गुरुवार, 26 अगस्त 2010

कितने कब्रिस्तान ?

 
कितने कब्रिस्तान ?
मेरी आँखें बहुत सुखद सपना देख रही हैं | सरकारी स्कूलों में जगह - जगह पड़े गड्ढे वाले फर्श के स्थान पर सुन्दर टाइल वाले फर्श हैं |  उन गड्ढों में से साँप, बिच्छू, जोंक इत्यादि  निकल कर कक्षाओं में भ्रमण नहीं कर रहे हैं | जर्जर, खस्ताहाल, टपकती दीवारों की जगह  मज़बूत और सुन्दर रंग - रोगन करी हुई दीवारों ने ले ली है |  दीवारों का चूना बच्चों की पीठ में नहीं चिपक रहा है | दीमक के वजह से भूरी हो गई दीवारें अब अपने असली रंग में लौट आई हैं | अब बरसात के मौसम में कक्षाओं के अन्दर छाता लगाकर नहीं बैठना पड़ता | खिड़की और दरवाज़े तक आश्चर्यजनक रूप से सही सलामत हैं | कुण्डियों में ताले लग पा रहे हैं | बैठने के लिए फटी - चिथड़ी चटाई की जगह सुन्दर और सजावटी फर्नीचर कक्षाओं की शोभा बढ़ा रहे हैं | पीले मरियल बल्ब जो हर हफ्ते तथाकथित अदृश्य ताकतों द्वारा गायब कर दिए जाते हैं,  की जगह कभी ना निकलने वाली हेलोज़न लाइटें जगमगाने लगी  है | बाबा आदम के ज़माने के पंखे, जिनका होना न होना बराबर है, बरसात में जिनके नीचे बैठने के लिए बच्चों को मना किया जाता है कि  ना जाने कब सिर पर गिर पड़े, की जगह आधुनिक तेज़ हवा वाले पंखो ने ले ली है |  मेरे सपने भी इतने समझदार हैं कि कूलर और ए. सी. के बारे में भूल कर भी नहीं सोच रहे हैं |
 
इन भविष्य के निर्माताओं  की झुकी हुई गर्दन और रीढ़ की हड्डी कुर्सी - मेज में बैठने के कारण सीधी हो गई  है | कुर्सियों  से निकलने वाली बड़ी - बड़ी कीलें कपड़ों  को फाड़ना भूल चुकी  हैं | बैठने पर शर्म से मुँह छिपा रही हैं | ब्लेक बोर्ड मात्र नाम का ब्लैक  ना होकर वास्तव में ब्लैक हो गया है | कक्षाओं में रोज़ झाड़ू लगता है |शौचालय साफ़ सुथरे हैं | अब उनमे आँख और नाक बंद करके नहीं जाना पड़ता |
 
कक्षा - कक्षों  में इतनी जगह हो गई है कि  इन भविष्य के नागरिकों के सिरों ने एक दूसरे से  टकराने से इनकार कर दिया  है | जुओं का पारस्परिक आवागमन  बंद हो गया है |
 
स्कूलों के लिए आया हुआ धन वाकई स्कूल के निर्माण और मरम्मत के कार्य में लग रहा है | उन रुपयों से प्रधानाचार्य के बेटे की मोटर साइकिल, इंजीनियर की नई कार, ठेकेदार की लड़की की शादी, निर्माण समिति के सदस्यों के  कैमरे  वाले मोबाइल नहीं आ रहे हैं | सबसे आश्चर्य की बात यह रही कि स्थानीय विधायक, जिनकी कृपा से धन अवमुक्त हुआ, का दस प्रतिशत के लिए आने वाला अनिवार्य  फ़ोन नहीं आया |    
 
 कीट - पतंगों के छोंके के बिना रोज़ साफ़ - सुथरा मिड डे मील  बन रहा है | विद्यालय के चौकीदार की पाली गई बकरियां और मुर्गियां, दाल और चावल पर मुँह नहीं मार रही हैं | इन्हें  वह उसी दिन खरीद कर लाया था जिस दिन से स्कूल में भोजन बनना शुरू हुआ था  | सवर्ण जाति के बच्चे अनुसूचित जाति  की भोजनमाता के हाथ से बिना अलग पंक्ति बनाए और बिना नाक - भौं  सिकोड़े  खुशी - खुशी भोजन कर रहे हैं | 
 
अध्यापकगण  जनगणना, बालगणना, पशुगणना, बी. पी. एल. कार्ड, बी.एल. ओ. ड्यूटी, निर्वाचन नामावली, फोटो पहचान  पत्र, मिड डे मील का रजिस्टर भरने के बजाय  सिर्फ़ अध्यापन का कार्य कर रहे हैं | कतिपय अध्यापकों ने  एल. आई. सी.  की पोलिसी, आर. डी. , म्युचुअल फंडों के फंदों  में साथी अध्यापकों को कसना छोड़ दिया है  | ट्यूशन खोरी लुप्तप्राय हो गई है | ब्राह्मण अद्यापकों द्वारा जजमानी  और कर्मकांड करना बंद कर दिया गया है |  नौनिहालों  को  ''कुत्तों,  कमीनों, हरामजादों, तुम्हारी बुद्धि में गोबर भरा हुआ है, पता नहीं कैसे - कैसे घरों से आते हो '' कहने के स्थान पर  ''प्यारे बच्चों'', ''डार्लिंग'', ''हनी'' के संबोधन से संबोधित किया जा रहा है  | अध्यापकों के चेहरों पर चौबीसों घंटे टपकने वाली मनहूसियत का  स्थान आत्मीयता से भरी  प्यारी सी मुस्कान ने ले लिया है | डंडों की जगह हाथों में  फूल बरसने लगे हैं | कक्षाओं में यदा - कदा ठहाकों की आवाज़ भी सुनाई दे रही है | पढ़ाई के समय मोबाइल पर बातें  करने के किये  अंतरात्मा स्वयं को धिक्कार रही है | स्टाफ ट्रांसफर, इन्क्रीमेंट, प्रमोशन, हड़ताल, गुटबाजी, वेतनमान, डी. ए. के स्थान पर शिक्षण की नई तकनीकों और पाठ को किस तरह सरल करके पढ़ाया जाए, के विषय में चर्चा और बहस  कर रहे हैं |  अधिकारी वर्ग मात्र खाना - पूरी करने के लिए आस  - पास के स्कूलों का दौरा करने के बजाय दूर - दराज के स्कूलों पर भी दृष्टिपात करने का कष्ट उठा रहे  हैं |
 
सब समय से स्कूल आ रहे हैं | फ्रेंच लीव मुँह छिपा कर वापिस फ्रांस चली गई है | निर्धन छात्रों  के लिए आए हुए रुपयों से दावतों का दौर ख़त्म हो चुका है | अत्यधिक निर्धन  बच्चों की फीस सब मिल जुल कर भर रहे हैं | पैसों   के अभाव  में  किसी को स्कूल छोड़ने की ज़रुरत नहीं रही  | सारे बच्चों के तन पर बिना फटे और उधडे हुए कपड़े हैं | पैरों में बिना छेद  वाले  जूते - मोज़े विराजमान हैं | सिरों  में तेल डाला हुआ है और बाल जटा जैसे ना होकर करीने से बने हुए हैं | कड़कते  जाड़े  में  कोई  बच्चा  बिना स्वेटर के दांत  किटकिटाता नज़र नहीं आ  रहा है | फीस लाने में देरी हो जाने पर  बालों को काटे जाने की प्रथा समाप्त हो चुकी है |
 
माता - पिता अपने बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित हो गए हैं | हर महीने स्कूल आकर उनकी प्रगति एवं गतिविधियों की जानकारी ले रहे हैं |बच्चों के बस्ते रोजाना चेक हो रहे हैं | एक हफ्ते में धुलने वाली यूनिफ़ॉर्म  रोज़ धुल रही है | उन पर प्रेस भी हो रही है | भविष्य के नागरिक  ''भविष्य में क्या बनना चाहते हो?" पूछने पर मरियल स्वर में  ''पोलीटेक्निक, आई. टी. आई., फार्मेसी  या  बी.टी.सी. करेंगे'' कहने के स्थान पर जोशो - खरोश के साथ  ''बी. टेक., एम्.बी. ए., पी.एम्.टी. करेंगे'' कह रहे हैं  | 
 
 भारत के भाग्यविधाताओं को अब खाली पेट  स्कूल नहीं आना  पड़ता | प्रार्थना स्थल पर छात्राएं धड़ाधड करके  बेहोश नहीं हो रही हैं | उनके शरीर पर देवी माताओं ने आकर कब्जा करना बंद कर दिया है,  ना ही कोई विज्ञान का अध्यापक उनकी झाड़ - फूंक, पूजा - अर्चना करके उन्हें  भभूत लगा कर शांत कर रहा है |
 
एक और सपना साथ - साथ चल  रहा है |
 
 मलबे में दबे हुए अठारह मासूम बच्चों के लिए सारे स्कूलों में शोक सभाएं की जा रही हैं | स्कूलों में छुट्टी होने पर कोई खुश नहीं हो रहा है | लोग  ह्रदय से दुखी हैं | दूसरे धर्मों को मानने वाले  स्कूल यह नहीं कह रहे हैं  ''इस स्कूल के बच्चे वन्दे - मातरम्  गाते थे अतः  हम इनके लिए शोक नहीं करेंगे '' ना ही किसी के मुँह से यह सुनाई दे रहा है कि '' अरे! बच्चे पैदा करना तो  इनका कुटीर उद्योग है,  फिर कर लेंगे | इन्हें मुआवज़े की इतनी तगड़ी रकम मिल गई यही क्या कम है''
 
विद्यालय  कब्रिस्तान के बजाय फिर से विद्या के स्थान बन गए हैं, जहाँ से वास्तव में विद्यार्थी निकल रहे हैं, विद्यार्थियों की अर्थियां नहीं |

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

कामवालियां बनाम घरवालियाँ ...

 
 
काम वाली बाई  की तलाश में मैंने अपने कई रविवार शहीद कर डाले | घरवालों के लाख ताने कसने के बावजूद कि '' कामवालों का कोई भरोसा नहीं होता, कब किस को लूट लें और काट डालें, कह नहीं सकते", मैंने कामवाली को ढूंढना नहीं छोड़ा | मुझे लुट जाना  और मर जाना मंज़ूर था पर कामवाली के बिना रहना मंज़ूर नहीं था  |  इस मिशन के तहत मैंने हर आने - जाने वाली महिला को गौर से देखा |  उनके चेहरे की भावभंगिमाओं का सूक्ष्मता से अध्ययन किया | इस गहन अध्ययन के उपरान्त कुछ निष्कर्ष निकाले जिन्हें सबके सामने प्रस्तुत कर रही हूँ |
 
 कामवाली .................
वह  सदा सिर उठाकर चलती है | दिन भर कमरतोड़ मेहनत करने के बाद भी उसके  चेहरे पर राई - रत्ती शिकन भी ढूँढने से नहीं मिलती |
 सदा चाक - चौबंद रहती है | कैसी भी परेशानी क्यूँ ना आए वह सदा हँसती मुस्कुराती, पान, सुपारी  चबाती रहती है |उसकी रग - रग से बला का आत्मविश्वास टपकता है | वह ज़रा सा ऊँचा बोलने पर या कल क्यूँ नहीं आई कहने पर बेझिझक कह देती है ''मेरे पास बहुत काम है, आप कोई और  ढूंढ लो" | उसके ऐसा कहते ही कहने वाली घरवाली  खिसियाकर चुप हो जाती  है और डर के मारे खालिस दूध वाली बढ़िया सी चाय बना कर उसके हाथ में थमा देती है, जाते समय अपना पिछले हफ्ते खरीदा नया सूट भी हँसते हँसते दे देती है |  
 
वह रोज़ शाम को मसालेदार चिकन, मटन या मछली बनाती है | महंगाई का विचार किये बिना  थोडा - थोडा पड़ोसियों और आस - पास रहने वाले रिश्तेदारों को भी भिजवाती है  | उसके दरवाजे से कोई भी भूखा नहीं जाता |
 
 कई बच्चे होने के बावजूद उसे किसी के भविष्य के विषय में चिंता नहीं होती ना ही किसी को को लेकर अस्पताल जाने की नौबत आती है |
 
 बिना किसी संकोच के वह अपने शरीर पर लगे हुए  चोट के निशानों के सन्दर्भ में बताती  है '' आदमी ने मारा , बहुत कमीना है साला, मैंने भी ईंटा उठा कर सिर फोड़ दिया साले का , आइन्दा से मारेगा तो दूसरा घर कर लूंगी "  |
 
 वह महीने के पहली तारीख को अधिकारपूर्वक एडवांस तनख्वाह  मांग लेती है |  महीने की आठ छुट्टियों पर  बिना किसी जी. ओ . के  उसका अधिकार होता है, जिसे लेने के  लिए उसे  किसी  किस्म का बहाना नहीं बनाना पड़ता है, ना ही घरवालों में से किसी को अचानक बीमार घोषित करना पड़ता है , और तो और ना ही इन छुट्टियों को  पूर्व में स्वीकृत  करवाना पड़ता है | साल में दो बार यात्रावाकाश लेने में उसे किसी किस्म का संकोच नहीं होता, ना ही सुबूत के तौर पर यात्रा का टिकट प्रस्तुत करना पड़ता है | 
 
घरवाली ..................
 
वह  आटे - दाल के भाव पर दुकानदार से घंटों तक बहस करने की क्षमता रखती है, बहस के परिणामस्वरूप बचे हुए दो रूपये पाकर निहाल हो जाती है | घर में  ज़रा - ज़रा सी बात पर ताव खा जाती  है, बच्चों को पीट डालती है |  बिना महंगाई का रोना रोए  हुए सास - ससुर और पति को खाना नहीं परोसती   |
 
वह चोटों के निशान को छुपाने की कला में पारंगत होती है, चेहरे पर नील के निशान को '' बाथरूम में फिसल गई थी" कहकर  मुस्कुरा देती  है | साथियों, बार - बार चेहरे के बल गिरना कोई आसान बात नहीं होती है |
 
 वह  छुट्टी के दिन भी बड़ा सा पर्स लेकर मुँह लटकाए हुए पंद्रह सौ रुपयों के लिए स्कूल जाती है | अचानक बीमार पड़ने पर भी उसे केजुअल लीव नहीं मिलती, क्यूंकि वह पूर्व में स्वीकृत नहीं होती | वह विरोध करने में सक्षम नहीं होती और उसकी तनख्वाह काटने में अधिकारी  कतई संकोच नहीं करता | 
|
उसका  मात्र एक बच्चा होता है | हजारों टन कोम्प्लान, बोर्नविटा पीने और महंगे से महंगे टोनिक को पीने के बाद भी जिसे हर हफ्ते अस्पताल ले जाना पड़ता है ,जिसके भविष्य की चिंता में उसे अभी से नींद नहीं आती, ब्लड प्रेशर हाई और भरी जवानी में शुगर की बीमारी हो जाती है | पिछले कई सालों  से नींद की गोली खाए बिना वह सो नहीं सकती है  |
 
इस कामवाली खोज अभियान के तहत एक बार जिस औरत के अत्यंत साधारण से कपड़े देखकर मैं गलती से पूछ बैठी थी कि '' झाड़ू - पोछे का कितना लोगी ?" वह बुद्धिजीवी महिला निकल गई | उसने  बिना झाड़ू के मुझे सिर से लेकर पैर तक झाड़ दिया |   अपनी पूरी डिग्रियों सहित उसने मुझ पर आक्रमण कर दिया | उसने मुझे बताया कि उसकी औकात मेरे जैसी दस को खड़े - खड़े खरीदने की है |  ''सादा जीवन उच्च  विचार'' की पूरी फिलोसोफी  मिनटों में समझा दी | मुझे आँख होते हुए भी अंधी ठहराते हुए उसने गुस्से में  यह बताया  कि उसने पाँच  विषयों से एम्. ए. किया है, दो से पी. एच. डी. और एक से डी.लिट.| किस - किस यूनिवर्सिटी से उसे कौन कौन से पदक मिले, जाते जाते यह बताना वह नहीं भूली | मैं उसकी डिग्रियों के बोझ तले दब गई | उस दिन से मैंने तौबा कर ली कि किसी के बारे में कपड़े देखकर राय नहीं बनानी चाहिए | एक बार  मेरे साथ ऐसा भी हुआ है कि वह महिला जिसे मैं उसके द्वारा पहिने हुए शानदार कपड़ों  को देखकर सोचती थी ज़रूर कोई अमीर और संभ्रांत घर से ताल्लुक रखती  होगी और बड़ी श्रद्धा से  सुबह - शाम नमस्ते [उसे कम और उसके कपड़ों को ज्यादा] किया करती थी, वह कामवाली बाई निकली |
 
साथियों अपने इस खोज अभियान में मैंने अंतिम रूप से यह निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान समय में यदि कोई स्वाभिमान की ज़िंदगी बिता सकती है तो वह कामवाली बाई है |