सीटियाँ प्रतीक हैं राष्ट्र की एकता का अखंडता का और साम्प्रदायिक सौहार्द का| सीटी बजाने वाले की जाति या मजहब नहीं पूछी जाती | यहाँ ना कोई छोटा होता है ना बड़ा| यहाँ आकर सारे भेद समाप्त हो जाते हैं|
वर्तमान युग बेहद अनिश्चिन्तताओं से भरा है| ऐसे में सीटी प्रतीक है निश्चिंतता की, आश्चर्य की और प्रशंसा की| सीटियों से निकलने वाली वायु एवं ध्वनी ने हमेशा से भारत के युवावर्ग के अन्दर प्राणवायु भरने का कार्य किया है|
पिछले कई वर्षों से, खासतौर पर जबसे छोटे-छोटे कस्बों में मल्टीप्लेक्सों ने अपना जाल बिछा दिया है, सिनेमाहाल में बजने वाली सीटी की आवाज़ सुनाई देनी बंद हो गई थी| एक तरह से यह सीटियों पर आया हुआ संकट था, जिसे कई लोग संस्कृति पर आया हुआ संकट भी कहते हैं|
आज जब मुलायम सिंह ने महिलाओं के संसद में आने पर नौजवानों द्वारा सीटी मारने की बात को बहुत जोर - शोर से उठाया, तब आमजन के मुँह से लगभग लुप्तप्राय हो चुकी सीटी बजाना नामक कला को पुनर्जीवन प्राप्त हुआ|
मुलायम सिंह पुरानी पीढ़ी के हैं| राष्ट्र पर वर्तमान में आए हुए इस सीटी संकट से अनजान हैं| वैसे चाहें तो वे सीटी बजने की कोचिंग क्लास भी खोल सकते हैं| भूतपूर्व अध्यापकी अभी भी उनकी रगों में ज़िंदा होगी|
सीटी की उपयोगिता हमारे दैनिक जीवन में कितनी है, यह हम सीटी को अपने जीवन से निकाल कर देखें तभी पता चल पाएगी| क्यूंकि पत्नी सहित किसी भी चीज़ की उपयोगिता हमें तभी पता चलती है जब वह एक दिन यूँ ही बिना बताए हमारे दैनिक जीवन से बाहर हो जाती है|
रेलगाड़ियाँ अगर बिना सीटी बजे प्लेटफोर्म पर आ जाए, या क्रोसिंग को पार कर जाए तो क्या होगा? हांलांकि हममें से कई लोगों के लिए सीटी का मतलब सामने से आती हुई रेल द्वारा क्रोसिंग को पार करने की अनुमति होता है| वे रोमांच के प्रेमी ठीक उसी समय बीबी - बच्चों सहित क्रोसिंग पार करते हैं जब धडधडाती हुई ट्रेन की आवाज़ से अगल - बगल खड़ी जनता की ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की सांस नीचे रह जाती है|
गृहस्थ जीवन में सीटी की महत्ता से भला कौन गृहिणी इनकार कर सकती है? जब तक रसोईघर से कुकर की सीटी नहीं बज जाती, हमारे प्राण अटके रहते हैं| चाहे घर के किसी भी कोने में चले जाएं, सीटी की आवाज़ कानों तक पहुँच ही जाती है| सीटी के अटक जाने पर कुकर को हर दिशा से ठोक - पीटकर बजाकर देखना पड़ता है| सीटी के पुनः बजने के साथ ही हमारी सांस वापिस लौटती है|
कुकर का ख़राब होना काफ़ी हद तक उसके मरम्मत करने वाले पर निर्भर रहता है| वह उसे इस कलाकारी से बनाता है, जिससे हमें उसे ढूँढने की हर दस दिन में ज़रुरत पड़ जाए|
बिना सीटी के स्कूली जीवन की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती है| यहाँ दोनों एक दूसरे के पूरक हैं| स्कूल में सीटी का मतलब होता है, चेतावनी, और यह निर्भर करता है स्कूल के पी. टी. आई. पर, और उसको मिलने वाली तनखाह पर| अगर वह सरकारी कर्मचारी हुआ तो सीटी का बजना महीने की शुरुआत में ही ख़त्म हो जाएगा| बाकी महीने सीटी उसके प्रिय चंद मुंहलगे शिष्यों के मुँह में शोभा पाती है, जो उसे बजाने का अभ्यास सदा लड़कियों के सामने करते हैं|
वाचमेन अगर रात में सीटी ना बजाए तो कोई चैन की नींद सो सकता है भला? सुबह कूड़ा मांगने वाला अगर सीटी ना बजाए तो हममें से कईयों की सुबह ही ना हो|
कई बार पुरुषों को सीटी बजाने पर महिलाऐं भी बाध्य करती हैं| ऐसा अवसर तब आता है जब हम बस से यात्रा कर रहे होते हैं, और कंडक्टर से हमारा निर्धारित स्टॉप आने पर सीटी बजाने का आग्रह करते हैं, '' भैय्या, सीटी बजा दीजिये, स्कूल आ गया''|कई बार भैय्या सुनकर झल्लाया हुआ कंडक्टर स्टॉप से दो किलोमीटर आगे बस रुकवाता है| ऐसे में अपने पास एक अदद सीटी ना होने की कमी बहुत खलती है|
महिलाओं की उम्र से सीटियों का गहरा सम्बन्ध रहा है. जहाँ एक तरफ किशोरावस्था में युवकों द्वारा बजाई गई सीटियाँ लड़कियों की साख में बढ़ोत्तरी करती हैं, वहीं संसद जाने की उम्र में साख में बट्टा लगाने का कार्य करती हैं| सोलह साल की उम्र में लडकियां सीटियों को लेकर एक दूसरे की जाने दुश्मन तक बन जाया करती हैं| एक दावा करती है कि उस लड़के ने मुझे देखकर सीटी मारी थी| दूसरी उसका पुरज़ोर विरोध करके बाजी हुई सीटी को अपने पक्ष में करने की कोशिश करती है| इतनी हिम्मत उस उम्र में नहीं होती कि जाकर पूछ लें कि ''आपके पवित्र मुँह से निकली सीटी पर हममें से किसका नाम लिखा था?'' ऐसा भी हो सकता है कि दोनों डाइरेक्ट ऐसा विवादस्पद प्रश्न पूछकर अपने -अपने भ्रम को नहीं तोडना चाहती हों|
लड़कियों का सीटी द्वारा पटना, सीटी बजाने के अंदाज़ पर भी निर्भर करता है| गाने वाली सीटी सदा से लड़कियों की मनपसन्द रही है|
क्यूंकि इसमें बहुत मेहनत लगती है| वहीं एक ही सुर में जोर जोर से सीटी बजाने वाले को पसंद नहीं किया जाता| यूँ सीटी बजाना बहुत आसान काम भी ना समझा जाए| इसकी उचित ट्रेनिंग गर्ल्स कोलेज के पास के वातावरण में मिलती है| उचित वातावरण के अभाव में मुँह से हवा ही हवा निकलती रहती है| ऐसे हवा - हवाई लड़कों को हवा में उड़ाने लडकियां तनिक भी देरी नहीं करती हैं|
कभी कभी बिना प्रयास किये हुए भी मुँह से सीटी बज जाती है| आजकल जब थैला पकड़कर बाज़ार जाती हूँ, तो सब्जियों और फलों के दामों को सुनकर मेरे भी मुँह से सीटी निकल जाती है| जिस कला को मेरी कतिपय सीटी बजाने वाले दोस्तें भी मुझे नहीं सिखा पाईं, वह इस महंगाई ने एक झटके में सिखा दिया|
मुलायम सिंह सीटी बजाने के जोश में इतना उत्साहित हो गए कि यह बताना भूल गए कि सीटियाँ मुँह से बजाई जाएँगी या बाज़ार से बनी बनाई सीटियाँ इस काम के लिए प्रयुक्त होंगी| यहाँ यह बात ध्यान देने वाली है कि संसद में जाती हुई महिलाओं को देखकर सीटी बजाने वाले नवयुवक मेहनत करने वालों की श्रेणी में नहीं होंगे, क्यूंकि जो मेहनत कश होंगे उन्हें सीटी बजाने का समय कहाँ होगा?
मुलायम सिंह चाहते तो सीटी बजाने के स्थान पर ढोल नगाड़े बजाने को वरीयता दे सकते थे, लेकिन ढोल नगाड़ों को बजने का हक़ तभी है जब उनकी बहू या बेटी संसद की शोभा बढ़ाए.
अंत में फिर से उधार लेकर कुछ पंक्तियाँ....आजकल महंगाई बहुत ज्यादा है ना इसीलिये उधारी से ही काम चलाना पड़ रहा है....आप समझ ही जाएंगे कि उधारी किसकी है....
हो गई है चीर द्रौपदी सी, यह बंद होनी चाहिए
इन मुलायम सरीखों को अब सजा मिलनी चाहिए.
आज ये बाहुबली, डर के मारे कांपने लगे
आने वाले कल की सोच, आज ही से हांफने लगे.
हर मकान में, कोठी में, हर बंगले में, झोंपड़ी में
पिटकर भी हमको चुप रहना चाहिए.
सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना इनका मकसद नहीं
इनकी कोशिश है कि औरत को देखकर
सीटी बजनी चाहिए.
मेरे पैरों में ना सही, तेरे पैरों में सही
हो कहीं भी जूतियाँ, लेकिन पैर में ही रहनी चाहिए.
सीटी के बहाने इस दमदार व्यंग्य के लिए साधुवाद.ब्लॉग लेखन में इतना उत्कृष्ट व्यंग्य लेखन बहुत कम मिल पाता है.
जवाब देंहटाएंशैफाली तुम्हारी पोस्ट के लिए और दुष्यंत जी कि कविता कि टांग इतनी खूबसूरती से तोड़ने के लिए ...मेरी तरफ से होंटों को पूरा गोल घुमा कर एक जबरदस्त्त सीटी.:)
जवाब देंहटाएं...सोलह साल की उम्र में लडकियां सीटियों को लेकर एक दूसरे की जाने दुश्मन तक बन जाया करती हैं| एक दावा करती है कि उस लड़के ने मुझे देखकर सीटी मारी थी| दूसरी उसका पुरज़ोर विरोध करके बाजी हुई सीटी को अपने पक्ष में करने की कोशिश करती है...
जवाब देंहटाएं....अदभुत अभिव्यक्ति!!!!!
लेकिन जब ये बजाएं सीटियां
जवाब देंहटाएंतो जूतियां पैरों से निकलकर
धड़ाधड़ धड़ाधड़ इनके सिर
और गाल पर बजनी चाहिएं।
मुई जूतियां ढूंढते रहे पूरी पोस्ट पर भूल गए कि जूतियां हैं तो नीचे ही मिलेंगी न ..ऊपर तो सीटियां ही मिलेंगी ..गजब की सीटी बजाई आपने ..सबकी बजा दी ..अजी छूटा कौन ..बचा कौन ..सीटी के प्रति इत्ता सेंटी ब्लोग्गरनी आज ही मिली कोई ..मा स्साब ..सीटी बजाने में लगे हैं ...बच्चे तो सीटी बजाएंगे ही
जवाब देंहटाएं<a href="http://www.google.com/profiles/ajaykumarjha197....
वाह...इस पोस्ट ने क्या सीटी बजायी है....बिलकुल धडधडाती हुयी अपनी मंजिल तक पहुंची है....बहुत बढ़िया कटाक्ष ....
जवाब देंहटाएंहो गए हैं दिन बहुत कालेज छोड़े,
जवाब देंहटाएंबजे कहीं भी पर सीटी बजनी चाहिए.
जूती मंहगी सही पर सर के लायक तो नहीं,
पैर की है पैर में ही रहनी चाहिए.
बांध के रह ली पांवों में बहुत अब तो,
इन सिरफिरों के सर में पड़नी चाहिए.
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जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
सीटी का सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, और घरेलू महत्व जानकर हम प्रसन्न हुए. उधार की पंक्तियां भी बहुत अच्छी लगीं. बधाई.
जवाब देंहटाएंआप का सीटियों का अनुभव अच्छा खासा है।
जवाब देंहटाएंसीटी की इतनी महिमा है .. आज आपके पोस्ट से ही समझ में आयी .. बहुत बढिया लिखा !!
जवाब देंहटाएं
जवाब देंहटाएंतीन यादव खड़े खड़े, सीटी बजावैं अरे अरे !
त्राहि माम माते शेफ़ाली, बेचारे की स्वयँ ही सीटी निकली पड़ रही है..
अर्ध-विक्षिप्तों के प्रलाप को महत्व न दो, उज़बक बयानों का हौसला बढ़ाने को मीडिया बहुत है !
कल मैंने एक ब्लॉग पर कमेन्ट लिखा था....आज फिर लिख रहा हूँ...
जवाब देंहटाएंमुलायम सीटी बनाने और बजाने पर बैन कर दें....
होंठ गोल बनाने पर भी बैन लगाए...उससे भी बजता है....
अपनी सीट पक्की करने के लिए सेक्स चेंज करा ले...
आजकल की महिलाएं बोल्ड हैं...सीटी से नहीं डरती...
हो सकता है जब मुलायम अपना सेक्स बदलवा कर संसद में आयें तो उन्हें भी सीटी अच्छी लगने लगे....तब बैन हटा सकते हैं....
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_26.html
वाह बहुत खूब! जूती प्रसन्न हुई।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
मान गए महराज आपको !!!!!कितने विशालता के साथ आपने सीटी
जवाब देंहटाएंप शोध कर डाला ...सीटी पुराण इतना मुलायम और मधुर है की बस दिल यही चाहता है की सीटी बजती ही रहे ....आपकी कलम को सादर नमन .
शानदार लेख।
जवाब देंहटाएंबधाई
बहुत ही बढ़िया....ताजातरीन घटनाक्रम को लेकर लिखा गया बहुत ही धारदार...पैना एवं गहरा व्यंग्य
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक व्यंग्य!! वाकई मुलायम ने बड़ी मुलायम से बात कर दी..हा हा!! सीटी संस्कृति पुनः आबाद हो गई. :)
जवाब देंहटाएंसिर्फ़ हंगामा खड़ा करना इनका मकसद नहीं
इनकी कोशिश है कि औरत को देखकर
सीटी बजनी चाहिए
हाय!! ओरिजनल शायर साहब तो जन्नत में जार जार रो रहे होंगे कि काहे लिख गया मैं बिना मास्टरनी जी से कॉपी जँचवाये.
उम्दा लेखन..आनन्द आया.
आप नें तो दुष्यंत जी की दुर्गति कर दी .
जवाब देंहटाएंयह भी अनोखा रहा ,आभार.
सीटी पुराण पर शानदार व्यंग्य ...
जवाब देंहटाएंकिसने किसको देख कर सीटी बजाई ...सीटी बजने वाले से ही कन्फर्म करने का आईडिया बढ़िया है ... मगर किसी को दुर्बल समझ कर उसपर की गयी सीटी को अपनी सीटी मान लेना और कही सायरन की भयंकर आवाज़ वाली सीटी पर अंगुली उठाने की हिम्मत नहीं होना ...ये भी एक चलन है सिटी वाली दुनिया का ...!!
सीटी का सामाजिक, राजनैतिक, आर्थिक, और घरेलू महत्व जानकर हम प्रसन्न हुए. उधार की पंक्तियां भी बहुत अच्छी लगीं. बधाई.
जवाब देंहटाएंवाह शेफाली जी बहुत बढ़िया आलेख...सीटी के पक्ष में उठी आपकी जोरदार आवाज़ याद रखी जाएगी..सीटी को पुनर्जीवन ज़रूर मिलेगा .....बढ़िया बढ़िया आलेख प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार..
जवाब देंहटाएंअम्मा मुझे हमेशा कहती थी घर में सीटी न बजाओ साप आ जाते है। आपकी सीटी सुन कर तो माननीय मुलायम सिंह जी के ह्रदय में साप लोटने लगंगे की भैया काहे सीटी बजाई । बहुत ही बढ़िया लेख।
जवाब देंहटाएंसीटी तो बड़ी काम की चीज है और हम है कि बजाना ही नहीं सीख पाए. चलो अभ्यास करते है.
जवाब देंहटाएंआपका लेख पढ़ इतना आनंद आया कि अपने आप सीटी बजने लगी कानों में
जवाब देंहटाएंआपको ब्लॉग पर रहने का अब कोई हक़ नहीं... आप समय रहते प्रकाशक के पास जाइये.. यकीन मानिए आपका व्यंग बहुत पढ़ा जायेगा...
जवाब देंहटाएंधर्म के जानकार लोगों से माफी सहित ....
जवाब देंहटाएंधर्म के बारे में लिखने ..एवं ..टिप्पणी करने बाले.. तोता-रटंत.. के बारे में यह पोस्ट ....मेरा कॉमन कमेन्ट है....
http://laddoospeaks.blogspot.com/2010/03/blog-post_27.html
वाह! बहुत खूब ये सीटीनामा तो शानदार रहा..धारदार व्यंग..
जवाब देंहटाएंइस तथ्य परक आलेख के लिए आपको दस सीटी मारकर सलामी दी जाती है। ऐसे ही धनधनाती रहें, मुलायमसिंह जैसे बुढउ को तो हम सम्भाल लेंगे। उन्हें अखिलेश बेटे की चिन्ता सताए जा रही है कि कहीं ऐसा न हो कि उसे घर में बैठकर कूकर की सीटी बजानी पड़े और बहु को संसद में सीटियां सुनाई दे।
जवाब देंहटाएंसंक्रमणकाल है
जवाब देंहटाएंसीटी युग जा रहा है
पौं-पौं युग आ रहा है
अगर किसी दिन अचानक कुकर से पौं-पौं की ध्वनि सुनाई दे तो परेशान न हों ।
बस एक शब्द मे तारीफ़ वाह.
जवाब देंहटाएंसीटी बजानी आती नहीं हमें, नहीं तो शेफ़ाली जी,इस पोस्ट के नाम एक सीटी जरूर बजाते।
जवाब देंहटाएंमजा आ गया सीटी महिमा पढ़कर।
बढ़िया है। शानदार। पैरोडी में थोड़ी और मेहनत करिये जी!
जवाब देंहटाएंसीटी एक कला भी है और विग्यान भी
जवाब देंहटाएंजिनके लिये सीटी बजाई जाती है वो इतरा के कहती है -
तुम ये सीटी बजाना छोड दो. कारण इतना सा है कि अब मैने सुन ली तो अब औरो के लिये कोशिशे बन्द कर दो, हा नही तो (अदा जी से चुराया हुआ)
हमारे यहा कस्बे मे कवि सम्मेलन हो और कोई महिला कविता पाठ कर रही हो तो भाई लोग इतने उदार है कि सीटी बजायेगे ही बजायेगे. एकता शबनम जी कविता पढने आयी तो बज्ने लगी सीटिया. वो बोली कि सीटियो के लिये आभार. सीटिया सुनना अच्छा लगता है. लेकिन एक उम्र होती है जब तक महिला सीटी पर प्रतिक्रिया दे सकती है. अफ़्सोस मेरी वो उम्र निकल गयी है.
बहुत बढिया व्यन्ग मे लपेटा है.
मुलायम जी कृपया मुझे अपना कीमती समय दीजिये ताकि मैं ज्यादा नहीं तो दो-चार सीटियाँ तो मारना सीख ही सकूँ..........
जवाब देंहटाएंमुलायम जी कृपया मुझे अपना कीमती समय दीजिये ताकि मैं ज्यादा नहीं तो दो-चार सीटियाँ तो मारना सीख ही सकूँ..........
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
हे भगवान... दुष्यंत अंकल आप कहाँ हैं ? देखिये यह शेफाली आपकी गज़ल की परोड़ी बना रही है ..।
जवाब देंहटाएंसच बताऊँ वह मुँह मे उंगली डाल कर ज़ोर से सीटी बजाने की मैने कई बार प्रैक्टिस की लेकिन आज तक सफलता नहीं मिली ।
वैसे इस रचना को पढ़कर रीजनल कॉलेज के सीटी बजाने वाले अपने कई धुरन्धर मित्र याद आ गये ।
बहुत ही सटीक। बधाई
जवाब देंहटाएंबहुत ही सटीक व्यंग्य। बधाई
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