मंगलवार, 30 नवंबर 2010

सीरियल या सीरियल किलर .....कुमांउनी चेली

 
 
जब तक कुछ नया नहीं लिखा जाता,  एक पुरानी कविता का पुनः प्रसारण
 
सीरियल या सीरियल किलर .....
 
कौन सी है यह दुनिया

कि जिसमें इतना आराम है

ना कोई गृहस्थी की चिंता

ना ही कोई काम है

 

यहाँ घर की कोई कलह नहीं

ना काम को लेकर हैं झगड़े

ना महीने के राशन की फिक्र  

ना ही बिल यहाँ आते हैं तगड़े

 

 

यहाँ बीमारी की जगह नहीं

ना ही कभी कोई मरता है

कत्ल हुआ कभी कोई तो

पुनर्जन्म ले लेता है

 

यहाँ ना चेहरे पर झुर्री

ना बूढ़ी लटकती खाल है

मेकअप की परतें चेहरे पर

क्या बच्ची क्या बूढ़ी

सबका एक ही हाल है

सास कौन है बहू कौन सी

पहचान जाएं तो कमाल है       

 

ये बाज़ार कभी नहीं जातीं

साल भर त्यौहार मनातीं

नए - नए साड़ी ब्लाउजों में

इतरातीं और इठलातीं

 

ये काली दुर्गा की अवतार

पर पुरुष हैं जिनका प्यार

ये बुनतीं ताने -बाने षड्यंत्रों के  

बदले की आग में जलतीं बारम्बार  

 

ये चुपके -चुपके बातें सुनतीं

ज़हर उगलतीं, कानों को भरतीं

शक के बीजों को बोतीं

इन्हें ना कोई लिहाज़ ना कोई शर्म है  

झगड़े करवाना पहला और आख़िरी धर्म है  

 

 

      

 ये इतने गहने  धारण करतीं

जितने दुकानों में नहीं होते हैं

इनका  रंग बदलना देख

गिरगिट भी शर्मा जाते हैं

इनकी शादियों का हिसाब रखने में 

कैलकुलेटर घबरा जाते हैं

 

यहाँ रिश्तों को समझना मुश्किल होता

कौन दादा है,कौन दादी कौन है उनका पोता   

यहाँ संबंधों की ऐसी बहती बयार है

समझ नहीं आता, कौन किसका, किस जन्म का  

कौन से नंबर का प्यार है

 

लम्बे -लम्बे मंगलसूत्र पहनने वालीं

पार्टियों में सांस लेने वालीं

हर बात पे आंसूं टपकाने वालीं

तुम्हारा राष्ट्रीय त्यौहार है करवाचौथ

तुम्हारा पीछा ना कभी छोड़े सौत

 

हे मायावी दुनिया में विचरती मायावी नारियों

घर -घर की महिलाओं की प्यारियों

जड़ाऊ जेवर और जगमगाती साड़ियों

पतियों की बेवफाई की मारियों

तुम्हें देखकर आम औरत आहें भरती है  

तुम्हारी दुनिया में आने को तड़पती है

अपने पतियों से दिन रात झगड़ती है

स्वर्ग सामान घर को नर्क करती है ......
 
 

बुधवार, 10 नवंबर 2010

दस साल चढ़े अढाई कोस .....शेफाली

दस साल चढ़े अढाई कोस .....शेफाली
 
शीर्षक पर चौकें  नहीं क्यूंकि  व्यंग्यकारों को यह सुविधा होती है कि वे कहावतों और मुहावरों को अपनी आवश्यकतानुसार किसी भी रूप में तोड़ मरोड़ सकते हैं | कल यानि ९ नवम्बर को उत्तराखंड राज्य को बने पूरे दस साल हो गए | राज्य के विकास संबंधी कई काम हुए, जिनकी चर्चा पोस्टरों में अधिक और अखबारों में  सबसे अधिक हुई |  
 
राज्य ने  दस साल में दसमुखी विकास किया | राज्य की सबसे बड़ी उपलब्धि पाँच दूनी दस की रही  | दस साल में पाँच मुख्यमंत्री बने | बड़ी मुश्किल से बच्चों को मार - पीट कर माननीय  जी का नाम याद करवाया | उनका नाम याद हो सका तो मुख्यमंत्री बदल गए | देश  ने पहले राज्य के लिए आम आदमी का अदभुद आन्दोलन देखा  फिर कुर्सी के लिए  नेताओं की अभूतपूर्व जंग देखी |
 
राज्य में खूब पैदावार हुई | नेताओं की इतनी रिकोर्ड़तोड़ लहलहाती फसल पिछले  कई दशकों  में भी नहीं देखी गई | चप्पे - चप्पे पर कोई न कोई भूतपूर्व और  वर्तमान नेता उगा हुआ है |  जहाँ जगह छूटी है वहाँ भविष्य की फसल के बीज बोए जा चुके हैं | आने वाले वर्षों में भी पैदावार अच्छे होने की पूरी संभावना है |
 
कुछ ख़ास नहीं करने वालों या कुछ नहीं करने वालों के पास सब कुछ ख़ास है | ख़ास गाड़ियां, खास जगहों पर ज़मीनें, ख़ास डिज़ाइन के बंगले, खासमखास बीबियाँ, ख़ास स्कूलों में पढ़ते बच्चे | सिर से लेकर पैर तक सब कुछ ख़ास |
 
राज्य में उद्योग धंधों का बहुत विकास हुआ | सरकारी विभागों में  स्थानांतरण  ने एक उद्योग का रूप ले लिया है | हर जगह के दाम फिक्स | कोई सौदेबाजी की संभावना नहीं, किसी भी प्रकार की कोई सिफारिश मान्य नहीं  |
 
सिडकुल बने | कई कम्पनियां सब्सिडी हजम कर गायब हो गई | कई कागजों में ही बन पाईं | कुछ बची  रह गई जिनमें कुछ  स्थानीय लोगों को भी रोज़गार मिला | जिन्हें नहीं मिला वे कंपनियों के बाहर अनशन पर बैठ गए | अनशन से उठने का मुआवजा वसूला गया | रोज़गार मिलने पर काम करना पड़ता है | आठ - दस लोगों को लेकर गेट  पर बैठना अधिक  सुविधाजनक उद्योग सिद्ध हुआ  |
 
पहाड़ की प्रतिभाओं ने अपनी छिपी हुई योग्यताओं को पहचानना सीखा | प्रतिभा  पहले से थी, उचित अवसर नहीं थे | राज्य बनने के बाद ये प्रतिभाएं पल्लवित और पुष्पित हुईं |
जिन पहाड़ों ने कभी पुलिस नहीं देखी थी, वहाँ चोरी, लूट पाट, मार - काट, हत्याएं, डकैतियां, अपहरण, बलात्कार,  सब कुछ होने लगा | पहाड़ की प्रतिभाओं ने विदेशों में तक नाम कमाया |
 
सबसे ज़्यादा  प्रगति पर्यटन उद्योग में हुई क्यूंकि पहाड़ों  की अधिकाँश अर्थव्यवस्था पर्यटन पर टिकी होती है  | खेती करके दो रोटी  चैन से खाने वालों ने अपनी ज़मीनों को कौड़ियों के भाव महानगरों में बसे उद्योगपतियों और रईसों को बेच दी |  ये साल में बस  दस - पंद्रह दिन के लिए आते हैं | बाप - दादाओं  ने बहुत केयर  से जिस ज़मीन को पाला - पोसा,  इस पीढ़ी के लोग उन पर बने बंगलों और रिसोर्टों  के केयर टेकर हो गए |  
 
राज्य का निर्माण एक बहुत बड़े आन्दोलन के फलस्वरूप हुआ  | राज्य बनने के साथ ही रोज़गार की उम्मीदें भी जगीं | जिन्होंने आन्दोलन के दौरान लाठियां खाईं या जो जेल गए, उन्हें सरकारी नौकरियां मिलीं | जो जेल का सर्टिफिकेट नहीं बनवा पाए, उन्हें रोज़गार नहीं मिला | ये लोग जोर - शोर से कहा करते थे कि हम  लेकिन अपने राज्य में आलू - मूली का पानी पीकर और सूखी रोटी खाकर रह लेंगे लेकिन यू . पी के साथ नहीं रहेंगे   |  इस प्रकार  से हताश युवा शक्ति ने  राज्य गठन के एक साल बाद ही यह घोषणा कर दी कि राज्य का निर्माण गलत हो गया | इससे तो यू. पी. के साथ ही भले थे | अब ये यू. पी. वाले ही बता सकते है कि वे वहाँ कितना भला महसूस करते हैं |      
 
नवनिर्मित राज्य में अपार संभावनाएं छिपी हुई थीं, जिन्हें ढूंढ - ढूंढ कर निकाला गया | इस समय आयात  - निर्यात अपने चरम  पर पहुँच चुका है | दुर्लभ जड़ी - बूटियाँ, शराब, लीसा, लकड़ी, लड़कियाँ, जानवरों की खालें, कब्ज़े, अवैध खनन, सब में व्यापार की अपार  संभावनाएं निकल आईं  |
 
निर्माण कार्य भी द्रुत गति से हुआ | बाढ़ नहीं  आई होती तो और भी द्रुत गति से होता | विगत कई वर्षों से बाढ़ ने नई - नवेली सड़कों और बड़े - बड़े पुलों की पोल ना खुल जाए इस वजह से आना छोड़ दिया था | सत्ता से दूर पार्टी वाले यह मानते हैं कि उत्तराखंड में बाढ़ से जितना नुकसान नहीं हुआ, उसी कई गुना मदद माँगी गई | यह बाढ़ उनके शासनकाल में आई होती तो वे बाढ़ से हुए नुकसान का सही आंकलन करते | पैसा अवमुक्त ना होने पाए इसके लिए हड़ताल, मौन प्रदर्शन, काली पट्टियां, घेराव सब कुछ करेंगे | विधान सभा नहीं चलने देंगे | उन्हें मन ही मन यह गम है कि उनके शासन  काल  में ना ऐसी बाढ़ आई न  सूखा पड़ा | प्रकृति ने भी उनके साथ अन्याय किया |  
 
शानदार गाड़ियों में लाल बत्तियां और छोटी - मोटी कारों में लाल पट्टियां जिन पर कोई ना कोई पार्टी का पद अंकित होता है, सड़कों पर फर्राटे से दौडती दिखती  हैं | कारों के मॉडल  से ज्यादा अहमियत इन पट्टिओं  को मिलने लगी | पत्ती या बत्ती देखते ही आम आदमी रास्ता छोड़ देता है |
 
प्रतिभा पलायन बंद हो गया | जो प्रतिभाएं राज्य बनने से पहले सड़कों पर आवारा घूमा करतीं थीं, हर जुलूस में शामिल होकर नारे लगाती थी | पथराव करने का एक भी अवसर नहीं गंवातीं थी, अब बड़े बड़े पोस्टरों पर शान से मुस्कुराते हुए नज़र आती है | इन प्रतिभाओं को अपने ऊपर इतना भरोसा है कि अब ये जनता के आगे हाथ जोड़ने की तक जहमत नहीं उठाती | 
 
मातृ  शक्ति  के उत्थान के लिए भी बहुत सी योजनाएं बनाईं  गईं | कई जगह  आरक्षण दिया गया | पंचायतों में महिलाओं के स्थान पर फलाने - फलाने की  पत्नियों को इस आरक्षण का सर्वाधिक लाभ मिला | दबंगों की विधवाओं ने भी सिर पर पल्लू रखकर कई महत्वपूर्ण पदों पर कब्जा किया |
 
 शरीर में शक्ति ना होने के कारण और अपने पतियों के रात - दिन शराब पीने के कारण आम मातृ शक्ति पेड़ों से गिरती रहीं, मरती रहीं  |  कई खुले में शौच को गईं तो वापिस नहीं आईं | देश ने दिन -रात बाघों के बचाने के विज्ञापन  दिखाए | उन बचे हुए बाघों ने पहाड़ की औरतो,  बच्चों और जानवरों को निवाला बनाया |
 
जहाँ सड़कें जातीं थीं वहाँ एक सौ  आठ वरदान सिद्ध हुई | जहाँ नहीं जातीं वहाँ से सड़क तक आने से  पहले मौत आ जाती है | 
 
कुल मिलाकर इन दस सालों में राज्य ने बहुत प्रगति की |