रिज़ल्ट बनाना बहुत दुष्कर कार्य है | यह लगता बहुत आसान है | इसको बनाने में उतनी ही कमरतोड़ मेहनत और जोड़ - तोड़ और दांव पेचों की ज़रुरत पड़ती है जितनी किसी नेता को गद्दी पाने के लिए करनी पड़ती है | बच्चे तो परीक्षा देकर छुट्टी पा लेते हैं लेकिन हमारी असली परीक्षा की घड़ी अब शुरू होती है | कक्षा के सारे बच्चे पास होकर अगली कक्षा में चले जाएं, यही हमारे लिए कई कुम्भ स्नानों के बराबर होता है |
इन दिनों मैंने शून्य के साथ विभिन्न प्रयोग किये | महात्मा गांधी ने सत्य के साथ प्रयोग किये | अगर वे सरकारी स्कूल के मास्टर होते तो कापियों में मुंह चिढ़ा रहे शून्य में ही खोए रहते | देश को आजादी की चिन्ता शून्य मे खो जाती |
शून्य को कैसे अंकों में बदला जाए, वे रात दिन इसी चिंता में रहते | सत्य की ओर झाँकने की उन्हें फुर्सत ही नहीं मिलती, और ना ही वे अपने सत्य के प्रयोगों के कारण लोगों की आलोचनाओं के शिकार होते | गांधी जी को सत्य के प्रयोगों में उतनी मुश्किलें पेश नहीं आई होंगी जितनी हमें शून्य के प्रयोगों में आती है | उन्हें सत्य के प्रयोगों में नौकरी जाने का खतरा नहीं था, क्यूंकि वे सरकारी नौकरी नहीं करते थे | इसीलिए उन्होंने निडर होकर इसके प्रयोग किये | जबकि शून्य के प्रयोगों में पकडे जाने पर कभी भी नौकरी जा सकती है |
स्वामी विवेकानंद सदैव मेधावी विद्यार्थी रहे, इसीलिये उनके परीक्षाफल में मास्टर शून्य से सम्बंधित प्रयोग नहीं कर पाए होंगे, अन्यथा शिकागो में भाषण के दौरान वे शून्य की इस अद्भुत महिमा का ज़िक्र ज़रूर करते |
शून्य का आविष्कार भारतीयों की देन थी | कहा भी गया है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है | हमारे प्रमोशन, इन्क्रीमेंट, सी.आर., अफसरों की फटकार इन सब की मिली जुली आवश्यकताओं ने शून्य से अंक निकालने की प्रणाली का आविष्कार किया | हम भारतीय लोग आदि काल से ही दूरदर्शी हुआ करते थे | भविष्य के गर्भ में क्या छिपा हुआ है, यह भी देख सकते थे | शून्य का आविष्कार गणितज्ञों ने भविष्य में हम मास्टरों पर आने वाले परीक्षाफल सम्बंधित संकट से निपटने के लिए किया गया होगा | शून्य की खोज करने के लिए हम भारतीय अपनी पीठ भले ही ठोक लें, लेकिन शून्य में से अंक निकालने की कला सरकारी स्कूल के मास्टरों ने ही ईजाद की है, जिसके लिए दुनिया को हमारा एहसानमंद होना चाहिए | शून्य से बिना कोई सबूत छोड़े हुए आसानी से हम रिज़ल्ट की आवश्यकतानुसार 6 , 8 , 9 बना ले जाते हैं शून्य का सदैव जोड़े के रूप में होना यही दर्शाता है कि अंकों को जोड़े के रूप में लिखने की इस प्रणाली प्रणाली का आविष्कार भी गणितज्ञों ने हम मास्टरों की सुविधा के लिए किया होगा ताकि हम बिना सबूत छोड़े शून्य से 88 से लेकर 99 तक बना लें जाएं |
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हम सब शून्य से आए हैं, और एक दिन शून्य में ही चले जाएंगे, यह जानते हुए भी हम बच्चों की खाली कापियां देखकर संज्ञाशून्य हो जाते हैं. लोग यह शंका ज़ाहिर कर सकते हैं कि कापियों में शून्य क्यूँ आता है ? शून्य आने के दो ही कारण होते हैं-
जब बच्चे पढना चाहते हैं तब हम शून्य में ताकते हैं और डी.ऐ., अथवा एरियर की चिंता करते हैं | कभी कभार जब हमारा पढ़ाने का मूड होता है तो तब बच्चे शून्य में खो जाते हैं. जिसका नतीजा परीक्षा की कापियों में शून्य के दर्शन के रूप में सामने आता है |
कई लोग यह पूछ सकते है कि सरकारी स्कूलो के बच्चो के ही शून्य क्यूँ आते हैं? जबकि पब्लिक स्कूलों के बच्चे सौ प्रतिशत तक अंक ले आते हैं | इसका कारण यह है कि सरकारी स्कूल का बच्चा दो और दो कितना होता है यह भले ही स्कूली जीवन की समाप्ति तक ना सीख पाए, लेकिन यह पहले ही साल सीख जाता है कि दुनिया की कोई ताकत मुझे फेल नहीं कर सकती | सरकार का यही आदेश है | कई लोगों का यह भी मानना है की सारे बच्चों को पास किया जाना गलत है | उनका कहना है कि जो बच्चा पहाड़ तोड़ने के लिए बना है उसे पहाड़े नहीं रटाने चाहिए |मेरा कहना है की हम बच्चों के डॉक्टर और इंजीनियर बनने के रास्ते में रोड़े अटकाने वाले कौन होते हैं? जब सब कुछ पूर्वनिर्धारित है तो हम क्यूँ बच्चों को फेल करने का पाप करें?
लोग प्रश्न उठाते हैं की जब जब मास्टरों की तनखाह बढ़ती है , तब तब शिक्षा का स्तर गिरता है | इस विषय के बारे में मेरा यही कहना है की तनखाह को आदत से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए | कक्षाओं में जाकर ना पढ़ाना हमारी आदत है, जिसका रूपये - पैसों से कोई लेना देना नहीं है |
शून्य में अभी बहुत संभावनाएं हैं | कई तरह के आविष्कार शून्य के गर्भ में छिपे हैं | अगर सरकारी स्कूल ना हों तो शून्य के प्रयोगों की सम्भावना ख़त्म हो जाएगी | इसीलिये मैं शिक्षा के निजी हाथों में जाने का विरोध करती हूँ |
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शून्य पर चिंतन बाह्य शून्य की अपेक्षा अन्दर के
जवाब देंहटाएंशून्य को जानना आवश्यक है उस पर ध्यान जाने
के बाद बहुत कुछ शून्य हो जाता है उस पर ध्यान
न जाने से बाद में शून्य ही मिलता है . वहाँ कोई
मास्टर नहीं सब छात्र हीं हैं उस तरफ़ ध्यान देने
से बहुत सा कचरा खत्म हो जायेगा .
शून्य में से शून्य भी हमारी शिक्षा प्रणाली का एक जबरदस्त कमाल है। सुबह सुबह आज एक अच्छा व्यंग्य पढ़ने को मिला। शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंप्रमोद ताम्बट
भोपाल
www.vyangya.blog.co.in
www.vyangyalok.blogspot.com
कक्षाओं में जाकर ना पढ़ाना हमारी आदत है, जिसका रूपये - पैसों से कोई लेना देना नहीं है--ये तो अध्यात्मिक बात हो गई. :)
जवाब देंहटाएंखैर, आप शून्य से दूरी बनाये रखिये..नौकरी है तो जहान है.
मस्त लेखन!
badhiya post
जवाब देंहटाएंअगर सरकारी स्कूल ना हों तो शून्य के प्रयोगों की सम्भावना ख़त्म हो जाएगी |
जवाब देंहटाएंशेफाली जी
मै भी दिल्ली के सरकारी स्कूल में अंग्रेजी का अध्यापक हूँ (शायद आप भी अंग्रेजी अध्यापिका है, हैं ना)
शून्यात्मक संवेदना अपरिमित ताकत रखती है. शून्य ही तो है जो अशून्य को महसूस करने की ताकत देती है.
वैसे कहाँ शून्य में भटक गये. डी ए और ए सी पी की बात करें तो कैसा हो.
झकास पोस्ट
शून्य पर आपके प्रयोग बहुत रोचक हैं .आज प्रतिभा की दृष्टि जो जितना शून्य के जितना ज्यादा नजदीक है, वह उतने ही ऊँचे शिखर पर विराजमान है .इस परिणाम का वैज्ञानिक कारण है .शून्य में कुछ भी नहीं होता .इसलिए वह हल्का होता है .हल्केपन को ऊँचा उठने में कभी दिक्कत नहीं आती .जिसके पास अंक हैं वह भारी होता है .भारी को ऊँचा उठने में हमेशा दिक्कतें आएंगी .इसलिए जिस बच्चे को शून्य मिला है व बड़ा भाग्यशाली है .उसे नोकरी तो नहीं मिलेगी लेकिन जिन्हें नोकरी मिलेगी उन्हें सस्पेंड करने का अधिकार जरूर मिलेगा क्योंकि शून्य के ज्यादा नजदीक होने के कारण वह मंत्री बनेगा .
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना के लिए साधुवाद .
शून्य मेन से भी अंक निकाले जा सकते हैं....बाकई आश्चर्यजनक बात है ....
जवाब देंहटाएंइसका पूरा का पूरा श्रेय सरकारी स्कूल के अध्यापकों को मिलना चाहिए ....
बहुत ही बढ़िया व्यंग्य...
बहुत खूब! सुबह सुबह शून्य महिमा बांचकर आनन्दित हुये। जय हो! जय हो!
जवाब देंहटाएंवैसे व्यस्त रहने के लिये हम अपने दोस्तों से कहते हैं- क्या बात है बहुत बिजी दिख रहे हो! कोई काम-धाम नहीं है क्या?
...और मैं आपके विरोध का समर्थन करता हूं.
जवाब देंहटाएंसटीक व्यंग....सच है शून्य से अंक निकालना किसी सरकारी अध्यापक से पूछो.....इस दौर से मैं भी गुज़र चुकी हूँ.... पर कहीं ना कहीं शून्य को अंक बनाने में शिक्षक को भी बहुत कष्ट होता है......खुद को धोखा देने जैसा ....
जवाब देंहटाएंachi jankari di aap ne
जवाब देंहटाएंbahut khub
bahut khub
shekhar kumawat
http://kavyawani.blogspot.com/
sahi vyang bachchon ki uttarpustika se bhi darshan dhoond liya...
जवाब देंहटाएंशून्य के साथ आपके प्रयोग व्यंग्यात्मक दृष्टि से बड़े अच्छे लगे ! प्राइवेट स्कूल की व्यवस्था, मसलन शून्य में न कुछ जोड़ा जा सकता है न कुछ घटाया ! शिक्षक की दुविधाओ की अनुभूतियां अद्भुत है ! बधाई !
जवाब देंहटाएंआपके प्रयोग अच्छे रहे!
जवाब देंहटाएंशून्य आज खुद अपने हाल पर मस्त होगा.. उससे इतना प्यार तो खुद आर्यभट्ट ने भी नही दिखाया होगा...
जवाब देंहटाएंकई लोगों का यह भी मानना है की सारे बच्चों को पास किया जाना गलत है | उनका कहना है कि जो बच्चा पहाड़ तोड़ने के लिए बना है उसे पहाड़े नहीं रटाने चाहिए |मेरा कहना है की हम बच्चों के डॉक्टर और इंजीनियर बनने के रास्ते में रोड़े अटकाने वाले कौन होते हैं? जब सब कुछ पूर्वनिर्धारित है तो हम क्यूँ बच्चों को फेल करने का पाप करें?
सही है पुण्य की गंगा यहा थी और हमने कहा कहा न खोजी..
शेफाली बहना,
जवाब देंहटाएंशून्य की इतनी महिमा का बखान किया है तो मेरे मक्खन बेचारे की भी एक परेशानी का हल ढूंढ दो...बेचारा न जाने
कितने साल से बावला हुआ घूम रहा है...
उसे हर काम कह दो बस दिल्ली का एसटीडी कोड (011) मिलाने के लिए कोई न कह दे...उसे फोन पर शून्य का बटन तो मिल जाता है लेकिन 11 का बटन आज तक नहीं मिला...
जय हिंद...
सरकारी स्कूल का बच्चा दो और दो कितना होता है यह भले ही स्कूली जीवन की समाप्ति तक ना सीख पाए, लेकिन यह पहले ही साल सीख जाता है कि दुनिया की कोई ताकत मुझे फेल नहीं कर सकती | सरकार का यही आदेश है |
जवाब देंहटाएंकमाल का व्यंग्य. अब तो आठवीं तक फेल न किये जाने का आदेश आ चुका है. ताकि नवीं कक्षा में गधों की जमात आ सके.
आपका शीर्षक यहा खींच लाया, लगा कोई दिलचस्प चीज़ होगी।
जवाब देंहटाएंफिर भी व्यंग्य ने पूरा पढवा लिया।
कई जगह वाजिब चुटकियां काटी गई हैं।
शुक्रिया।
शेफाली जी !!! मै तो आपके इस ''शून्य खोज'' पर चकित हूँ ...और पढ़ते हुये लगातार हँसते भी जा रही थी ...गज़ब खोज लाती हैं आप । हाँ बिजी रहने वाला जो फंडा है न ! वहाँ मै अनूप जी के शब्दों के साथ हूँ .
जवाब देंहटाएंaapka to roz kaa kaam hogaa zero dene kaa.
जवाब देंहटाएंbachche padhte kam sharaarat jyada karte hain.
isliye zero denaa hi unke liye kaargar hain.
aap to bakhubii is kaargar upaay ko jab-tab aazmaati rehti hogi.
bahut badhiyaa.
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
विवेकानंद जी की शून्य की अवधारणा तो हम आज तक नहीं समझ सके पर आपकी....................
जवाब देंहटाएंजय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
शून्य के साथ आपके प्रयोग ने गाँधी के सत्य के साथ प्रयोगों को बिसरा दिया है ...
जवाब देंहटाएंसरकारी विद्यालय ना हो तो शून्य के प्रयोग की सम्भावना ख़त्म हो जाये ...
कुछ ही महीनो का निजी विद्यालय का अनुभव यही रहा कि अधिकांश शून्य के साथ प्रयोग वही किये जाते हैं ...उनके आगे १-५ तक के नंबर जोड़ कर ...
इस महंगाई में नौकरी है तो जहान है ...इसलिए सतत प्रयोगशील रहे शून्य के प्रयोगों के साथ ...!!
काफी दिन हो गए थे आपको ... पोस्ट बहाने पता चल गया आप कहाँ व्यस्त ही... शुन्य के साथ आपके प्रयोग अच्छे रहे ... हमें तो हमेशा निगेटिव मार्क्स ही आये :) अतः शुन्य का स्वाद ना ले सके :) अब ब्लॉग पर लगातार प्रयोग करते रहें व्यंगों का
जवाब देंहटाएंशून्य शिखर पर अनहद बाजे जी
जवाब देंहटाएं...विवेकानन्द ने शिकागो में शून्य पर भाषण नहीं दिया था । अाप के लिए छोड़ गए थे :)
'समय' तो अच्छे फसे :):)
शून्य आने के दो ही कारण होते हैं-
जवाब देंहटाएंजब बच्चे पढना चाहते हैं तब हम शून्य में ताकते हैं और डी.ऐ., अथवा एरियर की चिंता करते हैं | कभी कभार जब हमारा पढ़ाने का मूड होता है तो तब बच्चे शून्य में खो जाते हैं. जिसका नतीजा परीक्षा की कापियों में शून्य के दर्शन के रूप में सामने आता है |
....व्यंग्य तो व्यंग्य मगर अपने पर किया गया यह व्यंग्य लाज़वाब है।
काहे न प्रयोग करेंगी आप शून्य पर आखिर शून्यवाद भारतीय दर्शन का चरम उत्कर्ष है । इसीलिए तो हमारी शिक्षा पद्धति से शून्य के अलावा कुछ पैदा नहीं होता । आपके इस शून्य शिक्षा लेखन से हमे सुन्न बटा सन्नाटा याद आ गया ।
जवाब देंहटाएंऐसी पोस्ट पढ़कर हम तो शून्य हुए.. मेरा मतलब है धन्य हुए..
जवाब देंहटाएंजब बच्चे पढना चाहते हैं तब हम शून्य में ताकते हैं और डी.ऐ., अथवा एरियर की चिंता करते हैं |raaj ko raaj hi rhney detey to achcha hota kyonki hun mai se kaiyon ke bachchey sarkari schoolon main padtey hain.... कभी कभार जब हमारा पढ़ाने का मूड होता है तो तब बच्चे शून्य में खो जाते हैं. achcha santulan kayam kiya hai.... achchi prastuti.......
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंशून्य में अभी बहुत संभावनाएं हैं
जवाब देंहटाएंvyang roop mein vartmaan ki mahan vicharak or chintak hai aap ..or koi mane na mane m to ye hi maanta hun
शून्य की खोज करने के लिए हम भारतीय अपनी पीठ भले ही ठोक लें, लेकिन शून्य में से अंक निकालने की कला सरकारी स्कूल के मास्टरों ने ही ईजाद की है, जिसके लिए दुनिया को हमारा एहसानमंद होना चाहिए | bahut khoob masterni ji ka shunye nama! badhayi
जवाब देंहटाएंइसका कारण यह है कि सरकारी स्कूल का बच्चा दो और दो कितना होता है यह भले ही स्कूली जीवन की समाप्ति तक ना सीख पाए, लेकिन यह पहले ही साल सीख जाता है कि दुनिया की कोई ताकत मुझे फेल नहीं कर सकती | सरकार का यही आदेश है |
जवाब देंहटाएंसटीक !!
इसका कारण यह है कि सरकारी स्कूल का बच्चा दो और दो कितना होता है यह भले ही स्कूली जीवन की समाप्ति तक ना सीख पाए, लेकिन यह पहले ही साल सीख जाता है कि दुनिया की कोई ताकत मुझे फेल नहीं कर सकती | सरकार का यही आदेश है |
जवाब देंहटाएंसटीक !
"कई लोगों का यह भी मानना है कि सारे बच्चों को पास किया जाना गलत है|उनका कहना है कि जो बच्चा पहाड़ तोड़ने के लिए बना है उसे पहाड़े नहीं रटाने चाहिए|" वाह गजब का व्यंग्य किया है।
जवाब देंहटाएंvaah gazab pahli baar aapka pada. achha vyangya likhati hai aap. baat karne ki ichchha hai
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