चंद दिनों में ही हाय !
क्या से क्या हो गए मेरे हाल
सोचती हूँ मैं भी अब
उपवासों को बना लूँ अपनी ढाल |
जब जाऊं रसोईघर में
दिल घबरा जाता है
खाली - खाले डिब्बे देख
कलेजा मुँह को आता है
बिना किसी त्यौहार के
अक्सर व्रत हो जाता है
कभी दाल में डलता था पानी
अब पानी में डालूं डाल
सोचती हूँ मैं भी अब मोदी जी
उपवासों को बना लूँ अपनी ढाल
चंद दिनों में ही हाय !
क्या से क्या हो गए मेरे हाल
घर से जब बाहर निकलूं
बढ़ा किराया पाती हूँ
टेम्पो, ऑटो और रिक्शे पर
यूँ ही झुंझला जाती हूँ
सेहत बड़ी नियामत सोचकर
पैदल ही चलती जाती हूँ
कभी हर कदम पर चढ़ती थी रिक्शा
अब हर वाहन से तेज है मेरी चाल |
सोच रही हूँ मैं भी अब अन्ना जी !
पदयात्रा को बना लूँ अपनी ढाल |
चंद दिनों में ही हाय !
क्या से क्या हो गए मेरे हाल |
एक तीर से कई निशाने
साधुंगी मैं इसी बहाने
नगरी - नगरी द्वारे - द्वारे
घर से निकल पडूं जल्दी से
जनता में एक अलख जगाने
घर - गृहस्थी के विकट हैं झंझट
नून - तेल - लकड़ी के जाल
रो - पड़े हैं अच्छे - खासे
महंगाई ने किया कंगाल |
सोच लिया है मैंने भी आडवाणी जी !
रथ - यात्राओं में बिता दूंगी आने वाले साल |
चंद दिनों में ही हाय !
क्या से क्या हो गए मेरे हाल
सोचती हूँ मैं भी अब
उपवासों को बना लूँ अपनी ढाल |
हाल वाकई बेहाल हैं..
जवाब देंहटाएंलगता है अब ये उपवास ही उपाय है..
यही मँहगाई रही तो उपवास आवश्यक हो जायेगा।
जवाब देंहटाएंवाह …………एक सटीक और सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक .
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
नेताओं से प्रेरणा लेंगी, तो फिर उनके हश्र् से कैसे बचेंगी। :)
जवाब देंहटाएं------
मायावी मामा?
रूमानी जज्बों का सागर है प्रतिभा की दुनिया।
इस महंगाई के ज़माने में तो गरीब का कोई हाल नहीं है| उपवास ही उपवास है|
जवाब देंहटाएंआधी से ज्यादा जनता तो यूंही उपवासी रहती है. सटीक और करारा व्यंग.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बढिया ..
जवाब देंहटाएंवाह जी बल्ले बल्ले
जवाब देंहटाएंसुंदर
sach kaha mahgayi ne to vaise hi kamar tod rakhi hai....yahi karte hain ham bhi paidal yatraye karte hain aur anshan karte hain. lekin afsos media hamare liye nahi aayegi.
जवाब देंहटाएंsunder sateek kataaksh.
वाह.
जवाब देंहटाएंयात्रा तो मजेदार है जी! लेकिन साथ कैसे चलें -दफ़्तर जाना है जी! :)
जवाब देंहटाएंमहंगाई डायन खाय जात है।
जवाब देंहटाएंवाह वाह
जवाब देंहटाएंभूखा ही मरना है तो उपवास के बहाने ही सही ...
जवाब देंहटाएंशानदार व्यंग्य!
हाल तो वाकयी में बेहाल है...बढ़िया व्यंग्यात्मक रचना
जवाब देंहटाएंआपका उपवास बहुत भारी है
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों से आपको व्यंग्य
लेखन का उपवास ही तंग कर रहा है
अब तो तोडि़ए
सिर्फ कविता ही नहीं
गद्य व्यंग्य लेखन से भी
नाता जोडि़ए
जैसा जोड़ा है अमीरी से
गरीबी ने
वो योजना आयोग का कमाल है
आप अपनी कलम का जाल बिछाइये
बुराईयों को फंसाईये
कुछ जलवा व्यंग्य का अद्भुत दिखलाइये
ek dam sahi kataksh.mahngaai ne gajab haal kiya hua lagta hai saiya aur sajni dono kamaat hai par ye mahangaai dayan fir bhi khaae jaat hai....
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