अब सी .बी .एस .सी .हमें यह बताएगी कि विज्ञान और गणित को खेल खेल में कैसे पढ़ाया जाता है .माननीय शिक्षा मंत्री जी ,हमने इतने साल घास नहीं खोदी है ,खेल - खेल में कैसे पढ़ाया जाता है यह हमें ना सिखलाएँ . हम सदियों से बच्चों को खेल खेल में ही पढाते आए हैं .
हमने कक्षा में ताश के ५२ पत्तों द्बारा बच्चों को जोड़ - घटाने, गुणा, भाग सिखाए ,केरम बोर्ड द्बारा आयत और वर्ग के मध्य भेद स्पष्ट किया ,उसकी गोटियों के माध्यम से वृत्त की जानकारी दी .गिल्ली डंडा से लेकर लूडो और जूडो भी सिखाए. बच्चों के बीच कुश्ती करवाकर गुरुत्वाकर्षण के नियम की पुष्टि करी,कि चाहे कितना भी उंचा उछाल लो अंत में बन्दा ज़मीन पर ही आएगा .बच्चों को कंचों के द्बारा यह बतलाया कि प्रकाश का परावर्तन कैसे होता है .
प्रकाश संश्लेषण वाला पाठ हमने सदा जाड़ों के दिनों के लिए सुरक्षित रखा .घंटों तक धूप में बैठकर इसे दिखाया ,इसके अलावा जब बीज के उगने की क्रिया दिखानी होती है तब हम कई दिन तक उसके उगने का इंतज़ार किया करते हैं ,कई बार बीज के इनकार करने पर भी हम वहां से नहीं हटे ,हमारा इतना समर्पण भाव देखकर बीज भी शर्मा गया .पुष्प की संरचना को सजीव रूप में दिखाने के लिए हम बच्चों को बड़े - बड़े खेतों में ले गए ,होशियार बच्चों को संरचना दिखाए एवं बाकियों को खेत से मटर, मूली, चना ,टमाटर लाने का काम सौंपा .
न्यूटन का नियम सिखाने के लिए बच्चों से सेब मंगवाया और उसे ऊपर उछाल कर दिखाया, फिर उसे खाकर यह भी बताया कि यह एक आभासी फल होता है ,और इसके बीज की संरचना इस प्रकार की होती है
विज्ञान के नाम पर जो कक्ष बने होते हैं उनमें बैठकर जुआ खेला , साथ के विरोधी मास्टरों के विरुद्ध खेल - खेल में रणनीतियां बनाईं. एक विज्ञान क्लब का नाम भी स्कूल के रजिस्टर में दर्ज होता है ,जिसका बस रजिस्टर ही रजिस्टर पाया जाता है , इसमें सरकार हर साल कुछ रूपये डालती है ,जिसका सदुपयोग हमने जाडों में चाय और गर्म पकोड़े ,और गर्मियों में कोल्ड ड्रिंक के साथ बहुत ही वैज्ञानिक रीति से किया ,
एक गणित किट भी किसी कोने में दाँत किटकिटाती हुई पड़ी रहती है , इसमें कुछ गणित की तरह के ही आड़े- तिरछे उपकरण पड़े रहते हैं ... इसे खोल कर दिखाने में बहुत किट - किट होती है इसीलिए इसे हम घर ले जाते हैं जिससे हमारे बच्चे भांति - भांति के गेम खेलते हैं
कतिपय अध्यापक और उनकी शिष्याओं के मध्य गणित और विज्ञान जैसे नीरस विषयों में ही प्रेम की सरस धार बहने लगती है , रेखागणित पढ़ते- और पढ़ाते हाथों की रेखा का मिलान शुरू हो जाता है ,विज्ञान के वादन में दिलों में रासायनिक क्रियाएं होने लगती हैं . मुझे याद है कि हमारे स्कूल में एक बार एक जवान और खूबसूरत गणित का अध्यापक आया ,उसका दिल एक रेखा नामक कन्या पर आ गया ,जब वह सारी कक्षा से कहता था कि अपनी अपनी कापियों में इस सवाल को हल करो , तब सभी लड़किया उसे सुलझाने में उलझ जाती थी , और ठीक इसी दौरान वह रेखा नाम्नी कन्या अपने सिर ऊपर उठाती थी ,और दोनों एक दूसरे को तरह - तरह के कोण जैसे - समकोण -और नियूनकोण बनाकर निहारने लगते थे. साल ख़त्म होते होते रेखा के दिमाग में बीजगणित तो नहीं घुसी लेकिन पेट में प्यार का बीज पनपने लगा .जिसे द्विगुणित होते देखकर वह मास्टर गृहस्थी के गुणा - भाग से घबरा कर नौ दो ग्यारह हो गया. रेखा उस बीज को अंक से लगे हुए अंकगणित को आज भी कोसती है ,जिसकी वजह से उसकी जिन्दगी के सारे समीकरण बिगड़ गए थे ,जिन्दगी सम में आते -आते विषम संख्या हो गयी क्यूंकि उसे अपने से दोगुनी उम्र के गुणनफल से शादी करनी पड़ी ,और सदा के लिए कोष्ठक में बंद हो जाना पड़ा.
प्रायमरी में शिक्षण के दौरान हमने यह जाना कि वास्तव में खेल खेल में पढ़ाई क्या होती है ,एक अध्यापिका के तीन बच्चे हुए जो बारी - बारी से स्कूल के सभी बच्चों की गोद में खेलते थे जो बच्चा जितना अच्छा बच्चा खिलाता था , हाथी -घोडा बन जाने से तक परहेज़ नहीं करता था ,उसे ही प्रथम स्थान मिलता था. जो बच्चे पढाई में गधे होते थे ,लेकिन अपने घर से गाय का शुद्ध दूध बच्चों के लिए लाया करते थे ,उन्हें पास कर दिया जाता था जो बच्चे किसी काम के नहीं होते थे ,उनका हश्र आप स्वयं समझ सकते हैं . इस प्रकार उन्होंने विद्या के मंदिर में अपनी संतानों को पाल पोस कर बड़ा किया ,और बड़ा हो जाने पर उन्हें पब्लिक स्कूल की गोदी में सौंप दिया. उनके द्बारा स्वेटर बुनने से ही बच्चों ने फंदों के द्बारा जोड़ - घटाने की जटिल प्रक्रिया को आत्मसात किया.
गणित को खेल में हमसे ज्यादा किसने पढ़ाया होगा ? छठा वेतनमान के निर्धारण हेतु देश में एक समिति बनी ,लेकिन हमने साहित्य और कोमर्स वाले टीचरों से मतभिन्नता होने के कारण एक ही दिन में कई बार कमेटियां बैठायीं.
बच्चों से हमने कहा कि इतने शोर - गुल में भी कभी पढ़ाई हुई है कभी ,इसीलिए घर में आया करो ,वहां पढ़ाई और क्रिकेट दोनों साथ -साथ होंगे , जितने ज्यादा बच्चे होंगे, मैच में उतना मज़ा आएगा .और ज्यादा बच्चों को लाने वाले को बोनस अंक दिए जाएंगे .
एक और खेल हम अक्सर स्कूलों में खेलते हैं वह भी गणित और विज्ञान के घंटे में ..वह है छुप्पन - छुपाई का . बच्चे पूरे पीरियड के दौरान हमें ढूंढते रह जाते हैं ,लेकिन हम हाथ नहीं आते ,क्यूंकि कभी हम चाय पीने, कभी रजिस्टर भरने , कभी कार्यालय में और अक्सर ट्रांसफर और प्रमोशन के लिए जुगत भिडाने के लिए मुख्यालय में पाए जाते हैं
कभी किसी अधिकारी ने विद्यालय में छापा मारा तो हमने चपरासी को मास्टर तक बताने का खेल खेला है बच्चे स्कूल में रहते रहते इस गणित से भली प्रकार परिचित हो जाते हैं कि किस - किस मास्टर के बीच छत्तीस का आंकडा है और कौन दो दुनी चार करता है किसके मध्य समीकरण ठीक बैठती है और किसके मध्य नहीं .
तो माननीय सिब्बल जी ,हम मात्र गणित और विज्ञान ही नहीं सारे विषयों को खेल - खेल में ही पढ़ाते हैं ..... .
जूता पूरी रात भिगो कर रखा गया था...इसलिये गजब की आवाज़ आयी चटाके की...कसम से ..ये एक दो घंटे का भीगा हुआ नहीं लगता...क्या कहूं..कित्ता घसीटा और कित्ता मारा है...
जवाब देंहटाएंये खेल नहीं आसां इतना तो समझ लीजै
जवाब देंहटाएंएक मास्टरनी नामा है और सब कुछ बतलाना है
वास्तव में इस खेल पर तो आपका ही कापीराइट बनता है। मान गये शेफाली जी आपको। जानते तो पहले भी हैं, अब मानना भी पड़ रहा है। मंत्री की बोलती बंद। वो लगता है अब छिपन छिपाई खेलेगा और एक बार छिप जाएगा तो दोबारा खेलने वापिस नहीं आएगा।
बहुत सुन्दर लेख लिखा है। कित्ता तो उर्वर और खुराफ़ाती दिमाग है मास्टरनीजी का वो यह लेख पढ़कर पता चलता है। अद्भुत हास्य-व्यंग्य
जवाब देंहटाएंहै। शानदार। बधाई!
एकदम सटीक दिया है जमा कर..बहुत सही. आनन्द आ गया.
जवाब देंहटाएंलाजवाब लिखा है आपने.....अपके व्यंग्य की धार बहुत ही तेज होती है!!!
जवाब देंहटाएंआभार्!
भाई हमे तो बचपन के मास्टर साहब की पिटाई (अरे भाई मेरी, मास्टर जी की नही) और बेवजह मुर्गा बनाये जाना भी याद आ गया..डर लगने लगा आपकी पोस्ट पढ़ कर..वो तो शुक्र है कि मास्टर साहब और शिक्षामंत्री के पंजे से बाहर आ चुके हैं..वरना क्या पता कौन सा शिक्षिका-कुल-दीपक हमारी सवारी कर रहा होता..बहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी पढने के बाद मैँ कई बार बिग 'बी' बन जाता हूँ याने के 'निशब्द' हो जाता हूँ और अपने आपको टिप्पणी करने के काबिल नहीं पाता हूँ लेकिन ब्लॉगजगत की परंपराओं का पालन करने के लिए उसके द्वारा निर्धारित नियम का पालन तो करना ही पड़ेगा... अत: अपने इस ब्लॉगर धर्म का निर्वाह करते हुए मैँ अपने पूरे होश औ हवास में ये ऐलान करता हूँ कि आपने...
जवाब देंहटाएंबहुत ही तीखा...मसालेदार एवं मनोरंजन से भरपूरे प्रभावी व्यंग्य लिखा है
waah kaafi teekha hai
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक व्यंग्य किया है .. पहले से ही सी बी एस ई के कोर्स इतना आसान है .. अब तो वो भी समाप्त किया जा रहा है .. पढाई में कम रूचि रखनेवालों को सुविधा देने के लिए देश के प्रतिभासंपन्न बच्चों के कैरियर के साथ खिलवाड किया जा रहा है .. इसे शिक्षा मंत्री समझ पाते !!
जवाब देंहटाएंये तो क्रिकेट के एक ओवर मे छ सिक्सर की बजाये ७ सिक्सर लग जाये (यानि एक नो ब्ला पर भी) के जैसा मजेदार लिखा गया है. बहुत जबरदस्त...नायाब. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
शैफाली पाण्डेय
जवाब देंहटाएंआपकी लेखनी को नमन
सच कहूं तो....
आपके खून की जांच करायी जाए तो आपके खून में लो डैन्सिटि लिपोप्रोटीन के बजाए हाई डैन्सिटि व्यंग्य प्रोटीन मिलेगा। लाल और सफेद रक्त कणिकाओं की जगह बीजगणितीय समीकरण और रेखागणितीय प्रमेय, न्यूटन के गति के तीनों नियमों की तरह गति करते मिलेंगे।
जोड़ने और घटाने के स्वैटरीय अंदाज शिक्षा मंत्री क्या समझेंगे। आपने तो साहित्य को त्रिकोणमितिय अंदाज में पेश करके एक नई विधा को जन्म दिया है। मैं तो यही कहूंगा कि पुराने जमाने के वैज्ञानिक और गणितज्ञों को ये आभास ही नहीं रहा होगा कि उनकी खोजों का साहित्य में भी प्रयोग करने वाले पैदा होंगे।
अब हम दावे से कह सकते हैं कि ऐसे साहित्यकारों ने अब जन्म लेना शुरू कर दिया है।
हां हां.... शैफाली पाण्डेय उनमें से एक हैं।
अच्छा शैफाली अगले व्यंग्य लेख के प्रकट होने की प्रायिकता क्या है। जरा बताएं...
व्यंग्य विधा में प्रतिभा का जबरदस्त विस्फोट - शैफाली पाण्डेय । इस विस्फोट के कंपन को सारे हिन्दुस्तान की व्यंग्य साहित्य बिरादरी तक पहुँचाने की पहल करो दोस्तों। जानदार, शानदार, ईमानदार रचनाओं की जनक इस अद्भुत् प्रतिभा को ब्लॉग की दुनिया तक ही सीमित मत रहने दो।
जवाब देंहटाएंप्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
खेल खेल में पढ़ाना तो फिर ठीक ठहरा...दिक्क़त तो आज ये ही है कि जहां एक तरफ पढ़ाना ही खेल हो गया है वहीं दूसरी तरफ़ पढ़ाने में भी खेल हो रहा है.
जवाब देंहटाएंघर के भेदी के लिये शब्द नहीं हैं [:P]
जवाब देंहटाएंसिब्बल अन्कल कोइ तोड़ निकालो ना
wah...aanand aa gaya ..khel khel men hi...bahut sundar vyang....badhai
जवाब देंहटाएंकाफी झन्नाटेदार था..... पर अभी और की जरूरत है......
जवाब देंहटाएंसिर्फ इन्ही को नही..... औरो को भी......
सही नसीहत दी है।
जवाब देंहटाएंनवरात्रों की शुभकामनाएँ!
ईद मुबारक!!
सटीक और धारदार व्यंग्य.शैली लाजवाब शिल्प एकदम अनूठा!
जवाब देंहटाएंबधाई एवं आभार.
इतनी गंभीर बात आप इतने चुटीले अंदाज़ में कैसे कह लेती हैं ??? शिक्षा मंत्री जी को अच्छा पाठ पढाया .
जवाब देंहटाएंsamajh ke sath sachchi pratikriya hi asarkarak vyabgya banati hai
जवाब देंहटाएंर ठीक इसी दौरान वह रेखा नाम्नी कन्या अपने सिर ऊपर उठाती थी ,और दोनों एक दूसरे को तरह - तरह के कोण जैसे - समकोण -और नियूनकोण बनाकर निहारने लगते थे. साल ख़त्म होते होते रेखा के दिमाग में बीजगणित तो नहीं घुसी लेकिन पेट में प्यार का बीज पनपने लगा .जिसे द्विगुणित होते देखकर वह मास्टर गृहस्थी के गुणा - भाग से घबरा कर नौ दो ग्यारह हो गया. रेखा उस बीज को अंक से लगे हुए अंकगणित को आज भी कोसती है ,जिसकी वजह से उसकी जिन्दगी के सारे समीकरण बिगड़ गए थे ,जिन्दगी सम में आते -आते विषम संख्या हो गयी क्यूंकि उसे अपने से दोगुनी उम्र के गुणनफल से शादी करनी पड़ी ,और सदा के लिए कोष्ठक में बंद हो जाना पड़ा.
जवाब देंहटाएंkya pakad hai aapki shabdo or samaj ki kuritiyo par
yakinan kabil-e-tariif
देखिए अब जो शिक्षा मंत्री जी हैं वह ओरिजिनली वकील हैं और जो असली वकील होता है वह सिर्फ़ कहता है. सुनना उसके फलसफे के बाहर की बात है. लिहाजा उन्हें कुछ कहने की ग़लती न करें.
जवाब देंहटाएंमौलिक व्यंग्य - वो भी हास्य की निर्झरिणी के साथ!
जवाब देंहटाएंबड़े दिनों बाद विशुद्ध हास्य व्यंग्य पढ़ने में आया.
bahut badhiya report card hai.
जवाब देंहटाएंvyangyaatmak aalekh aur prahaarak bhaashaa ke liye badhaai.
जवाब देंहटाएं- vijay tiwari
ek adbhut hasya vyangya .............realy padh ke bahut ke bahut accha laga...............
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