हवाएं गर्म हैं | मोदी शर्म है | सरकार नर्म है | आई.पी.एल.धर्म है |
शशि अस्त है | थरूर पस्त है | सुनंदा त्रस्त है | मीडिया बेहद व्यस्त है |
ट्विटर पर ट्वीट | चिड़िया ने कर दी बीट | खुल गयी बड़ी - बड़ी पोल | दूर के सदा सुहाने ढोल |
आपा के तेवर | पन्द्रह करोड़ का मेहर | नोटों का जौहर | सानिया को मुबारक शौहर |
भाषण का जोश | गडकरी बेहोश | सुषमा को रोष | सरकार को दोष |
अप्रैल में लू | साजिश की बू | प्रकृति से छेडछाड | विकास की भेडचाल |
टैक्स का ज़िक्र | सेविंग की फ़िक्र | करचोर बेफिक्र |
सरकार के कड़े फैसले | आतंक के बढे हौसले |
जेसिका को इन्साफ | गर्मी में ठंडक का एहसास |
जंगलों में आग | ११४१ बचे हैं बाघ |
पेड़ों में अमिया | सूख गयी नदियाँ |
त्वचा रूखी | ज़ुबान सूखी |
दिमागों में गर्मी | बातों में बेशर्मी |
गालियों में बात | बात बात में लात |
इनवर्टर चुके | जेनरेटर फुके |
पानी की किल्लत | ज़िदगी बनी जिल्लत |
नरक झेलते लोग | फैलते हुए रोग |
तरणताल गुलज़ार | सुनसान बाज़ार |
पहाड़ों में भीड़ | रोजगार की रीढ़ |
पानी के बिन | शर्बतों के दिन |
ज्वालामुखी सक्रिय | आदमी निष्क्रिय |
लाइफ टाइम लिमिटेड | टॉक टाइम अनलिमिटेड |
महंगाई कमरतोड़ | फेविकोल का मजबूत जोड़ |
मोटी फीस का जाल | माँ - बाप कंगाल |
धार्मिक उन्माद | कुछ ब्लोगों का पानी खाद |
इन दिनों की बात | मेरे अंदाज़ में एक साथ
गर्मी हैं भाई गर्मी है।
जवाब देंहटाएंकहीं पैसे की , कहीं विचारों की, कहीं राजनीती की, कहीं शोहरत की और थोड़ी सी प्रकृति की।
सहना ही पड़ेगा।
पर अच्छी कविता है , पढ़कर ठण्ड पै गयी।
... बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है ।
जवाब देंहटाएंek ek pankti lajawaab....current affairs ki poori jaankari mil gayi...
जवाब देंहटाएंहवाएं गर्म हैं | मोदी शर्म है | सरकार नर्म है | आई.पी.एल.धर्म है |
जवाब देंहटाएंतुक-बे-तुक।
फिर भी खूब मिला
इसे पढ़ने का सुख।
बहुत बढ़िया अंदाज कोई बात नही छोड़ी आपने सब कुछ कह डाली...प्रस्तुति के लिए धन्यवाद ..शेफाली जी
जवाब देंहटाएंबहुत ही लाजवाब अंदाज मे वर्तमान को पेश किया है. तीन बार पढ चुका हूं. तारीफ़ के लिये शब्द नही हैं. बहुत शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम
लाजवाब अन्दाज, क्या कहने !
जवाब देंहटाएंवाकई एक लाजवाब लेख.
जवाब देंहटाएंआजकल मौसम बहुत गर्म है,
जवाब देंहटाएंआपकी बातो में बहुत मर्म है,
अब क्या कहे क्या हमारा धर्म है,
देख हालत आज आती शर्म है।
जय हो!!!
kya bat hai shefali ji
जवाब देंहटाएंवाह वाह वाह
जवाब देंहटाएंइस कविता की अलग मुद्रा है, अलग तरह का संगीत, जिसमें कविता की लय तानपुरा की तरह लगातार बजती रहती है। अद्भुत मुग्ध करने वाली, विस्मयकारी!!
जवाब देंहटाएंशेफाली जी !!! इतनी गर्मी मे भी इतना ठंडे दिमाग से सोच लेना कैसे कर लेती हैं ?
जवाब देंहटाएंवाह शेफ़ाली जी , एकदम जुदा अंदाज़ है और दिलचस्प शैली रही ये तो। बढिया व्यंग्य , धारदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंhehehe..are waaaah di...kamal ho tussi satair me aapka zawaab nahi ..halke fulke andaaz me aaj ke mahaul ki poori padtaal kar li aapne... :)
जवाब देंहटाएंकई बार एक साथ बहुत कुछ इकट्ठा हो जाता है जो छोड़ते नहीं बनता व, उस पर नाहक लंबा-लंबा लिखते भी नहीं बनता. आज की आपकी पोस्ट एसी ही लगी पर सुंदर व अलग सी :)
जवाब देंहटाएंनिराले अंदाज़ हैं, विषय ख़ास हैं,
जवाब देंहटाएंनज़र-नज़र की बात है, वाह! क्या बात है...
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
वाह वाह..क्या बात है...ये नया अंदाज...पसंद आया!
जवाब देंहटाएंइन दिनों जो भी चल रहा है उसे इस तरह एक साथ लाकर एक कविता का रूप देना कोई मामूली बात नहीं ... बहुत अच्छा लगा पढकर ! बधाई !
जवाब देंहटाएं:)
जवाब देंहटाएंवाह नये अन्दाज़ में? बढिया है.
जवाब देंहटाएंआफरीन आफरीन !!
जवाब देंहटाएंहमने जाना की तारीफ मुमकीन नहीं !
बेहद उम्दा और सटीक !
शब्दों की जादूगरनी, छोटी सी एक मास्टरनी...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
aapki baaton or aapke andaaz kaa koi jawaab nahi.
जवाब देंहटाएंbahut umdaa likhaa hain aapne.
thanks.
WWW.CHANDERKSONI.BLOGSPOT.COM
जबरदस्त लिखा... व्यंग्य ना ऐसा कोई दिखा..
जवाब देंहटाएंवाह शेफाली जी !
जवाब देंहटाएंआपका अंदाज ए बयां वाकई निराला है !
:):) लिखते रहें इसी अंदाज में
कबीले तारीफ़ है ये अंदाज़...बहुत बढ़िया...
जवाब देंहटाएंवाह जी वाह .लाजवाब अन्दाज
जवाब देंहटाएंkavita likhne ka andaaz bahut achchha laga.jab tak kavita samaapt nahin hui kavita mein dooba raha. Badhai!!!
जवाब देंहटाएंइन दिनों की बात |
जवाब देंहटाएंमेरे अंदाज़ में एक साथ ........
हवाएं गर्म हैं |
मोदी शर्म है |
सरकार नर्म है |
आई.पी.एल.धर्म है |
शशि अस्त है |
थरूर पस्त है |
सुनंदा त्रस्त है |
मीडिया बेहद व्यस्त है |
ट्विटर पर ट्वीट |
चिड़िया ने कर दी बीट |
खुल गयी बड़ी - बड़ी पोल |
दूर के सदा सुहाने ढोल |
आपा के तेवर |
पन्द्रह करोड़ का मेहर |
नोटों का जौहर |
सानिया को मुबारक शौहर |
भाषण का जोश |
गडकरी बेहोश |
सुषमा को रोष |
सरकार को दोष |
अप्रैल में लू |
साजिश की बू |
प्रकृति से छेडछाड |
विकास की भेडचाल |
टैक्स का ज़िक्र |
सेविंग की फ़िक्र |
करचोर बेफिक्र |
सरकार के कड़े फैसले |
आतंक के बढे हौसले |
जेसिका को इन्साफ |
गर्मी में ठंडक का एहसास |
जंगलों में आग |
११४१ बचे हैं बाघ |
पेड़ों में अमिया |
सूख गयी नदियाँ |
त्वचा रूखी |
ज़ुबान सूखी |
दिमागों में गर्मी |
बातों में बेशर्मी |
गालियों में बात |
बात बात में लात |
इनवर्टर चुके |
जेनरेटर फुके |
पानी की किल्लत |
ज़िदगी बनी जिल्लत |
नरक झेलते लोग |
फैलते हुए रोग |
तरणताल गुलज़ार |
सुनसान बाज़ार |
पहाड़ों में भीड़ |
रोजगार की रीढ़ |
पानी के बिन |
शर्बतों के दिन |
ज्वालामुखी सक्रिय |
आदमी निष्क्रिय |
लाइफ टाइम लिमिटेड |
टॉक टाइम अनलिमिटेड |
महंगाई कमरतोड़ |
फेविकोल का मजबूत जोड़ |
मोटी फीस का जाल |
माँ - बाप कंगाल |
धार्मिक उन्माद |
कुछ ब्लोगों का पानी खाद |
इन दिनों की बात |
मेरे अंदाज़ में एक साथ
is andaaz mein kaisi lagti hain. dekhen.
क्या तुक बांधी है, सुभानअल्लाह! इसने तो दिमाग की गर्मी निकाल दी, बोले तो ठंडा कर दिया
जवाब देंहटाएंआपका ये नया अंदाज़ बढ़िया लगा
जवाब देंहटाएंइतना सब कुछ एक रचना में............. ये तो कमाल कर दिया ...शानदार प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंhttp://athaah.blogspot.com/
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंशेफाली!
जवाब देंहटाएंसलाम।
आपने जो किया है, इसे कहते हैं गदर फैलाना, यानी लंका लग गयी भाई - लग गयी लंका!
तोड़ दिया।
ऐसी रचनाएँ बार-बार नहीं होतीं, और रचनाकार से बड़ी हो जाती हैं।
बधाई हो! लगी रहो!!
छोटी छोटी पंक्तियों में बड़ी और करारी बात की इस अंदाज़ में अभिव्यक्ति से चमत्कृत हूँ. सुन्दर.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया व्यंग्य.......उम्दा ||
जवाब देंहटाएंइसे कहते हैं बल्ला लेकर पीछे पड़ना ।
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