काम वाली बाई की तलाश में मैंने अपने कई रविवार शहीद कर डाले | घरवालों के लाख ताने कसने के बावजूद कि '' कामवालों का कोई भरोसा नहीं होता, कब किस को लूट लें और काट डालें, कह नहीं सकते", मैंने कामवाली को ढूंढना नहीं छोड़ा | मुझे लुट जाना और मर जाना मंज़ूर था पर कामवाली के बिना रहना मंज़ूर नहीं था | इस मिशन के तहत मैंने हर आने - जाने वाली महिला को गौर से देखा | उनके चेहरे की भावभंगिमाओं का सूक्ष्मता से अध्ययन किया | इस गहन अध्ययन के उपरान्त कुछ निष्कर्ष निकाले जिन्हें सबके सामने प्रस्तुत कर रही हूँ |
कामवाली .................
वह सदा सिर उठाकर चलती है | दिन भर कमरतोड़ मेहनत करने के बाद भी उसके चेहरे पर राई - रत्ती शिकन भी ढूँढने से नहीं मिलती |
सदा चाक - चौबंद रहती है | कैसी भी परेशानी क्यूँ ना आए वह सदा हँसती मुस्कुराती, पान, सुपारी चबाती रहती है |उसकी रग - रग से बला का आत्मविश्वास टपकता है | वह ज़रा सा ऊँचा बोलने पर या कल क्यूँ नहीं आई कहने पर बेझिझक कह देती है ''मेरे पास बहुत काम है, आप कोई और ढूंढ लो" | उसके ऐसा कहते ही कहने वाली घरवाली खिसियाकर चुप हो जाती है और डर के मारे खालिस दूध वाली बढ़िया सी चाय बना कर उसके हाथ में थमा देती है, जाते समय अपना पिछले हफ्ते खरीदा नया सूट भी हँसते हँसते दे देती है |
वह रोज़ शाम को मसालेदार चिकन, मटन या मछली बनाती है | महंगाई का विचार किये बिना थोडा - थोडा पड़ोसियों और आस - पास रहने वाले रिश्तेदारों को भी भिजवाती है | उसके दरवाजे से कोई भी भूखा नहीं जाता |
कई बच्चे होने के बावजूद उसे किसी के भविष्य के विषय में चिंता नहीं होती ना ही किसी को को लेकर अस्पताल जाने की नौबत आती है |
बिना किसी संकोच के वह अपने शरीर पर लगे हुए चोट के निशानों के सन्दर्भ में बताती है '' आदमी ने मारा , बहुत कमीना है साला, मैंने भी ईंटा उठा कर सिर फोड़ दिया साले का , आइन्दा से मारेगा तो दूसरा घर कर लूंगी " |
वह महीने के पहली तारीख को अधिकारपूर्वक एडवांस तनख्वाह मांग लेती है | महीने की आठ छुट्टियों पर बिना किसी जी. ओ . के उसका अधिकार होता है, जिसे लेने के लिए उसे किसी किस्म का बहाना नहीं बनाना पड़ता है, ना ही घरवालों में से किसी को अचानक बीमार घोषित करना पड़ता है , और तो और ना ही इन छुट्टियों को पूर्व में स्वीकृत करवाना पड़ता है | साल में दो बार यात्रावाकाश लेने में उसे किसी किस्म का संकोच नहीं होता, ना ही सुबूत के तौर पर यात्रा का टिकट प्रस्तुत करना पड़ता है |
घरवाली ..................
वह आटे - दाल के भाव पर दुकानदार से घंटों तक बहस करने की क्षमता रखती है, बहस के परिणामस्वरूप बचे हुए दो रूपये पाकर निहाल हो जाती है | घर में ज़रा - ज़रा सी बात पर ताव खा जाती है, बच्चों को पीट डालती है | बिना महंगाई का रोना रोए हुए सास - ससुर और पति को खाना नहीं परोसती |
वह चोटों के निशान को छुपाने की कला में पारंगत होती है, चेहरे पर नील के निशान को '' बाथरूम में फिसल गई थी" कहकर मुस्कुरा देती है | साथियों, बार - बार चेहरे के बल गिरना कोई आसान बात नहीं होती है |
वह छुट्टी के दिन भी बड़ा सा पर्स लेकर मुँह लटकाए हुए पंद्रह सौ रुपयों के लिए स्कूल जाती है | अचानक बीमार पड़ने पर भी उसे केजुअल लीव नहीं मिलती, क्यूंकि वह पूर्व में स्वीकृत नहीं होती | वह विरोध करने में सक्षम नहीं होती और उसकी तनख्वाह काटने में अधिकारी कतई संकोच नहीं करता |
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उसका मात्र एक बच्चा होता है | हजारों टन कोम्प्लान, बोर्नविटा पीने और महंगे से महंगे टोनिक को पीने के बाद भी जिसे हर हफ्ते अस्पताल ले जाना पड़ता है ,जिसके भविष्य की चिंता में उसे अभी से नींद नहीं आती, ब्लड प्रेशर हाई और भरी जवानी में शुगर की बीमारी हो जाती है | पिछले कई सालों से नींद की गोली खाए बिना वह सो नहीं सकती है |
इस कामवाली खोज अभियान के तहत एक बार जिस औरत के अत्यंत साधारण से कपड़े देखकर मैं गलती से पूछ बैठी थी कि '' झाड़ू - पोछे का कितना लोगी ?" वह बुद्धिजीवी महिला निकल गई | उसने बिना झाड़ू के मुझे सिर से लेकर पैर तक झाड़ दिया | अपनी पूरी डिग्रियों सहित उसने मुझ पर आक्रमण कर दिया | उसने मुझे बताया कि उसकी औकात मेरे जैसी दस को खड़े - खड़े खरीदने की है | ''सादा जीवन उच्च विचार'' की पूरी फिलोसोफी मिनटों में समझा दी | मुझे आँख होते हुए भी अंधी ठहराते हुए उसने गुस्से में यह बताया कि उसने पाँच विषयों से एम्. ए. किया है, दो से पी. एच. डी. और एक से डी.लिट.| किस - किस यूनिवर्सिटी से उसे कौन कौन से पदक मिले, जाते जाते यह बताना वह नहीं भूली | मैं उसकी डिग्रियों के बोझ तले दब गई | उस दिन से मैंने तौबा कर ली कि किसी के बारे में कपड़े देखकर राय नहीं बनानी चाहिए | एक बार मेरे साथ ऐसा भी हुआ है कि वह महिला जिसे मैं उसके द्वारा पहिने हुए शानदार कपड़ों को देखकर सोचती थी ज़रूर कोई अमीर और संभ्रांत घर से ताल्लुक रखती होगी और बड़ी श्रद्धा से सुबह - शाम नमस्ते [उसे कम और उसके कपड़ों को ज्यादा] किया करती थी, वह कामवाली बाई निकली |
साथियों अपने इस खोज अभियान में मैंने अंतिम रूप से यह निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान समय में यदि कोई स्वाभिमान की ज़िंदगी बिता सकती है तो वह कामवाली बाई है |
आपकी लेखनी का भी जबाब नहीं .. अर्थशास्त्र के नियम के हिसाब से ही पेशे की मांग और पूर्ति के अनुसार ही विभिन्न पेशेवालों के आत्मविश्वास पर प्रभाव पडता है .. हमारे मुहल्ले में दो स्वीपर महिलाएं हैं .. पहले उनकी जिंदगी को देखकर मुझे उनपर दया आती थी .. पर कुछ दिन बाद उनके कपडे , चाल ढाल और चेहरे का आत्मविश्वास देखा .. तो दंग ही रह गयी मैं !!
जवाब देंहटाएंसारे देश की काम वाली बाईयाँ एक सी ही होती है। अच्छा लेखन। बधाई।
जवाब देंहटाएंप्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
http://vyangyalok.blogspot.com
शोधपूर्ण ढंग से आम माध्यम वर्गीय जीवन का विश्लेषण ...बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक चित्रण किया है आपने, बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आपकी खोज का जवाब नही!
जवाब देंहटाएंएक बार मेरे साथ ऐसा भी हुआ है कि वह महिला जिसे मैं उसके द्वारा पहिने हुए शानदार कपड़ों को देखकर सोचती थी ज़रूर कोई अमीर और संभ्रांत घर से ताल्लुक रखती होगी और बड़ी श्रद्धा से सुबह - शाम नमस्ते [उसे कम और उसके कपड़ों को ज्यादा] किया करती थी, वह कामवाली बाई निकली |
जवाब देंहटाएंएकदम सही फ़रमाया आपने आज बिलकुल ऐसा ही है आजकल शानदार कपडे और शानदार जीवन शैली के लिए कामवाली होना या देह व्यापार करनेवाली होना जरूरी हो गया है क्योकि इमानदार और नैतिकता पर चलने वालों को तो दो वक्त की रोटी जोड़ना भी मुश्किल हो गया है ,इसलिए अपने घर का काम खुद ही करें तो ज्यादा ठीक रहेगा ...
बहुत ढूढ़ कर गुण निकाले हैं।
जवाब देंहटाएंशैफाली ! यार सोच रही हूँ यही काम पकड़ लूं :( वाकई फायेदा का सौदा लग रहा है तुम्हें जरुरत हो तो बताना फ्री में तुम्हारी ब्लोगिंग भी कर दिया करुँगी .तुम्हारे जैसा न सही पर काम चलाऊ तो लिख ही दूंगी ना इतना गेप तो नहीं होगा :).
जवाब देंहटाएंलगता है यह सार्वकालिक और सार्वजनीन छवियाँ हैं दोनों की ..... :)
जवाब देंहटाएंक्या सटीक बात लिखी है....काफी बढ़िया परिणाम रहे खोज के ...
जवाब देंहटाएंkaafi बारीकी se likhaa hain aapne.
जवाब देंहटाएंaapki paini nazro se aajtak naa to koi bachaa hain or aage bhi koi nahi bach paayegaa.
waise, apwaad-swaroop kuch log achchhe bhi hote hain.
bahut badhiyaa, dhanyawaad.
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काफी बारीकी से लिखा हैं आपने.
जवाब देंहटाएंआपकी पैनी नजरो से आजतक न तो कोई बचा हैं और आगे भी कोई नहीं बच पायेगा.
वैसे, अपवाद-स्वरुप कुछ लोग अच्छे भी होते हैं.
बहुत बढ़िया, धन्यवाद.
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aapka shodh lajawab hai...aur nishkarsh bhi sahi hai...aaj kal aise hai sab thokkha kha jate hai.
जवाब देंहटाएंhttp://kavyamanjusha.blogspot.com/
वह छुट्टी के दिन भी बड़ा सा पर्स लेकर मुँह लटकाए हुए पंद्रह सौ रुपयों के लिए स्कूल जाती है | अचानक बीमार पड़ने पर भी उसे केजुअल लीव नहीं मिलती, क्यूंकि वह पूर्व में स्वीकृत नहीं होती | वह विरोध करने में सक्षम नहीं होती और उसकी तनख्वाह काटने में अधिकारी कतई संकोच नहीं करता |
जवाब देंहटाएं|
बहुत शानदार पोस्ट.
कामवाली के बारे में पढ़कर मुझे बरसो पुराना एक नाटक याद आ गया! जहाँ तक घरवाली की बात हैं इनके तो हज़ार रूप हैं!!
जवाब देंहटाएंऔर उन बुद्धिजीवी महिला को कहिएगा, काहे का सादा जीवन ऊँचे विचार, जरा सी बात का बतंगड़ बना दिया, हंस के भी तो बता सकती थी
क्या खूब लिखा है धन्य हो आप कलमवाली बाई !
जवाब देंहटाएंमुझे यह अंश बहुत मजेदार लगा:उसने बिना झाड़ू के मुझे सिर से लेकर पैर तक झाड़ दिया | अपनी पूरी डिग्रियों सहित उसने मुझ पर आक्रमण कर दिया | उसने मुझे बताया कि उसकी औकात मेरे जैसी दस को खड़े - खड़े खरीदने की है | ''सादा जीवन उच्च विचार'' की पूरी फिलोसोफी मिनटों में समझा दी | मुझे आँख होते हुए भी अंधी ठहराते हुए उसने गुस्से में यह बताया कि उसने पाँच विषयों से एम्. ए. किया है, दो से पी. एच. डी. और एक से डी.लिट.| किस - किस यूनिवर्सिटी से उसे कौन कौन से पदक मिले, जाते जाते यह बताना वह नहीं भूली | मैं उसकी डिग्रियों के बोझ तले दब गई |
जवाब देंहटाएंपोस्ट पढ़कर लाफ़्टर चैलेंज में एक डाक्टर के द्वारा सुनाई हुई कविता याद आ गई:
नौकर नहीं है परसों से
पति वही है बरसों से!
सुन्दर पोस्ट! जरा जल्दी-जल्दी लिखा करो न जी!
एक बेहद उम्दा पोस्ट के लिए आपको बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंआपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है यहां भी आएं !
ओहो !!!! शेफाली !आपका भी जवाब नहीं !
जवाब देंहटाएंबेहद खूबसूरत व्यंग्य पढ़ने का मौका मिला।
जवाब देंहटाएंखत्म हो गया गिला।
व्यंग्य की चुटकी निम्न लाइनों में ज्यादा असरदार है.........
'' झाड़ू - पोछे का कितना लोगी ?" वह बुद्धिजीवी महिला निकल गई | उसने बिना झाड़ू के मुझे सिर से लेकर पैर तक झाड़ दिया | अपनी पूरी डिग्रियों सहित उसने मुझ पर आक्रमण कर दिया | उसने मुझे बताया कि उसकी औकात मेरे जैसी दस को खड़े - खड़े खरीदने की है | ''सादा जीवन उच्च विचार'' की पूरी फिलोसोफी मिनटों में समझा दी | मुझे आँख होते हुए भी अंधी ठहराते हुए उसने गुस्से में यह बताया कि उसने पाँच विषयों से एम्. ए. किया है, दो से पी. एच. डी. और एक से डी.लिट.| किस - किस यूनिवर्सिटी से उसे कौन कौन से पदक मिले, जाते जाते यह बताना वह नहीं भूली | मैं उसकी डिग्रियों के बोझ तले दब गई |
शैफाली मैं सोच रही हूँ यही काम पकड़ लूं :) तुम्हें जरुरत हो तो बताना फ्री में ब्लोगिंग भी कर दूंगी तुम्हारी :) तुम्हारे जैसा अच्छा तो नहीं पर काम चालू तो लिख ही दूंगी न ..इतना गेप तो नहीं होगा :)
जवाब देंहटाएंमैडम जी...
जवाब देंहटाएंइस बार का आलेख काफी दिन बाद आया.....? लगता है पुरे मनोयोग से कामवाली की तलाश हो रही थी...!
आपने अपने आलेख में एक तरह से पोल खोल कर रख दी है....वह क्या खूबसूरत दर्द भरी व्याख्या है कामवाली और घरवाली की....
"वह ज़रा सा ऊँचा बोलने पर या कल क्यूँ नहीं आई कहने पर बेझिझक कह देती है ''मेरे पास बहुत काम है, आप कोई और ढूंढ लो" | उसके ऐसा कहते ही कहने वाली घरवाली खिसियाकर चुप हो जाती है और डर के मारे खालिस दूध वाली बढ़िया सी चाय बना कर उसके हाथ में थमा देती है, जाते समय अपना पिछले हफ्ते खरीदा नया सूट भी हँसते हँसते दे देती है....."
"कई बच्चे होने के बावजूद उसे किसी के भविष्य के विषय में चिंता नहीं होती ना ही किसी को को लेकर अस्पताल जाने की नौबत आती है"
"वह छुट्टी के दिन भी बड़ा सा पर्स लेकर मुँह लटकाए हुए पंद्रह सौ रुपयों के लिए स्कूल जाती है ..."
"उसका मात्र एक बच्चा होता है | हजारों टन कोम्प्लान, बोर्नविटा पीने और महंगे से महंगे टोनिक को पीने के बाद भी जिसे हर हफ्ते अस्पताल ले जाना पड़ता है "....
एक एक वाक्य जैसे नपा तुला...बहुत ही बेहतरीन व्यंग....हर घरवाली को एक कामवाली की आवश्यकता है आजकल तो....
सुन्दर...व्यंग....
दीपक.....
आपका लिखा हुआ पढ़कर जितनी ख़ुशी होती है उसे बता पाना मुश्किल है. पाठक को और क्या चाहिए?
जवाब देंहटाएंक्या गज़ब की पोस्ट है.
आपका लिखा हुआ पढ़कर जितनी ख़ुशी होती है उसे बता पाना मुश्किल है. पाठक को और क्या चाहिए?
जवाब देंहटाएंक्या गज़ब की पोस्ट है.
हा हा!! बहुते सन्नाट!!
जवाब देंहटाएंआइन्दा से मारेगा तो दूसरा घर कर लूंगी
-ये आजादी उनके सिवाय और किसे है भला... :)
बार - बार चेहरे के बल गिरना कोई आसान बात नहीं होती है
-स्वस्थ सलाह!!
-मजा आ गया आबजर्वेशन देखकर...कायल तो खैर पहले से ही हैं..
मध्यम वर्गीय जीवन का बहुत सटीक विश्लेषण. भाषा का प्रवाह अत्यंत सुन्दर है, ऐसी सधी हुयी भाषा और इतनी प्रभावशाली रचना पढ़ कर आपके ब्लॉग पर अब तक न आने का अफ़सोस हो रहा है,
जवाब देंहटाएंe.mail se shikha varshney..." शैफाली! यार मैं सोच रही हूँ अब यही काम पकड़ लूं :( तुम्हें जरुरत हो तो बताना फ्री में तुम्हारी ब्लोगिंग भी कर दूंगी ,तुम्हारे जैसा अच्छा तो नहीं पर काम चलाऊं तो लिख ही दूंगी ना ,इतना गेप तो नहीं होगा " शिखा.
जवाब देंहटाएंवो ईंट से सर फोड़ रही है और ये है कि बाथरूम में गिरने का झूठ बोल रही है.. बड़ी संजीदा बात है..
जवाब देंहटाएंबाकी बिना झाड़ू से झाड़ा जाना मस्त है..
पूरे घर ने पढ़ा . आनन्द आ गया ।
जवाब देंहटाएंकड़वी दवा पिला आपने। मतलब ये कामवाली और घरवाली देशभर में एक सी हैं।
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग...जब से ये सिरियल और ब्लाग्स शुरु हुऐ हैं घरवालियों को कामवालियों की आवश्यकता जैसे अनिवार्य हो गई है.
जवाब देंहटाएंउसका मात्र एक बच्चा होता है | हजारों टन कोम्प्लान, बोर्नविटा पीने और महंगे से महंगे टोनिक को पीने के बाद भी जिसे हर हफ्ते अस्पताल ले जाना पड़ता है
जवाब देंहटाएंbejod lekh .............har lihaaj se ,
or ye aapke shiva kisi ke boote ki baat baat nahi.
आपका सटीक व तुलनात्मक लेख पढने को मिला | घरवालियाँ यह भली भांति जानती हैं, कि लठैती के दौर में चुप्पी का सहारा लेना ही बुद्धिमानी और मजबूरी है, तथा पानी के लिए पत्थर से टकराने की अपेक्षा side से निकलने में ही भलाई है | परन्तु हमें यह भी स्वीकार करना पड़ेगा , कि घरवालियों की कामवालियों पर इतनी ज्यादा dependency के कारण थोड़े बहुत नखरे तो कामवालियों के भी बनते हैं |
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख.
जवाब देंहटाएंशेफाली जी बहुत बढ़िया लिखती है आप | काफी दिन बाद मजेदार व्यंग्य पढ़ने को मिला है | आभार
जवाब देंहटाएंabhee ham jaipur 6 saal baad vapis aaye hai to kaam vaalee kee talaash hame bhee thee. ek kaam vaalee wife se kah bhee rahee thee jab baat karne ghar aai to anaap shapaap paise maange wife ne jitne padausee dete hai utne dene ko kaha ki rahne do mujhe pataa hai ki tumhaaree aukaat he nahee hai mujhse kaam karaane kee. ab mai bhee soch rahaa hoo ki koi part time job kar loo jisse use lage ki aukaat badh gai hai ab is lallu ram kee
जवाब देंहटाएंगज़ब का ऑब्ज़रवेशन है आपका ... । बढिया लगा यह व्यंग्य ।
जवाब देंहटाएंसदा की तरह सशक्त लेखन. देरी से पढ़ पाया, क्योंकि बीच में बहुत दिन तक नया लेख मिला नहीं - फिर मैं अपनी निजी व्यथाओं में उलझा था.
जवाब देंहटाएंसारी शिकायत दूर हो गयी, आनंद आया.
तभी मैंने सोचा कि आप कहां हैं, तो आप इनकी तलाश में हैं। तलाश की तलाश और व्यंग्य का व्यंग्य। वाह आपकी कार
जवाब देंहटाएंशेफाली जी, क्या आप पहले मुंबई रह चुकी हैं। बिल्कुल मुंबई की बाइयों की कहानी बयां कर दी है आपने।
जवाब देंहटाएंने कहा…
जवाब देंहटाएंe.mail se shikha varshney..." शैफाली! यार मैं सोच रही हूँ अब यही काम पकड़ लूं :( तुम्हें जरुरत हो तो बताना फ्री में तुम्हारी ब्लोगिंग भी कर दूंगी ,तुम्हारे जैसा अच्छा तो नहीं पर काम चलाऊं तो लिख ही दूंगी ना ,इतना गेप तो नहीं होगा " शिखा.
great ma'am
जवाब देंहटाएंगज़ब की झन्नाटेदार रचना है यह , आपकी कलम दमदार है , और विश्वास है कि यह प्रतिभा और निखरेगी !
जवाब देंहटाएंहार्दिक मंगल कामनाएं
bahut aacha yo
जवाब देंहटाएंtu tumar weu chi .......wesi gharwayi se kamwai thek si.....katuke kam kara do .....ghrwayi too khor pid liby
मस्त है।
जवाब देंहटाएंनिःसंदेह आप उच्चकोटि की व्यंग्यकार हैं। आपको जितना पढ़ता हूँ आनंद आता है। एक पुस्तक आ ही जानी चाहिए व्यंग्य की।
टीस और आजादी की प्रस्तुती, एक साथ .......
जवाब देंहटाएंजिन्दा रहने को कुछ तो छोड़ो .......................
खैर तखलीफ़ में भी हंसाती हो तुम.
शोखी और तल्खी साथ-साथ, ये बहुत कम होता है
जवाब देंहटाएंतल्खियाँ और शोखियाँ साथ-साथ, ऐसा कम ही लोग कर पाते हैं.बहुत बखूबी कर दिखाया है........
जवाब देंहटाएंसब यथावत बना रहे.................
कामवाली घरवाली को मालकियत से निकाल सकती है घरवाली कामवाली को नौकरी से नही निकाल सकती
जवाब देंहटाएंधारदार...
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