मंगलवार, 30 जून 2009
क्या चुगलखोरी करना आसान काम है ??
शनिवार, 27 जून 2009
कुछ चिरकुट से शेर .....
शुक्रवार, 26 जून 2009
चाँद क्यूँ लौट आया ....एक खुफिया रिपोर्ट
बुधवार, 24 जून 2009
बहुत दिनों बाद .........फिर से.कुछ क्षणिकाएँ .......
सोमवार, 22 जून 2009
पीतल मफतलाल और दुखवंत सिंह का दुःख ....
शनिवार, 20 जून 2009
क्यूँ मक्खी ? क्या समझ के आई थी
बुधवार, 17 जून 2009
मेरी महबूब कंप्यूटर छोड़ के मिला कर मुझसे ...
सोमवार, 15 जून 2009
आखिरकार सच्चाई उगलवा ही ली .....लघु कथा
सच
"यह मेरे साइन नहीं हैं, बोलो तुमने ही किए हैं ना मेरे साइन". सुमन ने कड़क कर पूछा. "नहीं मैडम". तथाकथित अंग्रेज़ी माध्यम में, कक्षा तीन में पढने वाली रेखा ने डरते हुए जवाब दिया. "झूठ बोलती हो, हाथ उल्टा करके मेज़ पर रखो". रेखा ने सहमते हुए हाथ आगे किए. 'तडाक', सुमन ने लकड़ी के डस्टर से उसके कोमल हाथों पर प्रहार किया. रेखा रोने लगी. "अगर तुम सच बोल दोगी तो मैं तुम्हें छोड़ दूंगी. "बोलो, कह रही किए हैं ना." "नहीं मैडम, मैं सच कह रही हूँ." सुमन गुस्से से पागल हो गई. 'तडाक, तडाक, तडाक, तडाक'. सुमन ने उन मासूम हाथों पर अनगिनत प्रहार कर डाले. रेखा से दर्द सहन नहीं हुआ तो उसने स्वीकार कर लिया कि वह साइन उसने ही किए थे. सुमन के चेहरे पर विजयी मुस्कराहट तैर गयी. 'आखिरकार, सच उगलवा ही लिया.'
शुक्रवार, 12 जून 2009
एक मैं और एक तू
तू वसुंधरा का महल
मैं नेपाल की राजशाही
तू प्रचंड कमल दहल
मैं कुप्पी मिट्टी तेल वाली
तू लुमिनस का इनवर्टर
मैं प्रायमरी का मिड डे मील
तू मेक्डोनाल्ड का टेस्टी बर्गर
मैं निरमा का वाशिंग पाउडर
तू सर्फ़ का अल्ट्रा व्हाइट
मैं पैदल यात्री बद्रीनाथ का
तू हवाई जहाज़ की सीधी फ्लाईट
मैं माँ के हाथ की सूखी रोटी
तू फाइव स्टार की तंदूरी
तू बंद पेकेट का कुरकुरा
मैं छत पर सूखी चावल की कचरी
मैं पानी महापालिका का
तू मिनरल वाली बिसलेरी
मैं घर के टूटे बेल का शरबत
तू कोला-पेप्सी सोडा वाली
तू बेंकट हौलों की शेहनाई
मैं गरीब मास्टर का टूशन
तू कोचिंग की अंधी कमाई
तू सावन की पहली बारिश
मैं उसके बाद की दीन दशा
मैं दक्षिणा वाला पंडित
तू पैकेज वाली पूजा
मैं पूजा-पाठ और वास्तु शास्त्र
तू फेंग शुई है चीन की
मैं बर्तन बाज़ार की टन-टन
तू चुप्पी है शोरूमों की
तू खबरी चैनेल की ब्रेकिंग न्यूज़
मैं दूरदर्शन का कृषि दर्शन
मैं यु.पी.बोर्ड की पढ़ाई
तू सी.बी.एस.ई.का पैटर्न
मैं बोर क्रिकेट फिफ्टी-फिफ्टी का
तू ट्वेंटी-ट्वेंटी का सम्मोहन
मैं लोकल कवि और शायर की रचना
गुरुवार, 11 जून 2009
.लघु कथा ......लिस्ट
लिस्ट
"इस बार सभी प्रकार के स्थानान्तरणों में पूर्णतः ईमानदारी बरती जा रही है. हम चाहते हैं कि हमारा सिस्टम एकदम पारदर्शी हो. पिछली सरकारों ने स्थानांतरण को एक व्यापार बना रखा था, परन्तु अब ऐसा नहीं होगा. हमने नवनियुक्त निदेशक से भी कह दिया है कि किसी भी प्रकार के दबाव में न आयें और पूरी ईमानदारी से अपना काम करें".
मंत्री जी ने अख़बारों में लंबे-लंबे बयान दिए. कर्मचारियों के मन में कुछ उम्मीद जगी. नवनियुक्त निदेशक ख़ुशी से फूला न समाया. पहली ही नियुक्ति में उसे अपनी ईमानदारी एवं कर्मठता को सिद्ध करने का मौका मिलेगा. घर आकर अपने बीमार पिता के पास आकर उसने अपनी ख़ुशी का इज़हार किया.
"पिताजी,देखना मैं कैसे इस भ्रष्ट विभाग को ठीक करता हूँ. मंत्री जी भी मेरे साथ हैं. उन्होंने कहा है कि मेरे काम में कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा".
"अच्छा .....". पिताजी की आँखें आश्चर्य से फैल गयीं.
निदेशक ने प्रार्थनापत्रों की भली प्रकार जाँच करके एक अन्तिम लिस्ट तैयार कर ली. अगले ही दिन मंत्री जी ने उन्हें अपने ऑफिस में बुलवाया.
"सुना है स्थानांतरण लिस्ट बन गयी है, ज़रा दिखाएंगे".
"जी सर. आपके कथनानुसार पूरी ईमानदारी से लिस्ट बनाई है", कहकर उन्होंने लिस्ट मंत्री जी की ओर बढ़ा दी.
मंत्री जी एक नज़र लिस्ट पर दौड़ाई और एक किनारे कर दी. "ऐसा है महोदय, हमें अपने लोगों का भी ख्याल रखना पड़ता है. एक लिस्ट हमने भी बनाई है, यही फाइनल होगी. आप इस पर हस्ताक्षर कर दीजिये, इसे कल ही जारी करना है".
निदेशक को जैसे काठ मार गया हो. "परन्तु सर,........."
"किंतु, परन्तु मत लगाइए. आपको क्या फ़र्क पड़ता है, लिस्ट कोई सी भी हो."
"लेकिन ज़रूरतमंद लोग इस साल भी रह जायेंगे. उन्होंने इस साल बहुत उम्मीद लगा रखी है."
"देखिये श्रीमान, हमें पता है की आपके पिताजी बीमार हैं. माताजी भी स्वर्ग सिधार गई हैं. ख्वामखाह दूर किसी कोने में पटक दिए जायेंगे तो आपको बहुत परेशानी हो जायेगी. समझदारी इसी में है कि इसपर हस्ताक्षर कर दीजिये. मज़े से रहिये और हमें भी रहने दीजिये."
निदेशक महोदय ने काँपते हाथों से लिस्ट पर हस्ताक्षर कर दिए. उनकी आंखों के आगे कई चेहरे तैर गए, जो न जाने कितनी उम्मीदें लेकर उनके पास आए थे और जिनको उसने स्थानांतरण का पूरा आश्वासन दे रखा था.
लिस्ट जारी होने के बाद पूरे विभाग में यह ख़बर फ़ैल गयी कि मंत्री जी ने स्थानान्तरणों के मामले में पूरी पारदर्शिता एवं ईमानदारी बरती थी पर इस नवनियुक्त भ्रष्ट अफसर ने उनकी एक न सुनी और घूस खाकर सुविधाजनक स्थान लोगों को बाँट दिए
बुधवार, 10 जून 2009
लघु कथा .....मिस हॉस्टल
मिस हॉस्टल
आज हॉस्टल में बहुत गहमागहमी का वातावरण था क्योंकि आज समस्त वरिष्ठ छात्राओं के मध्य में से कोई एक मिस हॉस्टल का बहुप्रतीक्षित ताज पहनने वाली थी. विश्वस्तरीय सौंदर्य प्रतियोगिताओं की तर्ज पर कई राउंड हुए. अन्तिम राउंड प्रश्न-उत्तर का था, जिसके आधार पर मिस हॉस्टल का चुनाव किया जाना था.
प्रश्नोत्तर राउंड के उपरांत जिस छात्रा को गत्ते का बना चमकीला ताज पहनाया गया, उसने अपने मार्मिक उत्तर से सभी छात्राओं का दिल जीत लिया. उससे पूछा गया था,
"जाते समय दुनिया को क्या दे कर जाएँगी आप?"
"मैं अपनी आँखें एवं गुर्दे दान करके जाउंगी,ताकि ये किसी जरूरतमंद के काम आ सकें."
तालियों की गड़गडाहट के साथ सभी छात्राओं ने उसके साथ विभिन्न कोणों से फोटो खिंचवाए. पूरे हॉस्टल एवं कॉलेज में उसके महान विचारों की चर्चा हुई.
कुछ महीनों के पश्चात परीक्षाएं ख़त्म हुईं. सभी छात्राएं अपने-अपने घरों को लौटने लगीं. मिस हॉस्टल ने भी सामान बाँध लिया था और अपनी रूम-मेट के साथ पुरानी बातों को याद कर रही थी. बातों-बातों में वह आक्रोशित हो गयी और फट पड़ी,
"इतने सड़े हॉस्टल में दो साल गुज़ारना एक नर्क के समान था. टपकती हुई दीवारें, गन्दा खाना, पानी की समस्या, टॉयलेट की गन्दगी और सबसे खतरनाक ये लटकते हुए तार. उफ़, दोबारा कभी न आना पड़े ऐसे हॉस्टल में."
रूममेट ने हाँ में हाँ मिलाई तो मिस हॉस्टल का क्रोध और बढ़ गया.
"जब मैं यहाँ आयी थी तो इस कमरे में न कोई बल्ब था, न रॉड और न ही स्विच बोर्ड. वॉर्डेन से शिकायत की तो उसने कहा, "हम क्या करें, जितना यूनिवर्सिटी देगी उतना ही तो खर्च करेंगे".
"सब कुछ मुझे खरीदना पड़ा अपनी पॉकेटमनी से. इनको अपने साथ ले जा तो नहीं सकती पर ये स्विच उखाड़ कर और ये बल्ब फोड़कर नहीं जाउंगी तो मेरी आत्मा को शान्ति नहीं मिलेगी".
सोमवार, 8 जून 2009
हल्द्वानी में काव्य की रसधार
लघुकथा - आउटगोइंग
सुदूर पहाड़ में रहकर खेतीबाड़ी करने वाले अपने अनपढ़ एवं वृद्ध माता पिता के हाथ में शहर जाकर बस गए लड़कों ने परमानेंट इन्कमिंग फ्री वाला मोबाइल फ़ोन पकड़ा दिया. साथ ही फ़ोन रिसीव करना व काटना भी अच्छी तरह से समझा दिया. बेटे चिंता से अब पूर्णतः मुक्त.
रविवार –
बड़ा लड़का "इजा प्रणाम, कैसी हो?"
इजा की आंखों में आंसू, 'कितना ख्याल है बड़के को हमारा, हर रविवार को नियम से फ़ोन करता है'.
"ठीक हूँ बेटा, तू कैसा है?'
"मैं ठीक हूँ, बाबू कहाँ हैं?"
"ले बाबू से बात कर ले, तुझे बहुत याद करते हैं".
"प्रणाम बाबू, कैसे हो?"
"जीते रहो".
"बाबू तबियत कैसी है?"
"सब ठीक चल रहा है ना? खेत ठीक हैं? सुना है इस साल फसल बहुत अच्छी हुई है. ऑफिस के चपरासी को भेज रहा हूँ, गेंहूँ, दाल, आलू और प्याज भिजवा देना. यहाँ एक तो महंगाई बहुत है दूसरे शुद्धता नहीं है. जरा इजा को फ़ोन देना."
"इजा, तेरी तबियत कैसी है?"
"बेटा, मेरा क्या है? तेरे बाबू की तबियत ठीक नहीं है तू...........". "बाबू इतनी लापरवाही क्यों करते हैं? ठीक से ओढ़ते नहीं होंगे. नहाते भी ठंडे पानी से ही होंगे. बुढापे में भी अपनी जिद थोड़े ही छोडेंगे. इजा, तू उनको तुलसी-अदरक की चाय पिलाती रहना, ठीक हो जायेंगे".
"पर मेरी.......".
"अच्छा इजा, अब फ़ोन रखता हूँ, अपना ख्याल रखना. फ़ोन में पैसे बहुत कम बचे हैं" कहकर बेटे ने फ़ोन काट दिया.
"अरे, असल बात तो मैं कहना ही भूल गई कि अब हम दोनों यहाँ अकेले नहीं रहना चाहते. आकर, हमें अपने साथ ले जाये. कैसी पागल हूँ मैं, सठिया गई हूँ शायद", माँ ने पिता कि ओर देख कर कहा तभी फ़ोन कि घंटी दुबारा बजी, 'शायद छोटू का होगा', दोनों की आंखों में चमक आ गई. "हेलो इजा, मैं छोटू, अभी-अभी दद्दा के घर आया हूँ. तू जब दद्दा के लिए सामान भेजेगी, मेरे लिए भी भिजवा देना. हमारी भी इच्छा है कि गाँव का शुद्ध अनाज खाने को मिले", कहकर छोटू ने फ़ोन काट दिया.
माँ ने जब उसका नम्बर मिलाया तो आवाज़ आई, 'इस नम्बर पर आउटगोइंग की सुविधा उपलब्ध नहीं है'.
शनिवार, 6 जून 2009
इतनी बड़ी संख्या में बच्चे फ़ेल क्यूँ हुए ....एक विश्लेषण
गुरुवार, 4 जून 2009
मेरे दर्द -ऐ- दाँत का नहीं कोई इलाज
साथियों ... इन दिनों दाँत के दर्द से परेशान हूँ ... उम्र है कि निकली जा रही है और हमारी अक्ल दाड़ है कि निकलने का नाम ही नहीं ले रही है ... तो इसी विषय पर हमने कुछ लिख डाला ... आप लोग कंफ्युजियाईएगा मत. इस अ[कविता] में अपने वो परिचित हम खुद ही हैं ... हर आम औरत की तरह हम, जब तक स्थिति बेकाबू नहीं हो जाती, डॉक्टर और दवाईयों से परहेज करते है ...
हमारे एक परिचित हैं
जो दाँत के दर्द से पीड़ित हैं
दर्द ना हो तो उनका
जीना ही बेकार है
दर्द के आस पास ही
उनका सारा संसार है
गर दाँत दर्द से मुक्ति मिले तो
कमर दर्द को रोते हैं
सुनने वालों को अपना कष्ट बताकर
उनका सुख चैन छीनकर
नींदों को उड़ाकर
खुद लम्बी तान कर कर सोते हैं
ऐ दर्द में जीने वालों
इसका मज़ा उठाने वालों
दर्द में डूबे दिनों
कष्टों में भीगी रातों
हर मौसम की दर्द भरी सौगातों
तुम्हारे सामने
अच्छी अच्छे घबरा जाते हैं
तुम्हारा किस्सा ऐ दर्द सुनकर
स्वस्थ खुद को
अपराधी पाते हैं
आप इतने दर्द में भी जी लेते हैं
बड़े गज़ब की बात है
नोबेल के ना सही मान्यवर
भारत रत्न के तो
अवश्य ही पात्र हैं...
मंगलवार, 2 जून 2009
एक अभिनेत्री का बेबाक इंटरव्यू
साथियों ....जब भी मैं अखबार में या टेलिविज़न में फिल्मी अभिनेत्रियों के इंटरव्यू पढ़ती या देखती हूँ , मुझे बहुत हंसी आती है ,कोई भी अभिनेत्री अपने मन की बात खुले दिल से नहीं कह पाती है , साथियों, अगर वो अपने मन की बात खुले दिल से कह पाती तो जो इंटरव्यू सामने आता वो इस प्रकार होता .....
प्रश्न .............
खाते में आपके
फ्लॉप ही फ्लॉप का डेरा है
उत्तर ......
फर्क नहीं पड़ता मुझको
खाते में मेरे .
पैसा लेकिन पूरा है
और
पूरी मेहनत से मैंने
अपना काम किया
शूटिंग हो सुबह तो
जाने में शाम किया
प्रोड्यूसर , डाइरेक्टर
की तुम बात ही छोड़ो
सारी यूनिट का
चैन हराम किया .
प्रश्न ..................
कैसे है त्वचा आपकी
आज भी इतनी मदभरी
उत्तर .....
विदेश जाती दो बार साल में
करवाती हूँ सर्जरी
एक भी अंग नहीं ओरिजनल
सब पर है प्लास्टिक चढ़ी
प्रश्न .....................
इतनी दुबली पतली काया
है यह कैसी माया
छिपा है इसके पीछे जो राज़
बतला भी दो आज
क्या पसंद है खाने में
किस चीज़ पे करती हो एतराज़ ?
उत्तर ...............................
करना बस तुम एक ही काम
खाने का मेरे सामने
कभी ना लेना नाम
टपकने लगती है मेरी लार
जीना लगता है बेकार
दिन रात हवा को
जिंदा हूँ मैं पानी पर
खाना खाए मुद्दत हो गयी
फल फूल रहा नौकरानी का घर
प्रश्न .................................
टिकी हुईं हैं इंडस्ट्री में
है क्या कोई गोडफादर ?
उत्तर ...............................
कुछ डॉग जैसे लोगों को
सुबह शाम कहा फादर
टिकी हुई हूँ इसीलिए बिरादर
प्रश्न .......................................
जो बाद आपके आईं थीं
आगे आगे चलीं गईं
आप नंबर एक से सीधे
लाइन में पीछे आ गईं
उत्तर ...............................
नंबर की इस दौड़ में
मुझे तनिक नहीं विश्वास
सबसे हटके हूँ जनाब
हर अदा है मेरी ख़ास
जितने बॉय फ्रेंड थे उनके
सबके सब हैं मेरे पास
प्रश्न ...............................
सुना है आजकल अफेअर आपका
चिंटू के साथ है
उत्तर .....................
ये बिल्कुल झूठी बात है
बस अच्छे दोस्त हैं हम
जो रहते साथ हैं
साथ रहने में बन्धु
सुविधा ही सुविधा
जितने भी आते हैं घर में बिल
अंतिम सवाल है आखिरकार
हो गईं हैं पैंतीस के पार
कब बजेगी शहनाई आपके द्वार
और
पूछ रहे हो ऐसा सवाल
बड़े बेवकूफ हो पत्रकार
सारी दुनिया देख रही है
बस तुमको ही नहीं दिखता
ऐसे प्रश्नों से बचाए खुदा
शादी की ज़रुरत क्यूँ हो उसको
जो बिन शादी के हो शादीशुदा ........................