दस साल चढ़े अढाई कोस .....शेफाली
शीर्षक पर चौकें नहीं क्यूंकि व्यंग्यकारों को यह सुविधा होती है कि वे कहावतों और मुहावरों को अपनी आवश्यकतानुसार किसी भी रूप में तोड़ मरोड़ सकते हैं | कल यानि ९ नवम्बर को उत्तराखंड राज्य को बने पूरे दस साल हो गए | राज्य के विकास संबंधी कई काम हुए, जिनकी चर्चा पोस्टरों में अधिक और अखबारों में सबसे अधिक हुई |
राज्य ने दस साल में दसमुखी विकास किया | राज्य की सबसे बड़ी उपलब्धि पाँच दूनी दस की रही | दस साल में पाँच मुख्यमंत्री बने | बड़ी मुश्किल से बच्चों को मार - पीट कर माननीय जी का नाम याद करवाया | उनका नाम याद हो सका तो मुख्यमंत्री बदल गए | देश ने पहले राज्य के लिए आम आदमी का अदभुद आन्दोलन देखा फिर कुर्सी के लिए नेताओं की अभूतपूर्व जंग देखी |
राज्य में खूब पैदावार हुई | नेताओं की इतनी रिकोर्ड़तोड़ लहलहाती फसल पिछले कई दशकों में भी नहीं देखी गई | चप्पे - चप्पे पर कोई न कोई भूतपूर्व और वर्तमान नेता उगा हुआ है | जहाँ जगह छूटी है वहाँ भविष्य की फसल के बीज बोए जा चुके हैं | आने वाले वर्षों में भी पैदावार अच्छे होने की पूरी संभावना है |
कुछ ख़ास नहीं करने वालों या कुछ नहीं करने वालों के पास सब कुछ ख़ास है | ख़ास गाड़ियां, खास जगहों पर ज़मीनें, ख़ास डिज़ाइन के बंगले, खासमखास बीबियाँ, ख़ास स्कूलों में पढ़ते बच्चे | सिर से लेकर पैर तक सब कुछ ख़ास |
राज्य में उद्योग धंधों का बहुत विकास हुआ | सरकारी विभागों में स्थानांतरण ने एक उद्योग का रूप ले लिया है | हर जगह के दाम फिक्स | कोई सौदेबाजी की संभावना नहीं, किसी भी प्रकार की कोई सिफारिश मान्य नहीं |
सिडकुल बने | कई कम्पनियां सब्सिडी हजम कर गायब हो गई | कई कागजों में ही बन पाईं | कुछ बची रह गई जिनमें कुछ स्थानीय लोगों को भी रोज़गार मिला | जिन्हें नहीं मिला वे कंपनियों के बाहर अनशन पर बैठ गए | अनशन से उठने का मुआवजा वसूला गया | रोज़गार मिलने पर काम करना पड़ता है | आठ - दस लोगों को लेकर गेट पर बैठना अधिक सुविधाजनक उद्योग सिद्ध हुआ |
पहाड़ की प्रतिभाओं ने अपनी छिपी हुई योग्यताओं को पहचानना सीखा | प्रतिभा पहले से थी, उचित अवसर नहीं थे | राज्य बनने के बाद ये प्रतिभाएं पल्लवित और पुष्पित हुईं |
जिन पहाड़ों ने कभी पुलिस नहीं देखी थी, वहाँ चोरी, लूट पाट, मार - काट, हत्याएं, डकैतियां, अपहरण, बलात्कार, सब कुछ होने लगा | पहाड़ की प्रतिभाओं ने विदेशों में तक नाम कमाया |
सबसे ज़्यादा प्रगति पर्यटन उद्योग में हुई क्यूंकि पहाड़ों की अधिकाँश अर्थव्यवस्था पर्यटन पर टिकी होती है | खेती करके दो रोटी चैन से खाने वालों ने अपनी ज़मीनों को कौड़ियों के भाव महानगरों में बसे उद्योगपतियों और रईसों को बेच दी | ये साल में बस दस - पंद्रह दिन के लिए आते हैं | बाप - दादाओं ने बहुत केयर से जिस ज़मीन को पाला - पोसा, इस पीढ़ी के लोग उन पर बने बंगलों और रिसोर्टों के केयर टेकर हो गए |
राज्य का निर्माण एक बहुत बड़े आन्दोलन के फलस्वरूप हुआ | राज्य बनने के साथ ही रोज़गार की उम्मीदें भी जगीं | जिन्होंने आन्दोलन के दौरान लाठियां खाईं या जो जेल गए, उन्हें सरकारी नौकरियां मिलीं | जो जेल का सर्टिफिकेट नहीं बनवा पाए, उन्हें रोज़गार नहीं मिला | ये लोग जोर - शोर से कहा करते थे कि हम लेकिन अपने राज्य में आलू - मूली का पानी पीकर और सूखी रोटी खाकर रह लेंगे लेकिन यू . पी के साथ नहीं रहेंगे | इस प्रकार से हताश युवा शक्ति ने राज्य गठन के एक साल बाद ही यह घोषणा कर दी कि राज्य का निर्माण गलत हो गया | इससे तो यू. पी. के साथ ही भले थे | अब ये यू. पी. वाले ही बता सकते है कि वे वहाँ कितना भला महसूस करते हैं |
नवनिर्मित राज्य में अपार संभावनाएं छिपी हुई थीं, जिन्हें ढूंढ - ढूंढ कर निकाला गया | इस समय आयात - निर्यात अपने चरम पर पहुँच चुका है | दुर्लभ जड़ी - बूटियाँ, शराब, लीसा, लकड़ी, लड़कियाँ, जानवरों की खालें, कब्ज़े, अवैध खनन, सब में व्यापार की अपार संभावनाएं निकल आईं |
निर्माण कार्य भी द्रुत गति से हुआ | बाढ़ नहीं आई होती तो और भी द्रुत गति से होता | विगत कई वर्षों से बाढ़ ने नई - नवेली सड़कों और बड़े - बड़े पुलों की पोल ना खुल जाए इस वजह से आना छोड़ दिया था | सत्ता से दूर पार्टी वाले यह मानते हैं कि उत्तराखंड में बाढ़ से जितना नुकसान नहीं हुआ, उसी कई गुना मदद माँगी गई | यह बाढ़ उनके शासनकाल में आई होती तो वे बाढ़ से हुए नुकसान का सही आंकलन करते | पैसा अवमुक्त ना होने पाए इसके लिए हड़ताल, मौन प्रदर्शन, काली पट्टियां, घेराव सब कुछ करेंगे | विधान सभा नहीं चलने देंगे | उन्हें मन ही मन यह गम है कि उनके शासन काल में ना ऐसी बाढ़ आई न सूखा पड़ा | प्रकृति ने भी उनके साथ अन्याय किया |
शानदार गाड़ियों में लाल बत्तियां और छोटी - मोटी कारों में लाल पट्टियां जिन पर कोई ना कोई पार्टी का पद अंकित होता है, सड़कों पर फर्राटे से दौडती दिखती हैं | कारों के मॉडल से ज्यादा अहमियत इन पट्टिओं को मिलने लगी | पत्ती या बत्ती देखते ही आम आदमी रास्ता छोड़ देता है |
प्रतिभा पलायन बंद हो गया | जो प्रतिभाएं राज्य बनने से पहले सड़कों पर आवारा घूमा करतीं थीं, हर जुलूस में शामिल होकर नारे लगाती थी | पथराव करने का एक भी अवसर नहीं गंवातीं थी, अब बड़े बड़े पोस्टरों पर शान से मुस्कुराते हुए नज़र आती है | इन प्रतिभाओं को अपने ऊपर इतना भरोसा है कि अब ये जनता के आगे हाथ जोड़ने की तक जहमत नहीं उठाती |
मातृ शक्ति के उत्थान के लिए भी बहुत सी योजनाएं बनाईं गईं | कई जगह आरक्षण दिया गया | पंचायतों में महिलाओं के स्थान पर फलाने - फलाने की पत्नियों को इस आरक्षण का सर्वाधिक लाभ मिला | दबंगों की विधवाओं ने भी सिर पर पल्लू रखकर कई महत्वपूर्ण पदों पर कब्जा किया |
शरीर में शक्ति ना होने के कारण और अपने पतियों के रात - दिन शराब पीने के कारण आम मातृ शक्ति पेड़ों से गिरती रहीं, मरती रहीं | कई खुले में शौच को गईं तो वापिस नहीं आईं | देश ने दिन -रात बाघों के बचाने के विज्ञापन दिखाए | उन बचे हुए बाघों ने पहाड़ की औरतो, बच्चों और जानवरों को निवाला बनाया |
जहाँ सड़कें जातीं थीं वहाँ एक सौ आठ वरदान सिद्ध हुई | जहाँ नहीं जातीं वहाँ से सड़क तक आने से पहले मौत आ जाती है |
कुल मिलाकर इन दस सालों में राज्य ने बहुत प्रगति की |
राज्य में उद्योग धंधों का बहुत विकास हुआ | सरकारी विभागों में स्थानांतरण ने एक उद्योग का रूप ले लिया है | हर जगह के दाम फिक्स | कोई सौदेबाजी की संभावना नहीं, किसी भी प्रकार की कोई सिफारिश मान्य नहीं |
जवाब देंहटाएंबहुत सही. राज्यों की विकास-गाथा कमोवेश यही हर जगह है.
वाकई बहुत प्रगति हुई है :)
जवाब देंहटाएंचाशनी में मिला के दिया गया करेले का रस.. धारधार व्यंग्य
जवाब देंहटाएंइनपर तालियों की गडगडाहट नोट की जाए..
जिन्होंने आन्दोलन के दौरान लाठियां खाईं या जो जेल गए, उन्हें सरकारी नौकरियां मिलीं | जो जेल का सर्टिफिकेट नहीं बनवा पाए, उन्हें रोज़गार नहीं मिला |
पंचायतों में महिलाओं के स्थान पर फलाने - फलाने की पत्नियों को इस आरक्षण का सर्वाधिक लाभ मिला |
आज ही किसी चैनल पर उत्तराखण्ड का दस साल वाला बधाई विज्ञापन देखा तो पता चला कि हां दस साल हो गये हैं उत्तराखण्ड बने हुए।
जवाब देंहटाएंबढ़िया व्यंग्य लिखा है।
करारा व्यंग्य .... बधाइयाँ और शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंप्रगति के खेल पर बढ़िया कटाक्ष.....
जवाब देंहटाएंमजा आ गया| तीखा , धारदार, ये था व्यंग्य| इससे पहले के पोस्ट मुझे हास्य अधिक लगे, व्यंग्य थोडा मृदु सा लगा| लेकिन आज, आज कोई शिकायत नहीं
जवाब देंहटाएं'प्रतिभा पहले से थी, उचित अवसर नहीं थे | राज्य बनने के बाद ये प्रतिभाएं पल्लवित और पुष्पित हुईं |'
और एक बानगी
'प्रकृति ने भी उनके साथ अन्याय किया | '
व
'देश ने दिन -रात बाघों के बचाने के विज्ञापन दिखाए | उन बचे हुए बाघों ने पहाड़ की औरतो, बच्चों और जानवरों को निवाला बनाया |'
लेख अच्छा लिखा है ........
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना ........
थोडा समय यहाँ भी दे :-
कोई गिफ्ट क्यों नहीं देते ?....
एक-एक शब्द पैने नश्तर जैसा..एक-एक वाक्य बहुत दूर तक मार करने में सक्षम...
जवाब देंहटाएंअब इससे ज्यादा और क्या कहें?...
आपके हर व्यंग्य को पढकर आपको सलाम ठोकने को जी चाहता है
9नवम्बर को मैं भी देहरादून में उत्तराखंड राज्य निर्माण का प्रत्यक्षदर्शी बना था। लेकिन 10 वर्षों में इतना अधिक विकास हो जाएगा यह तो सोचा भी नहीं था।:)
@दबंगों की विधावाओं ने भी सिर पर पल्लु रख कर कई महत्वपूर्ण पदों पर कब्जा किया।
विकास की चरम सीमा है।
धारदार व्यंग्य के लिए आभार
पैमाने में व्यग्र होते सोडे के बुलबुले!
karara vyang, jordar tamacha,
जवाब देंहटाएंlekin kisko lage sab moti khal wale hain
badhai kabule
तिक्त व्यंग, अमिताभ बच्चन का शोले वाला विवाह-प्रस्ताव याद आ गया। एक नाटक बनाईये इस पर।
जवाब देंहटाएंआज उत्तराखण्ड के एग्रीग्रेटर(www.hisalu.com) में आपकी पोस्ट देखी, शीर्षक से प्रभावित होकर यहां पहूंचा। उत्तराखण्ड की वास्तविक स्थिति के चित्रण आपने किया है, लेकिन मेरा मन इसे पढ़कर अब अशान्त सा हो गया है। क्या इसी दशक का सपना हमने देखा था, मुझे अपने आप पर गुस्सा आता है जब हम सडकों पर नारे लगाते थे, रात में पोस्टर लगाते थे....क्यों किया यह सब हमने?
जवाब देंहटाएंदस साल की प्रगति पर बहुत तीखा व्यंग ...सार्थक लेखन
जवाब देंहटाएंअच्छा लेख, उत्तराखण्ड आन्दोलन के समय लोगों की अपेक्षायें कुछ ज्यादा ही थी कि राज्य अलग होने के बाद पता नहीं क्या चमत्कार हो जायेगा। तरक्की तो हुयी लेकिन लोगों की सोच के जितनी नहीं।
जवाब देंहटाएंसचुमच बहुत विकास हुआ ...
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह तीखा धारदार व्यंग्य !
बहुत सन्नाट!!
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह से बहुत ही शानदार व्यंग लेख . उत्तराखंड राज्य की स्थापना हुए दस वर्ष बीत गए है पर कुछ उल्लेखनीय विकास हो नहीं पाया है. मैं तो सोचता था की अलग राज्य बनने के बाद शायद यहाँ भी हिमाचल प्रदेश की तरह से विकास होगा पर ऐसा क्यों हुआ आपके लेख से स्पष्ट है.
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही लिखा आपने . उत्तराखंड या उत्तरांचल दो बार तो नाम बदल गया
जवाब देंहटाएंराज्य स्थापना की दसवीं (?) पर आपका आलेख मन को छू गया. धन्यवाद...........नेता तो रक्तबीज हैं. सूखा पड़े या बाढ़ आये, या धरती जल जाये.....ये तब भी पनपेंगे, इनकी फसलें खूब लहलहाएगी...........आन्दोलनकारी कौन है. यह सवाल सबसे बड़ा है. स्वयात्त्य राज्य के लिए चले आन्दोलन में कौन नहीं शरीक हुआ?........जो लाखों बच्चे आन्दोलन के कारण स्कूल कॉलेज नहीं जा पाए वे क्या आन्दोलनकारी नहीं है? ....... जो हजारों कर्मचारी आन्दोलन में शरीक होकर अपनी तनखा और नौकरी दावं पर लगा बैठे क्या वे आन्दोलनकारी नहीं है?.......जिन पत्नियों ने आपने पतियों को बिना किसी लालच के आन्दोलन में शामिल होने की इजाजत दी या प्रेरित किया क्या वे आन्दोलनकारी नहीं है?.......जो दुकानदार हजारों कर्मचारियों को राशन, कपडा मुहैया करते रहे बावजूद इसके कि वापसी की उम्मीद नहीं की जा सकती थी, क्या वे आन्दोलनकारी नहीं है?........ फिर यह मुट्ठी भर लोग कौन है जो आन्दोलनकारी का तमगा लगा के घूम रहे हैं ? ...... सच्चे मायने में जो राज्य आन्दोलनकारी थे वे आज भी इन तमगा धारियों और तमगा पहनने वाले नटों का तमाशा देख रहे हैं.......आपने काफी खुलकर लिखा, और आपका लिखा सचमुच ही करोड़पतियों के अख़बारों के संपादकीयों से कहीं बेहतर है........
जवाब देंहटाएंधारदार आलेख, सामयिक बातें.
जवाब देंहटाएं- विजय
प्रगति के नाम पर देश की सम्पदा से होने वाले खिलवाड़ का कच्चा चिट्ठा खोल कर रख दिया आपने ....करारा कटाक्ष .
जवाब देंहटाएं__________________
जवाब देंहटाएं3650 दिनों के विकास का लेखा जोखा एक ही दिन में
सुंदर शब्दों में पिरोकर , आपने प्रस्तुत किया है |
मैडम , क्या विनाश कर्ता भी भला विकास करेंगे ?
रावण जैसे लोग रहे तो , राम सदा वनवास करेंगे |
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यही आलम हर राज्य का है, पर आपके लिये अच्छा है कि आप दस वर्षों की प्रगति नये राज्य के लिये कह सकते हैं।
जवाब देंहटाएंसुखमय जीवन ,प्रदुषण रहित , शस्य श्यामला वसुंधरा
जवाब देंहटाएंतुलसी का पावन एक पौंधा ,आंगन कर दे हरा-भरा
हरी-भरी हो धरती अपनी, महके घर- आंगन अपना
रंग- बिरंगे फूल खिले हों, कितना सुन्दर है सपना
सिकुड़ रहा है आज हिमाला ,पनघट भी अब नहीं रहे
गुम-sum झरने ,गायब नदियाँ, रोको इनको कौन कहे?
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सुख- समृधी और खुशहाली के, सूचक हैं वन हरे-भरे
इस आदर्श बुनियाद के उपर, पृथक राज्य निर्माण करें.....
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शेफाली जी उत्तराखंड आन्दोलन के दौरान मैंने भी कुछ ऐसे ही सपने देखे थे ,लेकिन क्या करें ?सपने भी भला कभी पूरे हुए हैं ,गलती मेरी थी उडने की सोच बैठा ,अंतत: न चाहते हुए भी पलायन करना पड़ा, आज जब ४-५ साल में कभी एक बार गाँव जाना होता है तो वहां की हालात देखकर दुःख होता है, हाँ जहां कभी इक्का-दुक्का ही वाहन सड़कों पर नजर आता था अब वहां ट्रैफिक जाम को देख कर लगता है वाकई तरक्की हुई है ,
और इस भ्रमित कर देने वाली तरक्की का सही आकलन किया है आपने .
आभार..........
बहुत बेहतरीन कटाक्ष लिखा हैं आपने.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
शैफाली जी, जब ६० सालों में देश मुश्किल से अढ़ाई कोस से कुछ १ कोस ज्यादा चल पाया तो अभी तो महज १० साल ही हुए हैं। चाहे किसी भी खेत में लगाओ बीज तो एक जगह से लाये गये हैं।
जवाब देंहटाएंशेफाली जी, शायद यह त्रासदी हर राज्य की है। जनता सिर्फ माननीयों की सेवा के लिए ही बनी है। सत्ता सुख चाहे कोई भी पार्टी उठा रही हो पर सबका लक्ष्य एक ही होता है स्व और स्वजनों का भला। अपनी धारदार लेखनी से आपने बड़े ही सधे लफ्जों में ये सारा फ़साना बयां कर दिया आपने। आभार। --उमेश यादव, मुंबई
जवाब देंहटाएंबड़ा करार कटाक्ष किया है विकास के प्रतिमानों पर...बधाई.
जवाब देंहटाएं_________________
'शब्द-शिखर' पर पढ़िए भारत की प्रथम महिला बैरिस्टर के बारे में...
ब्याजनिंदा अलंकार का अच्छा प्रयोग करती हैं आप।
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