महाकवि '' निराला '' से माफी सहित ……
खोदो न महानुभाव यह गाँव बन्धु !
हंसेगा सारा उन्नाव बन्धु ! खोदो न महानुभाव यह गाँव बन्धु !
खोदो न महानुभाव यह गाँव बन्धु !
जेवर में सजता है, ईंटों में रहता है
झेलता है सबकी कांव - कांव बन्धु !
खोदो न महानुभाव यह गाँव बन्धु ! [मास्टरनी ]