वह बहुत आगे जाएगा | आगे जाने की सारी कलाओं वह निपुण हो चुका है | वह आगे नहीं जाएगा तो और कौन जाएगा ?
वह जहाँ रहता है उस कस्बे में एक इंजीनियरिंग कॉलेज है | इंजीनियरिंग कॉलेज के पास पूरी फैकल्टी नहीं है | अपनी बिल्डिंग नहीं है | संसाधन नहीं है | पूंजी नहीं है | लेकिन इससे क्या फर्क पड़ता है ? अगर कोई यह सोचता है कि बिना इन मूलभूत सुविधाओं कोई संस्थान कैसे खोला जा सकता है तो यह उसकी समस्या है सरकार की नहीं | सरकार ने संस्थान खोलने की घोषणा करी थी और उसे पूरा कर दिया यही क्या कम बात है ? बाकी संस्थान नामक थान से निकलने वाले इंजीनियर जाने और उन्हें नौकरी पर रखने वाले जानें |
गौर इस बात पर करिये कि संस्थान के खुलने की घोषणा होते ही कई छोटे - बड़े रेस्त्रां, चंद स्टेशनरी की दुकानें, ढेरों चाय के फड़, दो तीन बड़े - बड़े जनरल स्टोर खुल गए और दिन दूनी रात चौगुनी गति से दौड़ने लगे | संस्थान अलबत्ता घिसट - घिसट कर चलने लायक हो गया था |
ऐसे वातावरण में उसने वह खोला जिसे न तो पूरी तरह रेस्त्रां कहा जा सकता था और न होटल | इन दोनों के बीच की एक कड़ी कहना उपयुक्त होगा | इसके बिना इंजीनियरिंग या किसी तरह के संस्थान की कल्पना करना बेमानी होगा | देश में कहीं भी कॉलेज खुलने की घोषणा बाद में होती है, आस - पास की ज़मीनें पहले बिक जाती हैं |
उसकी उम्र यही कोई पच्चीस से अट्ठाईस साल होगी | अपने इस होटल नुमा रेस्त्रां में उसका मेन्यू भी कुछ इस तरह का है, जिसमे चाइनीज़, साउथ इंडियन, नार्थ इंडियन, कॉन्टिनेंटल सब स्वाद स्थानीय तड़के के साथ चौबीस घंटे हाज़िर रहते हैं | इस कॉलेज के हॉस्टल के छात्र, फेकल्टी, बिल्डिंग, संसाधनों के न होने से ज़रा भी परेशान नहीं होते हैं | छात्र हॉस्टल के खाने से असंतुष्ट रहने की सनातन परंपरा का निर्वहन करते हुए दिन भर इस रेस्त्रां में अड्डा जमाए रहते हैं | घर से विभिन्न प्रकार की स्टडी व किताबों के लिए पैसा मंगवाते हैं और यहाँ बैठकर प्रेमी अपनी प्रेमिकाओं पर और प्रेमिकाएं अपने प्रेमियों पर घंटों तक स्टडी करते हैं | अपने इस रेस्त्रां नुमा होटल में उसने इस तरह की अनिवार्य स्टडी के लिए अलग से केबिन बना रखे हैं, जहाँ को - स्टडी को अमली जामा पहनाया जाता है | यहाँ घंटों के हिसाब से किराया लिया जाता है | इन केबिनों से हुई आमदनी से वह अब रेस्त्रां में दूसरी मंज़िल उठाने जा रहा है |
इंजीनियरिंग कॉलेज के लिए जितना सामान्य ज्ञान चाहिए होता है वह उसमे अपडेट रहता है | छात्र - छात्राओं को एक - दूसरे के बारे में निःशुल्क जानकारियाँ उपलब्ध करवाता है मसलन कौन - कौन लड़का किस किस - लड़की के साथ यहाँ कब - कब आता है, कितनी देर बैठता है, क्या आर्डर करता है, कितना बिल आता है, इत्यादि इत्यादि | जिसको जानकारी चाहिए वह आए, खाए, पैक कराए,बिल चुकाए और जानकारी मुफ्त ले जाए |
इंजीनियरिंग कॉलेज के विद्यार्थियों के साथ कैसे सोशल इंजीनियरिंग की जाती है वह सारे फॉर्मूले जानता है | उसकी दिशा बिलकुल सही है | बाजार पर उसकी पकड़ का कोई जवाब नहीं | छात्राओं से निःसंकोच हाथ मिलाता है | काफी देर तक मिलाता है | छात्रों से गले मिलता है | देर तक नहीं मिलता | सबका दोस्त है | सबका ख़ास है |
उसका चेहरा चिकना चुपड़ा है जिसे वह हर हफ्ते पार्लर जाकर दुरुस्त करवाता है, ताकि उसका सलोनापन बरक़रार रहे | अभी वह शादी भी नहीं करेगा क्योंकि इससे लड़कियों के मध्य उसका क्रेज़ ख़त्म हो जाएगा | लड़कियों के हॉस्टल में उनके बर्थडे केक की डिलीवरी भी नौकरों को न भेजकर खुद करता है | मालिक के खुद कष्ट करके केक लाने के और ''हैप्पी बर्थ डे टू यू'' गाने के अंदाज़ पर लड़कियां निहाल हो जाती हैं | इससे केक के ऑर्डर भी दोगुने हो जाते हैं |
वह ज़माने की नब्ज़ अच्छी तरह पहचानता है | छोटे बच्चे किस तरह अपने माँ बाप की नब्ज़ कैसे पकड़ते हैं, वह समझता है | इसीलिए छोटे बच्चों को देखते ही उसकी बांछें खिल जाती हैं | वह बच्चों को उनकी माँ - बाप की गोदी से छीन लेता है | उनके ऊपर स्नेह वर्षा कर देता है | माँ - बाप इस बात से अनजान रहते हैं कि इस वर्षा के बाद जो बाढ़ आएगी वह उनकी जेब में मौजूद नकदी को बहा ले जाएगी | पचास पैसे का गुब्बारा खुद फुला कर देता है | पांच रूपये का मास्क, दस रूपये की चॉकलेट थमा देता है | बच्चे उसको सांता क्लॉज़ समझते हैं और खुश हो जाते हैं | बच्चों को खुश देखकर उनके माँ - बाप खुश | खुशी जल्दी ही दुःख में बदल जाती है | माँ - बाप को शर्मिंदा होकर हज़ार - पांच सौ की शॉपिंग करनी पड़ती है | बाजार बच्चों से चलता है | यह फॉर्मूला उसने रट रखा है | बच्चे उसके प्रेम से अभिभूत होकर उसे बताने लगते हैं -
''अंकल अंकल मेरा बर्थडे आने वाला है''|
''बर्थडे आने वाला है, अरे वाह ! यह लो पूरा डिब्बा चॉकलेट का'' | वह ताली बजाकर बच्चों जैसा अभिनय करता है |
''यह तो बहुत महंगा है | आठ सौ का ! बाप रे !', नहीं बेटा ! यह नहीं ले सकते ''| पिता दयनीय स्वर में कहता है |
''नहीं पापा ! मुझे यह चाहिए | मम्मा प्लीज़ ! ले लो ना !''
''ले लीजिये ! अब तो यह मानने से रहा''| माँ तो हथियार पहले से ही डाले रहती है |
वह बच्चे को तरह - तरह के आइटम दिखाता रहता है | बच्चा हर आइटम पर जान देने लगता है | इधर माँ - बाप की आधी जान निकल जाती है | जेब से नोट निकालना मजबूरी हो जाता है |
इससे भी बढ़कर उसकी खासियत है सेवा के लिए तत्पर रहना | उसके जैसा सेवक कोई दूसरा नहीं हो सकता | मेज़ गंदी है तो कपडा लेकर खुद ही पोछ देता है | कस्टमर अगर गाड़ी से उतरने में तनिक विलम्ब कर दे तो दौड़ जाता है और उनके स्वागत के लिए अदब से खड़ा हो जाता है | उनसे चाभी मांगकर कार की लाइट बंद कर देता है | कार को खुद ही पार्क कर देगा | कार में कोई बुजुर्ग हो भाव - विभोर होकर उसका हाथ पकड़कर ससम्मान अपने रेस्त्रां नुमा होटल तक ले आता है | बुजुर्ग उसपर दुआओं की बरसात कर देते हैं और एक डिब्बा चॉकलेट खरीद कर ही जाते हैं |
उसका बिछाया हुआ जाल इतना आकर्षक होता है कि अगर किसी ने महज़ रास्ता पूछने लिए गाड़ी रोकी हो तब भी वह वह बिना कुछ खरीदे या खाए नहीं जा पाता है | '' कैसा लगा ? कोई कमी हो तो ज़रूर बताइये | अपना अमूल्य सुझाव दीजिये'' | ग्राहक के सामने नतमस्तक खड़ा होकर पूछता है | ग्राहक अगर कोई सुझाव दे तो कहता है, अगली बार यह डिश आपके नाम से बनेगी'' | ग्राहक फूल कर कुप्पा | ''मेरे नाम की डिश ! वाह ! मैं कितना वी.आई.पी.|
तभी तो मैं फिर कहती हूँ कि वह आगे नहीं जाएगा तो और कौन जाएगा ?
बढिया है !
जवाब देंहटाएंसटीक।
जवाब देंहटाएंआगे जाने की कला के सारे कौशल आपने बखूबी पिरोए हैं ... बहुत ही बढ़िया लिखा है ...
जवाब देंहटाएंशेफाली, दुकानदारी करने के हर गुर के बारे में बाऊट ही अच्छे से बताया आपने। सही कहा आपने ज8स इंसान में इतने सारे गुण हो उसे आगे बढ़ने से कोई नही रोक सकता। सुंदर प्रस्तुति।
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