हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में एक पुरानी रचना ........
हिन्दी - अंग्रेजी का वाक् युद्ध
अंग्रेजी ................................
तू हो गयी है आउट ऑफ़ डेट,
मार्केट में तेरा नहीं है कोई रेट |
तू जो मुँह से निकल जाए,
लडकी भी नहीं होती सेट |
तेरी डिग्री को गले से लगाए,
नौजवान रोते रहते हैं |
तुझे लिखने , बोलने वाले,
फटेहाल ही रहते हैं |
जिस पल से तू बन जाती है,
किसी कवि या लेखक की आत्मा |
उसे बचा नहीं सकता फाकों से,
ईसा, खुदा या परमात्मा |
मैं जब मुँह से झड़ती हूँ,
बड़े - बड़े चुप हो जाते हैं|
थर - थर कांपती है पुलिस भी,
सारे काम चुटकी में हो जाते हैं |
तुझे बोलने वाले लोग,
समाज के लिए बेकवर्ड हैं |
मैं लाख दुखों की एक दवा,
तू हर दिल में बसा हुआ दर्द है |
मैं नई दुनिया की अभिलाषा,
तू गरीब, गंवार की भाषा |
मैं नई संस्कृति का सपना,
तू जीवन की घोर निराशा |
ओ गरीब की औरत हिन्दी !
तू चमकीली ओढ़नी पर घटिया सा पैबंद है |
तेरे स्कूलों के बच्चे माँ - बाप को भी नापसंद हैं |
मैं नई - नई बह रही बयार हूँ |
नौजवानों का पहला -पहला प्यार हूँ |
मुझ पर कभी चालान नहीं होता |
मुझे बोलने वाला भूखा नहीं सोता |
मुझमे बसी लडकियां कभी कुंवारी नहीं रहतीं |
शादी के बाद भी किसी का रौब नहीं सह्तीं |
मुझको लिखने वाले बुकर और नोबेल पाते हैं |
तुझे रचने वाले भुखमरी से मर जाते हैं |
हिन्दी .........................................
मेरे बच्चे तेरी रोटी भले ही खा लें,
तेरी सभ्यता को गले से लगा लें,
सांस लेने को उन्हें मेरी ही हवा चाहिए|
सोने से पहले मेरी ही गोद चाहिए|
बेशक सारे संसार में आज,
तेरी ही तूती बोलती है |
मार्ग प्रगति के चहुँ ओर,
तू ही खोलती है |
पर इतना समझ ले नादाँ,
माँ फिर भी माँ ही होती है |
कैसी बिडम्बना है ..
जवाब देंहटाएंपर जब तक हिंदी हम और तुम जैसों की कलम में बसेगी
बेशक न पहने ताज दुनिया का ,पर दिलों में सबके रहेगी .
बेशक नौजबान अंग्रेजी में पटपटायेगा,
पर महबूबा को दिखाने
हिंदी फिल्म ही ले जायेगा :)
kya baat kahi hai...........vatvriksh ke liye apni yah rachna bhejen rasprabha@gmail.com per
जवाब देंहटाएंमां की जगह मम्मी भी हो ही जाए...
जवाब देंहटाएं______________
जवाब देंहटाएंआपने एक पलड़े मैं हिंदी को ,
और दूसरे पलड़े मैं अंग्रेजी को रखकर,
तथा इन दोनों में कौन हल्का है ?
और कौन भारी है ?.....यह लिखकर,
तराजू की जिम्मेदारी को बखूबी निभाया है |
.... लेख बहुत भाया है ....
__________________________________
मार्मिक स्थिति
जवाब देंहटाएंसांस लेने को उन्हें मेरी ही हवा चाहिए|
जवाब देंहटाएंसोने से पहले मेरी ही गोद चाहिए|
बेशक सारे संसार में आज,
तेरी ही तूती बोलती है |
मार्ग प्रगति के चहुँ ओर,
तू ही खोलती है |
पर इतना समझ ले नादाँ,
माँ फिर भी माँ ही होती है |
bahut khoob achhi aur samvednaon to tatolti, saamyik rachna.
हिन्दी की दुर्दशा पर तकलीफ़ उस वक्त और बढ जाती है, जब हम अपनी ही राष्ट्र भाषा का दिवस मनाते हैं. सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंहिन्दी द्वारा अंग्रेजी को इससे ज्यादा करारा जवाब शायद ही कोई और भाषा दे पायें. अंग्रेजी को धुल चटा दी हिन्दी ने.
जवाब देंहटाएंजय हिन्दी, जय हिन्दी.
बहुत बढ़िया लिखा हैं आपने.
बहुत-बहुत धन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
जवाब देंहटाएंराजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
भारतेंदु और द्विवेदी ने हिन्दी की जड़ें पताल तक पहुँचा दी हैं। उन्हें उखाड़ने का दुस्साहस निश्चय ही भूकंप समान होगा। - शिवपूजन सहाय
हरीश प्रकाश गुप्त की लघुकथा प्रतिबिम्ब, “मनोज” पर, पढिए!
" माँ फिर भी माँ ही होती है......."
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी पंक्तिया लिखी है .....आभार
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से, आप इसी तरह, हिंदी ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
जवाब देंहटाएंबेहतरीन पोस्ट लेखन के बधाई !
आशा है कि अपने सार्थक लेखन से, आप इसी तरह, हिंदी ब्लाग जगत को समृद्ध करेंगे।
आपकी पोस्ट की चर्चा ब्लाग4वार्ता पर है-पधारें
Bahut badiya article tha aapka Hindi ke bare mai etni achi ray aur aisi tippni sahi mai kahta hu mai to gad-gad ho gaya bahut bahut dhanybad aapka.
जवाब देंहटाएंअंग्रेज़ी ने भले ही जगह बनायीं हुई है पर हिंदी का जवाब लाजवाब है ....बहुत बढ़िया रचना ..
जवाब देंहटाएं.
जवाब देंहटाएं@--अंग्रेज़ी ने भले ही जगह बनायीं हुई है पर हिंदी का जवाब लाजवाब है ..
सहमत हूँ संगीता जी से।
सुन्दर अभिव्यक्ति।
.
बेशक सारे संसार में आज,
जवाब देंहटाएंतेरी ही तूती बोलती है |
मार्ग प्रगति के चहुँ ओर,
तू ही खोलती है |
पर इतना समझ ले नादाँ,
माँ फिर भी माँ ही होती है |
बहुत अच्छी प्रस्तुति।बहुत अच्छी पंक्तिया
पर इतना समझ ले नादाँ,
जवाब देंहटाएंमाँ फिर भी माँ ही होती है
वाह मन खुश हो गया इन लाइन को पढ़ कर.
शुक्रिया.
मजेदार! :)
जवाब देंहटाएंमेरे बच्चे तेरी रोटी भले ही खा लें,
जवाब देंहटाएंतेरी सभ्यता को गले से लगा लें,
सांस लेने को उन्हें मेरी ही हवा चाहिए|
सोने से पहले मेरी ही गोद चाहिए|
बेशक सारे संसार में आज,
तेरी ही तूती बोलती है |
मार्ग प्रगति के चहुँ ओर,
तू ही खोलती है |
पर इतना समझ ले नादाँ,
bahut hi khoob kaha
likha
tulnatmak adhyan , sachhai yahi he
शेफाली जी. हिंदी जब तक रोजगार की भाषा नहीं बनेगी तब तक उसकी नियति में अंग्रेजी की दासी बनना ही लिखा है। सादर...उमेश यादव, मुंबई
जवाब देंहटाएं"अंग्रेज़ी की पढाई
जवाब देंहटाएंफिर भी हिन्दी अपनाई
मातृभाषा की वकालत से
बेशक
अंग्रेज़ी तिलमिलाई"
..........नाज़ है हमें कुमायूं की धरती पर ......
जोर का तड़का बहुत जोर से लगा /