शुक्रवार, 8 मार्च 2013

और अब काइकू .....


हाइकू ......फाइकू .....और अब काइकू .....

वह

कुर्सी और मेज़
जीवन
फूलों की सेज

वह

बैठक का सोफा
ज़िंदगी
हसीं तोहफ़ा

वह

गरम, नरम कालीन
कितनी
सुन्दर और शालीन 

वह

बोर हो गयी
सहसा
भोर हो गयी

वह

चलने लगी
दुनिया
हिलने लगी 

वह

बोलने लगी
पर
तौलने लगी

वह

उड़ गयी
खूंटा तोड़ गयी
बहुत कुछ छोड़ गयी

वह

तेज़ करने लगा
छुरी की धार
ज़ोरदार प्रहार

वह

घायल, हताहत
तन मन आहत 
फिर - फिर उड़ने की चाहत 



 

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