मिस हॉस्टल
आज हॉस्टल में बहुत गहमागहमी का वातावरण था क्योंकि आज समस्त वरिष्ठ छात्राओं के मध्य में से कोई एक मिस हॉस्टल का बहुप्रतीक्षित ताज पहनने वाली थी. विश्वस्तरीय सौंदर्य प्रतियोगिताओं की तर्ज पर कई राउंड हुए. अन्तिम राउंड प्रश्न-उत्तर का था, जिसके आधार पर मिस हॉस्टल का चुनाव किया जाना था.
प्रश्नोत्तर राउंड के उपरांत जिस छात्रा को गत्ते का बना चमकीला ताज पहनाया गया, उसने अपने मार्मिक उत्तर से सभी छात्राओं का दिल जीत लिया. उससे पूछा गया था,
"जाते समय दुनिया को क्या दे कर जाएँगी आप?"
"मैं अपनी आँखें एवं गुर्दे दान करके जाउंगी,ताकि ये किसी जरूरतमंद के काम आ सकें."
तालियों की गड़गडाहट के साथ सभी छात्राओं ने उसके साथ विभिन्न कोणों से फोटो खिंचवाए. पूरे हॉस्टल एवं कॉलेज में उसके महान विचारों की चर्चा हुई.
कुछ महीनों के पश्चात परीक्षाएं ख़त्म हुईं. सभी छात्राएं अपने-अपने घरों को लौटने लगीं. मिस हॉस्टल ने भी सामान बाँध लिया था और अपनी रूम-मेट के साथ पुरानी बातों को याद कर रही थी. बातों-बातों में वह आक्रोशित हो गयी और फट पड़ी,
"इतने सड़े हॉस्टल में दो साल गुज़ारना एक नर्क के समान था. टपकती हुई दीवारें, गन्दा खाना, पानी की समस्या, टॉयलेट की गन्दगी और सबसे खतरनाक ये लटकते हुए तार. उफ़, दोबारा कभी न आना पड़े ऐसे हॉस्टल में."
रूममेट ने हाँ में हाँ मिलाई तो मिस हॉस्टल का क्रोध और बढ़ गया.
"जब मैं यहाँ आयी थी तो इस कमरे में न कोई बल्ब था, न रॉड और न ही स्विच बोर्ड. वॉर्डेन से शिकायत की तो उसने कहा, "हम क्या करें, जितना यूनिवर्सिटी देगी उतना ही तो खर्च करेंगे".
"सब कुछ मुझे खरीदना पड़ा अपनी पॉकेटमनी से. इनको अपने साथ ले जा तो नहीं सकती पर ये स्विच उखाड़ कर और ये बल्ब फोड़कर नहीं जाउंगी तो मेरी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी".
अरे भई प्रतियोगिता जीतना एक बात है और आदर्शों को जीवन में उतारना अलग....
जवाब देंहटाएंपढ़ लिख कर भी मानसिकता में परिवर्तन नहीं आया तो ऐसे लोगों को पढ़ा लिखा असभ्य कहते हैं.... विचारणीय लघु कथा
बढ़िया रही आपकी यह लघुकथा!
जवाब देंहटाएंदुनिया में किसी को रोशनी देने की बात करने वाली मिस हास्टल ने तो अंधेरा कर दिया।
जवाब देंहटाएंअपनी इस कथा के जरिए आपने अच्छा तमाचा मारा है।
एक अच्छी रचना के लिए आपको बधाई। कथा की कसावट भी जानदार है।
हाथी के दांत खाने के ओर ,दिखाने के और .
जवाब देंहटाएंaaj ka sach bahut achhi tarh se abhivykt kiya hai aapne .
जवाब देंहटाएंरोशनी मन की किरणों से होती है.
जवाब देंहटाएंपटाक्षेप तो होता है और फिर असलियत सामने आ ही जाती है
व्यक्तिवाद, स्वार्थ, नैतिक पतन को उघाड़ती एक अच्छी कहानी। शैफाली जी को बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
aadarsh sirf jabaani hi reh gaye...jitna achcha bolo utna bura karo...
जवाब देंहटाएंआदर्शों की बात करना एक बात और उस पर अमल करना कठिन बात है शेफाली जी। सार्थक पोस्ट।
जवाब देंहटाएंसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
आईना दिखाती कथा..
जवाब देंहटाएंव्यंग्य लेखन में आपकी पैठ इस कथा में भी दिखती है.. इसे मैं कथनी और करनी में फर्क करने वाले लोगो पर करारा व्यंग्य ही कहूँगा... बहुतउम्दा
मुंह में राम बगल में छुरी...
जवाब देंहटाएंहम लोग बातें तो बहुत बड़ी-बड़ी करते हैं लेकिन जब वक्त आता है तो अपनी जात दिखने से बाज़ नहीं आते...
आईना दिखाती सुन्दर रचना
05.06.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह 06 बजे) में शामिल करने के लिए इसका लिंक लिया है।
जवाब देंहटाएंhttp://chitthacharcha.blogspot.com/
पढ़ लिख कर भी मानसिकता में परिवर्तन नहीं आया तो ऐसे लोगों को पढ़ा लिखा असभ्य कहते हैं। कथनी और करनी में फर्क करने वाले लोगो पर करारा व्यंग्य है यह लघु कथा।
जवाब देंहटाएंआपकी ये लघुकथा आज ही पढ़ी.....अमर उजाला में तभी सोचा था कि आपको बधाई दे देंगे.......और देखिये आपकी इस पर पोस्ट भी आ गई.
जवाब देंहटाएंबधाई
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
Hi..
जवाब देंहटाएंKahte hain..
Par updesh, kushal bahutere..
Badi badi baatain karne wale apne jeevan main unhen utaren to ye dharti swarg ho jaaye..
Vishwa sundariyon ki pratiyogiyon ki baatain suno to sahi main lagta hai jaise satyug aa gaya ho.. Par asal jindgi main sab aapki katha si.."MISS HOSTEL" hi nikalti hain..
Sundar katha..
DEEPAK..
एक नकली व्यक्तित्व ओढ़ कर बैठे है हम सब ...
जवाब देंहटाएंअंतरात्मा तक पहुँचने वाली रचना
प्रतियोगिता के लिए रटे रटाए शब्दों का प्रयोग और बात है और शेष जीवन में आपके संस्कार बोलते हैं। हम दुनिया को अपने संस्कार ही देकर जाएं तो सबसे अच्छा होगा।
जवाब देंहटाएंSundar katha..
जवाब देंहटाएंक्या कहूं मैं आपसे... कुछ कहते ही नहीं बन रहा..
जवाब देंहटाएंवाह! लघुकथा के माध्यम से करारा व्यंग्य!! बहुत शानदार!
जवाब देंहटाएंशरीर, विचार और कर्म तीनों सौन्दर्य एक साथ विरलों में मिलते हैं।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही ...
जवाब देंहटाएंआदर्श और नैतिक मूल्यों की बात करना और जीवन में उतारना दो अलग अलग बातें हैं ...!!
मिस वर्ल्ड या मिस यूनिवर्स की प्रतियोगिता में भाग लेने वाली युवतियों के जवाब कि वे क्या करना चाहती हैं और उसके बाद वे सब प्रयत्न करती हैं कि वे ग्लैमर कि दुनिया में चली जांय। शायद ऐसा ही कुछ।
जवाब देंहटाएंबल्ब फ़ोड़कर करा दिया न दस रुपये का नुकसान। वाह री हॉस्टल सुन्दरी।
जवाब देंहटाएंbahut hi achha laga ....padhke...ek tazgi si hai aapke lekhan shaili me...
जवाब देंहटाएंबढ़िया कथा.
जवाब देंहटाएंKathni aur karni ka farq yahi to hai...badhiya laghu katha
जवाब देंहटाएंकथनी और करनी में फर्क का इससे बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता हैं??????
जवाब देंहटाएंबढ़िया सन्दर्भ देने के लिए धन्यवाद.
बहुत बढ़िया.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
नाम बड़े दर्शन छोटे !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया 'लघुकथा' , बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
कुछ साल पहले तक गुर्दे बगैहरा दान करने के अलावा मदर टेरेसा सा बनने का भी फ़ैशन था...फ़ैशन का क्या है, मुआ बदलता रहता है
जवाब देंहटाएंवाह शेफाली, सदा की तरह व्यंग्य में किसी बड़बोली का सच्चा चरित्र उधेड़ कर रख दिया।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
जवाब देंहटाएंऍप्रूवल है.. चलो फिर भी आज टिप्पणी देने का मन हो ही आया ।
क्योंकि अब तक लोगों नें इसे जिस नज़रिये से पढ़ा हो, टीपा हो.. उसमें न पड़ते हुये मेरा नज़रिया कुछ अलग है ।
" हमेशा अच्छे, सच्चे और आदर्श बने रहने की एक अपनी घुटन होती है, फिर भी अपनी प्रवँचना में जीना होता है । वार्डेन की सँवेदनहीनता उसे सालती रही, और वह हॉस्टेल छोड़ते समय इसे शब्दों में व्यक्त करने के साथ ही, उसने बल्ब को फोड़ कर अपनी घुटन से आज़ादी पा ली ।
बड़ा स्वाभाविक चित्रण है, वह कोई मनोविकार अपने सँग नहीं ले चाहती होगी, इसमें बुरा क्या है ? "
टिप्पणी में व्यक्तित्व के इस पक्ष को क्या ऍप्रूवल मिल पायेगा ?
bahut khub
जवाब देंहटाएंफिर से प्रशंसनीय रचना - बधाई
वाह। यह रचना अद्भुत लगी - क्योंकि प्रेरित करती है - कई तरह से। बधाई!
जवाब देंहटाएंPrerak laghu katha....
जवाब देंहटाएंबहुत दिन हुए यहाँ कोई रचना मिले - नई। :(
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