रेल और जेल ...........
भारतीय रेल और भारतीय जेल दोनों को पहली बार देखने पर कलेजा मुंह को आता है । दिल भारी हो जाता है और माथे पर पसीना चुहचुहाने लगता है ।
यात्रा करने वाली यात्री सोचते है इस रेल में चढ़ेंगे कैसे ? सज़ा पाने वाले कैदी सोचते है इस जेल में रहेंगे कैसे ?
पेशेवर यात्री रेल में, अपराधी जेल में, बिना परेशान हुए, अच्छी तरह से समय गुज़ार लेते हैं ।
यात्री, रेल से, कैदी जेल से, जल्दी से जल्दी बाहर आना चाहते हैं । रेल से जल्दी बाहर निकलना यात्रियों के स्टेशन पर और जेल से जल्दी बाहर निकलना जेलर के अटेंशन पर निर्भर करता है ।
रेल में अधिकतर यात्री बिना टिकट के सफ़र करते हैं और जेल में अधिकतर अपराधी बिना अपराध के सजा काटते हैं ।
दोनों के अन्दर बनने वाले भोजन को खाकर इंसान के अन्दर दुनिया से विरक्ति हो जाती है । जिह्वा को स्वाद का मोह नहीं रहता । वह किसी भी तरह के भोजन को निर्विकार भाव से खा सकता है ।
रेल जब सुरंग से होकर के गुज़रती है तो यात्रियों को कुछ दिखाई नहीं देता और दूसरी तरफ जेल के अन्दर प्रशासन को कुछ दिखाई नहीं देने के कारण कई जेलों से सुरंग निकल जाती है ।
दोनों में अनचाहे रिश्तेदारों को भूल जाने की सुविधा होती है । जेल में जमानत की रकम ना जुटा पाने के कारण और रेल में लोग अनचाहे बच्चों, खासतौर से मासूम लड़कियों को बैठा कर उतर जाते हैं और कभी लेने नहीं आते । ये अपनी सारी उम्र स्वयं को लेने आने वालों की राह ताकने में गुज़ार देते हैं ।
दोनों के अन्दर ज़रा - ज़रा सी बात पर बहस, मार - पीट और खून - खराबा होने की प्रबल सम्भावना बनी रहती है । आजकल दोनों के अन्दर खूनी संघर्ष व दुर्घटनाएं हो रही हैं । यह बड़ी चिंता की बात है ।
आत्महत्या करने के इच्छुक मनुष्यों के लिए दोनों के अन्दर मुफ्त सुविधा उपलब्ध रहती हैं । रेल में गेट से कूदकर, पटरी के नीचे कटकर और जेल में पंखे, कुंडे इत्यादि से लटककर ।
सुरक्षा की व्यवस्था दोनों के अन्दर संदिग्ध रहती है । इस पर भरोसा करना कतई बेवकूफी होगी ।
जिसके पास धन, बल है या जो वी. आई. पी. है, उसके लिए दोनों में अलग से आरक्षण की सुविधा होती है जहाँ उसकी सुख - सुविधा का पूरा - पूरा ध्यान रखा जाता है । जेल में भी रेल की तरह अग्रिम बुकिंग की सुविधा उपलब्ध है। यहाँ टिकट के स्थान पर एम्बुलेंस की अग्रिम बुकिंग होती है । यहाँ अति महत्वपूर्ण व्यक्तियों को डायरेक्ट अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंस चौबीसों घंटे खड़ी रहती है जबकि रेल से अस्पताल दुर्घटना होने पर ही जाया जा सकता है ।
दोनों से बाहर आने पर आदमी किसी अपने को भीड़ में तलाश करने लगता है । अगर उसका कोई अपना रिसीव करने के लिए आए तो ह्रदय को अपनेपन का एहसास होता है ।
दोनों के अन्दर उपजी दोस्ती - दुश्मनी की बाहर आकर लम्बे समय तक बने रहने की सम्भावना रहती है । अपने जैसे लोग मिल जाएं तो दोनों जगह समय आराम से कट जाता है ।
बे टिकट यात्रियों को -रेल में टी. टी. से और जेल में अपराधियों को पुलिस की सीटी से हरदम भय बना रहता है ।
पैसा अधिक हो जाने के कारण जनता अपराध और यात्रा बहुत ज्यादा करने लगी है, जिस कारण दोनों के अन्दर दिन - प्रतिदिन भीड़ बढ़ती जा रही है, परिणामस्वरुप जेल और रेल दोनों की संख्याओं में बढ़ोत्तरी करना सरकार की मजबूरी में शामिल हो गया है । कुछ साल पहले तक जेलों में और रेलों में भीड़ कम होती थी ।
दोनों के अन्दर प्रवेश करते ही आदमी दार्शनिक हो जाता है । उसे अपनी गलतियों का एहसास होना शुरू हो जाता है । वह सोचता है हे भगवान् ! अगर मैंने अच्छे कर्म किये होते तो मुझे यहाँ नहीं आना पड़ता ।
त्योहारी सीज़न में जेलों के अन्दर अपराधियों की और रेलों के अन्दर यात्रियों की भीड़ बढ़ जाती है । अतिरिक्त कोच और अतिरिक्त बैरकों की व्यवस्था करना सरकार के लिए चुनौती स्वरुप हो जाता है ।
रेल की यात्रा से सही - सलामत, साबुत लौट कर आने वाला किस्मतवाला और जेल से सही - सलामत, साबुत लौट कर आने वाला हिम्मतवाला कहलाता है ।
साफ़ - सफाई को नज़रंदाज़ कर दिया जाए तो जेल के अन्दर बसर, रेल के अन्दर सफ़र, किया जा सकता है ।
रेल में एक के टिकट पर दूसरा सफ़र कर ले जाता है और जेल में एक के किये अपराध की सजा दूसरा काट ले जाता है ।
वर्तमान में दोनों का भगवान् मालिक है ।
एकदम सटीक और सार्थक प्रस्तुति आभार
जवाब देंहटाएंआज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
एक शाम तो उधार दो
आप भी मेरे ब्लाग का अनुसरण करे
सटीक प्रस्तुति !!
जवाब देंहटाएंरेल में अधिकतर यात्री बिना टिकट के सफ़र करते हैं और जेल में अधिकतर अपराधी बिना अपराध के सजा काटते हैं ।
जवाब देंहटाएंसटीक, बेबाक और सच का पुट लिये हुये एक बेहतरीन व्यंग रचना, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
रेल में अधिकतर यात्री बिना टिकट के सफ़र करते हैं और जेल में अधिकतर अपराधी बिना अपराध के सजा काटते हैं ।
जवाब देंहटाएंसटीक, बेबाक और सच का पुट लिये हुये एक बेहतरीन व्यंग रचना, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
वाह क्या जोड़ा है आपने जेल और रेल को...
जवाब देंहटाएंईश्वर की दया से जेल का कोई अनुभव नहीं है पर भारतीय रेल की दशा का अपने सटीक वर्णन किया है।
जवाब देंहटाएंईश्वर की दया से जेल का कोई अनुभव नहीं है पर भारतीय रेल की दशा का अपने सटीक वर्णन किया है।
जवाब देंहटाएंदोनों में अपने ही समाज के भाग बसते हैं।
जवाब देंहटाएंआज की ब्लॉग बुलेटिन चाणक्य के देश में कूटनीतिक विफलता - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंरेल और जेल में इतनी साम्यतायें ढूँढने और इतने रोचक ढंग से प्रस्तुत करने के लिए आप निश्चय ही बधाई की पाञ हैं । शानदार व्यंग्य ।
जवाब देंहटाएंसुंदर सटीक व्यंग. आभार इन समानताओं को ढूंड निकालने का.
जवाब देंहटाएंdonon men itani sari saamyatayen khoj kar siddh kar diya ki desh kee sevaaon ke prati jagarook hain aur usaki prastuti bahut hi umda hai. aabhar
जवाब देंहटाएंअद्भुत चुटीली नजर! बहुत खूब!
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