शनिवार, 18 जुलाई 2009

टी. वी . पर जगमगाता हुआ ये कौन सा ज़माना है?

साथियों , टी. वी . पर जगमगाता हुआ , चमचमाता हुआ ये कौन सा ज़माना है जो पहली तारीख को खुश होता है , मीठा खाना खाता है ? क्या ये वाकई हमारे देश के एक आम आदमी के जीवन संघर्ष की सही तस्वीर पेश करता है ?
 
टी . वी . पर रोज़ रोज़ आते
विज्ञापन को देखकर
बेटे से रहा ना गया
बोला .................
पापा , पहली तारीख को
मम्मी क्यूँ नहीं ऐसे
हँसती, खिलखिलाती
नाचती और गाती है ?
क्यूँ नहीं,आपका हाथ पकड़कर
 कभी बागों में घूमने
और कभी
सिनेमा देखने जाती है ?
क्या हमारे घर पहली तारीख
कभी नहीं आती है ?
सुनने पर उन्होंने बेटे से कहा
बेटा ! हमारे घर
अनगिनत बीमारियाँ
रिश्तेदारों की तीमारदारियां 
बनिए की उधारियाँ 
पहाड़ हो चुकी जिम्मेदारियाँ 
सहमे हुए बच्चों की 
टूटी फूटी फरमाइशें 
पत्नी की अधूरी ख्वाहिशें  
दोस्तों के ताने
पुराने दर्द भरे गाने
अनसुनी की गयी ज़रूरतें 
घरवालों की बैचैन सूरतें 
सपने में करोड़ों के प्रश्न 
उधारी ले के भी जश्न 
माहौल  में घुटन 
रिश्तों में टूटन 
सुरसा सी महंगाई 
पड़ोसियों की जगहंसाई 
मीलों लम्बे सन्नाटे 
कर्जदारों की आहटें 
अधूरी अधूरी सी चाहतें 
मुट्ठी भर राहतें 
राशन के बिल 
बैठता हुआ दिल 
माँ की लाचारी 
गठिया की बीमारी 
मरने की मनौतियाँ 
खर्चों में कटौतियां 
रिटायर्ड   बाप की बेबसी
जवान बेटी की
खोखली हंसी
इंटरव्यू के ढेरों लेटर
लिफाफों में फंसता मैटर
बेटे की नौकरी का इंतज़ार
दिन पर दिन
गहराता अन्धकार
घनघोर निराशा
जीवन से हताशा
नुवान की गोलियाँ
सल्फास की शीशियाँ
चोरी छिपे लाई जाती हैं
पहली तारीख के आने से
पहले ही
केलेंडर पर लिखी
देनदारियों पर नज़र टिक जाती है
जहां मीठे बोल बोले
बरसों बीत जाते हैं
मिलने वाले भी
कीडों वाली केडबरी ले के
चले आते हैं
उस घर में बेटे !
जिन्दगी बीत जाती है
लेकिन
पहली तारीख कभी
नहीं आ पाती है ....
 
 
 
 
 
 
 

मंगलवार, 14 जुलाई 2009

सिर्फ और सिर्फ टिप्पणियों की बदौलत

सिर्फ और सिर्फ टिप्पणियों की बदौलत
पूरी हुई सौ पोस्ट की यह दौलत ...
ब्लॉग जगत के मेरे साथियों आज अपनी यह सौवीं पोस्ट मैं अगर लिखने के काबिल हुई  हूँ ...तो वह सिर्फ आप लोगों की टिप्पणियों के कारण ....पिछले सात आठ सालों के दौरान ,जब जिन्दगी अपने भयावह दौर से गुज़र रही थी तब  पेन को छूते हुए भी डर लगता था ....लगता था कि कभी भी कुछ नहीं लिख पाउंगी ..शब्दों से नाता लगभग छूट ही गया था ...अपनी पिछली रचनाओं को देखकर विश्वास ही नहीं होता था कि ये मैंने ही लिखी है ......जिन्दगी यूँ ही गुज़रती जा थी कि तभी इन्टरनेट की दुनिया से रूबरू हुई ....और फिर से कुछ लिखने का मन किया ...
जो लोग टिप्पणियों को लेकर आये दिन कुछ ना कुछ लिखते रहते हैं ....उन लोगों से यह कहना चाहती हूँ ...कि जब एक औरत कुछ लिखती है,  अपनी बात कहती है ...तो एक एक  लाइन लिखने में उसे कई कई मोर्चों पर लोहा लेना होता है ,कई तरह की ज़ंग जीतनी होती है ...इसीलिए इसे आसान ना समझें .....
 
खैर...... अपनी सौवी पोस्ट समर्पित की है मैंने..... बहन ......पाखी सावंत ......को
 
 
मिला स्पोंसर
रचा स्वयंवर
बरसे नोट
जमकर
 
दूल्हा हंट
दुल्हन चंट
ज़ुबान करेंट
पब्लिसिटी स्टंट
 
ना बिफोर
ना आफ्टर
बेस्ट कॉमेडी 
बेजोड़ लाफ्टर 
 
गुड्डों का खेल 
जी भर के खेल 
बचपन की कसर 
जवानी में पूरी कर 
 
पहले डेटिंग
फिर मीटिंग
कर सेटिंग
फिर चेटिंग
फिर
अंत काल तक
वेटिंग ही वेटिंग
 
 ढूंढें सच्चा प्यार 
पहली पहली बार
इस चमत्कार को
नमस्कार
इस चक्कर में
बन गए सब के सब 
अदाकार 
 
शॉक पर शॉक 
गुड्डे करें
कैट वॉक
ताली पीटे फॉक्स 
 
झूमे नाचे गाए
मीका मीका मीका 
किस बिल्ले के भाग से 
फूटेगा ये क्रेक
वाला छींका
 
बन जा मजनू
और फरहाद
नकली मुखौटे
सिर पर लाद
 
उमड़ा प्रेम सच्चा
छोड़ा बीबी बच्चा
शकल है भोली
दिल से निकला लुच्चा
 
गुदवा टेटू
दे दे हाथ
तर्क करे तो 
रास्ता नाप
 
ढूंढ अंगूठी
थाल में
पप्पी मत देना
भूले से भी
गाल में
प्रश्न - उत्तर के
जाल में
फंस गए
बबाल में
 
सरिया तोड़
गर्दन मरोड़
भीख मांग कर
कर गठजोड़
 
अभिषेक से
है ठनठन
कैसे बनेगी
दुल्हन ,
जैसे
ऐश्वर्या बच्चन
 
लिख पत्रों में प्रेम
खेल दिलों के गेम
 
शेरो शायरी
अन्ताक्षरी
मार डांस पे
चांस
आग का दरिया
या
फेम का जरिया
अजब प्रेम का
गज़ब नजरिया
कर जा पार
ओ ! देश के
कर्णधार
 
जिसकी हिस्ट्री में
मिस्ट्री ही मिस्ट्री
वो देखे डांस में
केमिस्ट्री
 
फीसिकल रिलेशन
नोन्सेन्स कुएश्चन
रहते थे एक साथ
अच्छे दोस्त थे हम
 
पूछो सच्ची बात तो
आँसू ही आँसू
आइडिया निकला धाँसू
कनटरोवर्सी क्वीन
हुआ यकीन
संघर्षों की मारी
बेचारी, दुखियारी
 
बात पते की
कहती हूँ अंत में
ओ ! आधुनिक नार
आंसुओं को अपने
 मत बना हथियार
औरत की जिन्दगी
तलवार की धार
दुनिया में अकेली
तुम ही नहीं
हर आँचल में
रहते है छुपे
आँसू  कई हज़ार
 
और अब बहन पाखी
मान सलाह मेरी
कहती है कुमांउनी चेली 
 
इमेजिन का
हाथ छोड़
सोनी से
नाता जोड़
मलेशिया में
इनको छोड़
 
बिच्छू, साँप
कीड़े - मकौड़े
मिला के सबको
तले पकौड़े
 
खेले कबड्डी
तोड़े हड्डी
लपेटे भुजंग
बजाए मृदंग
पूरे एक दिन
रहे फिज़ा के संग 
 
वही शूरवीर
वही कर्मवीर 
झेल सकेगा 
इस शादी
 की पीर
 
बचा होगा
जो एक
बनेगा दूल्हा
नेक
उसका हो
'अभिषेक'
काटे वही
शादी के केक
 

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

यमराज - माइकल संवाद {यह व्यंग्य नहीं है }


 
साथियों ....नर्वस नाइंटी की मैं भी शिकार हो गयी हूँ ...बहुत मुश्किल से इस कविता को पूरी कर पाई ....हंसते हंसते रो पड़ती हूँ मैं ....
माईकल जेक्सन अपनी मौत के बाद जब ऊपर पहुंचा तो बहुत दुखी था ....उसकी उदासी देखकर यमराज से रहा नहीं गया .....
 
यमराज - माइकल संवाद  {यह व्यंग्य नहीं है }
 
दुःख से भरा , देखा जब चेहरा
बोल उठे यमराज
मत हो विकल , बेटा माईकल !
मरने के बाद , कौन सा दुःख
सता रहा है तुझको
सब पता है मुझको
 
चल !
मिलवाता हूँ ऐसे एक बन्दे से
आया है जो , धरती से आज
तेरी उदासी का, है उसके पास  इलाज
जिसको कहते हैं , अंगरेजी में फार्मर
हिन्दी में किसान
घूम रहा है जो 
गर्व से अपना सीना तान
तेरे गले से हैं गायब
सारे सुर और ताल
देख !
वह बेसुरा है फिर भी
छेड़ रहा है मीठी - मीठी तान
 
देख उसको गौर से
उसका जो अंत था
तुझसे काफी मिलता था
जब अंतिम सांस ली उसने
एक भी दाना पेट में नहीं मिला था
तेरे जिस्म में गुंथे थे
सेंकडों इंजेक्शन और पेट में
भरी थीं मेडिसिन
उसका ,
किसान होना ही सबसे बड़ा सिन था
तू मारा पेन किलर की ओवर डोज़ से
वह मरा
दस दस खाली पेटों के बोझ से
 
जो कुछ भी तूने कमाया
सदा दूसरों के काम आया
लोगों का दिल बहल जाए इसके लिए
तूने अपना बदन झुलाया
यह भी भूखा रहा कई कई रोज़
तब औरों का भर पेट पाया
कर्जा लेकर अन्न उगाया जिसने
उसके हिस्से बस फाका आया
 
इसके भी चेहरे का रंग
हो गया था बदरंग
तू हुआ काले से गोरा
तूने प्रकृति का नियम तोड़ा
इसको प्रकृति  ने ही तोड़ा
इसको दुलराया सूरज की किरणों ने
बदन को झुलसाया तपती दोपहरों ने
पैदा हुआ तो था फूल गुलाबी
मरा तो काला रंग भी शरमाया
 
इसकी भी जब अर्थी उठी थी
लाश गायब हो गयी थी
किडनी , लिवर और आँखों का
ज़िंदा कारोबार हुआ था
तेरा, तेरी इच्छा से हुआ था जेको !
इसके अंगों का लेकिन ,
गुपचुप कारोबार हुआ था
 
तुम दोनों को ही निगला
सूदखोरों और कर्जदारों ने
कोठी, बंगला , गाड़ी
बड़ी - बड़ी मीनारों ने
ले डूबी तुझको तेरी झूठी शान
मिथ्या अभिमान , अमीरी का स्वांग
 
लेकिन माईकल !
तुझमे और इसमें
बहुत भारी अंतर है
तेरी मौत के तुंरत बाद
ज़िंदा हो गयी तेरी जायदाद
बीबी ने इल्जाम लगाए
बच्चे भी अवैध कहलाए
वसीयत के लिए , खून के प्यासे भी
बन गए रिश्तेदार
जो कहलाते थे तेरे अपने
बदल गया उनका व्यवहार
 
तू मरा तो तेरे दीवाने
फूट फूटकर रो पड़े
तेरी लाश के पीछे
लाखों चाहने वाले चल पड़े
ये जब मरा , कोई नहीं रोया
किसी का कुछ नहीं खोया
पत्थर हो गए थे घरवाले
कई दिनों तक कोई नहीं सोया
हाँ !
इसकी मौत पर
सियासत बहुत हुई थी
किसी की छिन गयी तो ,
किसी को कुर्सी मिल गयी थी
किसी ने चमकाई नेतागिरी
किसी की टी .आर .पी .बढ़ गयी थी 
 
तो बेटा माईकल !
गम के अंधेरों से निकल
देख उसे गौर से
कितनी खुशी से वह
गीत गा रहा है
जब तक धरती पर ज़िंदा रहा
तड़पता रहा , तरसता रहा
बाद मरने के ,
नाच, गा के जश्न मना रहा है
क्यूँ और कैसे पूछा तूने ?
तो वो देख जेको !
मेरे पीछे - पीछे
उसका पूरा परिवार
चला आ रहा है  
 

शुक्रवार, 3 जुलाई 2009

नैनो की बुकिंग टाँय टाँय फिस्स क्यूँ हुई .....

साथियों .....नैनो आम आदमी के नैनों को तो भा गयी थी लेकिन उसकी बुकिंग क्यूँ फिस्स हो गयी ? यह बात पता लगाना बहुत ज़रूरी था .. इसीलिए हमने एक आम आदमी को रोक कर पूछा  ...तो उसने क्या जवाब दिया देखिये ......................
 
नैनो की बुकिंग ,
क्यूँ हुई इतनी कम  
आम आदमी से पूछे बिना  
रह ना पाए हम
 
मिला हमें एक दिन वह
जो था मोटर साइकिल पर सवार  
साथ में लदा था उसके
चार लोगों का परिवार
 
पूछा हमने , क्यूँ मेरे भाई ?
तुम्हारे चक्कर में बेचारे टाटा को
तीन साल से नींद नहीं आई
फिर भी तुमने
नैनो बुक नहीं करवाई
 
अरे ! छठे वेतनमान का
कुछ तो मान रखा होता
भरी हुई जेब को ,थोडा सा
हल्का कर लिया होता
चार ना सही , कम से कम
एक नैनो को तो बुक किया होता
 
वह बोला मैडम !
घर से लेकर स्कूल तक
इतनी बक बक करती हो
फटों में टांग अडा अडा कर 
क्यूँ नहीं तुम थकती हो ?
 
पूछ ही बैठी हो तो सुन लो  
अन्दर की बात
कहता हूँ मैं आज
जिस भ्रम के साथ
रात दिन रहता हूँ
सूखी रोटी खाता हूँ
ठंडा पानी पीता हूँ
 
अपनी नज़रों में मेरा
स्थान है बेहद ख़ास
धुंधला ही सही , लेकिन
बहुत खूबसूरत है यह एहसास
 
जिस दिन मैं आम आदमी की
कार खरीदूंगा
टूट कर बिखर जाऊँगा
अभी तो घर वालों की
नज़रों में गिरा हुआ हूँ
फिर अपनी नज़रों में गिर जाऊंगा  
 
इसीलिए ......
अपनी नज़रों में ही सही
मुझको ख़ास रहने दो
जैसे सहता आया हूँ
सारी तकलीफें अब तक
आज भी मुझको सहने दो
 
मेरे बड़े बड़े सपनों को
जो छोटा कर दे
ऐसी कोई भी तकनीक
मुझको नहीं स्वीकार
कह दो टाटा से तुम जाकर
कही और ले  जाकर बेचे
अपनी छोटी सी यह कार
 
 
 

गुरुवार, 2 जुलाई 2009

ये किसको मिल गया मूर्ति देवी पुरस्कार .....

साथियों ...आज हमारी कक्षा में जो हुआ ...अच्छा नहीं हुआ ....हम तो चाहते थे कि बच्चों का सामान्य ज्ञान बढ़े...लेकिन ये सरकारी स्कूलों के बच्चे .....बाप रे बाप .....देखिये आज क्या हुआ ......
 
मूर्ति देवी पुरस्कार ............
 
आज, सामान्य ज्ञान के पीरिअड में
जब पूछा हमने छोटा सा यह सवाल
बच्चों ने दिया जो उत्तर ,
उस पर मचा बड़ा ही बवाल
हमने पूछा ..................
बच्चों ,ज़रा यह बतलाओ
अपना ज्ञान तो जतलाओ
मूर्ती देवी पुरस्कार
किस क्षेत्र में दिया जाता है ?
एक सुर से बोले बच्चे ....
मैडम ,
 यू. पी. के हर क्षेत्र में  
गाँव में , शहर में
पार्क में , खेत में ,
मिटटी में , रेत में 
गलियों में चौबारों में 
उजालों में ,अंधियारों में
जिस देवी ने
अपनी मूर्तियों को
स्थापित किया है
ज़मीन वालों को ज़मीन से   
विस्थापित किया है
क्यूंकि ,
उसको अपने दिल में
तनिक नहीं विश्वास
कि गुज़र जाने के बाद  
कोई करेगा उसको
 दिल से याद
इसीलिए ..............,
दिलों से निकल कर
सड़कों पे सज गयी है
सेवा का दम भरने वाली  
मेवा मिला तो
पत्थर बन गयी है
झूठ कहतीं हैं ये किताबें
इन पर  कभी -कभी
गलत भी छप जाता है
इसीलिए मैडम .......
सुन लो कान खोल कर
मूर्ती देवी पुरस्कार
अब सिर्फ और सिर्फ
कायावती को जाता है
 
 
 

बुधवार, 1 जुलाई 2009

क्षणिकाएं .......

किसी के
बारिश की
टूट गयी
सारी हदों से, 
तो , 
किसी के
बाढ़ राहत
कोष के लिए 
आई  
करोणों की
मददों से
 इस बार फिर से
छप्पर फट गए
कृपा पानी की
नर से इस तरह
वे नारायण हो गए ...
 
 
आम बजट ........
 
वह
जो बनता है
तो आम के लिए है
लेकिन उसको
ख़ास चूस जाता है
आम के लिए बस
गुठली ही छोड़
जाता है
आम बजट
कहलाता है ......