मंगलवार, 29 मई 2018


वो हसीन दर्द ------


पिछले कई दिनों से वह खासी परेशान नज़र आ रही है । उनका कहना है कि लगभग दो वर्षों से एक लड़का है जो उन्हें परेशान कर रहा है । परेशान कहें तो इस अर्थ में कि वह उन्हें लगातार घूरता रहता है । जब वह ऑफिस जाती हैं तो उसी समय अपनी बाइक लेकर आ जाता है और उनके पीछे - पीछे रोज़ उनके ऑफिस तक पहुँच जाया करता है । 
जिन दिनों वह उन्हें परेशान करता था, वे प्रसन्न रहती थीं । चहकती रहती थी । नए - नए परफ्यूम लगा कर महकती रहती थी । नियमित रूप से कान के टॉप्स बदलती थी, नई - नई मालाएं पहनती थी । खूबसूरत कारीगरी के सूट हर हफ्ते खरीदा करती थी । मैचिंग के चप्पल और जूते उनके पैरों में सजने लगे थे । बढ़ते वजन पर लगाम कसने के लिए सुबह चार बजे उठ कर पांच किलोमीटर की दौड़ भी लगाने लगी थी । चाल में नज़ाकत और बातचीत में नफासत आ गयी थी । धूप हो या छाँव, काला चश्मा सर्वदा आँखों में शोभायमान रहने लगा था । काले चश्मे से आँखों के आस - पास के काले घेरों और झुर्रियों को छिपाने के लिए मदद मिलने लगी थी । दाँत बाहर निकले हुए थे जिन पर तार लगवा दिया था । कमर तक के खूबसूरत और घने बालों को लेटेस्ट स्टाइल में कटवा दिया था । 
उस लड़के के परेशान करना शुरू करने से पहले वे जब भी मिलतीं थीं, अपनी बेटी की बातें बताने लगती थीं । बेटी, जो उनकी नज़रों में अद्भुद एवं विलक्षण है । उसका दिमाग, अगर उनका कहा सच माना जाए तो आने वाले समय में आइंस्टीन को पीछे छोड़ सकता है । 
लेकिन आजकल वे जैसे ही मिलती हैं, उस परेशान करने वाले का ज़िक्र छेड़ देती हैं । नौबत यहाँ तक आ पहुँची है कि उन्होंने सामान्य शिष्टाचार का पालन करना भी त्याग दिया है।  
अब उनका पहला वाक्य होता है '' वह पीछा ही नहीं छोड़ रहा है, परेशान करके रख दिया है''।  
हमने उन्हें तरह - तरह के सुझाव दिए । 
''तुम उस तरफ मत खड़ी हुआ करो । बस का  इंतज़ार करने की जगह बदल दो तब शायद कुछ फर्क पड़े'' ।
''पुलिस से शिकायत करनी चाहिए तुम्हें'' ।   
वे कहती '' इसमें भी एक पेंच है । उसने कभी मुंह पर तो कुछ कहा नहीं । बस घूरता रहता है और रास्ते भर मोटर बाइक से पीछा करता है ''।
''उससे डायरेक्ट कह कर देखो'' 
''एक बार मैंने कहा तो बोलता है कि '' मैं तो आपको जानता भी नहीं हूँ । आपके पीछे थोड़े ही आता हूँ, अपने काम से जाता हूँ'''। 
''क्या पता सच में किसी और काम से ही जाता हो''। मैंने कहा तो शायद उन्हें बुरा लग गया । 
''नहीं मुझे पता है, मेरे ही पीछे आता है ''। उनके आत्मविश्वास को देखते हुए मैंने हथियार डाल देना ही उचित समझा । 
''एक बार मैंने फोन किया था उसे धमकाने के लिए लेकिन वह नंबर किसी और का निकला ''। 
आपको नंबर कहाँ से मिला ? मैंने पूछा । 
''मैंने किसी से कहा था इसका नम्बर पता करने के लिए । पता नहीं क्या दिमाग खराब हो गया है इसका ? क्या उसे दिखता नहीं कि मैं शादीशुदा हूँ, एक बेटी की माँ हूँ । मेरे गले में मंगलसूत्र भी है, मांग में सिन्दूर भी लगा रहता है । पैरों में बिछिये पहने रखती हूँ । पता नहीं क्यों दीवानों की तरह घूरता रहता है । अब मैं छोटी लगती हूँ तो इसमें मेरा क्या कसूर है'' ? उसने अनुमोदन के लिए मेरी तरफ देखा मैं उनकी इस बात पर हामी नहीं भर पाई । उन्हें लगा कि मैं उनके छोटे दिखने और उनके पीछे एक दीवाना पड़ा होने के कारण उनके भाग्य से चिढ रही हूँ ।  

उन्हें एक लड़का परेशान करता है यह बात उनके साथ आने -जाने वाले हर शख्स को मालूम हो गयी है । जब वे पाती थीं कि फलाने को उस लड़के के बारे में नहीं पता तो वे आश्चर्य से भर जाया करतीं,  फ़िर पूरे विस्तार के साथ बताती थीं कि उन्हें किस - किस तरह से वह लड़का परेशान करता है । अब हालात यह हो गयी थी कि जैसे ही वे बस में बैठती, कई लोग एक साथ पूछ बैठते '' आज क्या किया उस लड़के ने ?''

लड़के के बारे में बताते हुए उनके चेहरे में एक किस्म का नूर सा आ जाया करता था। एक प्रकार की श्रेष्ठता का एहसास भी हो सकता है कि देखो पैंतालीस पार कर गयी हूँ फिर भी एक पच्चीस साल का लड़का मुझे छेड़ रहा है । एक तरफ आप लोग हैं कि चालीस की उम्र में ही पचास के लग रहे हैं और कोई घास भी नही डाल रहा है।   

साथ वाले कुछ लोग दबे स्वर में एक दूसरे से कहते भी रहते हैं, ''झूठ बोलती है सरासर । कोई लड़का - वड़का नहीं है बस इसके मन का वहम है'' । दूसरी कहती है '' अगर इतनी ही परेशान है तो क्यों नहीं पुलिस में शिकायत करती है ? छह महीने से सुन - सुन कर कान पक गए हैं''। 
तीसरी फुसफुसाती है, ''मुझे तो लगता है कि यह ही उसके पीछे पडी हुई है । अगर पूछेंगे न तो शर्तिया वह लड़का यही कहेगा कि इस बुढ़िया ने मुझे तंग कर रखा है ''। 
वे समवेत स्वर में खिलखिलाती हैं जिसे वह अनसुना कर देती है ।
 
इस बीच मैं कुछ दिनों की छुट्टी पर चली गई थीं । छुट्टियों से लौटी तो बस स्टॉप पर खड़ी उस सूरत को मैं पहचान ही नहीं पाई । उनका रूप - रंग ही बदल चुका था । बाल डाई किये जाने की राह देख रहे थे । शरीर पर काफी मांस चढ़ चुका था । न फिटिंग के कपडे, न मैचिंग के आभूषण, पैरों पर हवाई चप्पल, लिपिस्टिक, बिंदी, काजल, क्रीम सब छूमंतर हो चुके थे । अब वे फिर से  वही पुरानी फ्रस्टेटेड कामकाजी औरत में बदल गयी थी । आँखे बुझी - बुझी मानो जीवन का सारा रस निचुड़ गया हो । चेहरे की रौनक उड़ चुकी थी । 
'' क्या बात है ? सब ठीक है ? मैंने पूछा । 
''हाँ क्यों ''?   
ऐसे ही पूछ रही थी, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं लग रही है । बीमार हो क्या'' ?  
'' हाँ कुछ दिन से बीमार हूँ ''। मरियल सी आवाज़ में उसका जवाब आया । 
'' वह लड़का अभी भी घूरता है क्या ''? उन्होंने मिलते ही उस लड़के की बात नहीं करी तो मेरा माथा ठनक गया । 
''इधर तो काफी दिनों से नहीं दिखा, सुना है उसने शादी कर ली है वह भी लव मैरिज । घरवालों ने निकाल दिया है उसे ,अब शायद दिल्ली चला गया है लड़की को लेकर''। अच्छा हुआ मेरा पल्ला छूटा । दुखी हो गयी थी मैं । अब टेंशन फ्री हूँ हा हा हा ''। 
वे हँस रही थीं लेकिन उनके चेहरे से मुस्कान गायब थी । अब फिरसे उनकी ज़िंदगी पुराने ढर्रे पर लौटने लगी है । वही उनकी विलक्षण बेटी , सास से रोज़ की तनातनी, पति से अनबन, मकान खरीदने की चिंता, बीमारियां, ऑफिस की उठापटक, अधिकारी की मनमानी, साथ वालों के षड्यंत्र इत्यादि - इत्यादि अनगिनत समस्याओं से घिरी वे फिर से ढूंढ रही हैं किसी परेशान करने वाले को ।    
   


6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (12-05-2018) को "किन्तु शेष आस हैं" (चर्चा अंक-2986) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (30-05-2018) को "किन्तु शेष आस हैं" (चर्चा अंक-2986) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  3. सुन्दर एक मनोवैज्ञानिक पहलू पर लिखी कहानी।

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  4. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन प्लास्टिक मुक्त समाज के संकल्प संग ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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