कि जिसमें इतना आराम है
ना कोई गृहस्थी की चिंता
ना ही कोई काम है
यहाँ घर की कोई कलह नहीं
ना काम को लेकर हैं झगड़े
ना महीने के राशन की फिक्र
ना ही बिल यहाँ आते हैं तगड़े
यहाँ बीमारी की जगह नहीं
ना ही कभी कोई मरता है
कत्ल हुआ कभी कोई तो
पुनर्जन्म ले लेता है
यहाँ ना चेहरे पर झुर्री
ना बूढ़ी लटकती खाल है
मेकअप की परतें चेहरे पर
क्या बच्ची क्या बूढ़ी
सबका एक ही हाल है
सास कौन है बहू कौन सी
पहचान जाएं तो कमाल है
ये बाज़ार कभी नहीं जातीं
साल भर त्यौहार मनातीं
नए - नए साड़ी ब्लाउजों में
इतरातीं और इठलातीं
ये काली दुर्गा की अवतार
पर पुरुष हैं जिनका प्यार
ये बुनतीं ताने -बाने षड्यंत्रों के
बदले की आग में जलतीं बारम्बार
ये चुपके -चुपके बातें सुनतीं
ज़हर उगलतीं, कानों को भरतीं
शक के बीजों को बोतीं
इन्हें ना कोई लिहाज़ ना कोई शर्म है
झगड़े करवाना पहला और आख़िरी धर्म है
ये इतने गहने धारण करतीं
जितने दुकानों में नहीं होते हैं
इनका रंग बदलना देख
गिरगिट भी शर्मा जाते हैं
इनकी शादियों का हिसाब रखने में
कैलकुलेटर घबरा जाते हैं
यहाँ रिश्तों को समझना मुश्किल होता
कौन दादा है,कौन दादी कौन है उनका पोता
यहाँ संबंधों की ऐसी बहती बयार है
समझ नहीं आता, कौन किसका, किस जन्म का
कौन से नंबर का प्यार है
लम्बे -लम्बे मंगलसूत्र पहनने वालीं
पार्टियों में सांस लेने वालीं
हर बात पे आंसूं टपकाने वालीं
तुम्हारा राष्ट्रीय त्यौहार है करवाचौथ
तुम्हारा पीछा ना कभी छोड़े सौत
हे मायावी दुनिया में विचरती मायावी नारियों
घर -घर की महिलाओं की प्यारियों
जड़ाऊ जेवर और जगमगाती साड़ियों
पतियों की बेवफाई की मारियों
तुम्हें देखकर आम औरत आहें भरती है
तुम्हारी दुनिया में आने को तड़पती है
अपने पतियों से दिन रात झगड़ती है
यहाँ ना चेहरे पर झुर्री
जवाब देंहटाएंना बूढ़ी लटकती खाल है
मेकअप की परतें चेहरे पर
क्या बच्ची क्या बूढ़ी
सबका एक ही हाल है
सास कौन है बहू कौन सी
पहचान जाएं तो कमाल है
...
करारा व्यंग्य ....
आज कल के सीरियल दम घोट देते हैं...
mere blog par..
मुट्ठी भर आसमान...
आपकी शोध से पता चलता है,
जवाब देंहटाएंकी आपने देखा इन्हें सौ सौ बार है,
अब जब नापसंद होने पर इतना लगाव,
तो फिर दूसरों को क्यों धिक्कार है ?
उनकी क्या गलती, उनका तो कारोबार है,
आखिर उन्हें भी रोटी का अधिकार है.
आपके हाथ में रिमोट है, इस्तेमाल करिए,
ऐसा हमारा विचार है ...
बाकी आपकी कविताई जोरदार है,
हमारी तुकबंदी भी आपकी ही,
कविता से ही निकला विस्तार है,
आप लिखते रहिये,
आपकी लेखनी असरदार है ...
घर की शान्ति बची रही, कईयों का जीवन निर्भर करता है घर पर।
जवाब देंहटाएंअच्छा किया दुबारा पोस्ट कर के ..आज भी उतनी ही सटीक है .और पढकर उतना ही मजा आया.
जवाब देंहटाएंहे मायावी दुनिया में विचरती मायावी नारियों
जवाब देंहटाएंघर -घर की महिलाओं की प्यारियों
जड़ाऊ जेवर और जगमगाती साड़ियों
पतियों की बेवफाई की मारियों
तुम्हें देखकर आम औरत आहें भरती है
तुम्हारी दुनिया में आने को तड़पती है
अपने पतियों से दिन रात झगड़ती है
स्वर्ग सामान घर को नर्क करती है ......
बस अवाक हूं पढकर, इस तरह का संप्रेषण वाकई अदभुत है, नमन है आपकी लेखनी को. बहुत शुभकामनाएं.
रामराम
सीरियल भी पुन: प्रासारित होते हैं ....बढ़िया शोध ...अच्छा व्यंग
जवाब देंहटाएंडेली सोप से धो डाला आपने तो..
जवाब देंहटाएंनीरज जी का लिखा
नीरज जी का लिखा याद आ गया..
Old is really Gold
जवाब देंहटाएंमगर सीरियल की इस दुनिया में जज्बात के मोल नहीं, ये सोंच कर सीरियल देखा जाये ..... अच्छा व्यंग है. चलो आपके दुबारा पोस्ट करने से हमें भी पढने का मौका मिल गया.
जवाब देंहटाएं.
उपेन्द्र
सृजन - शिखर पर ( राजीव दीक्षित जी का जाना )
मगर सीरियल की इस दुनिया में जज्बात के मोल नहीं, ये सोंच कर सीरियल देखा जाये ..... अच्छा व्यंग है. चलो आपके दुबारा पोस्ट करने से हमें भी पढने का मौका मिल गया.
जवाब देंहटाएं.
उपेन्द्र
सृजन - शिखर पर ( राजीव दीक्षित जी का जाना )
पहचान कौन चित्र पहेली ...
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा और असरदार लेख| धन्यवाद|
जवाब देंहटाएंये चुपके -चुपके बातें सुनतीं
जवाब देंहटाएंज़हर उगलतीं, कानों को भरतीं
शक के बीजों को बोतीं
इन्हें ना कोई लिहाज़ ना कोई शर्म है
झगड़े करवाना पहला और आख़िरी धर्म है
prabhavit ker diya aapki rachna ne waah
Bahut khoob kaha ahi....Kabhi kabhi lagata hai ki in serials ki nayikayon ka jiwan kitna sukhmay hai.
जवाब देंहटाएं