राम सिंह ! आराम से तो हो ?
था
तेरे पास
कानून, अदालत
तर्क - वितर्क
न्याय, माफ़ी
सहानुभूति
पश्चाताप
तुझे सजा मिलती भी तो पता नहीं कब और कितनी ?
था
हमारे पास
दुःख का दरिया
बद्दुआओं का सागर
आंसुओं की नदी
दर्द का सैलाब
तू बचता भी तो पता नहीं कब और कितना ?
सामयिक हालात का सटीक चिंतन.
जवाब देंहटाएंरामराम.
पीड़ा की अवधि कम हो गयी बस..निष्कर्ष तो वही रहे।
जवाब देंहटाएंsach ek dam sach
जवाब देंहटाएंदुःख तो अपनी जगह है ही हाँ सरकारी पैसे की बचत हो गयी
जवाब देंहटाएंलीक से हटकर
जवाब देंहटाएंयह बद्दुआओं का ही असर है. चलो उसे भी शांति मिल गयी. सुंदर कविता के माध्यम से आपने सच को आगे रखा है.
जवाब देंहटाएंवाह ...
जवाब देंहटाएंhmm jo dard diya usne uske badle saja kam ho gayee...
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