महाकवि '' निराला '' से माफी सहित ……
खोदो न महानुभाव यह गाँव बन्धु !
हंसेगा सारा उन्नाव बन्धु ! खोदो न महानुभाव यह गाँव बन्धु !
खोदो न महानुभाव यह गाँव बन्धु !
जेवर में सजता है, ईंटों में रहता है
झेलता है सबकी कांव - कांव बन्धु !
खोदो न महानुभाव यह गाँव बन्धु ! [मास्टरनी ]
क्रिएटिव....
जवाब देंहटाएंथोडा और होता काश
"झोंक दिए क्यूँ लश्कर - लाव बन्धु ! "
लाव लश्कर का सुन्दर प्रयोग.
"झेलता है सबकी कांव - कांव बन्धु !" - यहाँ थोड़ी कमी रह गयी (तुकबंदी का शिकार हो गयी, साफ़ लगता है)
क्रिएटिव.... सचमुच
सच लिखा है, अपनी क्षमताओं की संभावनायें खोजनी हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब :) !
जवाब देंहटाएंsundar rachana ...
जवाब देंहटाएंवाह!
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