मंगलवार, 30 जून 2009

क्या चुगलखोरी करना आसान काम है ??

साथियों ...पिछले दिनों चुगलखोरी और महिलाओं को लेकर एक कार्टून हमारी आँखों के सामने से गुज़रा ..लगा तो हमें बहुत ही बुरा ..लेकिन जब हमने निष्पक्ष होकर इस विषय पर गहन चिंतन किया तो पाया ..कि क्या चुगलखोरी करना बुरा काम है ? क्या इसमें मेहनत नहीं लगती ? नहीं साथियों , यह कोई आसान काम नहीं है ...यह तो एक कला है .इसमें ,छोटी से छोटी बात को मिर्च मसाला लगाकर इस तरह से  पेश करना होता है, जिससे परोसने वाले और खाने वाले दोनों को मज़ा आ जाए.
होस्टल चुगली करने वालों को बहुत उपयुक्त वातावरण प्रदान करता  है यहाँ के वातावरण में काफी बहिनों की प्रतिभा पल्लवित और पुष्पित होती है ..हमें अच्छी तरह से याद है कि जब हम होस्टल में रहते थे ...बुराई और चुगली रूपी रस में सिर से लेकर पैर तक सराबोर रहते थे, कब सुबह से शाम हो जाती थी पता ही नहीं चलता था ..हम चारों रूममेट्स एक दूसरे की चुगली उतने ही समान भाव से करतीं थी ,जितनी अन्य बहिनों की आपस में .
चुगलखोर महिला एक बहुत अच्छी जीवन संगिनी साबित होती है , उसे कपड़े, जेवर और किसी भी भौतिक वस्तु का लालच नहीं होता है , चुगली रूपी जेवर उसका सबसे बड़ा आभूषण होता है , चुगली करने से चेहरे पर जो रौनक और चमक आती है , उसके आगे शहनाज़ का गोल्ड फेशिअल भी पानी भरता है , 
चुगलखोर बहिनें एकता और अखंडता की मिसाल होती हैं ,चाहे कैसी भी परिस्थिति इनके सामने आ जाए ,ये चुगली करना नहीं छोड़तीं हैं .मान लीजिए क ,ख , ग, घ,चार सहेलियाँ हैं.. देखिये क +ख =ग की चुगली , ख +ग =घ की चुगली, क +ग =ख की चुगली ,क +घ =ग की चुगली ...मज़े की बात ये है की चारों को इसकी जानकारी है ,फिर भी चारों एक दूजे की पक्की सहेलियां बनी रहती हैं ..ऐसी एकता तो एकता कपूर के 'क' नाम से शुरू होने वाले कम्पायमान करने वाले सीरियलों  में भी नहीं होतीं .
चुगलखोर बहिनें बिलकुल फिजूलखर्च नहीं होतीं हैं , इनका सारा दिन चुगली करने में ही बीतता है ,इनको बाज़ार जाकर शोपिंग करने का मौका ही नहीं मिलता है 
इनका हर घर में तहे दिल से स्वागत होता है , जब चुगलखोर बहिन के कदम किसी के घर में पड़ते हैं ,उसी क्षण से सारे घर भर में ऊर्जा का संचार होने लगता है ,उदास और मायूस चेहरों पर ताजगी आ जाती है .
इससे ये सिद्ध नहीं होता कि चुगली करना आसान काम है ,बल्कि इस काम में भी उतना ही जोखिम है जितना शेयर मार्केट में .चुगली करने वालों के अन्दर बहुत बड़ा जिगर चाहिए , वैसे तो चुगली करने वाली बहिनों की पोल कभी नहीं खुलती ...लेकिन कभी गलती से खुल जाए तो अपनी ही बात से मुकरना , और उस पर अड़े रहना पड़ता है चाहे लाख सुबूत ही क्यूँ ना सामने आ जाएं .भगवान् से लेकर माँ, बाप ,पति और अंतिम अस्त्र के रूप में बच्चों तक की कसम खाने को तैयार रहना पड़ता है
 मेरी बहिनों को इस बात पर शर्म आने के बजाय, गर्व करना चाहिए कि उन्हें चुगलखोर कहा जाता है ...
 

शनिवार, 27 जून 2009

कुछ चिरकुट से शेर .....

कुछ चिरकुट से शेर .....
 
सूने पन से त्रस्त हूँ
वैसे बेहद मस्त हूँ
करीने से सजा है मकां मेरा
मैं इसमें अस्त व्यस्त हूँ
.................................................
 
वो नंबर बन के
मेरे पर्स में रहता है
खुद को कहता है आवारा पंछी
और मेरी मुट्ठी में कैद रहता है
.........................................................
 
तेरी ख्वाहिश, तेरी आरजू
तेरी तमन्ना , तेरी जुस्तजू
तूने भी कहा चीख कर
दुनिया के साथ -साथ
बेरोजगार हूँ मैं , बेकार हूँ मैं
 
 
 

शुक्रवार, 26 जून 2009

चाँद क्यूँ लौट आया ....एक खुफिया रिपोर्ट

चाँद अपने वतन क्यूँ अचानक लौट आया ....साथियों क्या किसी ने इस विषय पर सोचा ? नहीं सोचा होगा ...लेकिन हमने सोचा ..सोचा नहीं बल्कि पता लगाया अपने खुफिया सूत्रों से ..........
 
सोलह कलाएँ
दिखाने का,
चाँद को
निकलने का,
मौका
ब्रिटिश राज में
आज भी नहीं
मिलता है
भारत की
फ़िज़ा में
उसका
लौट आना
आज भी
यही सिद्ध
करता है
 
२-  क्या बाल श्रम वाकई अपराध है ?
 
बच्चों की
नई नवेली
फौज को
संसद में
देखकर
उनके माथे
पर पसीना
आ गया
गद्दी को
खिसकता देख
बाल श्रम
पर रोक
का कानून
याद आ गया ....
 
 
 

बुधवार, 24 जून 2009

बहुत दिनों बाद .........फिर से.कुछ क्षणिकाएँ .......

.अपने दाँत का दर्द कुछ कम है  
इसीलिए फिर से क्षणिकाओं का  
मौसम गर्म है ....................
 
जड़ें ...............१
 
राजनीति की
अजब सी यह
परिपाटी है ,
दूसरों की
जड़ों को
जितना खोदो
उतना ,
अपनी गहरी
होती जाती हैं
 
जड़ ..........२
 
वे ,
नित नए
दाँव पेचों
से
विरोधियों के
पैरों तले
ज़मीन
खिसका
जाते हैं
इसीलिए ,
स्वयं
ज़मीन से
जुड़े हुए
रह पाते हैं
 
जड़ ............३
 
उनहोंने ,
खुद को सदा 
ज़मीन से 
जुड़ा हुआ
नेता बताया
कितनी ज़मीन
जोड़ ली
पूछा तो ,
गिनना  ही
नहीं आया
केलकुलेटर से
हिसाब लगाया ...
 
 
 
 
 

सोमवार, 22 जून 2009

पीतल मफतलाल और दुखवंत सिंह का दुःख ....

साथियों ...इन दिनों दुखवंत सिंह अपने नाम के अनुरूप बेहद दुखी हैं .कल ही उनके कॉलम 'औरतों से दोस्ती ...मर्दों से बैर ' में हमने पढ़ा कि उन्हें पीतल मफतलाल की गिरफ्तारी पर बेहद अफ़सोस है ....
और इस मुद्दे पर मैं भी उनके साथ हूँ ...उसका नाम पीतल है ...तो क्या उसको सोने ,चांदी और चंद हीरे के आभूषण पहिनने का कोई अधिकार नहीं है ?
और किया ही क्या है उस बेचारी ने ? अपने देश में चंद आभूषण लाकर वह औंधी पड़ीं अर्थव्यवस्था को सुधारने का प्रयास ही तो कर रही थी .और साथियों जैसा कि  दुनिया जानती  ही हैं कि जब हम बहिनों के  पास पैसे होते हैं तो हम इतनी अँधा धुंध शौपिंग कर डालती हैं कि कई बार घर लौटने के लिए भी पैसे नहीं बचते हैं ,उधार मांग कर घर लौटना पड़ता है ...लेकिन मजाल है कि किसी भी ख़रीदी हुई चीज़ को वापिस करने की किसी बहिन ने सोची भी हो ....जो खरीद लिया सो खरीद लिया ...अवश्य ऐसा ही पीतल के साथ भी हुआ होगा ...लेकिन ,थोड़ी से भी दूरदृष्टि होती इस सरकार में ,तो वह देखती कि इससे देश का कितना फायदा होता .
जब बहिन पीतल उन आभूषणों को पहिनकर पार्टियों में जाती तो अन्य बहिनों के दिलों में अजगर लोटने लगते .वे भी देखा - देखी वैसे ही आभूषण लेने के लिए विदेशों का दौरा करतीं ..इससे एयर लाइन उद्योग में जो मंदी के बादल छाये हुए हैं ,उन्हें छँटने का मौका मिलता .जो बहिनें स्वाइन फ्लू के दर से विदेश का दौरा नहीं कर पातीं , वे अपने देश में ही हुबहू वैसे ही आभूषण बनवाने के लिए रात -दिन एक कर देतीं ...इससे अर्थव्यवस्था में दिन दूनी, रात चौगुनी वृद्धि होती ..नई नई ज्वेलरी शॉप खुलतीं ...उनसे मेचिंग डिजाइनर कपडों की बिक्री होती , फैशन  डिजाइनरों को रोज़गार मिलता ..हमारे जैसी गरीब बहिनें , इन अमीर बहिनों के देखा -देखी वैसे ही  आरटीफिशल आभूषणों को खरीदने के लिए एढी - चोटी का जोर लगा देतीं ..इस उद्योग को भी बहुत बढ़ावा मिलता ,इसे भी फलने  फूलने का मौका मिलता .
एक  ज़रा सी कर चोरी से अगर अर्थव्यवस्था पटरी पर आ जाती तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ता ?
पहले तो सरकार को किसी को भी गिरफ्तार करने से पाहिले उसके नेम और सरनेम  पर ध्यान देना चाहिए था ..मफत ..वैसे भी मुफ्त .. का अपभ्रंश है .चाहती तो जेवरों को मुफ्त में भी ला सकती थी ...लेकिन इमानदारी पूर्वक खरीद कर अपने देश में लाई थी ...और देश ने उसे इमानदारी का ये इनाम दिया .सरकार की इस अदूरदर्शिता से जो राजकोषीय घटा आएगा ..उसकी जिम्मेदारी किसकी होगी ?
उधर बेचारा ...शाइनी ...जिसके  नाम  में ही इतनी शर्म ...और झिझक छिपी हुई है ..वह क्या बलात्कार शर्मनाक  काम कर सकता है ? बताइए ....
 
 

शनिवार, 20 जून 2009

क्यूँ मक्खी ? क्या समझ के आई थी

क्यूँ मक्खी ? क्या समझ के  आई थी  कि ओबामा बहुत खुस होगा ? सबासी देगा ? तुमने सोचा होगा 'वो भी काला, मैं भी काली, दोनों मिल के करेंगे कव्वाली '....प्यारी मक्षिका ! क्यूँ भूल गयी थी कि ये अमेरिका की नाक है ,कोई सरकारी स्कूलों का मिड डे नहीं ,जहाँ जब चाहती  हो , तब गिर पड़ती हो ,और जहाँ बच्चे  प्यार से तुम्हें हटा कर उड़ा देते हैं...अबकी बार तुम गलत जगह पर जाकर बैठ गईं ..  तुम्हें किसी ने बताया नहीं शायद कि ताकत का कोई रंग नहीं होता .
साथियों , महामहिम ने एक मक्खी को क्या मार गिराया ,सारी दुनिया उनके पीछे लग गयी , कहीं पोटा वाले झंडा- बैनर लेकर हाय - हाय कर रहे हैं ,कहीं लोग अचूक निशाने बाजी के लिए अभिनव बिंद्रा से स्वर्ण पदक लेकर उनके गले में डालने के लिए लालायित हुए जा रहे हैं .
जबसे हमने यह सुना हमारे ह्रदय को बहुत आघात लगा ....क्या हमने कभी मक्खी नहीं मारी ? अरे हमने तो इस उम्र तक सिर्फ मक्खियाँ ही मारी हैं ,,स्कूल से लेकर कॉलेज, मायके से लेकर ससुराल ..दूसरा कोई किया ना काम ..फिर भी हमारा हुआ न कोई नाम ....घनघोर अपमान .
किसी ने भी हमें ओलम्पिक के लिए प्रशिक्षित करने की न सोची ..उल्टे हमें हर शहर के नामी गिरामी मनोचिकित्सकों के पास ले जाया गया ..हर आने जाने वाले को , नाते रिश्तेदारों को हमारे इस हुनर के बारे में बताने में हमारे घरवालों ने कोई कसर नहीं छोडी .लोगों ,पड़ोसियों एवं रिश्तेदारों के कितने ताने सहे  ,कितने उपदेश सुने ..हिसाब रखने में केलकुलेटर  ने भी आखिरकार टर्र टर्र कर दिया .
अंतिम उपाय के रूप में झाड़ फूंक करने वाले को भी बुलाया गया ..हमने उसकी  झाड़ फूंक की प्रक्रिया के दौरान उसी का झाडू लेकर कई मक्खियों को मोक्ष दिलवा दिया ..वह बेचारा अपना झाडू छोड़कर ऐसा भागा कि आज तक वापिस नहीं आया ..
माँ बाप ने हमें तंग आकर भाग्य के भरोसे छोड़ दिया , सोचा कि शायद शादी करके सुधर जाएगी ,लेकिन ससुराल वाले और हमारे पतिदेव ने जब हमारा मक्खी मार अभियान के प्रति प्रेम को देखा तो गश खाकर गिर पड़े ..धीरे धीरे वे समझ गए कि हमसे किसी काम के लिए कहा जाएगा तो पूरा होना मुश्किल है ,,,बंदी को और क्या चाहिए था ...हमारा मक्खी  मार अभियान निर्बाध गति से आगे  बढ़ता  रहा ...
फिर जब हमारी नौकरी लगी तो उनके अन्दर कुछ उम्मीद जगी कि शायद अब ये सुधर जाएगी ..लेकिन सारी दुनिया जानती है कि सरकारी नौकरी में वो भी अध्यापन की , तो कोई  अपने आपको मक्खी मारने से कैसे रोक सकता है ..हमारे इस अभियान को उचित अवसर और परिस्थिति मिल गयी ..और अब तो यह संभावना दिनों दिन प्रबल होती जा रही है हमें आने वाले सालों  में कोई माई का लाल राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त करने से नहीं रोक सकता...
और साथियों ....मातृत्व भी हमारे इस अभियान में बाधक नहीं बन सका ...लेकिन एक बात तो माननी पड़ेगी के बड़े बुजुर्ग जो कहते हैं सही कहते हैं ...कि माँ बनने के बाद औरत की जिम्मेदारियां दुगुनी हो जाती हैं ...पहले हम अपने आस पास की मक्खियों को शहीद किया करते थे अब बच्चे  के आस पास की मक्खियों को भी सदगति दिलानी पड़ती है .
साथियों इतनी से पोस्ट लिखने में १० मक्खियों को जीवन दान मिल गया ............
नोट -----ओनली फॉर पोटा ------इस पोस्ट की सारी बातें काल्पनिक हैं ,इसका सच्चाई से कोई लेना देना नहीं है .
 

बुधवार, 17 जून 2009

मेरी महबूब कंप्यूटर छोड़ के मिला कर मुझसे ...

साथियों .....आशा है की आप लोग मुझे साहिर साहब की इस रचना का दुरुपयोग करने के लिए माफी प्रदान करेंगे ....
 
फेसबुक तेरे लिए एक टाइम पास ही सही 
तुझको ऑरकुट के रंगबिरंगे चेहरों से मुहब्बत ही सही 
मेरी महबूब ! कंप्यूटर छोड़ कर मिला कर मुझसे 
 
बज्म - ए गूगल में गरीबों का गुज़र क्या मानी ?
दफ़न जिन वाल पपरों  में  हों मेरे जैसों की आहें ,उस पे
उल्फत भरी रूहों का सफ़र क्या मानी ?
 
मेरी महबूब इन प्रोफाइलों के पीछे छिपे हुए
झूठे चेहरों को तो देखा होगा
लड़का बनी लडकी और लडकी बनी लड़का
को तो देखा होगा
मुर्दा स्क्रेपों से बहलने वाली
अपने जिंदा प्रेमी को तो देखा होता
 
अनगिनत लोगों ने दुनिया में मुहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक ना थे जज़्बे उनके
लेकिन उनके लिए चैटिंग का सामान नहीं
क्यूंकि वे लोग भी अपनी ही तरह मुफ़लिस थे
ये वेबकैम , ये याहू मेसेंजेर ,ये जी टाक
चंद दिल फेंकों के शौक के सतूं
दामन - ए आई .टी . पे रंग की गुलकारी है
जिसमे शामिल है तेरे और मेरे हसीं लम्हों का खूं
 
मेरी महबूब उन्हें भी तो मुहब्बत होगी
जिनकी मेहनत से बना ये ऑरकुट ,ये फेसबुक
उनके प्यारों की हसरतें रहीं बे नामोनुमूद
आज तक उनपे न बनी कोई कम्युनिटी
ना बना उनपे कोई ब्लॉग
 
ये मुनक्कश दरो दीवार ये ब्लॉग ये जी टाक
एक शहंशाह ने तकनीक का सहारा लेकर
हम गरीबों की मुहब्बत का
उड़ाया है मज़ाक
 
मेरी महबूब कंप्यूटर छोड़ के मिला कर मुझसे ...
 

सोमवार, 15 जून 2009

आखिरकार सच्चाई उगलवा ही ली .....लघु कथा

सच

 

"यह मेरे साइन नहीं हैं, बोलो तुमने ही किए हैं ना मेरे साइन". सुमन ने कड़क कर पूछा. "नहीं मैडम". तथाकथित अंग्रेज़ी माध्यम में, कक्षा तीन में पढने वाली रेखा ने डरते हुए जवाब दिया. "झूठ बोलती हो, हाथ उल्टा करके मेज़ पर रखो". रेखा ने सहमते हुए हाथ आगे किए. 'तडाक', सुमन ने लकड़ी के डस्टर से उसके कोमल हाथों पर प्रहार किया. रेखा रोने लगी. "अगर तुम सच बोल दोगी तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगी. "बोलो, कह रही किए हैं ना." "नहीं मैडम, मैं सच कह रही हूँ." सुमन गुस्से से पागल हो गई. 'तडाक, तडाक, तडाक, तडाक'. सुमन ने उन मासूम हाथों पर अनगिनत प्रहार कर डाले. रेखा से दर्द सहन नहीं हुआ तो उसने स्वीकार कर लिया कि वह साइन उसने ही किए थे. सुमन के चेहरे पर विजयी मुस्कराहट तैर गयी. 'आखिरकार, सच उगलवा ही लिया.'

 

शाम को घर पहुँच कर सुमन ने कॉपियों का बंडल जांचने के लिए बैग से निकाला ही था कि उसका नन्हा बेटा खेलता हुआ वहां आ गया, "मम्मी, मुझे तुम्हारी तरह कॉपी चेक करना बहुत अच्छा लगता है. प्लीज़, एक कॉपी मुझे भी दे दो." सुमन का माथा ठनका, "तूने कल भी यहाँ से कॉपी उठाई थी क्या?". "हाँ मम्मी, बहुत मज़ा आया. बिल्कुल तुम्हारी तरह कॉपी चेक करी मैंने." सुमन ने अपना माथा पकड़ लिया.
 
 उधर, रेखा के माँ बाप उसका सूजा हुआ हाथ देख कर सन्न रह गए. दिन-रात खेतों मैं कड़ी मेहनत करने वाले उसके माता-पिता का एकमात्र उद्देश्य यही था कि उनकी बेटी कुछ पढ़-लिख जाए, "आग लगे ऐसे स्कूल को. कल से मेरे साथ खेत पर काम करने चलेगी, समझ गई. बड़ी आई स्कूल जाने वाली." माँ उसके नन्हे हाथों पर हल्दी लगाती जा रही थी और साथ ही साथ रोए भी जा रही थी.
 

शुक्रवार, 12 जून 2009

एक मैं और एक तू

साथियों एक सस्ती ग़ज़ल या हमारे हल्द्वानी के कवि शेर दा अनपढ़ के शब्दों में कहें तो गजबज़ल {गजबज +ग़ज़ल }  पेश है  इसमें कुछ शेर मेरे शहर हल्द्वानी के सन्दर्भ में हैं  ,जो हल्द्वानी से परिचित हों वो इसे बखूबी समझ जाएँगे ...
 
मैं गुर्जर का आरक्षण आन्दोलन

तू वसुंधरा का महल

मैं नेपाल की राजशाही

तू प्रचंड कमल दहल

 

मैं कुप्पी मिट्टी तेल वाली

तू लुमिनस का इनवर्टर

मैं प्रायमरी का मिड डे मील

तू मेक्डोनाल्ड का टेस्टी बर्गर

 

मैं निरमा का वाशिंग पाउडर

तू सर्फ़ का अल्ट्रा व्हाइट

मैं पैदल यात्री बद्रीनाथ का

तू हवाई जहाज़ की सीधी फ्लाईट

 

मैं माँ के हाथ की सूखी रोटी

तू फाइव स्टार की तंदूरी

तू बंद पेकेट का कुरकुरा

मैं छत पर सूखी चावल की कचरी  

 

मैं पानी महापालिका का

तू मिनरल वाली बिसलेरी

मैं घर के टूटे बेल का शरबत

तू कोला-पेप्सी सोडा वाली

 
मैं मेज़ में रखा पुराना टी. वी.  
तू दुबली पतली एल. सी. डी.
तू रुद्रपुर की सिडकुल
मैं रानी बाग की एच. एम्. टी  
 
मैं बाज़ार पुराना हल्द्वानी का
तू दुर्गा सिटी सेण्टर का जलवा
मैं टूटी सीट लक्ष्मी की
तू सरगम की ठंडी हवा
मैं हालत बसे अस्पताल की
तू सुशीला तिवारी की दवा
 
मैं शीतला और काली का मंदिर
तू बेरी पड़ाव की अष्ट भुजा
मैं सेंट पॉल ,निर्मला और थेरेसा
तू छरैल की आर्यमान बिरला
 
मैं धर्मशाला की गरीब बारात   

तू बेंकट हौलों की शेहनाई

मैं गरीब मास्टर का टूशन

तू कोचिंग की अंधी कमाई

 

तू सावन की पहली बारिश

मैं उसके बाद की दीन दशा

मैं दक्षिणा वाला पंडित

तू पैकेज वाली पूजा

 

मैं पूजा-पाठ और वास्तु शास्त्र  

तू फेंग शुई है चीन की

मैं बर्तन बाज़ार की टन-टन

तू चुप्पी है शोरूमों की

 

तू खबरी चैनेल की ब्रेकिंग न्यूज़  

मैं दूरदर्शन का कृषि दर्शन

मैं यु.पी.बोर्ड की पढ़ाई

तू सी.बी.एस..का पैटर्न

 

मैं बोर क्रिकेट फिफ्टी-फिफ्टी का  

तू ट्वेंटी-ट्वेंटी का सम्मोहन

मैं लोकल कवि और शायर की रचना  

तू जागरण का कवि सम्मलेन {हल्द्वानी के सन्दर्भ मैं}
 
 

गुरुवार, 11 जून 2009

.लघु कथा ......लिस्ट

 

लिस्ट

 

"इस बार सभी प्रकार के स्थानान्तरणों में पूर्णतः ईमानदारी बरती जा रही है. हम चाहते हैं कि हमारा सिस्टम एकदम पारदर्शी हो. पिछली सरकारों ने स्थानांतरण को एक व्यापार बना रखा था, परन्तु अब ऐसा नहीं होगा. हमने नवनियुक्त निदेशक से भी कह दिया है कि किसी भी प्रकार के दबाव में न आयें और पूरी ईमानदारी से अपना काम करें".

 

मंत्री जी ने अख़बारों में लंबे-लंबे बयान दिए. कर्मचारियों के मन में कुछ उम्मीद जगी. नवनियुक्त निदेशक ख़ुशी से फूला न समाया. पहली ही नियुक्ति में उसे अपनी ईमानदारी एवं कर्मठता को सिद्ध करने का मौका मिलेगा. घर आकर अपने बीमार पिता के पास आकर उसने अपनी ख़ुशी का इज़हार किया.

 

"पिताजी,देखना मैं कैसे इस भ्रष्ट विभाग को ठीक करता हूँ. मंत्री जी भी मेरे साथ हैं. उन्होंने कहा है कि मेरे काम में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा".

"अच्छा .....". पिताजी की आँखें आश्चर्य से फैल गयीं.

 

निदेशक ने प्रार्थनापत्रों की भली प्रकार जाँच करके एक अन्तिम लिस्ट तैयार कर ली. अगले ही दिन मंत्री जी ने उन्हें अपने ऑफिस में बुलवाया.

 

"सुना है स्थानांतरण लिस्ट बन गयी है, ज़रा दिखाएंगे".

"जी सर. आपके कथनानुसार पूरी ईमानदारी से लिस्ट बनाई है", कहकर उन्होंने लिस्ट मंत्री जी की ओर बढ़ा दी.

 

मंत्री जी एक नज़र लिस्ट पर दौड़ाई और एक किनारे कर दी. "ऐसा है महोदय, हमें अपने लोगों का भी ख्याल रखना पड़ता है. एक लिस्ट हमने भी बनाई है, यही फाइनल होगी. आप इस पर हस्ताक्षर कर दीजिये, इसे कल ही जारी करना है".

 

निदेशक को जैसे काठ मार गया हो. "परन्तु सर,........."

"किंतु, परन्तु मत लगाइए. आपको क्या फ़र्क पड़ता है, लिस्ट कोई सी भी हो."

"लेकिन ज़रूरतमंद लोग इस साल भी रह जायेंगे. उन्होंने इस साल बहुत उम्मीद लगा रखी है."

"देखिये श्रीमान, हमें पता है की आपके पिताजी बीमार हैं. माताजी भी स्वर्ग सिधार गई हैं. ख्वामखाह दूर किसी कोने में पटक दिए जायेंगे तो आपको बहुत परेशानी हो जायेगी. समझदारी इसी में है कि इसपर हस्ताक्षर कर दीजिये. मज़े से रहिये और हमें भी रहने दीजिये."

 

निदेशक महोदय ने काँपते हाथों से लिस्ट पर हस्ताक्षर कर दिए. उनकी आंखों के आगे कई चेहरे तैर गए, जो न जाने कितनी उम्मीदें लेकर उनके पास आए थे और जिनको उसने स्थानांतरण का पूरा आश्वासन दे रखा था.

 

लिस्ट जारी होने के बाद पूरे विभाग में यह ख़बर फ़ैल गयी कि मंत्री जी ने स्थानान्तरणों के मामले में पूरी पारदर्शिता एवं ईमानदारी बरती थी पर इस नवनियुक्त भ्रष्ट अफसर ने उनकी एक न सुनी और घूस खाकर सुविधाजनक स्थान लोगों को बाँट दिए

बुधवार, 10 जून 2009

लघु कथा .....मिस हॉस्टल

मिस हॉस्टल

 

आज हॉस्टल में बहुत गहमागहमी का वातावरण था क्योंकि आज समस्त वरिष्ठ छात्राओं के मध्य में से कोई एक मिस हॉस्टल का बहुप्रतीक्षित ताज पहनने वाली थी. विश्वस्तरीय सौंदर्य प्रतियोगिताओं की तर्ज पर कई राउंड हुए. अन्तिम राउंड प्रश्न-उत्तर का था, जिसके आधार पर मिस हॉस्टल का चुनाव किया जाना था.

 

प्रश्नोत्तर राउंड के उपरांत जिस छात्रा को गत्ते का बना चमकीला ताज पहनाया गया, उसने अपने मार्मिक उत्तर से सभी छात्राओं का दिल जीत लिया. उससे पूछा गया था,

"जाते समय दुनिया को क्या दे कर जाएँगी आप?"

"मैं अपनी आँखें एवं गुर्दे दान करके जाउंगी,ताकि ये किसी जरूरतमंद के काम आ सकें."

 

तालियों की गड़गडाहट के साथ सभी छात्राओं ने उसके साथ विभिन्न कोणों से फोटो खिंचवाए. पूरे हॉस्टल एवं कॉलेज में उसके महान विचारों की चर्चा हुई.

 

कुछ महीनों के पश्चात परीक्षाएं ख़त्म हुईं. सभी छात्राएं अपने-अपने घरों को लौटने लगीं. मिस हॉस्टल ने भी सामान बाँध लिया था और अपनी रूम-मेट के साथ पुरानी बातों को याद कर रही थी. बातों-बातों में वह आक्रोशित हो गयी और फट पड़ी,

"इतने सड़े हॉस्टल में दो साल गुज़ारना एक नर्क के समान था. टपकती हुई दीवारें, गन्दा खाना, पानी की समस्या, टॉयलेट की गन्दगी और सबसे खतरनाक ये लटकते हुए तार. उफ़, दोबारा कभी न आना पड़े ऐसे हॉस्टल में."

 

रूममेट ने हाँ में हाँ मिलाई तो मिस हॉस्टल का क्रोध और बढ़ गया.

 

"जब मैं यहाँ आयी थी तो इस कमरे में न कोई बल्ब था, न रॉड और न ही स्विच बोर्ड. वॉर्डेन से शिकायत की तो उसने कहा, "हम क्या करें, जितना यूनिवर्सिटी देगी उतना ही तो खर्च करेंगे".

 

"सब कुछ मुझे खरीदना पड़ा अपनी पॉकेटमनी से. इनको अपने साथ ले जा तो नहीं सकती पर ये स्विच उखाड़ कर और ये बल्ब फोड़कर नहीं जाउंगी तो मेरी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी".

 

मिस हॉस्टल अपने ऊपर नियंत्रण नहीं रख सकी. उसने एक कंकड़ उठाया और पहले बल्ब पर निशाना साधा, फ़िर रॉड को नेस्तनाबूद कर दिया. रोशनी चूर-चूर होकर फर्श पर बिखर गयी……..
 

सोमवार, 8 जून 2009

हल्द्वानी में काव्य की रसधार

कल रात अर्थात सात जून को मेरे शहर हल्द्वानी में दैनिक जागरण के सौजन्य से काव्य की रसधार बही थी. जिनमे जेमिनी हरयान्वी ,सुरेन्द्र दुबे ,मुनव्वर राणा, आसकरण अटल ,कीर्ति काले ,विष्णु सक्सेना ,संतोषानंद, सुरेश अवस्थी ने काव्य के रस में हल्द्वानी की जनता को सर से पाँव तक डूबा दिया था .रात तीन बजे घर लौटना हुआ .बीच में उठना चाहा तो हरिओम पवार जी के कड़कते फरमान ने सबके कदम रोक लिए .उन्होंने वीर रस में सराबोर होकर कड़कते सुर में हुक्म दिया की कोई नहीं हिलेगा ..और वाकई कोई नहीं हिला .और आज जब ये खबर सुनी की ओम प्रकाश आदित्य जी नहीं रहे तो सहसा विश्वास ही नहीं हुआ ..इसी हल्द्वानी के मंच पर वो पिछले साल अपनी उपस्थिति से हल्द्वानी की जनता को हास्य रस में डुबो  गए थे ..हमने लैपटॉप पर पूरा सम्मलेन रिकॉर्ड किया था ,और बाद में कई बार इसका आनंद  लिया था..आज भी यह हमारे पास सुरक्षित है .आदित्य जी चले गए लेकिन उनकी आवाज़ सदा हमारे पास मौजूद रहेगी ...
मैं  ओम प्रकाश जी और उनके साथ दिवंगत हुए कवियों को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करती हूँ .

लघुकथा - आउटगोइंग

सुदूर पहाड़ में रहकर खेतीबाड़ी करने वाले अपने अनपढ़ एवं वृद्ध माता पिता के हाथ में शहर जाकर बस गए लड़कों ने परमानेंट इन्कमिंग फ्री वाला मोबाइल फ़ोन पकड़ा दिया. साथ ही फ़ोन रिसीव करना व काटना भी अच्छी तरह से समझा दिया. बेटे चिंता से अब पूर्णतः मुक्त.

रविवार –
बड़ा लड़का "इजा प्रणाम, कैसी हो?"
इजा की आंखों में आंसू, 'कितना ख्याल है बड़के को हमारा, हर रविवार को नियम से फ़ोन करता है'.
"ठीक हूँ बेटा, तू कैसा है?'
"मैं ठीक हूँ, बाबू कहाँ हैं?"
"ले बाबू से बात कर ले, तुझे बहुत याद करते हैं".
"प्रणाम बाबू, कैसे हो?"
"जीते रहो".
"बाबू तबियत कैसी है?"
"सब ठीक चल रहा है ना? खेत ठीक हैं? सुना है इस साल फसल बहुत अच्छी हुई है. ऑफिस के चपरासी को भेज रहा हूँ, गेंहूँ, दाल, आलू और प्याज भिजवा देना. यहाँ एक तो महंगाई बहुत है दूसरे शुद्धता नहीं है. जरा इजा को फ़ोन देना."
"इजा, तेरी तबियत कैसी है?"
"बेटा, मेरा क्या है? तेरे बाबू की तबियत ठीक नहीं है तू...........". "बाबू इतनी लापरवाही क्यों करते हैं? ठीक से ओढ़ते नहीं होंगे. नहाते भी ठंडे पानी से ही होंगे. बुढापे में भी अपनी जिद थोड़े ही छोडेंगे. इजा, तू उनको तुलसी-अदरक की चाय पिलाती रहना, ठीक हो जायेंगे".
"पर मेरी.......".
"अच्छा इजा, अब फ़ोन रखता हूँ, अपना ख्याल रखना. फ़ोन में पैसे बहुत कम बचे हैं" कहकर बेटे ने फ़ोन काट दिया.

"अरे, असल बात तो मैं कहना ही भूल गई कि अब हम दोनों यहाँ अकेले नहीं रहना चाहते. आकर, हमें अपने साथ ले जाये. कैसी पागल हूँ मैं, सठिया गई हूँ शायद", माँ ने पिता कि ओर देख कर कहा तभी फ़ोन कि घंटी दुबारा बजी, 'शायद छोटू का होगा', दोनों की आंखों में चमक आ गई. "हेलो इजा, मैं छोटू, अभी-अभी दद्दा के घर आया हूँ. तू जब दद्दा के लिए सामान भेजेगी, मेरे लिए भी भिजवा देना. हमारी भी इच्छा है कि गाँव का शुद्ध अनाज खाने को मिले", कहकर छोटू ने फ़ोन काट दिया.

माँ ने जब उसका नम्बर मिलाया तो आवाज़ आई, 'इस नम्बर पर आउटगोइंग की सुविधा उपलब्ध नहीं है'.

शनिवार, 6 जून 2009

इतनी बड़ी संख्या में बच्चे फ़ेल क्यूँ हुए ....एक विश्लेषण

साथियों ...इस वर्ष यू.पी. और उत्तराखंड बोर्ड का रिजल्ट बहुत खराब आया ...बहुत बच्चे फ़ेल हुए ...तो मैंने इस विषय पर बहुत खोज बीन करके कुछ कारणों का पता लगाया , जो इस प्रकार हैं ....
 
नंबरों का है खेल निराला
जो कुछ भी देखा हमने
फ़ौरन कागज़ पर लिख डाला
 
राष्ट्र भाषा  की टेबल पर
बैठे थे पी.एच.डी. डॉक्टर
देखी जब कॉपी पहली
आत्मा उनकी दहली
नैनों से फूटी चिंगारी, बोले -
बर्दाश्त नहीं कर पाउँगा
मातृभाषा का अपमान
चन्द्रबिन्दु नहीं एक भी
इसके भविष्य पर
आज से पूर्ण विराम.
 
टेबल पर गणित की
बैठीं थीं एक मैडम जी
साथ वाली के कान  में
बोली चुपके चुपके
पिछले साल कॉपी के पैसे
मिले नहीं अभी तक मुझको
बच्चे आ गए होंगे घर में
जीरो घुमाओ जल्दी से
घर को अपने खिसको
 
अगली टेबल  पर था
 सामाजिक विज्ञान
जिसे जांच रहे थे
एक वृद्ध श्रीमान 
आँखों से दिखता था कम
घर में थे जिनके लाखों ग़म
जवान बेटा बेरोजगार
बड़ी बेटी पैंतीस के पार
रोती थी पत्नी जार जार
किस्मत फूट गयी
शादी करके मास्टर से
किसी क्लर्क से होती शादी
रहती होती ठाठ  से
देने थे नम्बर साठ
कलम से निकले केवल आठ
 
अंग्रेजी की टेबल पर
गज़ब हुआ था हाल
पहली कॉपी में देखा
हैस  की जगह लगा था हैव
बोले मास्टर दैव! दैव !
ग्रामर पर ऐसा डंडा
घुमाऊंगा जीरो अंडा
जिसने मुझको धन, यश और
सम्मान दिया
उसका इसने अपमान किया
प्रेजेंट की जगह पर पास्ट
इसके फ्यूचर  को गेट लोस्ट
 
जहां जाँच रही थी
कॉपी विज्ञान की
वहां बहस गर्म थी
छठे वेतनमान की
सरकार ने बनाया मूर्ख  
सबकी आँखें हो गईं सुर्ख
ग्रेड पे तो दिया नहीं
झुनझुना पकड़ा दिया
इतनी कम तनखाह पर
कर दिया हमको फिक्स
ट्वेंटी नंबर  के इस प्रश्न पर
यह लो पूरे सिक्स
 
टेबल  पर कोमर्स की  
अर्थ का था बोलबाला
मिस्टर शर्मा से
कह रहे थे मिस्टर काला
एक कॉपी के रूपये चार
इनका क्या डालूं आचार
अजीब है यह सरकार
कोर्से लगाया है सी.बी. एस.ई.
और पैसे देने में इतनी कंजूसी
एक घंटे में कॉपी देखूंगा पूरी सौ
हड़बडी में हुई गड़बडी
देने थे पंद्रह , नम्बर निकले केवल नौ
 
और जहाँ खुल रहा था इतिहास
क्या सुनाऊं उसकी बात
जांच रहे थे मिस्टर आदिनाथ
बोले -
कितना सुहाना ,था वो ज़माना
जब सेकंड  आना
बात थी बड़े ही शान की
फर्स्ट जो आ गया कोई बरसों में
कथा न पूछो उसके अभिमान की
और आज अस्सी परसेंट
फिर भी बच्चे रहते टेंस
ये भी कोई बात हुई
जहाँ देने थे पूरे बीस
दस में ही अटक गयी सुई .....
 
 
 
 

गुरुवार, 4 जून 2009

मेरे दर्द -ऐ- दाँत का नहीं कोई इलाज

साथियों ... इन दिनों दाँत के दर्द से परेशान हूँ ... उम्र है कि निकली जा रही है और हमारी अक्ल दाड़ है कि निकलने का नाम ही नहीं ले रही है ... तो इसी विषय पर हमने कुछ लिख डाला ... आप लोग कंफ्युजियाईएगा मत. इस अ[कविता] में अपने वो परिचित हम खुद ही हैं ... हर आम औरत की तरह हम, जब तक स्थिति बेकाबू नहीं हो जाती, डॉक्टर और दवाईयों से परहेज करते है ...

 

हमारे एक परिचित हैं

जो दाँत के दर्द से पीड़ित हैं  

दर्द ना हो तो उनका

जीना ही बेकार है

दर्द के आस पास ही

उनका सारा संसार है

 

गर दाँत दर्द से मुक्ति मिले तो  

कमर दर्द को रोते हैं

सुनने  वालों को अपना कष्ट बताकर  

उनका सुख चैन छीनकर

नींदों को उड़ाकर

खुद लम्बी तान कर कर सोते हैं

 

  दर्द में जीने वालों

इसका मज़ा उठाने वालों

दर्द में डूबे दिनों

कष्टों में भीगी रातों

हर मौसम की दर्द भरी सौगातों

तुम्हारे सामने

अच्छी अच्छे घबरा जाते हैं

तुम्हारा किस्सा ऐ दर्द सुनकर

स्वस्थ खुद को

अपराधी पाते हैं

 

आप इतने दर्द में भी जी लेते हैं

बड़े गज़ब की बात है

नोबेल के ना सही मान्यवर

भारत रत्न के तो

अवश्य ही पात्र हैं...

मंगलवार, 2 जून 2009

एक अभिनेत्री का बेबाक इंटरव्यू

साथियों ....जब भी मैं अखबार में या टेलिविज़न में फिल्मी अभिनेत्रियों के इंटरव्यू पढ़ती या देखती हूँ , मुझे बहुत हंसी आती है ,कोई भी अभिनेत्री अपने मन की बात खुले दिल से नहीं कह पाती है , साथियों, अगर वो अपने मन की बात खुले दिल से कह पाती तो जो इंटरव्यू सामने आता वो इस प्रकार होता .....

प्रश्न .............

हिट फिल्म नहीं एक भी

खाते में आपके

फ्लॉप ही फ्लॉप का डेरा है

उत्तर ......

फर्क नहीं पड़ता मुझको

खाते में मेरे .

पैसा लेकिन पूरा है

और

पूरी मेहनत से मैंने

अपना काम किया

शूटिंग हो सुबह तो

जाने में शाम किया

प्रोड्यूसर , डाइरेक्टर

की तुम बात ही छोड़ो

सारी यूनिट का

चैन हराम किया .

प्रश्न ..................

कैसे है त्वचा आपकी

आज भी इतनी मदभरी

उत्तर .....

विदेश जाती दो बार साल में

करवाती हूँ सर्जरी

एक भी अंग नहीं ओरिजनल

सब पर है प्लास्टिक चढ़ी

प्रश्न .....................

इतनी दुबली पतली काया

है यह कैसी माया

छिपा है इसके पीछे जो राज़

बतला भी दो आज

क्या पसंद है खाने में

किस चीज़ पे करती हो एतराज़ ?

उत्तर ...............................

करना बस तुम एक ही काम

खाने का मेरे सामने

कभी ना लेना नाम

टपकने लगती है मेरी लार

जीना लगता है बेकार

दिन रात हवा को

सूँघा करती हूँ

जिंदा हूँ मैं पानी पर

खाना खाए मुद्दत हो गयी

फल फूल रहा नौकरानी का घर

प्रश्न .................................

टिकी हुईं हैं इंडस्ट्री में

है क्या कोई गोडफादर ?

उत्तर ...............................

कुछ डॉग जैसे लोगों को

सुबह शाम कहा फादर

टिकी हुई हूँ इसीलिए बिरादर

प्रश्न .......................................

जो बाद आपके आईं थीं

आगे आगे चलीं गईं

आप नंबर एक से सीधे

लाइन में पीछे आ गईं

उत्तर ...............................

नंबर की इस दौड़ में

मुझे तनिक नहीं विश्वास

सबसे हटके हूँ जनाब

हर अदा है मेरी ख़ास

जितने बॉय फ्रेंड थे उनके

सबके सब हैं मेरे पास

प्रश्न ...............................

सुना है आजकल अफेअर आपका

चिंटू के साथ है

उत्तर .....................

ये बिल्कुल झूठी बात है

बस अच्छे दोस्त हैं हम

जो रहते साथ हैं

साथ रहने में बन्धु

सुविधा ही सुविधा

जितने भी आते हैं घर में बिल

कर लेते हैं आधा आधा
प्रश्न ...............................
अंग प्रदर्शन के बारे में
क्या है आपका ख्याल ?
उत्तर .............................
फिर पूछा तुमने
बेहूदा सा सवाल
एक लिमिट के बाहर
जा कभी ना पाउंगी
जब मारूंगी मक्खी मच्छर
तब इस बयान से मुकर जाउंगी
प्रश्न ..........................................

अंतिम सवाल है आखिरकार

हो गईं हैं पैंतीस के पार

कब बजेगी शहनाई आपके द्वार

और

कब बसेगा आपका घर- बार
उत्तर .................................

पूछ रहे हो ऐसा सवाल

बड़े बेवकूफ हो पत्रकार

सारी दुनिया देख रही है

बस तुमको ही नहीं दिखता

ऐसे प्रश्नों से बचाए खुदा

शादी की ज़रुरत क्यूँ हो उसको

जो बिन शादी के हो शादीशुदा ........................