पता नहीं सोने को आदिकाल से लोगों ने अपने सर पर क्यूँ चढ़ा रखा है. कभी-कभी टेलिविज़न पर आने वाले एक विज्ञापन को देखकर मन में अक्सर यही ख्याल आता है. उसमें दिखाया गया है कि सोना पीढ़ियों को जोड़ता है. जबकि हकीकत यह है कि सोना पीढ़ियों से लोगों को तोड़ने का काम करता आया है. इसके कारण कभी तिजोरियां टूटतीं हैं, तो कभी ताले. सास अपने जेवरों को तुड़वा - तुड़वा कर बहुओं और बेटियों के लिए जेवर बनवाती है. कमर के साथ-साथ वह खुद भी टूट जाती है. और जब जेवर बांटती है, तो क्या बेटी क्या बहू , दोनों के दिल टूट जाते हैं . हर कोई यही समझता है कि दूसरे को ज्यादा मिला है.
सोने को स्मगलरों और सुनारों की सात पीढ़ियों तक के धन जोड़ते हुए अवश्य देखा गया है.
सोने की उपयोगिता का पता तब चलता है, जब बाज़ार में आभूषणों को बेचने के लिए जाओ, हाँ बेचने, क्यूंकि भारत की आम महिला के लिए सोना सदा के लिए नहीं होता. वह बनवाया ही इसीलिये जाता है कि ज़रुरत के वक्त काम आ सके. और ऐसी ज़रुरत आने में ज्यादा देर नहीं लगती .इन ज़रूरतों के कई नाम हो सकते हैं, मसलन - ननद की शादी, ससुर की बीमारी, देवर की फीस, फसल का चौपट होना, इत्यादि-इत्यादि कारणों से वह जल्दी ही उसे बनाने वाले सुनारों के हाथ में फिर से आ जाता है. तब पता चलता है कि खरीदते समय जिसे २४ कैरेट का कहकर बेचा गया था, वह वास्तव में २० कैरेट का है.सुनार टांकों के, नगों के, मोतियों के, खूबसूरत डिज़ाइन के, और उन सभी चीज़ों, जिनके कारण उसे खरीदा गया था, के पैसे काट लेता है. उस समय बहुत कोफ़्त होती है. मोटे - मोटे दानों की माला जो शादी के समय सबकी आँखों में चुभ गई थी, अन्दर से खोखली और लाख भरी हुई निकलती है. कई बार मन करता है कि काश इससे तो सोने का सिक्का दे दिया होता, कम से कम शुद्ध तो होता.
रिश्ते की जिस चाची के लिए मेरे मन में बहुत आदर का भाव था. क्यूंकि उन्होंने शादी में सोने का हार दिया था, बदले में पूरे एक महीने तक वे सपरिवार जमी रहीं और जाते समय फल, सूखे मेवे और मिठाइयों के टोकरे बाँध कर ले गई थी. बड़े दिनों तक उनके दिए हुए हार की दूर - दूर तक चर्चा रही थी. वह आदर, सम्मान सब सिर्फ़ एक बार सुनार की दुकान पर जाने में चकनाचूर हो गया. जब पता चला कि इसमें सोना तो दूर, उसका पानी तक नहीं है, वह तो मात्र ताम्बे का हार निकला. और शादी में चांदी से भी ज्यादा चमकने वाले गिलट के पायल व बिछुवे मुँह दिखाई में देने वाली उस मामी को क्या कभी भूल पाउंगी?
आज जब मैंने माया बहिन को नोटों की माला पहने हुए देखा तो ख्याल आया कि अगर मेरे देश की समस्त बहिनें, सोना, चांदी या हीरे को छोड़कर अगर नोटों की माला पहिनने लग जाएं तो कितनी सुविधा होगा. नोटों की माला पहिन कर बाज़ार जा सकते हैं. इससे एक तो पर्स ले जाने के झंझट से मुक्ति मिलेगी और जेबकतरों से भी बचाव संभव हो सकेगा. हाँ माला खींचने वालों से सावधान रहना होगा. अगर माला खिंच भी जाती है तो चेन की अपेक्षा चोटिल होने की संभावना कम होंगी. इससे बचने का एक उपाय यह हो सकता है कि नोटों की माला पहिनने का तरीका माया बहिन जैसा ही दबा छिपा हुआ हो, कि बिना क्लोज़ सर्किट कैमरों की मदद लिए पता ही ना चल पाए कि बीस के नोट हैं या हज़ार के.
रुपयों की माला, आभूषणों की माला से इस मामले में अधिक उपयुक्त इसलिए है कि आम इंसान के लिए यह अनुमान लगाना आसान होता है कि यह कितने की होगी. मुझे अपने देश की महिलाओं से हमेशा से यह यह शिकायत रही है कि वे कभी अपने आभूषणों के सही दाम नहीं बतातीं है, जिस कारण मेरे सहित कई बहिनों को दिन रात तनाव का सामना करना पड़ता है. नोटों की माला पहिनने से इस तनाव से निपटने में सहायता मिलेगी. कई बार सोने, चांदी या हीरे की माला बनवाते समय यह ख्याल रखना पड़ता है कि कहीं इसी डिजाइन की माला, बहिन, भाभी या पड़ोसिन के पास तो नहीं है, अन्यथा सारी मेहनत बेकार चली जाएगी. नोटों की माला के चलन में आने से इस तरह की परेशानियों से निजात मिलने की प्रबल संभावना है.
नोटों की माला का एक लाभ मुझे यह होगा कि मुझे दुकानदार के सामने शर्मिन्दा नहीं होना पड़ेगा. मेरे साथ अक्सर ऐसा होता है कि जितनी देर मैं सामान पसंद करने में लगाती हूँ, उससे ज्यादा देर मैं पर्स के अन्दर पैसे ढूँढने में लगाती हूँ. और तब बहुत शर्मिन्दगी होती है जब पूरा पर्स उलट देने पर याद आता है कि रूपये तो स्कूल जाने वाले बैग में रखे हैं, जो घर की खूंटी में लटका हुआ है. घंटों तक दुकानदारों से की हुई सौदेबाजी व्यर्थ चली जाती है. शर्मिंदा होना पड़ता है सो अलग. अब ऐसा नहीं होगा, दाम पूछा और तड़ से माला से नोट निकाल कर थमा दिया.
गले में पड़ी हुई माला देखकर ही दुकानदार औकात भांप लेगा और उससे ज्यादा की साड़ी या जेवर दिखाएगा ही नहीं. अभी उन्हें ग्राहकों की शक्ल, वेशभूषा और पर्स का वजन देखकर अनुमान लगाना पड़ता है कि किस रेंज से ऊपर का समान नहीं दिखाना है. अक्सर दुकानदार पूछते रह जाते हैं कि '' बहिनजी ज़रा रेंज बता दीजिये तो आसानी होंगी'' और मजाल है कि हमने कभी सही रेंज बताई हो ''तुम दिखाओ तो सही, पसंद आने की बात है, रेंज का कोई सवाल नहीं है", कहने के बाद हम इत्मीनान से लाखों रुपयों तक की तक की साड़ियों के मुफ्त में दर्शन कर लेती है . सारी दुकान खुलवाने के बाद ''पसंद नहीं आया'' कहकर मुँह बिचकाते हुए उठकर चली जाने से हमें आज तक कोई नहीं रोक पाया. दुकानदार के चेहरे पर छाए रंज और भविष्य में होने वाली रंजिश की परवाह हमने कभी नहीं की.
हाँ, लेकिन नोटों की माला पहिनने में कुछ बातों की सावधानियां अवश्य रखनी होंगी. माला के द्वारा पहिनने वाली के स्टेट्स का पता चले इसके लिए हर वर्ग की महिला को अलग-अलग श्रेणी के नोटों की माला पहिनना अनिवार्य कर दिया जाए. जैसे महिला राजनेताओं के लिए १००० से कम के नोट की माला पहिनना ज़रूरी हो. अविवाहित महिला राजनेताओं ने चूँकि गले में कभी वरमाला नहीं पहनी इस कारण वे मनचाही लम्बाई की माला पहिन सकती हैं. ऐसी राजनेताएं, जिनकी गर्दन एक बार पहिनी गई वरमाला के बोझ से आज तक झुकी हुई है, उन्हें माला की लम्बाई में मनचाही सीमा तक कटौती करने का प्रावधान होना चाहिए.
बड़ी बड़ी कंपनियों की सी .ई. ओ, ब्यूरोक्रेट या अन्य उच्च पदस्थ महिलाओं के लिए ५०० के नोट की माला पहिनना अनिवार्य हो.
जिन महिलाओं के हाथ में पति की पूरी तनखाह आती हों, वे चाहें अलग अलग नोटों की तो रंग - बिरंगी माला पहिन सकती हैं. हांलाकि ऐसी मालाएँ दिखने की संभावनाएं न्यून ही हैं.
मेरे जैसी मास्टरनी के लिए १० या ज्यादा से ज्यादा २० रूपये के नोटों की माला मुफीद रहेगी, क्यूंकि एक बार में इससे ज्यादा का सामान मैं कभी नहीं खरीदती.
और अंत में यह ग़ज़ल प्रस्तुत है, इसे चाहें तो मेरे गायक ब्लोग्गर भाई या बहिन अपना स्वर दे सकते है.
फिर छिड़ी रात, बात नोटों की
बात है या बारात नोटों की.
नोट के हार, नोट के गजरे
शाम नोटों की, रात नोटों की.
आपकी बात, बात रोटी की
आपका साथ, साथ नोटों का.
नोट मिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़ निकलेगी बारात नोटों की.
विरोधी जलते हैं, लोग कुढ़ते हैं
रोज़ पहनेंगी हम, हार नोटों के.
ये लहकती हुई फसल मखदूम
चुभ रही क्यूँ,आज बात नोटों की.
बहुत बढ़िया विचार . सोना तो अब प्राणलेवा बन गया है ...
जवाब देंहटाएंसुंदर नोट गजल। अगर इनमें काफिया दुरुस्त हो जाए तो पढ़ने का आनंद और अधिक आएगा। गुनगुनाने में भी। वैसे मुझे मालूम नहीं है कि काफिया क्या होता है और क्या होता है रदीफ। और रदीफ भी कुछ होता है या नहीं, यह भी नहीं मालूम।
जवाब देंहटाएंपरन्तु इसमें कुछ तुकों पर थोड़ी और मेहनत की जाए मतलब पर्यायवाची तलाशे जाएं तो और भी अधिक आनंद आएगा। वैसे बहुत सारा आनंद तो उपर की सच्चाईयों में आ चुका है।
हार पहनना हारना नहीं होता
नोट हों तो हार नहीं होती।
बहुत बढ़िया विचार . सोना तो अब प्राणलेवा बन गया है ...
जवाब देंहटाएंयह ग़ज़ल आपकी ही आवाज़ में सुनना चाहते हैं :) एक नोट का माला आपको भी... स्वीकार करें
जवाब देंहटाएंचलिए हम तो चूरन वाले नकली नोटों की माला पहन कर ही खुश हो लेते हैं...भई आर्टिफिशियल जूलरी चल सकती है तो नकली नोटों की माला क्यों नहीं...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
Sona bano to phir itna soch lo,
जवाब देंहटाएंHer shaksh ek baar parakhtaa jaroor hai.
Badhaii.....
अरे मुझे तो मायावती के गले मे वह माला अजगर की तरह लग रही थी .....कितना असहनीय था वह सबकुछ !!!!
जवाब देंहटाएंजब भी गलती है दाल माया की!
जवाब देंहटाएंहोती गर्दन में माल माया की।।
लोग भी बन गये दीवाने हैं-
लोग चलते हैं चाल माया की!!
माया पुराण बहुत अच्छा लगा!
tum bhi na :) kuchh mat chhodna...
जवाब देंहटाएंgazal mast rahi.
नोटों की बात में दम है ...लेकिन आम जनता का बुरा हाल हो जायेगा यदि नोटों की माला का चलन हुआ....ऐसी माला पहन दूकान तक जाना ही मुहाल हो जायेगा.:):)
जवाब देंहटाएंऔर हाँ फिर सौदेबाजी भी नहीं कर पाएंगी....नोट तो सामने ही लहरा रहे होंगे ..ग़ज़ल बढ़िया कही है
बहुत रोचक लेख. वाह माया की माला
जवाब देंहटाएंअविनाश जी, असल बात तो ये है कि हमें भी नहीं पता क्या होता है काफिया क्या होता है .....रदीफ़ ...काश मालूम होता तो हम भी ग़ज़ल लिख रहे होते ....कुछ ढंग का काम कर रहे होते ..
जवाब देंहटाएंआपका बहुत बहुत धन्यवाद, आपके इस लेख से हमें नये धंधे की प्रेरणा मिल गई. अब हम नोटॊं की माला बेचने की दूकान खोलने जारहे हैं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
फिर तो मास्टरनी जी की पहचान 'टी जी टी' या 'पी जी टी' के बजाए
जवाब देंहटाएं'डी के एन डब्लू' दस के नोट वाली
'बी के एन डब्लू' बीस के नोट वाली
'पी के एन डब्लू' पचास के नोट वाली
'एस के एन डब्लू' सौ के नोट वाली
से हुआ करेगी।
रोचक...आनंद आ गया. मैंने नोटों का महिमा गान यूं किया है:
जवाब देंहटाएंनोटों की माला पहन, लड़िये आम चुनाव.
नोट लुटा कर वोट लें, बढ़ा रहेगा भाव..
'सलिल' नोट के हार से, हुई हार भी जीत.
जो न रहे पहचानते, वे बन बैठे मीत..
गधा नोट-माला पहिन, मिले- बोलिए बाप.
बाप नोट-बिन मिले तो, नमन न करते आप..
पढ़े-लिखे से फेल हों, नोट रखे से पास.
सूखी कॉपी जाँचकर, टीचर पाए त्रास..
नोट देख चंगा करे, डॉक्टर तुरत हुज़ूर.
आग बबूला नोट बिन, तुरत भगाए दूर..
नोटों की माला पहिन, होगा तुरत विवाह,
नोट फेंक गृह-लक्ष्मी, हँसकर करे निबाह..
घरवाली साली सदृश, करती मृदु व्यवहार.
'सलिल' देखती जब डला, नोटों का गलहार..
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vaah ...char chand lag gae,
जवाब देंहटाएंZ A B A R D A S T P O S T !
जवाब देंहटाएंAANAND AA GAYA !
आपने सही लिख है जी....
जवाब देंहटाएं.........
मायावती की माला, अन्धों का हाथी और सुराही में कद्दू ...(व्यंग्य)
मायावती की माला, आधी बिल्ली और इंजीनियर--.........व्यंग्य
आप भी पढ़िए जी...
http://laddoospeaks.blogspot.com
हे भगवान ...इतनी अच्छी गज़ल रात फूलों की ..का सत्यानास । मै तो कबसे हँसे जा रहा हूँ ...।
जवाब देंहटाएंजय हो! अपनी आवाज में गा ही दीजिये इसे -फिर छिड़ी रात, बात नोटों की
जवाब देंहटाएंफिर छिड़ी रात, बात नोटों की
जवाब देंहटाएंबात है या बारात नोटों की.
-हा हा!! बहुत सटीक..मजा आ गया...इतनी डिमांड है फिर काहे नहीं गा देती हैं. इतने में तो हम कई बार गा चुके होते. :)
नोट एकम नोट,
जवाब देंहटाएंनोट दूनी माया,
नोट तिया नेता,
नोट चौके माला,
नोट पंचे चेक,
नोट छक्के कैश,
नोट सत्ते हीरा,
नोट अट्ठे सोना,
नोट नियां चांदी,
नोट दहम शेफ़ाली॥
बस इससे ज्यादा कुछ नही तारीफ़ कर पाऊंगा,
आपकी लिखे सोना पुराण और नोट गज़ल को पाठ्यक्रमों मे शामिल कर दिया जाना चाहिये।
bilkul thik kaha aapne
जवाब देंहटाएंसोने से शुरू हुआ सफ़र नोटों पर आकर ख़त्म हुआ.. असली चीज़ तो आदमी (और औरत की भी !!) भूख है ..ये सब चीज़ें तो बेकार में बदनाम हैं ..अच्छी रचना !
जवाब देंहटाएंबहुत ही पढाकेदार पोस्ट है.. पढ़ते ही मज़ा आ गया.. पर तब क्या होगा जब नकली सोने की तरह रिश्तेदार शादी में नकली नोटों की माला पहना गए और सूखे मेवे बाँध के ले गए तो.. बाद में बिजली के बिल जमा कराते वक़्त अगर नकली नोट पकड़ा गया तो फिर फजीती हो जाएगी.. इन्डियन सिस्टम में जब तक करप्टता है तब तक तो कोई भी समाधान उचित नहीं लगता.. परन्तु ये पोस्ट उचित रूप से मनोरंजन करती है..
जवाब देंहटाएंनोट वाली ग़ज़ल को मैंने नोट किया :-))
जवाब देंहटाएंhttp://indowaves.instablogs.com/
इतने मौलिक विचार कहां से लाती है आप? आपका यह व्यंगलेख नोट करने लायक है.
जवाब देंहटाएंGazab Shefali ji!
जवाब देंहटाएंओह ! मैं तो तब से यही सोच रहा था कि ये तो बच्चों के चूर्ण के साथ मिलने वाले नोटों की माला है !
जवाब देंहटाएंshefali ji adbhud gazal... noton ka badhiya mahima mandan kiya hai aapne... bahut sunder !
जवाब देंहटाएंरोचक...आनंद आ गया.मालावती ..ओ ..हो सौरी मायावती कितनी प्रेरणा दे रही है लेखकों को!!!
जवाब देंहटाएं" .सुनार टांकों के, नगों के, मोतियों के, खूबसूरत डिज़ाइन के, और उन सभी चीज़ों, जिनके कारण उसे खरीदा गया था, के पैसे काट लेता है."
जवाब देंहटाएंऔर पैरा नम्बर सात...हंसते-हंसते बुरा हाल है. पूरी तरह पढना मुश्किल हो गया. एक आम भारतीय महिला की मानसिकता को कितनी खूबसूरती से चित्रित किया है आपने. बधाई.
bahut badhiyaa likhaa hain aapne.
जवाब देंहटाएंwaise, sonaa to aaj bhi sonaa hi hain.
lekin, sone ke prati logo ki soch, maansiktaa main badlaaw aa gaya hain.
bahut badhiyaa.
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
बहुत ही बढ़िया...तीखा व्यंग्य
जवाब देंहटाएंफिर छिड़ी रात, बात नोटों की
जवाब देंहटाएंबात है या बारात नोटों की.
नोट के हार, नोट के गजरे
शाम नोटों की, रात नोटों की.
......रोचक...आनंद आ गया.
बहुत ही लाजवाब व्यंग्य...
जवाब देंहटाएंबातों बातों में आपने जबरदस्त बात कह दी...
सही है...कहते हैं,चार बार यदि जेवल सोनार के पास बदलने ले जाओ तो सोना उसीका हो जाता है....सोने का यह खेल सचमुच रिश्ते बनता नहीं,बिगड़ता ही है...फिर भी सोने बिना चैन कहाँ रे......लोग गाते रहते हैं...
नोटों की माला की खूब कही आपने....लेकिन इसमें एक समस्या है...
नोटों की माला को सही सलामत रखने के लिए उतने रखवाले भी तो आस पास होने चाहिए....
जिस दिन बहन जी ने वह माला पहनी,उसके दुसरे दिन उनसे प्रेरित हो कुछ भाइयों ने दिल्ली से बिहार आ रहे एक नेताजी के लिए भी एक माला बनवाई,जिसमे की फूलों के साथ साथ कुछ नोट भी लटका दिए...लेकिन नेताजी के गले तक पहुँचने से पहले ही भीड़ में ,भीड़ भाड़ का लाभ उठा उन्ही के पार्टी के कार्यकर्ताओं ने सारे नोट नोच का अपनी जेबों में खिसका लिए और इस अफरा तफरी में माला के फूल भी बुरी तरह नुच गए...