मंगलवार, 1 सितंबर 2009

वो पल

कुछ पल के लिए चमका था
मेरी आँखों में जुगनू बनकर
उजाले से उसके आज तक
रोशन है पैरहन मेरा ........

15 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर पंक्तियाँ हैं | जुगनुओं के उंजाले याद रहते हैं, क्योंकि वो अँधेरी रात के उजाले होते हैं |

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  2. achchi nazm ho sakti thi agar or kuch jajbaato ki looka chipi hoti to..magar ye bhi khub hi rahi ...

    namaste

    Deepak"bedil"

    http://ajaaj-a-bedil.blogspot.com

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  3. शेफाली जी,

    बहुत दिनों के बाद आप से नेट पर मिल रहा हूँ, वो भी नये अंदाज में। मिला भी तो उस दिन जब मैं खुद एक सप्ताह के लिए बाहर जा रहा हूँ। खैर--।

    कम शब्दों की अच्छी रचना है। बधाई। और जाते जाते-

    लेखनी की ही छटा जब पैरहन रौशन करे
    क्या जरूरत जुगनुओं की रौशनी के वास्ते

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  4. संक्षेप है...लेकिन गागर में सागर वाली कहावत सत्य कर दी आपने ...

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  5. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  6. उजाले से उसके आज तक
    रोशन है पैरहन मेरा ...
    बेहतर आगाज । दिल बाग-बाग हो गया ।

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  7. बहुत सुंदर ....
    दिल से निकले आपके शब्दों ने रूह को छू लिया..... मक्

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