रविवार, 10 मार्च 2013

सुनतो हो जी ...आज मैं कुछ नहीं खाऊँगी ।

शिवरात्री की बहुत बहुत शुभकामनाएँ .....व्रत रखने वाले सभी साथियों को सादर समर्पित ...

सुनतो हो जी ...आज मैं कुछ नहीं खाऊँगी । 

सुबह - सवेरे कुट्टू के चीले
एक गिलास दूध साथ में
फुल प्लेट आलू के गुटके
मुट्ठी भर काजू चबा जाउंगी । 

सुनतो हो जी ...आज मैं कुछ नहीं खाऊँगी । 

दिन में मिक्स फ्रूट,
सिंघाड़े का हलवा
एक कटोरी दही के साथ
एप्पल का जूस पी जाउंगी । 

सुनतो हो जी ...आज मैं कुछ नहीं खाऊँगी । 

कमजोरी के चलते शाम को 
बादाम, किशमिश, मखाने
छुआरे, अखरोट, रामदाने
पाव भर रबड़ी ही बस खा पाउंगी ।  

सुनतो हो जी ...आज मैं कुछ नहीं खाऊँगी । 

बहुत हो रही है कमजोरी
काम न कुछ कर पाउंगी
चूल्हा - चौका, झाड़ू, कर देना
बच्चों को भी देख लेना, साजन मोरे   
आज के दिन मैं व्रत ही बस कर पाउंगी ।

 
सुनतो हो जी ...आज मैं कुछ नहीं खाऊँगी ।
 


11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सार्थक प्रस्तुति आपकी अगली पोस्ट का भी हमें इंतजार रहेगा महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाये

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये

    कृपया आप मेरे ब्लाग कभी अनुसरण करे

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  2. हे भगवान, अब खाने को क्या बच गया? चूल्हा, चौका झाडू..बच्चे भी अब उनके ही मत्थे, घोर सतयुग आगया.:)

    शिवरात्री के अलावा शायद महिला दिवस का भी अभी तक असर है.

    बहुत शानदार व धारदार व्यंग.

    रामराम.

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  3. मोहल्ले के बच्चों की दूसरी मांआें को चाहिए कि अपने-अपने बच्चे संभाल के रखें ... ये भक्तिन व्रत के चलते एकदम भूखी होंगी.

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  4. बहुत सही :) सभी व्रतियों की यही कथा है :) बेचारियां कहां कुछ खाती हैं :(

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  5. श्री ग़ाफ़िल जी आज शिव आराधना में लीन है। इसलिए आज मेरी पसंद के लिंकों में आपका लिंक भी सम्मिलित किया जा रहा है।
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (11-03-2013) के हे शिव ! जागो !! (चर्चा मंच-1180) पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  6. एकदम सही तरीका है व्रत रखने का :).

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  7. इसे कहते हैं असली व्रत | अगर उपवास कर भूखो की मरना है और मन मारकर रहना है तो व्रत का क्या लाभ | असली व्रत वही है जिसमें पेट भर नहीं जी भर खाया जाये |

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  8. सुनते हो आज मैं कुछ नहीं खाऊंगी. ज्यादा खाना सर्वथा अनुचित और फिर ये कोई खाना तो है नहीं.

    सुंदर व्यंग रचना शेफाली जी.

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