श्रीमान खंडूरी
तो जीत गए होते |
नाकाम होते षड्यंत्र, और
विश्वासघाती, भितरघाती
उनके पैरों तले बिछ गए होते |
चलिए, उनके हारने की
तह तक जाते हैं
और हार के कारणों का
पता लगाते हैं |
वोटरों ने बताया कि
ज़रूरी चीज़ों से वे
बहुत ज्यादा घबराते हैं
उनके सिर्फ़ ख्याल ही
दिन रात रुला जाते हैं |
राशन, पानी, बिजली
गैस की लम्बी कतार
महंगाई की मार
सोते - जागते सताते हैं |
इसीलिये अब
गैर ज़रूरी चीज़ें
हमें भाने लगी हैं
मॉल, मोबाइल,
बर्गर पीज़ा की दुनिया
रास आने लगी हैं |
हाईकमान
के गलत निकले अनुमान
चीज़ ज़रूरी हो तो
मन को अच्छी नहीं लगती हैं |
और बैठक कोई भी हो,
सजावटी, नकली और बेकार
की वस्तुओं से ही सजती है |
जनता का मिजाज कौन जाने..
जवाब देंहटाएंबात तो सही है...
जवाब देंहटाएंआरक्षण के लिए जान देने को आतुर महंगाई पर एक समय भूखे नहीं रह सकते ...
जवाब देंहटाएंबदल दिया है अंदाज़ जीने का हमने , ज़रूरी और गैरजरूरी का फर्क भी मिट गया लगता है !
शैफाली जी मुझे लगता है भ्रष्टाचार की बुराई भारतीय जनता की रगों में बहुत गहरे से समा चुकी है या दुसरे शब्दों में कहें तो जनता की मानसिकता घटिया और मिलावटी चीजों की इतनी आदि हो चुकी है की इसे शुद्ध ईमानदारी से दस्त हो जाने का डर लगता है. तभी तो हमारे देश में खंडूरी जैसा अनुशासित व ईमानदार व्यक्ति हज़म नहीं होता और लालू या निशक जैसा भ्रष्टाचारी आसानी से चुनाव जीतता जाता है.
जवाब देंहटाएंसार्थक प्रस्तुति.....
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