मंगलवार, 22 जनवरी 2013

गुलाबी नगरी, में गुलाबी मौसम में, गुलाबी गाल वालों की, कुछ गुलाबी - गुलाबी सी गप्पें इस प्रकार हैं ....

गुलाबी नगरी, में गुलाबी मौसम में, गुलाबी गाल वालों की, कुछ गुलाबी - गुलाबी सी गप्पें इस प्रकार हैं .............

साथियों, जब चुनाव होते हैं तो हमारा कार्यकर्ता देखता रहता है और कोई बाहर ही बाहर पैराशूट से सीधे पार्टी में आ जाता है, असल बात ये है कि पैराशूट उम्मीदवार को टिकट देना हमारी मजबूरी है, अगर ऐसा न करें तो हमारे प्रत्याशी टिकट बंटवारे को लेकर एक दूसरे को शूट करने के लिए तैयार हो जाते हैं । हमने इस पर गहन चिन्तन किया और ये निष्कर्ष निकाला कि इस समस्या को इस तरह से सुलझाया जाए कि पैराशूटों को बनवाने का ठेका चाइना को दे दिया जाए । दूसरी पार्टी का उम्मीदवार जैसे ही पार्टी में लेंड करने के लिए पैराशूट का बटन दबाए, वह टूट कर उसके हाथ में आ जाए, या जैसे ही वह खुले आसमान में उड़ने लगे, पंख खुलने से इनकार कर दें । चाइनीज़ आइटम के साथ कुछ भी संभव है । इससे हम एक तीर से दो शिकार करेंगे । एक तरफ विदेशी व्यापार की बात करके चाइना के साथ सम्बन्ध मजबूत करेंगे और दूसरी और पैराशूट उम्मीदवारों को अधर में लटकाने में सफल होंगे ।

जैसे कि आप लोगों को पता ही है सत्ता एक प्रकार का ज़हर है । ज़हर ही ज़हर को काटता है । हमें आने वाले साल में इस ज़हर को पीना है । यूँ जनता का कहना है कि वह तो रोज़ ही ज़हर पीती है लेकिन मैं जनता से सिर्फ इतना ही कहना चाहता हूँ की जनता चाय, कॉफ़ी , कोल्ड ड्रिंक और शराब भी तो पीती है । लेकिन हम सिर्फ यही ज़हर पीते हैं इसलिए वह हमसे अपनी तुलना ना करे । जब हमें यह ज़हर नहीं मिलता तो हमें आयात करना पड़ता है जिसमे काफी खर्च आता है । जिसे आप नोट के बदले वोट खरीदना कहते हैं वह वास्तव में ' नोट के बदले ज़हर खरीदना होता है ।

हमारी पार्टी में हिन्दुस्तान का डी एन ए है । और हमारी पार्टी के कुछ भूतपूर्व नेताओं के डी एन ए के नमूने लोग अक्सर मैच करवाने के लिए मांगते रहते हैं ।

आज ये कैसा समय आ गया है भ्रष्टाचारी भ्रष्टाचार की बात करते हैं । यह हमें सख्त नागवार है । कोई भी इंसान दो नावों पर एक साथ कैसे सवार हो सकता है । या तो वे भ्रष्टाचार करें या बातें करें । हमें देखें हम जब भ्रष्टाचार करते हैं तो उसकी बात नहीं करते और जब उसकी बात करते हैं तो भ्रष्टाचार नहीं करते ।

हमने लोगों को मोबाइल दिए । लोग हमारे कायल हुए । फिर काहिल हो गए और अब मोबाइलों की दौड़ में दौड़ते - दौड़ते घायल हो गए हैं । हमने संचार क्रान्ति दी जिससे लोगों की शांति भंग हुई ।आज आदमी एक मोबाइल को ढूँढने के लिए दूसरा मोबाइल खरीदता है दूसरे को ढूँढने के लिए तीसरा और तीनों को ढूँढने के लिए फिर से लैंड लाइन का सहारा लेता है। आज आदमी को शौचालय नहीं मोबाइल चाहिए । यह हमारी देन है । आज वह फोन, लेटेस्ट फीचर्स, रीचार्ज वाउचर्स, अनगिनत प्लान्स की मार से कराह रहा है फिर भी मोबाइल को नहीं छोड़ पा रहा है । हम महंगाई बढाते हैं वह अपने फोन के फीचर्स बढ़ा लेता है । ये सब किसके कारण है बोलिए ?

हम चाहते हैं कि आम आदमी के पास सौ रूपये में से निन्यानवे रूपये आएं । पिताजी के समय में दस पैसे बाज़ार में चलते थे तभी तो उन्होंने कहा था कि सरकारी योजनाओं के अंतर्गत आम आदमी तक आते आते एक रूपये में से दस पैसा रह जाता है । अभी बाज़ार में निन्यानवे का नोट चलन में नहीं है । आम आदमी जब पूछेगा कि उसके निन्यानवे रूपये कहाँ गए तो हम रिज़र्व बैंक के मत्थे मढ़ देंगे कि हम तो आपको निन्यानवे रूपये देना चाहते हैं लेकिन ये कमबख्त निन्यानवे का नोट छापता ही नहीं ।

साथियों, मैं जनता के बीच से शादी करने के लिए कुड़ी की तलाश कर रहा था पर माँ ने मुझे पार्टी और जनता के बीच की कड़ी बना दिया । अब आप ही बताइए मैं क्या करूँ ?

7 टिप्‍पणियां:

  1. पहले समोसा ५० पैसे का था, कॉल ५ रुपये की,
    अब कॉल ५० पैसे की है समोसा ५ रुपये का |

    महंगाई भी नहीं बढ़ पायी है , बस इधर से उधर हुई है ( कहीं पढ़ा था ये ) :) :) :)

    बाकी अगर सब हम ही कर देंगे तो आने वाली जेनेरेशन क्या घास छीलेगी, हैं ? ?

    सेंटी हो गया आंसूं आ गए आपकी पोस्ट पढ़कर :) :) :)

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  2. इस साल इन 'युवराज' का विवाह होना बेहद जरूरी है ... डर है कहीं यह विवाह न होने के कारण अवसाद से ग्रसित न हो जाये ! भारत मे काफी लोगो का भविष्य इन पर निर्भर करता है ... इन के बारे मे न सही पर उन लोगो के बारे मे तो कोई सोचे ... :(


    वो जो स्वयं विलुप्तता मे चला गया - ब्लॉग बुलेटिन नेता जी सुभाष चन्द्र बोस को समर्पित आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. बड़े ही रोचक दृश्य देखने को मिल रहे हैं राजनीति में..

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  4. फांट टूटे हुए हैं, पढ़ने में सहज नहीं.

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  5. बहुत अच्छा लिखा है। धांसू टाइप। ये लाइनें सबसे ज्यादा मजेदार लगीं
    आज आदमी एक मोबाइल को ढूँढने के लिए दूसरा मोबाइल खरीदता है दूसरे को ढूँढने के लिए तीसरा और तीनों को ढूँढने के लिए फिर से लैंड लाइन का सहारा लेता है। आज आदमी को शौचालय नहीं मोबाइल चाहिए ।

    जय हो!

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