[पुराने पन्नों से] साथियों .....मास्टरों और उधार का चोली दमन का साथ है अतः आशा है कि आप लोग मुझे साहिर साहब की इस रचना को उधार लेकर, इसका दुरुपयोग करने के लिए माफी प्रदान करेंगे ....
फेसबुक तेरे लिए एक टाइम पास ही सही
तुझको ऑरकुट के रंगबिरंगे चेहरों से मुहब्बत ही सही
मेरी महबूब ! कंप्यूटर छोड़ कर मिला कर मुझसे
बज्म - ए गूगल में गरीबों का गुज़र क्या मानी ?
दफ़न जिन वाल पपरों में हों मेरे जैसों की आहें, उस पे
उल्फत भरी रूहों का सफ़र क्या मानी ?
मेरी महबूब इन प्रोफाइलों के पीछे छिपे हुए
झूठे चेहरों को तो देखा होगा
लड़का बनी लडकी और लडकी बनी लड़का
को तो देखा होगा
मुर्दा स्क्रेपों से बहलने वाली
अपने जिंदा प्रेमी को तो देखा होता
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक ना थे जज़्बे उनके
लेकिन उनके लिए चैटिंग का सामान नहीं
क्यूंकि वे लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे
ये वेबकैम, ये याहू मेसेंजेर, ये जी टाक
चंद दिल फेंकों के शौक के सतूं
दामन - ए आई .टी . पे रंग की गुलकारी है
जिसमें शामिल है तेरे और मेरे हसीं लम्हों का खूं
मेरी महबूब उन्हें भी तो मुहब्बत होगी
जिनकी मेहनत से बना ये ऑरकुट, ये फेसबुक
उनके प्यारों की हसरतें रहीं बे नामोनुमूद
आज तक उनपे न बनी कोई कम्युनिटी
ना बना उनपे कोई ब्लॉग
ये मुनक्कश दरो दीवार ये ब्लॉग ये जी टाक
एक शहंशाह ने तकनीक का सहारा लेकर
हम गरीबों की मुहब्बत का
उड़ाया है मज़ाक
मेरी महबूब कंप्यूटर छोड़ के मिला कर मुझसे ...
क्या कहूँ। सोचकर रह गया।
जवाब देंहटाएंबहुत खूब. मजा आ गया. आभार.
जवाब देंहटाएंमेरी महबूब कंप्यूटर छोड़ के मिला कर मुझसे ...
जवाब देंहटाएंkya shandar aur khubshurat kavita hai.
सुभानअल्ला:
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंये वेबकैम, ये याहू मेसेंजेर, ये जी टाक
जवाब देंहटाएंचंद दिल फेंकों के शौक के सतूं
दामन - ए आई .टी . पे रंग की गुलकारी है
जिसमें शामिल है तेरे और मेरे हसीं लम्हों का खूं
superv
शैफाली, तुमने इतने उर्दु शब्दों का प्रयोग किया है कि सर से निकल गया बहुत कुछ। अच्छी अभिव्यक्ति है लेकिन इतना भी नहीं अत्याचार करो हम हिन्दी वालों पर। या फिर उसका अर्थ साथ की साथ बताती जाओ।
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंमज़ेदार है
Waaah !!...... Waah Waah!!
जवाब देंहटाएंबहुत सही लिखा है ..मज़ा आ गया ..:):)
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, वाकई मजा आ गया
जवाब देंहटाएंबहुत खूब!!!मज़ेदार है!!!
जवाब देंहटाएं:) nice.........
जवाब देंहटाएं....वाह-वाह .....बहुत सुन्दर!!!
जवाब देंहटाएंवाह्!!!:-)
जवाब देंहटाएंsunder
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य!
जवाब देंहटाएंnahin samjha ji.. jaldbaaji me aap ye batana bhool gayin ki kis geet ko udhaar liya hai??
जवाब देंहटाएंya to maine ye suna nahin..
मेरी महबूब कंप्यूटर छोड़ के मिला कर मुझसे ...
जवाब देंहटाएं-सच!!! क्या बात कही...आनन्द आ गया!
शेफ़ाली बहना,
जवाब देंहटाएंमेरे महबूब में तो पहली मुलाकात टक्कर में किताबें, फूल गिरने से होती थी...यहां कंप्यूटर एनकाउंटर में क्या गिरेगा...
जय हिंद...
bhashon ka adbhud mixan kiya hai aapne.....vartmaan pridhrsy mein achhi lagi..
जवाब देंहटाएंbahut badhi
मै होती तो कहती -----
जवाब देंहटाएंमेरे महबूब अब मुझसे पहली सी मुहब्बत न माँग ........
वाह-वाह बहुत सही...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंमेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसे
जवाब देंहटाएंताज तेरे लिये इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही
तुम को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझ से
बज़्म-ए-शाही में ग़रीबों का गुज़र क्या मानी
सब्त जिस राह पे हों सतवत-ए-शाही के निशाँ
उस पे उल्फ़त भरी रूहों का सफ़र क्या मानी
मेरी महबूब पस-ए-पर्दआ-ए-तश्हीर-ए-वफ़ा
तू ने सतवत के निशानों को तो देखा होता
मुर्दआ शाहों के मक़ाबिर से बहलने वाली
अपने तारीक मकानों को तो देखा होता
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के
लेकिन उन के लिये तश्हीर का सामान नहीं
क्यों के वो लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे
ये इमारात-ओ-मक़ाबिर ये फ़सीलें, ये हिसार
मुतल-क़ुल्हुक्म शहंशाहों की अज़मत के सुतूँ
दामन-ए-दहर पे उस रंग की गुलकारी है
जिस में शामिल है तेरे और मेरे अजदाद का ख़्हूँ
मेरी महबूब! उन्हें भी तो मुहब्बत होगी
जिनकी सन्नाई ने बख़्ह्शी है इसे शक्ल-ए-जमील
उन के प्यारों के मक़ाबिर रहे बेनाम-ओ-नमूद
आज तक उन पे जलाई न किसी ने क़ंदील
ये चमनज़ार ये जमुना का किनारा ये महल
ये मुनक़्क़श दर-ओ-दीवार, ये महराब ये ताक़
इक शहनशाह ने दौलत का सहारा ले कर
हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक
मेरे महबूब कहीं और मिला कर मुझसे
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ये मेहबूब कौन है?
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, वाकई मजा आ गया
जवाब देंहटाएंवाकई शेफ़ाली जी,
जवाब देंहटाएंआपने मुखौटों के पीछे छिपे
फ़रेब को उजागर कर दिया
नाम फ़ेसबुक है चेहरा नकली नजर आता है
नकाब हटते ही चेहरा असली नजर आता है
इसलिए राम बचाए इन फ़रेबियों से
आभार
गम्भीर समस्या पर तगडा प्रहार.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
waaaaaaaaaaah
जवाब देंहटाएंशेफाली जी,
जवाब देंहटाएंआपका बड़ा नाम सुना था. बहुत दिनों से आपका ब्लॉग ढूँढ़ रही थी, पर मुझे नहीं मालूम था कि कुमाऊँनी चेली आपका ब्लॉग है. आज मिला है, अविनाश जी की कृपा से. बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना. सच में, हम नेट की दुनिया में कभी-कभी इतना खो जाते हैं कि आस-पास की खबर नहीं रहती. इसी बात को आपने व्यंग्य के माध्यम से खूबसूरती से कहा है. वाह !!
और हाँ, साहिर की ये नज़्म मैंने यहाँ से कापी कर ली है.
साहिर की ही है न?
ये मुनक्कश दरो दीवार ये ब्लॉग ये जी टाक
जवाब देंहटाएंएक शहंशाह ने तकनीक का सहारा लेकर
हम गरीबों की मुहब्बत का
उड़ाया है मज़ाक
आपका कोई जवाब नहीं ..हमेशा की तरह लाजवाब वाह जी वाह
बहुत खूब लिखा है. बढ़िया व्यंग्य है ...!!!
जवाब देंहटाएंवाह वाह अदभुत बेजोड़ ! आदाब अर्ज है !
जवाब देंहटाएंbahut ache nahi to ache zarur hai..aage badhte raho...
जवाब देंहटाएंbahut sache hai ye vichaar..
जवाब देंहटाएंनेट लोगो को वैसे तो जोड़ रहा हैं, लेकिन लोगो के दिलो को तोड़ रहा हैं यानी दिलो से दूर कर रहा हैं.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
uffffffffffffffffffffffff.......hansat hansat pet faat gayil....hehehe...kya solid parodi banayi hai aapne..mere mehboob kaheen aur mila kar mujhse..ek to pahle hi meri fav nazmon me se thi..ab aur ho gayi ...bahut din bad aap ko padha..maza aayaa..
जवाब देंहटाएंफिर हे भगवान ..... अबकी बार साहिर मामू की .. ॥ ।
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