाया अपना ऐसा तेवर
घट गया था दिल में
जो भरा हुआ था प्रेम
छोटा कर दिया मैंने
अपना बड़ा सा नेम
करवा चौथा के दिन गलती से
पी लिया था पानी
खानदानी नाम पे अबकी
चल गयी मेरी कटारी
बस रह गयी थी में अब
श्रीमती मीना राज तिवारी
बीत गयी जब प्रथम वर्षगाँठ
पति से खाई पहली डांठ
दिल में पड़ गयी थी ऐसी गाँठ
अबकी बार गिरी थी उसके
छोटे नेम पर बड़ी सी गाज
करवा चौथ के दिन
हाय में अनजानी
भूल से खा बैठी थी
नॉन वेज बिरयानी
सात जन्मों के प्यार की आई अबकी बारी
रह गयी बस मै श्रीमती मीना तिवारी
तीसरी बार जब हुई सिर फुटव्वल
मुश्किल से हुई थी मान मुनव्वल
अलग हो गए थे अबकी चूल्हे
सास ससुर रह गए अकेले
बच्चे आ गए गोदी में
प्यार चला गया रद्दी में
करवा चौथ के दिन
गलती से कमबख्त
खाना खा गयी दोनों वक़्त
नाम के बारे में काफी है इतना कहना
सिकुड़कर रह गया बस श्रीमती मीना
बड़े हो गए जब बच्चे
हो गयी मैं थोडा सा फ्री
कानों से जब सुना ये मैंने
उत्पीड़न का दूजा नाम है स्त्री
खुल गईं आँखें देख के दुनिया सारी
कहाँ पहुँच गईं बहिने मेरी
वहीं की वहीं रह गयी मैं बेचारी
वूमेन कांफ्रेंस, महिला मोर्चा
स्त्री विमर्श का चहुँ और चर्चा
इन सब के चक्कर मै
दिमाग हो गया घनचक्कर
इस बार जो भूली करवाचौथ
फिर कभी नहीं आया याद
श्रीमती पर हुआ फाइनल वज्रपात
बस मीना हूँ इस तरह साथियों मैं आज ...
कुछ झगड़े संसार से नहीं अपने आप से भी होते हैं अपने अंदर ही चलते हैं। खैर, जो किसी के लिए महत्वपूर्ण हो वह किसी अन्य के लिए हास्य की सामग्री भी हो सकती है। अलग अलग दृष्टिकोण हैं।
जवाब देंहटाएंवैसे जब समस्या से निपटना कठिन हो तो हास्य भी एक साधन हो सकता है।
घुघूती बासूती
घुघूती जी ...औरत के रूप में पैदा होना ही अपने आप में एक समस्या है ....हर कदम पर संघर्ष है ....उन्हीं संघर्षों के बीच में थोड़ा सा हंसी मज़ाक हो जाए तो जिन्दगी आसान हो जाती है ...ऐसा मेरा मानना है ...वैसे आपको बधाई आपके ब्लॉग से आपकी जुगनू वाली पोस्ट अमर उजाला में छपी है ...आपसे मेल के द्वारा पत्रव्यवहार संभव नहीं है ...वर्ना वहीं बता देती ...
जवाब देंहटाएंबढिया है .
जवाब देंहटाएंबहिन शेफाली जी!
जवाब देंहटाएंस्त्री की व्यथा एक करारा और रोचक व्यंग है। इसके लिए बधाई।
लुधियाना पंजाब में बैठा हूँ। आपका ब्लाग पढ़ रहा हूँ।
दूसरी बार भी श्रीमती मीना राज तिवारी ही बनी रही. कहीं कोई गड़बड़ तो नहीं है. या हमारे समझ का फेर. बढ़िया लगा. आभार.
जवाब देंहटाएंइसे व्यंग्य माने या हास्य-लिखा बहुत सटीक है.
जवाब देंहटाएंआपकी लगभग हर रचना में तीखा व्यंग्य रहता है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया
धन्यवाद शेफ़ाली जी, आपसे सहमत हूँ। मेल व्यवहार हो सके इसका जुगाड़ करती हूँ।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
पहली बार मीना राज प्रेम तिवारी था ...गलती से प्रेम नहीं टाइप हो पाया ....सुबरमनियम जी का धन्यवाद ..
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर और सटीक
जवाब देंहटाएंपर टीक की तरह मजबू
त
और टिकाऊ
आप चुनाव की नाव
दें छोड़ पर
नहीं छोड़ सकतीं और
न चाहिए छोड़ना
लिखना व्यंग्य
यही तो हैं सच्चाईयां
कड़वी तीखी मधुर मीठी
किसी के लिए मधुर
किसी के लिए तीखी।
sahi kaha ..hasy jiivan mai jaroori hai kuch pal ki bekhudi ke liye.
जवाब देंहटाएंश्रीमती मीना राज प्रेम तिवारी से मीना बनने की रोचक दास्तान ने मुस्कराहट ला दी.
जवाब देंहटाएं:)
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