शनिवार, 26 जून 2010

माईकल जैक्सन की याद में

माईकल जैक्सन की याद में .....
 
दुःख से भरा , देखा जब चेहरा
बोल उठे यमराज
मत हो विकल , बेटा माईकल !
मरने के बाद , कौन सा दुःख
सता रहा है तुझको
सब पता है मुझको
 
चल !
मिलवाता हूँ ऐसे एक बन्दे से
आया है जो , धरती से आज
तेरी उदासी का, है उसके पास  इलाज
जिसको कहते हैं , अंगरेजी में फार्मर
हिन्दी में किसान
घूम रहा है जो 
गर्व से अपना सीना तान
तेरे गले से हैं गायब
सारे सुर और ताल
देख !
वह बेसुरा है फिर भी
छेड़ रहा है मीठी - मीठी तान
 
देख उसको गौर से
उसका जो अंत था
तुझसे काफी मिलता था
जब अंतिम सांस ली उसने
एक भी दाना पेट में नहीं मिला था
तेरे जिस्म में गुंथे थे
सेंकडों इंजेक्शन और पेट में
भरी थीं मेडिसिन
उसका ,
किसान होना ही सबसे बड़ा सिन था
तू मारा पेन किलर की ओवर डोज़ से
वह मरा
दस दस खाली पेटों के बोझ से
 
जो कुछ भी तूने कमाया
सदा दूसरों के काम आया
लोगों का दिल बहल जाए इसके लिए
तूने अपना बदन झुलाया
यह भी भूखा रहा कई कई रोज़
तब औरों का भर पेट पाया
कर्जा लेकर अन्न उगाया जिसने
उसके हिस्से बस फाका आया
 
इसके भी चेहरे का रंग
हो गया था बदरंग
तू हुआ काले से गोरा
तूने प्रकृति का नियम तोड़ा
इसको प्रकृति  ने ही तोड़ा
इसको दुलराया सूरज की किरणों ने
बदन को झुलसाया तपती दोपहरों ने
पैदा हुआ तो था फूल गुलाबी
मरा तो काला रंग भी शरमाया
 
इसकी भी जब अर्थी उठी थी
लाश गायब हो गयी थी
किडनी , लिवर और आँखों का
ज़िंदा कारोबार हुआ था
तेरा, तेरी इच्छा से हुआ था जेको !
इसके अंगों का लेकिन ,
गुपचुप कारोबार हुआ था
 
तुम दोनों को ही निगला
सूदखोरों और कर्जदारों ने
कोठी, बंगला , गाड़ी
बड़ी - बड़ी मीनारों ने
ले डूबी तुझको तेरी झूठी शान
मिथ्या अभिमान , अमीरी का स्वांग
 
लेकिन माईकल !
तुझमे और इसमें
बहुत भारी अंतर है
तेरी मौत के तुंरत बाद
ज़िंदा हो गयी तेरी जायदाद
बीबी ने इल्जाम लगाए
बच्चे भी अवैध कहलाए
वसीयत के लिए , खून के प्यासे भी
बन गए रिश्तेदार
जो कहलाते थे तेरे अपने
बदल गया उनका व्यवहार
 
तू मरा तो तेरे दीवाने
फूट फूटकर रो पड़े
तेरी लाश के पीछे
लाखों चाहने वाले चल पड़े
ये जब मरा , कोई नहीं रोया
किसी का कुछ नहीं खोया
पत्थर हो गए थे घरवाले
कई दिनों तक कोई नहीं सोया
हाँ !
इसकी मौत पर
सियासत बहुत हुई थी
किसी की छिन गयी तो ,
किसी को कुर्सी मिल गयी थी
किसी ने चमकाई नेतागिरी
किसी की टी .आर .पी .बढ़ गयी थी 
 
तो बेटा माईकल !
गम के अंधेरों से निकल
देख उसे गौर से
कितनी खुशी से वह
गीत गा रहा है
जब तक धरती पर ज़िंदा रहा
तड़पता रहा , तरसता रहा
बाद मरने के ,
नाच, गा के जश्न मना रहा है
क्यूँ और कैसे पूछा तूने ?
तो वो देख जेको !
मेरे पीछे - पीछे
उसका पूरा परिवार
चला आ रहा है |
 
 

सोमवार, 14 जून 2010

क्या आपने कभी देखा है ऐसा सम्मलेन ?

कवि सम्मलेन और लोकतंत्र, हर बार लोगों को ठगने के बावजूद  अपनी लोकप्रियता और आम जन की आस्था के कारण अस्तित्व में बने रहते हैं |
 
शहर में विराट कवि सम्मलेन का आयोजन होने जा रहा है इसे कई दिनों से प्रचारित और प्रसारित किया जा रहा था |
 
संस्था के आयोजक इसे बार - बार विराट क्यूँ कह रहे थे, इसका राज़ यहीं आकर के खुला जब देखा कि विराट तोंदों के मालिक कुर्सियों पर विराजमान थे | इनके पास विराट पद हैंl, सो ये साहित्य के प्रति कभी - कभी चिंतित हो जाया करते हैं | साहित्य की सेवा ये  कवि सम्मेलनों का आयोजन  करके करते हैं | बाहर से कवि बुलवाने में खर्चा ज्यादा होता है अतः ये लोकल कवियों को बुलाया करते हैं | विराट कवि सम्मलेन की शुरुआत नहीं हो पा रही थी  |कुछ विराट लोगों का आना अभी बाकी था | श्रोता यूँ आ रहे थे 
कि लग रहा था कि इन्हें पैसे देकर के घर से बुलवाया गया है |  कवि सम्मलेन अगर लोकल लेवल का हो तो श्रोता सम्मलेन की समाप्ति तक आते रहते हैं |
 
जिन्होंने प्रतीक चिन्हों का पैसा दिया था, उनका फोन आ गया था कि वे निर्धारित समय से दो घंटे देरी से पहुंचेंगे  | उनके आने से पहले कवि सम्मलेन की शुरुआत नहीं की जा सकती थी अतः दो घंटे कवियों ने पहलू बदल - बदल कर और मेज पर रखे हुए प्रतीक चिन्हों को हसरत भारी नज़रों से देखकर काटे  |
 
दो घंटे बाद  विराट व्यक्तित्व के स्वामी श्रीमान आयोजक जी पहुंचे तब जाकर सम्मलेन की शुरुआत हो सकी | नवरात्रों के दिन थे | व्रती श्रोताओं के लिए चाय आई | तीन बार आई | कवियों की ओर किसी की नज़र नहीं गई | समस्त श्रोता  जब चाय पी चुके, तब उनमे से एक को यह ध्यान आया कि अरे कवि लोग भी इतनी देर से भूखे - प्यासे  बैठे हैं | तुरंत तीन बार की बनी हुई चाय में पुनः चाय पत्ती  डाल कर उनके सम्मुख  लाई गई | चीनी  इसलिए नहीं डाली होंगी ताकि कोई कवि यहाँ से शुगर की बीमारी लेकर ना जाए |
 
खाने - पिलाने का कार्यक्रम पहले ही शुरू कर दिया गया था ताकि कोई भी विराट व्यक्तित्व बिना जलपान किये ना जाने पाए | पुनः श्रोताओं और गणमान्य लोगों  के लिए संतरे, एवं अंगूर परोसे गए | इस बार भी कवियों को शुगर होने से बचा लिया गया | विराट लोगों की चिरौरी  करने में कोई पीछे नहीं रहना चाहता था |  ऐसा भी  हो सकता है कि डॉक्टर ने कहा हो कि लोकल कवियों की कविताएँ एंटीबायोटिक की तरह भारी हो सकती  हैं, और इनके सेवन से पूर्व पेट अच्छे तरह भर लेना चाहिए, अन्यथा पाचन से सम्बंधित परेशानियां हो सकती हैं | मुफ्त में पढ़ने वाले लोकल कवि अक्सर मोटी - मोटी डायरियां लेकर आते हैं, और श्रोताओं ने अगर भूले से भी ताली बजा दी या दाद देने की कोशिश करी तो कवि के द्वारा  डायरी की हर कविता  को पढ़ डालने का खतरा  उत्पन्न  जाता है |
 
संचालक  महोदय  को  कवि सम्मलेन की शुरुआत करने का सौभाग्य आखिरकार हासिल हो ही गया | पहले आने वाले कवि महोदय ने  शुरुआत करते हुए कहा '' यह बिलकुल नई कविता है |  कल ही रात को लिखी है, आज आपके सामने पेश कर रहा हूँ "  इन्हें  ही क्या देश के बड़े -बड़े कवियों को मंच से इस बात का प्रमाणपत्र देना पड़ता है कि रचना एकदम ताज़ी है | जबकि हकीकत यह  है कि  श्रोताओं और वोटरों की याददाश्त बहुत कमज़ोर होती है | बिना प्रमाणपत्र प्रस्तुत किये भी वे  मान जाते हैं |
 
 कविताओं में तालियाँ  भी बहुत बजी | कवियों द्वारा यह भय दिखाया जा रहा था कि अगर इस समय तालियाँ ना बजाई तो अगले जनम में घर - घर में जाकर तालियाँ बजानी पड़ेंगी | कलयुग में इस धमकी  का बहुत महात्म्य है | 
 
तीन लोगों ने काव्य पाठ कर लिया था | अब गणमान्य मुख्य अतिथियों का आना शुरू हुआ | दो घंटे यूँ ही बैठे रहने के बाद कवियों का  स्वागत फूल मालाओं  से किया गया | गणमान्य लोगों की तादाद अनुमान से ज्यादा हो जाने  के कारण हर एक फूल माला को एक अनुपात पाँच के आधार पर कवियों पहनाया गया | फूल मालाओं के फूलों ने इतने हाथों से गुजरने के कारण शर्म से भरकर खुदकुशी कर ली  | 
 
सम्मलेन के दौरान प्रतीक चिन्ह बांटे गए | गणमान्यों का समय कीमती था अतः उनके पवित्र  हाथों से जितना काम हो जाए उतना अच्छा | प्रतीक चिन्ह फूल मालाओं  की तुलना में आधे भी नहीं थे | अतः एक प्रतीक चिन्ह  संस्था के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, मंत्री, नगर मंत्री, नगर महामंत्री, जिला मंत्री, जिला महा मंत्री, महिला मंत्री, नगर प्रमुख, युवा मोर्चा के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव , उपसचिव, और एक दर्जन भिन्न - भिन्न उपक्रमों के मंत्रियों के हाथों से होकर कवियों तक  तक पहुँच पाया |   छोटे - छोटे राज्य बनाए ही इसीलिये जाते हैं, ताकि यहाँ का हर आदमी गणमान्य हो सके | ये  गणमान्य लोग कवियों के साथ फोटो खिंचवाकर आह्लादित  हो रहे थे | फोटो खिंचवाने  की आपाधापी  में  कभी - कभार कवि का चेहरा भी दृष्टिगोचर हो जा रहा था, अन्यथा बड़ी-बड़ी तोंदों के बीच सूखे - मरियल कवियों के मात्र हाथ या आँखें ही फोटो में आ पा रही थीं |
 
प्रतीक चिन्ह  शायद लोकल कवियों के लिए विशेष ऑर्डर देकर तैयार करवाए गए थे |
इतने हाथों से गुजरने के बाद प्रतीक चिन्हों का हश्र भी फूल मालाओं की तरह हुआ | घर जाते समय अंत में सिर्फ़ चिन्ह ही बचे रह गए | 
 
गणमान्य लोग इस कवायद के बाद थक चुके थे | और आगे की सीटों पर विराजमान हो चुके थे |गणमान्य लोग उपस्थित हों और मंच पर सिर्फ़ कविता पढ़ी जाए, यह कैसे संभव हो सकता है ? प्रमुख गणमान्य को इस तरह के आयोजन में पहली बार आने के कारण बहुत प्रसन्नता हुई कि उनके शहर में इतने बुद्धिजीवी रहते है | एक कविता के ऊपर जीने वालों को बुद्धिजीवी कहा जा रहा है, यह सुनकर मंचासीनों को बहुत प्रसन्नता हुई |  अब और लिखने पढ़ने की क्या ज़रुरत ?
 
गणमान्य जी ने अपनी पार्टी का पूरी तरह से प्रचार - प्रसार कर चुकने के बाद   विपक्ष पर खुल कर हमला किया | अपने ऊपर चल रहे विभिन्न आरोपों को उनकी बढ़ती लोकप्रियता से खार खाए  हुए दुश्मनों  की साज़िश करार दिया |
 
संस्था का नगर प्रमुख सञ्चालन की बागडोर संभाले हुए था |  वह इसी शर्त पर आयोजन करवाता था कि सञ्चालन का जिम्मा उसे दिया जाएगा |  कवि गण प्रतीक चिन्हों के हश्र एवं मालाओं की सद्गति से खिन्न थे अतः श्रोताओं का मनोरंजन  नहीं कर पाए, सो यह दायित्व उसके कन्धों पर आ गया था  | दायित्व  का निर्वहन करने में संचालक ने  कोई कसर नहीं रख छोड़ी  | उसने जो शायरियाँ लोगों को सुनाई उनमे से एक का नमूना यह है -
 
अंगूठी में जो लगता है उसे नगीना कहते हैं
प्यार करके जो छोड़ दे उसे कमीना कहते हैं
 
उसे बिना मांगे सबसे ज्यादा तालियाँ और दाद मिली | 
 
प्रमुख विराट व्यक्तित्व को एक बार का उदघाटन करने भी जाना था | बार-बार बजता उनके व्यक्तित्व मेल खाता विराट  फोन उन्हें परेशान कर रहा था| भीड़ में साइलेंट रहना  ना उन्होंने सीखा था ना उनके विशालकाय फ़ोन ने |  सो वे काव्य पाठ के दौरान ही उठ खड़े हुए  | उनके जाते ही लगभग पूरा  हॉल खाली हो गया |
 
जल्दी जल्दी कार्यक्रम का समापन किया गया |  समापन पर संचालक ने वह चुटकुला सुनाया, जिसे बदल-बदल कर वह हर सम्मेलन में सुनाता था | जिस चुटकुले में दूध निकालने की प्रतियोगिता में भारतीय नेता को गलती से बैल मिल जाता है और वह बैल का दूध तक दुह देता है और अन्य देश के नेताओं को हरा देता  है | मंच पर कोई महिला कवियित्री हो तो  उससे क्षमा  मांगकर  यह चुटकुला वह दोगुने उत्साह के साथ  सुनाता  है | 
 
इस तरह एक लोकल लेवल का कवि सम्मलेन संपन्न होता है |
 

शुक्रवार, 4 जून 2010

मिस हॉस्टल ....लघुकथा [एक बार फिर]

आज के अमर उजाला के रूपायन में  प्रकशित मेरी लघुकथा मिस हॉस्टल ..... एक बार फिर से
 

मिस हॉस्टल

 

आज हॉस्टल में बहुत गहमागहमी का वातावरण था क्योंकि आज समस्त वरिष्ठ छात्राओं के मध्य में से कोई एक मिस हॉस्टल का बहुप्रतीक्षित ताज पहनने वाली थी. विश्वस्तरीय सौंदर्य प्रतियोगिताओं की तर्ज पर कई राउंड हुए. अन्तिम राउंड प्रश्न-उत्तर का था, जिसके आधार पर मिस हॉस्टल का चुनाव किया जाना था.

 

प्रश्नोत्तर राउंड के उपरांत जिस छात्रा को गत्ते का बना चमकीला ताज पहनाया गया, उसने अपने मार्मिक उत्तर से सभी छात्राओं का दिल जीत लिया. उससे पूछा गया था,

"जाते समय दुनिया को क्या दे कर जाएँगी आप?"

"मैं अपनी आँखें एवं गुर्दे दान करके जाउंगी,ताकि ये किसी जरूरतमंद के काम आ सकें."

 

तालियों की गड़गडाहट के साथ सभी छात्राओं ने उसके साथ विभिन्न कोणों से फोटो खिंचवाए. पूरे हॉस्टल एवं कॉलेज में उसके महान विचारों की चर्चा हुई.

 

कुछ महीनों के पश्चात परीक्षाएं ख़त्म हुईं. सभी छात्राएं अपने-अपने घरों को लौटने लगीं. मिस हॉस्टल ने भी सामान बाँध लिया था और अपनी रूम-मेट के साथ पुरानी बातों को याद कर रही थी. बातों-बातों में वह आक्रोशित हो गयी और फट पड़ी,

"इतने सड़े हॉस्टल में दो साल गुज़ारना एक नर्क के समान था. टपकती हुई दीवारें, गन्दा खाना, पानी की समस्या, टॉयलेट की गन्दगी और सबसे खतरनाक ये लटकते हुए तार. उफ़, दोबारा कभी न आना पड़े ऐसे हॉस्टल में."

 

रूममेट ने हाँ में हाँ मिलाई तो मिस हॉस्टल का क्रोध और बढ़ गया.

 

"जब मैं यहाँ आयी थी तो इस कमरे में न कोई बल्ब था, न रॉड और न ही स्विच बोर्ड. वॉर्डेन से शिकायत की तो उसने कहा, "हम क्या करें, जितना यूनिवर्सिटी देगी उतना ही तो खर्च करेंगे".

 

"सब कुछ मुझे खरीदना पड़ा अपनी पॉकेटमनी से. इनको अपने साथ ले जा तो नहीं सकती पर ये स्विच उखाड़ कर और ये बल्ब फोड़कर नहीं जाउंगी तो मेरी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी".

 

मिस हॉस्टल अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख सकी. उसने एक कंकड़ उठाया और पहले बल्ब पर निशाना साधा, फ़िर रॉड को नेस्तनाबूद कर दिया. रोशनी चूर-चूर होकर फर्श पर बिखर गयी……..