शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

छलकाएं जाम .... आइये घोटालों के नाम .... इन बबालों के नाम |

 
साल  दो हज़ार दस  .....
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साल दो हज़ार दस | विकास जस का तस | फला - फूला   भ्रष्टाचार बस |
कोहरे का कोहराम | छलकाएं जाम | आइये घोटालों  के नाम | इन बबालों के नाम |
 
टू  जी स्पेक्ट्रम ...........
 
 नए नए  स्पेक्ट्रम | अपना - अपना दम - ख़म | अतीत का हर घोटाला, वर्तमान से निकले कम |
आगे आगे देखिये होता है क्या | दोषी होगा राजा | प्रजा को मिलेगी सजा |
 
ए. राजा .............
 
अंधेर नगरी चौपट राजा | करोड़ों की भाजी, अरबों का खाजा |
संचार क्रान्ति का तकाज़ा | बिन बारात  बज गया बजा |
 
जे. पी. सी..........................
 
कारों से सड़क, नारों से संसद जाम | मनमोहन की फंस गई जान |
ट्रेफिक पुलिस हैरान, परेशान | कोई घूस ना आई काम |
 
सी. बी. आई............
 
आई रे आई | लानत पड़ी तो होश में आई | 
छापों की कार्यवाही | खुशियाँ भ्रष्टन  के घर छाई |
चिड़िया ने चुग लिया खेत | माल सारा निकल गया |
हाथ में आई रेत ही रेत |
 
विकीलीक्स ........
 
नए - नए खुलासे | अमेरिकी चाल | शातिर इरादे |
बगल में छुपा के खंजर | हाथ दोस्ती का सबसे आगे |  
 
महिला सशक्तीकरण ........
 
राठोड़ों  को मुस्कान | रुचिकाओं को शमशान |
खुलेआम बलात्कार | इज्ज़त तार - तार |
बैखौफ अपराधी | कैसे जिए आधी आबादी ?
 
ओबामा - सरकोजी भ्रमण  ..................
 
कार्ला की खुशी | मिशेल का नाच | सबने मिलकर देखा ताज |
मेहमानों की आवभगत | पूरा देश हुआ  नतमस्तक |
कृपादृष्टि पाने की जुगत | फिर झुनझुनों से निकला राग |
सावधान ! अब भारत गया है जाग |
 
लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ ..........................
 
पत्रकारिता शर्मसार | कलम की बिक गई धार |
 जुड़े कहाँ - कहाँ थे तार | एक फोन से  बंटाधार  |
थे कल तक जो  कलम के सिपाही |
पल में हो गए धराशाही |
 
लॉबी और कोर्पोरेट .........................
 
साथ हुआ चोली दामन | चुग्गे फेंको अति मनभावन |
कहता  रुपया | मत करो वेट | धंधा हो एट एनी रेट |
 
 
कांग्रेस  और भाजपा  ..........................
 
शब्द युद्ध घमासान | वोट का जब देखें नुकसान | पलटें तुरत बयान |
बीते दिनों की इतनी कमाई | हर मुद्दे पर टांग खिंचाई | 
 
महंगाई .................
 
मर गई दादी कहते - कहते | लहसुन - प्याज को करो नमस्ते |
कहती थी नानी | एक समय खाना | दूसरे समय  पानी |
मत करो जीभ की कभी गुलामी |
जब आसमान पर पहुंचे दाम | तब निकला आख़िरी सलाम |  
 
बिहार ....................
 
समोसे से निकला आलू | रहस्यमयी ताकत से हारे लालू |
रोड शो भी हुआ फ्लाप | विकास के सिर, फिर सज गया ताज |
 
नौटंकी और नाटक .........................
 
राजनीति की यह विसात | जिसने दी शह, मिली उसे ही मात | 
कुर्सी बचाने का एकमात्र अस्त्र | फ़ौरन  पद से  त्यागपत्र |
 
कॉमनवेल्थ ..................
 
किसकी थी  वेल्थ, किसकी बनी हेल्थ |
सबसे ज्यादा कीर्तिमान | कॉमनवेल्थ कंपनी  के नाम |
बिना पदक रहे असली खिलाड़ी |
छिप गए तिनके | रह गई दाड़ी | 
एक सुर से बोलो सब, जय हो श्री कलमाड़ी |  
 
आदर्श सोसाइटी ................
 
शहीदों की चिताओं पर  मेले हर बरस लगेंगे |
संभल कर  चलना  शहीदों की बेवाओं
कफ़न बेचने वाले,
यहाँ  भी टैक्स  वसूल लेंगे | 
 
कुल मिलाकर साल रहा ..........................
 
दबंगों का, लफंगों का, छलियों का, बाहुबलियों का, काले धंधों, उजले वस्त्रों, गंदी चालों, नित नए घपलों का, घोटालों का, धर्म के मतवालों का, सफेदपोशों का, नकाबपोशों का, भ्रष्टों का घ्रिष्टों का, धृतराष्ट्रों  का, नाम बड़े, दर्शन छोटे, बेपेंदी के लोटे, भड़काऊ बयानों, फूहड़ नाच, बेसुरे गानों, शर्मनाक कारनामों, बेशर्म मुस्कानों का, ज़हरीली ज़ुबानों का, अफज़ल गुरुओं, कसाबों का , झूठे - सच्चे वादों का, खौफनाक इरादों का, वंशवाद का, आतंकवाद का, नए नए भंडाफोड़ों का, नई नई तोड़ों का, बदमाशों का, पर्दाफाशों का, लीपापोती,  पलटबयानी का,   झूठी शानों, मिथ्या अभिमानों  , सस्ती जानों का,  बड़े - बड़े भाषण, महंगे राशन का, भितरघात, आस्तीन के साँपों का, संतों के पापों का, फोन के टेपों, दिग्गजों की झेंपों का, रिएलिटी शो, मनोरंजन गया खो,  कुर्सियों  की जंग, गिरगिटों  के रंग, चोरी पे सीनाजोरी का , किसानों की अर्थी, रोती  धरती  का, बड़ी मछलियाँ, छोटे जाल, बहा आँसू मगरमच्छ हुए मालामाल |
अजब देश के गजब हैं हाल | 
 
 
    
   
    

मंगलवार, 30 नवंबर 2010

सीरियल या सीरियल किलर .....कुमांउनी चेली

 
 
जब तक कुछ नया नहीं लिखा जाता,  एक पुरानी कविता का पुनः प्रसारण
 
सीरियल या सीरियल किलर .....
 
कौन सी है यह दुनिया

कि जिसमें इतना आराम है

ना कोई गृहस्थी की चिंता

ना ही कोई काम है

 

यहाँ घर की कोई कलह नहीं

ना काम को लेकर हैं झगड़े

ना महीने के राशन की फिक्र  

ना ही बिल यहाँ आते हैं तगड़े

 

 

यहाँ बीमारी की जगह नहीं

ना ही कभी कोई मरता है

कत्ल हुआ कभी कोई तो

पुनर्जन्म ले लेता है

 

यहाँ ना चेहरे पर झुर्री

ना बूढ़ी लटकती खाल है

मेकअप की परतें चेहरे पर

क्या बच्ची क्या बूढ़ी

सबका एक ही हाल है

सास कौन है बहू कौन सी

पहचान जाएं तो कमाल है       

 

ये बाज़ार कभी नहीं जातीं

साल भर त्यौहार मनातीं

नए - नए साड़ी ब्लाउजों में

इतरातीं और इठलातीं

 

ये काली दुर्गा की अवतार

पर पुरुष हैं जिनका प्यार

ये बुनतीं ताने -बाने षड्यंत्रों के  

बदले की आग में जलतीं बारम्बार  

 

ये चुपके -चुपके बातें सुनतीं

ज़हर उगलतीं, कानों को भरतीं

शक के बीजों को बोतीं

इन्हें ना कोई लिहाज़ ना कोई शर्म है  

झगड़े करवाना पहला और आख़िरी धर्म है  

 

 

      

 ये इतने गहने  धारण करतीं

जितने दुकानों में नहीं होते हैं

इनका  रंग बदलना देख

गिरगिट भी शर्मा जाते हैं

इनकी शादियों का हिसाब रखने में 

कैलकुलेटर घबरा जाते हैं

 

यहाँ रिश्तों को समझना मुश्किल होता

कौन दादा है,कौन दादी कौन है उनका पोता   

यहाँ संबंधों की ऐसी बहती बयार है

समझ नहीं आता, कौन किसका, किस जन्म का  

कौन से नंबर का प्यार है

 

लम्बे -लम्बे मंगलसूत्र पहनने वालीं

पार्टियों में सांस लेने वालीं

हर बात पे आंसूं टपकाने वालीं

तुम्हारा राष्ट्रीय त्यौहार है करवाचौथ

तुम्हारा पीछा ना कभी छोड़े सौत

 

हे मायावी दुनिया में विचरती मायावी नारियों

घर -घर की महिलाओं की प्यारियों

जड़ाऊ जेवर और जगमगाती साड़ियों

पतियों की बेवफाई की मारियों

तुम्हें देखकर आम औरत आहें भरती है  

तुम्हारी दुनिया में आने को तड़पती है

अपने पतियों से दिन रात झगड़ती है

स्वर्ग सामान घर को नर्क करती है ......
 
 

बुधवार, 10 नवंबर 2010

दस साल चढ़े अढाई कोस .....शेफाली

दस साल चढ़े अढाई कोस .....शेफाली
 
शीर्षक पर चौकें  नहीं क्यूंकि  व्यंग्यकारों को यह सुविधा होती है कि वे कहावतों और मुहावरों को अपनी आवश्यकतानुसार किसी भी रूप में तोड़ मरोड़ सकते हैं | कल यानि ९ नवम्बर को उत्तराखंड राज्य को बने पूरे दस साल हो गए | राज्य के विकास संबंधी कई काम हुए, जिनकी चर्चा पोस्टरों में अधिक और अखबारों में  सबसे अधिक हुई |  
 
राज्य ने  दस साल में दसमुखी विकास किया | राज्य की सबसे बड़ी उपलब्धि पाँच दूनी दस की रही  | दस साल में पाँच मुख्यमंत्री बने | बड़ी मुश्किल से बच्चों को मार - पीट कर माननीय  जी का नाम याद करवाया | उनका नाम याद हो सका तो मुख्यमंत्री बदल गए | देश  ने पहले राज्य के लिए आम आदमी का अदभुद आन्दोलन देखा  फिर कुर्सी के लिए  नेताओं की अभूतपूर्व जंग देखी |
 
राज्य में खूब पैदावार हुई | नेताओं की इतनी रिकोर्ड़तोड़ लहलहाती फसल पिछले  कई दशकों  में भी नहीं देखी गई | चप्पे - चप्पे पर कोई न कोई भूतपूर्व और  वर्तमान नेता उगा हुआ है |  जहाँ जगह छूटी है वहाँ भविष्य की फसल के बीज बोए जा चुके हैं | आने वाले वर्षों में भी पैदावार अच्छे होने की पूरी संभावना है |
 
कुछ ख़ास नहीं करने वालों या कुछ नहीं करने वालों के पास सब कुछ ख़ास है | ख़ास गाड़ियां, खास जगहों पर ज़मीनें, ख़ास डिज़ाइन के बंगले, खासमखास बीबियाँ, ख़ास स्कूलों में पढ़ते बच्चे | सिर से लेकर पैर तक सब कुछ ख़ास |
 
राज्य में उद्योग धंधों का बहुत विकास हुआ | सरकारी विभागों में  स्थानांतरण  ने एक उद्योग का रूप ले लिया है | हर जगह के दाम फिक्स | कोई सौदेबाजी की संभावना नहीं, किसी भी प्रकार की कोई सिफारिश मान्य नहीं  |
 
सिडकुल बने | कई कम्पनियां सब्सिडी हजम कर गायब हो गई | कई कागजों में ही बन पाईं | कुछ बची  रह गई जिनमें कुछ  स्थानीय लोगों को भी रोज़गार मिला | जिन्हें नहीं मिला वे कंपनियों के बाहर अनशन पर बैठ गए | अनशन से उठने का मुआवजा वसूला गया | रोज़गार मिलने पर काम करना पड़ता है | आठ - दस लोगों को लेकर गेट  पर बैठना अधिक  सुविधाजनक उद्योग सिद्ध हुआ  |
 
पहाड़ की प्रतिभाओं ने अपनी छिपी हुई योग्यताओं को पहचानना सीखा | प्रतिभा  पहले से थी, उचित अवसर नहीं थे | राज्य बनने के बाद ये प्रतिभाएं पल्लवित और पुष्पित हुईं |
जिन पहाड़ों ने कभी पुलिस नहीं देखी थी, वहाँ चोरी, लूट पाट, मार - काट, हत्याएं, डकैतियां, अपहरण, बलात्कार,  सब कुछ होने लगा | पहाड़ की प्रतिभाओं ने विदेशों में तक नाम कमाया |
 
सबसे ज़्यादा  प्रगति पर्यटन उद्योग में हुई क्यूंकि पहाड़ों  की अधिकाँश अर्थव्यवस्था पर्यटन पर टिकी होती है  | खेती करके दो रोटी  चैन से खाने वालों ने अपनी ज़मीनों को कौड़ियों के भाव महानगरों में बसे उद्योगपतियों और रईसों को बेच दी |  ये साल में बस  दस - पंद्रह दिन के लिए आते हैं | बाप - दादाओं  ने बहुत केयर  से जिस ज़मीन को पाला - पोसा,  इस पीढ़ी के लोग उन पर बने बंगलों और रिसोर्टों  के केयर टेकर हो गए |  
 
राज्य का निर्माण एक बहुत बड़े आन्दोलन के फलस्वरूप हुआ  | राज्य बनने के साथ ही रोज़गार की उम्मीदें भी जगीं | जिन्होंने आन्दोलन के दौरान लाठियां खाईं या जो जेल गए, उन्हें सरकारी नौकरियां मिलीं | जो जेल का सर्टिफिकेट नहीं बनवा पाए, उन्हें रोज़गार नहीं मिला | ये लोग जोर - शोर से कहा करते थे कि हम  लेकिन अपने राज्य में आलू - मूली का पानी पीकर और सूखी रोटी खाकर रह लेंगे लेकिन यू . पी के साथ नहीं रहेंगे   |  इस प्रकार  से हताश युवा शक्ति ने  राज्य गठन के एक साल बाद ही यह घोषणा कर दी कि राज्य का निर्माण गलत हो गया | इससे तो यू. पी. के साथ ही भले थे | अब ये यू. पी. वाले ही बता सकते है कि वे वहाँ कितना भला महसूस करते हैं |      
 
नवनिर्मित राज्य में अपार संभावनाएं छिपी हुई थीं, जिन्हें ढूंढ - ढूंढ कर निकाला गया | इस समय आयात  - निर्यात अपने चरम  पर पहुँच चुका है | दुर्लभ जड़ी - बूटियाँ, शराब, लीसा, लकड़ी, लड़कियाँ, जानवरों की खालें, कब्ज़े, अवैध खनन, सब में व्यापार की अपार  संभावनाएं निकल आईं  |
 
निर्माण कार्य भी द्रुत गति से हुआ | बाढ़ नहीं  आई होती तो और भी द्रुत गति से होता | विगत कई वर्षों से बाढ़ ने नई - नवेली सड़कों और बड़े - बड़े पुलों की पोल ना खुल जाए इस वजह से आना छोड़ दिया था | सत्ता से दूर पार्टी वाले यह मानते हैं कि उत्तराखंड में बाढ़ से जितना नुकसान नहीं हुआ, उसी कई गुना मदद माँगी गई | यह बाढ़ उनके शासनकाल में आई होती तो वे बाढ़ से हुए नुकसान का सही आंकलन करते | पैसा अवमुक्त ना होने पाए इसके लिए हड़ताल, मौन प्रदर्शन, काली पट्टियां, घेराव सब कुछ करेंगे | विधान सभा नहीं चलने देंगे | उन्हें मन ही मन यह गम है कि उनके शासन  काल  में ना ऐसी बाढ़ आई न  सूखा पड़ा | प्रकृति ने भी उनके साथ अन्याय किया |  
 
शानदार गाड़ियों में लाल बत्तियां और छोटी - मोटी कारों में लाल पट्टियां जिन पर कोई ना कोई पार्टी का पद अंकित होता है, सड़कों पर फर्राटे से दौडती दिखती  हैं | कारों के मॉडल  से ज्यादा अहमियत इन पट्टिओं  को मिलने लगी | पत्ती या बत्ती देखते ही आम आदमी रास्ता छोड़ देता है |
 
प्रतिभा पलायन बंद हो गया | जो प्रतिभाएं राज्य बनने से पहले सड़कों पर आवारा घूमा करतीं थीं, हर जुलूस में शामिल होकर नारे लगाती थी | पथराव करने का एक भी अवसर नहीं गंवातीं थी, अब बड़े बड़े पोस्टरों पर शान से मुस्कुराते हुए नज़र आती है | इन प्रतिभाओं को अपने ऊपर इतना भरोसा है कि अब ये जनता के आगे हाथ जोड़ने की तक जहमत नहीं उठाती | 
 
मातृ  शक्ति  के उत्थान के लिए भी बहुत सी योजनाएं बनाईं  गईं | कई जगह  आरक्षण दिया गया | पंचायतों में महिलाओं के स्थान पर फलाने - फलाने की  पत्नियों को इस आरक्षण का सर्वाधिक लाभ मिला | दबंगों की विधवाओं ने भी सिर पर पल्लू रखकर कई महत्वपूर्ण पदों पर कब्जा किया |
 
 शरीर में शक्ति ना होने के कारण और अपने पतियों के रात - दिन शराब पीने के कारण आम मातृ शक्ति पेड़ों से गिरती रहीं, मरती रहीं  |  कई खुले में शौच को गईं तो वापिस नहीं आईं | देश ने दिन -रात बाघों के बचाने के विज्ञापन  दिखाए | उन बचे हुए बाघों ने पहाड़ की औरतो,  बच्चों और जानवरों को निवाला बनाया |
 
जहाँ सड़कें जातीं थीं वहाँ एक सौ  आठ वरदान सिद्ध हुई | जहाँ नहीं जातीं वहाँ से सड़क तक आने से  पहले मौत आ जाती है | 
 
कुल मिलाकर इन दस सालों में राज्य ने बहुत प्रगति की |
 
 
 

शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

कृपया ब्लॉग जगत के साथी मेरी मदद करें...

मैं ब्लॉग जगत के उन सभी साथियों का आभार प्रकट करती हूँ, जिन्होंने मुझे मेरे जन्मदिन पर शुभकामनाएं  प्रेषित की, और मुझे मेरी बढ़ती उम्र का एहसास दिलाया | मैं उन साथियों की इससे ज्यादा आभारी हूँ जिन्होंने मुझे शुभकामनाएँ प्रेषित नहीं की, जिससे मुझे उम्र संबंधी तनाव का सामना नहीं करना पड़ा |
 
इससे पहले कि महापुरुषों की तरह  मेरी जन्मतिथि पर विवाद खड़ा हो जाए, भविष्य में मुझ पर रिसर्च करने वालों को किसी असुविधा का  सामना  करना पड़  जाए,  बिना किसी प्रयास के प्रसिद्द हो जाऊं, मैं अपनी सही जन्मतिथि के विषय में  कुछ खुलासा करना चाहती हूँ, ताकि अगले वर्ष बधाई देने वालों को कन्फ्युज़ियाने  का मौका ना मिल पाए |
 
साथियों मेरे जन्म के विषय में इतना पक्का है कि मेरा जन्म धरती पर उस दिन हुआ था जब रावण मरने के पश्चात पैदा होने के लिए अगला शरीर ढूंढ रहा था, अर्थात दशहरे के अगले दिन | सत्ताईस अक्टूबर की रात एक बजकर पचपन मिनट पर [ ज्योतिष भाई इसके आधार पर भविष्यवाणी करने की कोशिश ना करें, क्यूंकि सरकारी अस्पताल में एच. एम्. टी. की घड़ी में समय देखने वाली डॉक्टर या नर्स की जानकारी की विश्वसनीयता के विषय में मुझे सदा संदेह रहा है, क्यूंकि  मेरे  विषय की गई कोई भी  कभी भी  भविष्यवाणी सही सिद्ध नहीं  हो पाई  ] हुआ था |
 
मेरे जन्म के विषय की कथा भी बहुत रोचक है | मैं फ़िल्मी माहौल में आँखें खोलते खोलते रह गई | आजकल जब किसी अभिनेता या अभिनेत्री को यह कहते हुए सुनती हूँ कि उसने फ़िल्मी वातावरण में आँखें खोलीं हैं तो बहुत कोफ़्त होती है | पाँच सितारा अस्पतालों में जन्म लेने वाली ये पीढ़ी क्या जाने कि वास्तव में फ़िल्मी माहौल में आँख खोलना क्या होता है | मेरी माँ की पूरी कोशिश थी कि मैं फ़िल्मी माहौल में ही पहली बार आँखें खोलूं |
 
  स्पष्ट  कर दूं  कि  माँ  की  दूर - दूर तक फ़िल्मी दुनिया में  कोई रिश्तेदारी नहीं थी | माँ हिन्दी फिल्मों की घनघोर शौक़ीन थी | पिताजी उस समय '' बागेश्वर'' जैसी छोटी सी जगह पर पोस्टेड थे |उस समय वह वाकई बहुत छोटा हुआ करता था, जहाँ ढंग का एक सिनेमाहाल तक नहीं था | इसीलिये माँ को कोई भी नई फिल्म देखने १० - १२ घंटे का पहाड़ का सफ़र तय करके अपने मायके ''हल्द्वानी'' आना पड़ता था | नाना जी कुमायूं मोटर ओनर्स यूनियन में काम करते थे | '' नवीन बाबू की लडकी हूँ '' कह देने मात्र से ही कंडक्टर आगे की सीट दिलवा देता था | पास मांगने का तो सवाल ही नहीं उठता था | नाना जी के रिटायर होने के बाद इस बात का खुलासा हुआ कि उनके तमाम रिश्तेदार और यहाँ तक कि दूर के परिचित भी नवीन बाबू की बेटियां या बेटे बन कर मुफ्त यात्रा किया करते थे | 
 
मेरे पैदा होने से करीब हफ्ता भर  पहले माँ को खबर लगी कि हल्द्वानी में राजेश खन्ना की कोरा कागज़ पिक्चर लगने वाली है | मुझे पेट में  और भाई को गोद में लेकर माँ हल्द्वानी आ गई | अपने मायके के कुछ रिश्तेदारों को साथ लेकर [ जिनका टिकट वही देती थी, जो  उसे  नई  नई  पिक्चरों  के लगने  की  सूचनाएं  उन्हीं  कंडक्टरों  के हाथ  भिजवाया  करते  थे,  ] वह राजेश खन्ना के दीदार करने आ गई | उसी रात प्रसव पीड़ा के चलते अस्पताल में भर्ती हुई और मेरा जन्म हुआ | मेरे पैदा होने के दो दिन  बाद हाल में '' सगीना'' लग गई थी, जिसे देखने जाने से माँ को बहुत मुश्किल से रोका गया |
 
पैदा हुई तो बड़ा भी होना ही था | बड़ा होना था तो कभी न कभी विवाह भी होना ही था | विवाह होने के लिए हमारे समाज में सबसे अनिवार्य  शर्त  आज  भी जन्मपत्रियो   का मिलान  ही है | जब मेरी जन्मपत्री  मेरी संभावित  ससुराल  भेजी  गई, तब  पता  चला  कि मैं अभी  तक जिसे अपना  जन्मदिन यानी  कि 27 अक्टूबर मान रही  थी, वह 27 ना होकर  28 अक्टूबर है, क्यूंकि अंग्रेज़ी  कलदार  में रात्रि बारह  बजे  के बाद अगला दिन लग जाता  है | धत्त  तेरे  की !  बकौल पति के अनगिनत  दावतें  इस गलत  तिथि  पर कुर्बान  हो गई थी |
 
खैर ! बहुत बहस हुई [ विवाहोपरांत, अन्यथा  विवाह  नहीं होता  ] | इन बहसों का निष्कर्ष यही निकला कि दोनों ही जन्मतिथियाँ  मेरी मानी जाएं, और जिस भी दिन रविवार पड़ेगा, उसी दिन जन्मदिन मनाया जाएगा | यह भी अदभुद  संयोग ही था कि जिस दिन मेरी शादी हुई उसके अगले दिन यानी २७ अक्टूबर को पड़ने वाला मेरा जन्मदिन मेरा बर्थडे  भी था, यानि कि हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों कैलेंडरों  में पहली बार एकता | शायद  यह संयोग इसीलिये  हुआ कि मुझे  निहार  रंजन  पांडे  जैसा सुलझा हुआ  [ पोस्ट की सूचना उनके  ई  मेल  पर जाएगी ]  जीवन  साथी  मिला |
 
दुनिया ने कंप्यूटर  युग में चाहे सालों पहले कदम रख दिया हो, लेकिन मैंने सन् २००८ में रखा | सर्वप्रथम ऑरकुट पर नज़र गई | वाह ! कई ऐसे लोगों से भी दोस्ती हुई जिनसे  रोज़ सड़क में मिलते थे, पर कभी नमस्कार तक नहीं होती थी | ऑरकुट से बाहर अभी भी नहीं होती |   प्रोफाइल  पति ने बनाई, सो २८ अक्टूबर दर्ज कर दी | समय बीतने के साथ मैंने कंप्यूटर को स्वयं फेस  करना सीख लिया, और फेसबुक  पर २७ अक्टूबर दर्ज करने से वे मुझे  रोक न  सके |
 
सन् २००८ से शुरू हुआ यह  हिन्दी और अंग्रेज़ी के कलेंडरों  के मध्य  छिड़ा हुआ विवाद विवाद आज तक जारी है , जिसे सुलझाने में कृपया ब्लॉग जगत के साथी मेरी मदद करें |   

गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

श्राद्ध पक्ष के पंडित .......

 
श्राद्ध पक्ष के पंडित .......
श्राद्ध पक्ष ख़त्म हो चुके हैं | कॉमनवेल्थ खेल ख़त्म होने वाले हैं | श्राद्ध पक्ष के पंडित, जिसके आगे जी आप ना भी लगाना चाहें, तो भी स्वतः ही लग जाता है    हैं,  में और आम दिन के पंडित में उतना ही फर्क होता है जितना कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान होने वाले घोटालों में और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में सामने आने वाले घोटालों में |
 
हमारे देश में कई तरह के लोग रहते हैं | कुछ लोग अपने माता - पिता का जीते जी बहुत अच्छा श्राद्ध करते हैं | उनके मर जाने के बाद उससे कई गुना शानदार  श्राद्ध करते हैं | उनसे आस पड़ोस, समाज, नातेदार, रिश्तेदार और  पंडित बहुत प्रसन्न रहते हैं | बुजुर्ग मुक्त कंठ से उसकी प्रशंसा करते हैं और 'ऐसा श्रवण कुमार जैसा लड़का सबको दे' कहकर आशीर्वाद देते नहीं थकते  हैं |  कुछ लोग माता पिता का ना जीते जी श्राद्ध करते हैं ना उनके मर जाने के बाद | वे मानते हैं कि माता - पिता की जीते जी सेवा करनी चाहिए | मरने के बाद कौन कहाँ गया किसने देखा ? | ऐसी सोच रखने वाले लोगों को समाज में  अच्छी  नज़र से नहीं देखा जाता  | कंजूस, मक्खीचूस, नास्तिक,नरकगामी 'भगवान् ऐसा कपूत किसी को न दे '  जैसे  कई विशेषण उनके आगे स्वतः जुड़ते चले  जाते हैं |     
 
इधर  श्राद्ध पक्ष में पंडित ढूंढना उतना ही मुश्किल हो गया है जितना एक हिन्दी माध्यम के सरकारी स्कूल में पढ़ी हुई लडकी के लिए वर का मिलना | घर में बुजुर्ग लोग उन सुनहरे दिनों को याद करते हैं,  जब पंडित लोग घर - घर दान की पोटली लेकर घूमा करते थे और श्रद्धा से जजमान जो कुछ भी दे देता था उसे लेकर संतुष्ट होकर आशीर्वाद देकर चले जाते   थे  | वैसे सभी बुजुर्ग लोग पुराने दिनों को याद करने का काम बहुत शिद्दत से करते हैं | सिर्फ़ यही काम वे तन और मन लगाकर करते हैं | कभी - कभार पुरानी बातों को सुनने वाले के ऊपर चाय या समोसे खिलाकर  धन भी खर्च किया कर देते हैं |
 
इधर कुछ वर्षों  से यह होने लगा है कि श्राद्ध पक्ष आने से कई महीने पहले से  पंडित की खोज में   ऐढ़ी -  चोटी  में  का जोर  लगाना पड़ता है  | यहाँ तक की कभी कभी किसी बड़े नेता या मंत्री की सिफारिश भी लगानी पड़ती है | इतना प्रयत्न करने के बाद  वह जिस तरह  से आपके स्वर्गीय माता - पिता या पितरों का श्राद्ध  करवाता है उसे देख कर अक्सर यही महसूस होता है कि हो न हो  इसी  प्रकार की दिक्कतों  के मद्देनज़र  ही आदमी  अमर होने के लिए प्राचीन काल से लेकर आज तक प्रयासरत  है  |  त्रिशंकु भी शायद ऐसे ही किसी श्राद्ध पक्ष के पंडित का सताया हुआ होगा, तभी उसने सशरीर स्वर्ग जाने का निर्णय किया होगा | 
 
श्राद्ध पक्ष का पंडित आपसे कहता है कि '' आचमन कीजिये यजमान  '' आप  श्रद्धा पूर्वक आचमन ग्रहण करते हैं | इतने में उसका मोबाइल  बजने लगता है | वह फ़ोन में व्यस्त हो जाता है |   इसके बाद उसे जिस घर में जाना है वहाँ की लोकेशन समझने लगता है | आप इतनी देर में चार बार आचमन ग्रहण कर लेते हैं | पूरी ज़मीन गीली हो जाते है लेकिन पंडित जी का दिल नहीं पसीजता | जो मोबाइल कल तक आपको वरदान लगता था, जिसकी तारीफ करते नहीं अघाते थे | वही आज अचानक से अभिशाप लगने लगता है |
 
पहले वह स्वयं मन्त्र पढ़ता है [ अगर वाकई पढ़ता है तो, और अगर पढ़ता  है तो सही पढ़ता है या नहीं, आपको नहीं पता   ] फिर आपसे उसी  मन्त्र का जाप करने के लिए कहता है | आप ज्यूँ ही जाप करने लगते हैं वह आपसे अपना दुखड़ा रोने लगता है | उसे दुःख व आश्चर्य दोनों साथ - साथ है कि कल रात  जिस पंडित से उसकी बात हुई उसने एक ही दिन में चौबीस श्राद्ध करवा दिए, वह भी सुबह के छः बजे से शुरू करके रात के आठ बजे तक  |  वह स्वयं सुबह के तीन बजे से उठकर श्राद्ध करवा रहा है फिर भी उनकी आधी संख्या के बराबर भी नहीं पहुँच पाया | आप मन्त्र भूल कर उसके ग़मगीन मुखड़े, और उसके पास रखे हुए बड़े - बड़े थैलों की ओर  देखने लग जाते हैं, और मन ही मन हिसाब लगाने लग जाते  हैं कि सुबह से इसने  कितनी दक्षिणा कमा ली होगी | इस दौरान आपके मन से माता - पिता के लिए उमड़ने वाली श्रद्धा गायब हो जाती है और आप अपनी थोक के भाव ली गई डिग्रियों, एक आध स्वर्ण पदक, जो कि माता पिता की इच्छा के चलते कभी आपके गले में लटके थे, और उन को हजारों जगह दिखा कर बहुत मुश्किल से एक जगह  प्राप्त हुई अदना सी नौकरी  को धिक्कारने लगते हैं |  आपको याद आते हैं अपने हाई स्कूल के दिन, जब संस्कृत पढ़ने में नानी याद आ जाया करती  थी | आप भगवान् से मनाते  थे कि कोई चमत्कार हो जाए और आपको लकार याद हो जाएं | सारे भगवानों की भक्ति के बावजूद आपको विभक्ति याद नहीं होती थी | पुरुष कंठस्त नहीं करने में  जब हथेलियों में मोटे - मोटे डंडे पड़ते थे, तब आपको संस्कृत पढ़ाने वाले उस पुरुष अध्यापक से ही घृणा  हो गई थी | आपने अंग्रेज़ी  के कालों और डायरेक्ट - इनडायरेक्ट, एक्टिव - पेसिव   को याद करना बेहतर समझा और अंग्रेज़ी की कक्षा में जाकर बैठ गए | जिसकी वजह से आप  आज   डायरेक्टली यह महसूस करते हैं  कि जबसे नौकरी लगी है 'यस  सर'', ''नो सर'', ''सौरी सर'' के आलावा आपने अंग्रेज़ी का कहीं और कोई प्रयोग  नहीं किया है  | आपको ऑफिस में बॉस की छोटी - छोटी  सी बात में मिलने वाली बड़ी - बड़ी  फटकार और पिए गए सारे अपमान के घूँट याद आने लगते  है | आपके गले में कुछ फंसने लगता है, जिसे आप पानी पी कर निगल लेते हैं |
 
श्राद्ध पक्ष का पंडित वह होता है जिसकी ज़ुबान पर मन्त्र और निगाह में वह थैला  होता  है जिस पर आपने दान देने वाली  सामग्री रखी होती है | वह चावलों की किस्म और कपड़े की क्वालिटी का बारीकी से निरीक्षण करता है | वह मन्त्रों के बीच - बीच में आपको हिंट भी देता रहता है कि '' आजकल लोग अपने वस्त्रों और भोजन के ऊपर चाहे हजारों खर्च कर दें लेकिन अपने मात - पिता के निमित्त पंडित को देने के लिए वही थोक वाला मोटा चावल और मारकीन का पतला कपडा लाते हैं | जबकि यह सामान सीधा पितरों तक पहुँचता है, जिनकी वजह से आज सब कुछ आपके पास है |  जाने  क्या करेंगे इतना पैसा जमा करके ? जाना सबको खाली हाथ ही होता है " |  आप डर जाते हैं और जैसे ही पंडित अगला फ़ोन अटेंड  करने के लिए बाहर जाता है आप थोक वाले चावल की जगह  वह बासमती चावल, जो आपने बॉस की दावत के लिए मंगाया था,  थैले में रख देते हैं |
 
 जितनी दक्षिणा आपने लिफाफे में रखी है, उससे दोगुनी वह रेजगारी के रूप में  विभिन्न कार्यों के निमित्त   रखवा लेता है | आप पिछले एक महीने से एक - एक रूपये के सिक्के जमा करके रखते है, वह कहता है पाँच का सिक्का रखिये | अपनी नाक बचे रखने के लिए मजबूरन आपको सब जगह पाँच -  पाँच के सिक्के  रखने पड़ते हैं | आपका  श्राद्ध के लिए बनाया  हुआ बजट सरकारी  बजट की तरह घाटे में चला जाता है |
 
श्राद्ध पक्ष के धुरंधर पंडित वे होते हैं जो यजमान  के कम से कम बीस बार फ़ोन करने  पर  आते हैं | उन्हें लाने ले जाने के लिए आपको गाड़ी भेजनी पड़ती है | खुद की हुई तो ठीक वर्ना किसी से भी मांग कर आपको उन्हें ससम्मान लाना पड़ता है | आपने अपने किसी भी कार्य  के लिए चाहे पड़ोसी से गाड़ी ना मांगी हो लेकिन इस कार्य के लिए आपको उनके आगे हाथ फैलाना पड़ता है | आपके स्वाभिमान की धज्जियां उड़ जाती हैं | इस किस्म के पंडित  किसी यजमान के घर खाना नहीं खाते हैं | वे लंच को पैक करवा के ले जाते हैं |
 
पूर्व में बुक किया हुआ पंडित अगर अत्यंत व्यस्तता के कारण  ना आ पाए  तो आप जिस पंडित को  अर्जेंट श्राद्ध करने के लिए बुलाते हैं वह बहुत स्पष्टवादी होता है | वह हँसते हुए कहता देता है  ''वैसे तो अर्जेंट काम की दक्षिणा दोगुनी होती है, आगे जैसी आपकी मर्जी '' | यहां पर आपकी मर्जी चाह कर भी नहीं चल पाती है, और आपको दोगुनी दक्षिणा देनी पड़ती है |
 
श्राद्ध पक्ष का असली  पंडित वह होता है जो आपको सुबह आठ बजे का समय दे और रात के आठ बजे आए | जिस माँ ने आपको बचपन से लेकर जवानी  तक एक भी पल भूखा न रखा हो, उसी माँ के श्राद्ध में आपको पूरे दिन भूखा रहना पड़ता है | आप बार बार फ़ोन मिलाते हैं, वह बार बार यही कहता है '' अभी पाँच मिनट में आ रहा हूँ '' | बाद में तो वह फ़ोन उठाने की जहमत भी नहीं उठाता |
 
जैसा कि हर वर्ग में होता है कुछ लोग समय से आगे निकल जाते हैं और कुछ लोग पिछड़ जाते हैं | श्राद्ध पक्ष के पिछड़े पंडित वे होते हैं जो पूरी श्रद्धा से श्राद्ध कर्म करवाते हैं जिसमे तीन घंटे  लगें या चार, उनके स्थाई यजमान  उनके बदले किसी और की सेवाएं ले लें , उन्हें कोई चिंता नहीं होती | ऐसे पंडितों से यजमान  प्रसन्न रहते हैं, लेकिन उनके  घर में सदा कलह का वातावरण रहता है, बीबी - बच्चे चौबीसों घंटे मुँह फुलाए रहते हैं, माता - पिता हर घड़ी कोसते हैं  |  ऐसा पंडित घरों से खाना खाकर ही जाता है | सिर्फ़  श्राद्ध के लिए ज़रा सा भोजन बनाने वालों के लिए यह कठिन संकट का समय होता है | ऐसा पंडित अगले दो घंटे तक खाना बनने तक  इंतज़ार कर लेता है, लेकिन भूखा नहीं जाता | इधर काफ़ी वर्षों  से उसके अन्दर भी परिवर्तन आने लगा है | वह यजमानों  की नस पहचानने लगा है | उसने  लिफाफों के अन्दर  रखी हुई दक्षिणा का अनुमान लगाना सीख लिया  है | जिस दौरान वह आपसे पिंड बंधवाता है, आपको बातों - बातों में कह देता है कि '' जब लोग दक्षिणा कम देते हैं तो मैं उनसे कुछ नहीं कहता, बस मन ही मन भगवान् से शिकायत करता हूँ कि मैंने तो पूरी श्रद्धा से  श्राद्ध करवाया फिर भी यजमान ने मात्र सौ के नोट में टरका दिया |  भगवान् कहीं ना कहीं हिसाब बराबर कर देता है, इसीलिये यजमान ! मैं  कम दक्षिणा की  शिकायत किसी से  नहीं करता'' |  यजमान  से इतना कह देना ही काफ़ी होता है | आप पंडित की इतनी ऊँची पहुँच से घबराकर चुपके से एक सौ का नोट और जेब से निकालकर  लिफाफे में डाल देते  हैं |
 
इधर समाज के धनाढ्य वर्ग के प्रेमियों के अन्दर अपनी  प्रेमिकाओं  के जन्मदिन या ऐसे  ही कोई दिन क्यूंकि  प्रेमिकाओं  का हर दिन प्रेमी के लिए ख़ास होता है, के लिए पूरा मल्टीप्लेक्स होटल या रेस्टोरेंट  बुक करने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है | ये लोग श्राद्ध के दिनों में  पंडित का पूरा दिन बुक करा लेते हैं | ऐसे श्राद्ध में दक्षिणा कितनी होती है यह पूछना भी फ़िज़ूल है | हमारे ज्ञान चक्षुओं  के खुलने के लिए बस इतना समझ लेना काफ़ी  है कि  श्राद्ध पक्ष ही वह पक्ष होता है जब आपको देवभाषा के महत्त्व का पता चलता है, और पंडित ही वह माध्यम है जिसके द्वारा हम इसके  महत्त्व को जान पाते हैं  |
 
 
 
 
 
 
 
 
 

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

साठ की उम्र में माँ बनना और सास - बहू संवाद......

साठ की उम्र में माँ बनना  और सास - बहू संवाद......
 
किया है  तूने मुझे ज़िंदगी भर तंग
जी भर के अब बदले चुकाउंगी | 
दादी और नानी तो मैं पहले  ही से थी
माँ बन के तुझको फिर से दिखाउंगी |
डाल के तेरी गोद में ननद और देवर
क्लब और पार्टियों में मौज उड़ाउंगी |
 
कहा था मैंने एक दिन जब बहू !
हो गया है मुझको तो गठिया
तूने कहा था पागल तो पहले ही से थी
अब गई हो पूरी की पूरी  सठिया
 देख लेना जी भर के अब
 शुगर और बी. पी. तेरा. कैसे मैं बढ़ाउंगी |
 
सोचा था तूने इकलौती हूँ बहू
जायदाद का मज़ा अकेले ही उड़ाउंगी |
अभी तो हूँ बहूरानी! साठ ही की 
सत्तर पे आउंगी तो लाइन लगाउंगी |  
 
रात भर करती हो चेटिंग
दिन भर भेजो तुम स्क्रेप |
तेरी उन सेटिंगों में
सेंध अब लगाउंगी |
तेरे बॉय फ्रेंडों को पटाकर 
हालत पे तेरी एक ब्लॉग मैं बनाउंगी |
 
 

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

नई दिल्ली से कॉमनवेल्थ स्पीकिंग .....शेफाली

नई दिल्ली से कॉमनवेल्थ स्पीकिंग .....
 
 
मैं नई दिल्ली से कॉमनवेल्थ बोल रहा हूँ | मुझ पर मीडिया ने और लोगों ने  तरह - तरह के आरोप लगाए | लेट लतीफी और भ्रष्टाचार के कारण मुझे और मेरे परम मित्र काल- दाड़ी को  बदनाम करने में किसी ने कोर कसर नहीं छोड़ी | अब जब खेल शुरू होने में कुछ ही समय बाकी रह गया है, मैं इस बात का खुलासा करना चाहता हूँ कि ऐसा क्यूँ हुआ ? और इसके पीछे  कौन - कौन से कारण जिम्मेवार थे ? 
 
भारत वर्ष में  घोटाले ना हों, भ्रष्टाचार ना हों तो आम जनता के पास बात करने के विषय ख़त्म हो जाएंगे |  हमने आम जनता को बोलने का अवसर प्रदान किया | तमाम लेखकों, व्यंग्यकारों, कार्टूनिस्टों, स्वतंत्र, परतंत्र  पत्रकारों को लिखने का प्लेटफोर्म उपलब्ध कराया | बरसों से कुंद पड़ी हुई कलमकारों की कलमों को  नई  धार मिली | ईमानदार लोगों को खुल कर बेईमान लोगों गाली देने  का  मौका दिया | जिन लोगों की ईमानदारियां सालों से ए. टी. एम्. में पड़ी - पड़ी सड़ रही थीं, जो कि मजबूरियों की  पैदाइश  थीं, क्यूंकि उनके पास खाने - पीने का विभाग नहीं थे, उन लोगों ने इस मौके को जम कर कैश किया  | 
 
हमने देशवासियों को कई महीनों तक मुफ्त नॉन - स्टॉप मनोरंजन प्रदान किया | सोचिये,  अगर कॉमनवेल्थ खेल यूँ ही आते और यूँ ही  चले जाते तो किसी को आनंद नहीं आता |  सच्चा  आननद तभी संभव होता है जब आयोजन में ज्यादा से ज्यादा कमियाँ उजागर हो, विदेशी थू - थू करें | दुनिया तमाशा देखे | चारों ओर से छीछालेदर का कोई मौका ना छूटने पाए  | लानतें, मलामतें भेजने में सब अपना योगदान दें, तभी हमें असीम आनंद की प्राप्ति हो पाती है |  
 
कितना अफ़सोस होगा मेरे देश वालों को, जब अमेरिका भ्रष्टाचार की सूची जारी करे और हमारे देश का कहीं  नामो - निशान तक ना हो | हम भारत का नाम ढूंढते रह जाएं, और हमारा पड़ोसी देश हमसे बाजी मार ले जाए | हमारे सच्चे मेडल  इन्हीं सूचियों में छिपे हुए हैं |
 
 हकीकत तो यह है देशवासियों, वो हम ही हैं जिनके माध्यम से आपने देश के लिए भिखारियों की ज़रुरत और अहमियत को पहचाना |  गौ माताओं  के महत्त्व को स्वीकार किया |  
 
 हम पर इलज़ाम है कि हम खेल गाँव और दिल्ली की गन्दगी को दूर नहीं कर पाए | असल बात तो यह है कि हम भारत वासी सदियों से आत्मा की सफाई के विषय में चिंतित रहा करते हैं | हमने सदैव शारीरिक, मानसिक, सामाजिक विकास की अपेक्षा व्यक्ति के आध्यात्मिक   विकास पर बल दिया है | हमारा मानना है कि अगर आपकी आत्मा साफ़ है तो आपको सर्वत्र साफ़ - सफाई दिखेगी | अगर आत्मा मैली - कुचैली है तो आपको सब तरफ कूड़ा - करकट ही नज़र आएगा | जिस तरह से पश्चिमी देश के  प्रतिनिधियों  ने यहाँ आकर गन्दगी के दर्शन किये इससे यह स्पष्ट हो गया कि उनकी आत्माओं को साफ़ - सफाई एवं शुद्धिकरण की बहुत ज़रुरत है | यहाँ पश्चिमी देशों से मेरा अभिप्राय वे  सभी  देश हैं जो भारत की गन्दगी के विषय में आलोचना कर रहे हैं, चाहे वे किसी भी दिशा में क्यूँ ना स्थित हों | भारत सरकार को चाहिए कि इन मेहमानों की अशुद्ध  आत्माओं को शुद्ध करने  के लिए इनके साथ वापसी में बाबाओं को ज़रूर  भेजा जाए | यह तय है कि हमारे बाबा लोग उनकी और उनके देशवासियों की  आत्माओं की ऐसी सफाई करेंगे कि आने वाले समय में   हमारे देश में और उनके देश में कोई फर्क ढूंढें से भी नहीं मिलेगा |
 
हम पर इलज़ाम है कि हम गन्दगी के ढेर में रहने वाले गरीब मुल्क के वासी हैं, हम क्या ख़ाक मेहमाननवाजी करेंगे | जबकि असलियत यह है कि जब आदमी गरीब होता है, वह बहुत बढ़िया मेहमाननवाज़ होता है |  जैसे - जैसे उसके पास पैसा आता जाता है  वह , मेहमाननवाजी से मुँह मोड़ने लगता है | गरीब की झोंपड़ी में आने वाले मेहमान को छप्पन व्यंजन मिल सकते हैं, चाहे वे उधार लेकर ही क्यूँ ना बनाए गए हों |  इसीलिये राहुल गाँधी ने  सदा गरीब की झोंपड़ी को खाना - खाने के लिए प्राथमिकता दी | गरीब आदमी मेहमान के  जाते समय स्वागत सत्कार में कमी - बेशी  के लिए जहाँ हाथ  - जोड़कर माफी भी मांगता है,  वहीं अमीर आदमी एक कप चाय और दो बिस्किट में मेहमान को टरका देने में संकोच नहीं करता है |
 
 
''अतिथि देवो भव'' आदिकाल से  भारत की परंपरा रही है | चूँकि इस बार कॉमनवेल्थ भारत में हो रहे हैं, इस कारण से तय्यारियों  की सारी कमान स्वयं देवताओं ने संभाली है, ताकि उनके भाई - बंधुओं का उचित प्रकार से स्वागत सत्कार हो सके  | जिसे  लोग कमरे में पाया  गया  मामूली साँप कह कर दुष्प्रचारित कर रहे थे, वह साँप नहीं था, असल में  भगवान् शिव द्वारा भेजा गया उनका प्रतिनिधि सर्प था | आने वाले दिनों में अगर श्वान, वानर, मूषक, उलूक, वृषभ,  भी व्यवस्था का जायजा लेने के लिए आएं  तो कतई आश्चर्य मत कीजियेगा | जानवरों के नाम संस्कृत में लिख देने से उनके आदरणीय हो जाने की  गुंजाइश प्रबल हो गई है  | 
 
मेरा  स्पष्ट रूप से यह मानना है कि भारत के पदक तालिका में सबसे ऊपर आने की संभावनाओं से डरे हुए विदेशी मुल्कों  ने भारत के विषय में कुप्रचार किया | कहा गया कि फुट ब्रिज बनने से पहले ही टूट गया | अन्दर की बात यह है कि  लम्बी कूद के लिए आने वाले  खिलाड़ियों की परख करने के  लिए उसे जान बूजकर तोड़ा गया था | यह भी अफवाह फैलाई गई कि मुक्केबाज बिजेंद्र सिंह पलंग से गिर गए | जबकि वह पलंग ख़ास तौर से उनके लिए बनवाया गया था | वह उनका प्रतियोगिता के लिए क्वालिफाइंग राउंड था | ऐसा चोरी - छिपे इसलिए करना पड़ा क्यूंकि एक बार ओलम्पिक जैसे खेल का मेडल मिल जाए तो कोई भी भारतीय  खिलाड़ी क्वालिफाइंग राउंड पास करना अपनी शान के खिलाफ समझता  है  | 
 
भारत की जनता को को हमारा शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि हमारी वजह से लोगों इस साल की रिकोर्ड तोड़ बारिश,  बाढ़,  भूस्खलन, भूकंप ,मलेरिया, डेंगू इत्यादि के विषय में सोचने का मौका ही नहीं मिला | हमारी  वजह से देश में अयोध्या मामले जैसे अति  संवेदनशील मुद्ददे पर भी  साम्प्रदायिक सौहार्द कायम रहा | विभिन्न पार्टियों के नेतागण फ़ैसला आने के बाद होने वाले दंगों का इंतज़ार करते रह गए और आम जनता सुबह - शाम कॉमनवेल्थ - कॉमनवेल्थ रटती रही |
 
 

बुधवार, 15 सितंबर 2010

हो रहा भारत निर्माण .........शेफाली

हो रहा भारत निर्माण .........
 
कहीं  सड़ रहा  गोदामों में,         
कहीं भीग रहा मैदानों में |
सुप्रीम कोर्ट की डांट से भी  
जूं  ना रेंगे कानों में |
अनाज का वितरण,
कठिन लग रहा ,
पैसे का आसान |
दूर कहीं दो रोटी की खातिर,
फिर नत्था ने छोड़े प्राण |
 
हो रहा भारत निर्माण .........
 
डूब गए हैं खेत घर,
डूब गए हैं गाँव - शहर |
नहीं थम रहा किसी तरह,
पानी का ऐसा कहर |
नुकसान करोड़ों का हुआ  ,
अरबों के बनते प्रस्ताव |
किसी का आटा हुआ है गीला,  
किसी का छप्पर गई है फाड़, 
अबके बरस की बाढ़ |
 
हो रहा भारत निर्माण .........
 
ये है कॉमनवेल्थ  का खेल,
मेहमानों की इस आवभगत को,
घोटालों की चली है रेल |
खेल - खेल में इतना डकारा, 
छोर मिला ना मिला किनारा |
खुल के खाओ, और  खिलाओ,
है चारों तरफ तनी  हुई
सरकारी पैसे की आड़ | 

 हो रहा भारत निर्माण .....
 
 कैसी बनी हुई है यह धुन,
कैसा बना हुआ है गान ?
करोड़ों रुपया लेकर  भी,
चढ़ पाई ना किसी ज़ुबान |
जिसकी धुन पर दुनिया नाचे,
कहाँ चूक गया वो  रहमान ?
कौन निकालेगा अब आकर
दिल्ली की छाती पर
बिंधे हुए ज़हरीले बाण ?
 
हो रहा भारत निर्माण......
 
भ्रष्टाचार की नींव तले |
करेले हैं ये नीम चढ़े |
सारे दावे हुए खोखले,
हमाम में सब नंगे मिले |
जनम- जनम के दुश्मन देखो,
कैसे हँस - हँस  गले मिले |
विश्वास नहीं तिनकों का भी अब, 
छिप जाते हैं  बिन दाड़ |
 
हो रहा भारत निर्माण......

मंगलवार, 14 सितंबर 2010

हिन्दी - अंग्रेजी का युद्ध ...

हिन्दी दिवस के उपलक्ष्य में एक पुरानी रचना ........
 
हिन्दी - अंग्रेजी का वाक् युद्ध
 
अंग्रेजी ................................
तू हो गयी है आउट ऑफ़ डेट,
मार्केट में  तेरा नहीं है कोई रेट | 
तू जो मुँह से निकल जाए,
लडकी भी नहीं होती सेट | 
 
तेरी डिग्री को गले से लगाए,
नौजवान रोते रहते हैं |
तुझे लिखने , बोलने वाले,
फटेहाल ही  रहते हैं |
 
 
जिस पल से तू बन जाती है,
किसी कवि या लेखक की आत्मा | 
उसे बचा नहीं सकता फाकों से,
ईसा, खुदा या परमात्मा | 
 
मैं जब मुँह से झड़ती हूँ,
बड़े - बड़े चुप हो जाते हैं|
थर - थर कांपती है पुलिस भी,
सारे काम चुटकी में हो जाते हैं |
 
तुझे बोलने वाले लोग,
समाज के लिए बेकवर्ड हैं |
मैं लाख दुखों की एक दवा,
तू हर दिल में बसा हुआ दर्द है |
 
मैं नई दुनिया की अभिलाषा,
तू गरीब,  गंवार की भाषा |
मैं नई संस्कृति का सपना,
तू जीवन की घोर निराशा |
 
ओ  गरीब की औरत हिन्दी !
तू चमकीली ओढ़नी पर घटिया सा पैबंद है |
तेरे स्कूलों के बच्चे माँ - बाप को भी नापसंद हैं |
मैं नई - नई बह रही बयार हूँ |
नौजवानों का पहला -पहला प्यार हूँ |
 
मुझ पर कभी चालान नहीं होता |
मुझे बोलने वाला भूखा नहीं सोता |
मुझमे बसी लडकियां कभी कुंवारी नहीं रहतीं |
शादी के बाद भी किसी का रौब नहीं सह्तीं |
मुझको लिखने वाले बुकर और नोबेल पाते हैं |
तुझे रचने वाले भुखमरी से मर जाते हैं |
 
हिन्दी .........................................
मेरे बच्चे तेरी रोटी  भले ही खा लें,
तेरी सभ्यता को गले से लगा लें,
सांस लेने को उन्हें मेरी ही हवा चाहिए|
सोने से पहले मेरी ही गोद चाहिए|
 
बेशक सारे संसार में आज,
तेरी ही तूती बोलती है |
मार्ग प्रगति के चहुँ ओर,
तू ही खोलती है |
पर इतना समझ ले नादाँ,
माँ फिर भी  माँ ही होती है |

रविवार, 5 सितंबर 2010

आखिर क्यूँ ना बढ़े सांसदों का वेतन और क्यूँ न मिलें उन्हें भाँति - भाँति के भत्ते ?

 
जो स्वार्थी लोग सांसदों को मिलने वाले भाँति भाँति के  भत्तों  और वेतन में बढ़ोत्तरी  का विरोध  कर रहे हैं उनसे मेरा   यह कहना है कि   संसदाई  का  काम अब बहुत कठिन हो चला है | यूँ लोगों का यह भी मानना है कि आजकल हर सरकारी काम कठिन हो चला है | संसदाई के काम में तरह - तरह के जोखिम उठाने पड़ते हैं | टिकट के बंटवारे से शुरू हुआ संघर्ष का सफ़र किसी भी पदनाम  की कुर्सी  प्राप्ति तक जारी रहता है | साम, दाम, दंड, भेद  के समस्त प्रकार [अगर होते हों ] अपनाने पड़ते हैं | इसीलिये  साथियों, माननीय महोदयों   को कुछ भत्ते और मिलने चाहिए, जिन पर लोगों का ध्यान नहीं गया लेकिन जिन्हें दिए बिना इस वेतन बिल के  पास होने का कोई औचित्य नहीं रह जाएगा  |  

 पहले संसदाई के काम में  मानसिक श्रम करना पड़ता था | परन्तु विगत कुछ वर्षों से इसमें शारीरिक श्रम भी शामिल हो गया है | हलके -फुल्के जूते चप्पलों और से लेकर भारी - भरकम मेज - कुर्सियां, यहाँ  तक  की  माइक तक   उखाड़कर   अध्यक्ष के आसन तक और एक दूसरे के ऊपर फेंकने के लिए ताकत की आवश्यकता  होती है | पिछले दिनों इस प्रक्षेपण के अभियान में गमले भी शामिल हो गए हैं  | बिना किसी की बात सुने घंटों तक गला फाड़ - फाड़ कर हो - हल्ला मचाना कोई आसान बात नहीं है | हम मास्टर होकर भी लगातार दो घंटे तक नहीं बोल सकते | कभी कभार जब ऐसी परिस्थिति आती है तो हम अगले दो दिनों तक प्रतिकार के रूप में कक्षा में मौन व्रत धारण कर लेते हैं | प्रक्षेपण और चीख -पुकार का  यह  कार्यक्रम निर्बाध गति से चलता रहे इसके लिए माननीय  सांसदों को इतना वेतन अवश्य मिलना चाहिए जिससे वे पौष्टिक आहार ले सकें | दूध, बादाम इत्यादि खा सकें और अपने शरीर को स्वस्थ रख सकें  |इसके लिए सरकार से मेरा अनुरोध  है कि वह सांसदों को पुष्टाहार  भत्ता देने के सम्बन्ध में गंभीरता से विचार करे |  
 
 कुछ लोग, जिसमें  मेरे जैसे मास्टर लोग ज्यादा हैं, अक्सर सोचते हैं कि हमारे स्कूलों में जब बच्चे कुर्सी - मेज़ तोड़ते हैं, तो उन्हें दंडस्वरूप बैठने के लिए फटी  चटाई   दी जाती है | टूटे हुए फर्नीचर की मरम्मत के लिए सारी कक्षा से पैसे जमा करवाए जाते हैं |  पता नहीं संसद में ऐसा क्यूँ नहीं होता | मेरा सुझाव है कि संसद में भी दरी बिछा देनी चाहिए | दरी में बैठने के बहुत फायदे हैं एक तो तोड़ - फोड़ की गुंजाइश नहीं रहती , दूसरे कतिपय  सांसद  प्रश्नकाल  के  दौरान  नींद आने पर  दरी में आराम  से  सो  सकते हैं  | वैसे तो बड़ी - बड़ी कंपनियों  की  तर्ज़  पर  संसद में भी एक  झपकी  रूम  होना  चाहिए , जहाँ  टी. वी.  के  कैमरे न लगे हों  |
 
 सांसदों का वेतन और भत्ते अवश्य बढ़ने चाहिए | पांच साल की सर्विस के दौरान  साल में पांच  बार तो अवश्य ही बढ़ना चाहिए | कुछ दिलजले  लोग, जो बिना पसीना बहाए नेता बनने का ख्वाब देखा करते  थे, पर सफल नहीं हो पाए ,  यह  अफवाह उड़ाते हैं कि  एक बार नेता बनने का मतलब है  कई  पीढ़ियों तक कुछ करने की ज़रुरत नहीं है |  कुछ सात पीढ़ी कहते हैं आजकल  कुछ लोग  तेरह भी  कहने  लगे   हैं | पीढ़ियों का विवाद जारी है | इस पर विद्वानों के बीच अभी मतैक्य नहीं हो पाया  है | शोधकार्य जारी है | शोधकार्य के नतीजे आने तक हमें ऐसी अफवाहों पर ध्यान नहीं दिया जाना चाहिए | इसके लिए ऐसे आदमी की खोज की जा रही है जिसने किसी नेता की तेरह  नहीं  तो  कम  से कम  सात  सात पीढियां तो  अवश्य  देखी हों |   
 
हमें याद रखना चाहिए कि जब वे चुनाव के दौरान अपनी संपत्ति की घोषणा करते हैं तो कितने बेचारे होते हैं | स्वयं के पास बस एक साइकिल होती है लेकिन पत्नी के पास मोटरसाइकिल, स्कूटर, कार, बोंड, निवेश, जेवरात, ज़मीन, बंगले  से लेकर तमाम तरह के ऐशो - आराम की वस्तुएं मौजूद होती हैं |  ऐसे त्यागी महामानवों को  त्याग भत्ता देने के विषय में गंभीरता से विचार होना चाहिए  |
 
इधर जनता का मिजाज भी बहुत तेज़ी से बदल रहा है | पहले वह निर्विकार भाव से वोट देती थी | नेतागण भी पंद्रह - बीस साल तक निश्चिन्त हो जाते थे | लेकिन अब जनता जिसे एक बार भारी वोटों से जिताकर गद्दी पर बैठाती है, अगले ही चुनाव पर  उसकी जमानत ज़ब्त करवाने में नहीं हिचकिचाती | ऐसे अनिश्चय के माहौल में, जहाँ सरकारी होते हुए भी जॉब सीक्योरिटी  नहीं है, नेतागिरी का काम और कठिन हो जाता है |  ऐसे में सांसदों को जॉब सीक्योरिटी एलाउंस भी दिया जाना चाहिए |
 
ऐसा भी सुनने में आया कि तनखाह कम होने के कारण सांसदों को भ्रष्टाचार की शरण में जाना पड़ता था | इससे हमें पता चलता है कि विगत वर्षों में जितने भी   घोटाले हुए सब इसी  मजबूरी का परिणाम रहे हैं |  किसी माननीय ने यह बात भी उठाई थी की उनका ईमानदारी का  वेतन उनसे मिलने वाले आगंतुकों को  चाय पिलाने में ही ख़त्म हो जाता है  |विश्वस्त सूत्रों के द्वारा ज्ञात हुआ है कि ये घोटाले लोगों के चाय प्रेम के कारण हुए हैं, क्यूंकि   भारतवर्ष में घर  हो  या  सरकारी  कार्यालय,  बिना चाय  पिए और  पिलाए कोई  पल्ला  नहीं  छोड़ता  |  चाय जैसा तुच्छ समझे जाने वाला पेय पदार्थ सख्त से सख्त  फाइलों को इधर से उधर सरकाने के महत्वपूर्ण कार्य में कितना सहायक सिद्ध होता है, यह बताने की ज़रुरत नहीं है  | इससे यह स्पष्ट हो गया की भारतवासी चाय पीना छोड़ दें तो भ्रष्टाचार अपने आप कम हो जाएगा | विदेशी  आगंतुकों  को चाय  के अलावा समोसे , मिठाई ,नमकीन  खिलाने  के  लिए  कतिपय  नेताओं  ने  कॉमनवेल्थ   घोटाले  का  सहारा  लिया , जिस  पर  काफी  हो  - हल्ला  मचा  | लेकिन  अब  जनता  समझ  चुकी  है  कि   यह   मजबूरी  में  किया  गया  था  ताकि  हमारे  देश  की  ''अतिथि  देवो  भाव'' वाली   साख  पर  ज़रा सी बात पर  बट्टा  ना  लगा  जाए |  मजबूरी  का नया नामकरण यह हो सकता है '' मजबूरी का नाम जालसाजी, धोखेबाजी '' |गांधीजी  माफ़  करें   सही  तुक  नहीं बैठ  पा   रहा  | आम कर्मचारी  की मजबूरी कुछ सौ से लेकर कुछ हज़ार पर आकर ठहर जाती है  | लेकिन  पद जितना बड़ा होता है , मजबूरियाँ व  घोटाले भी उसी अनुपात में बढ़ते जाते हैं |   माननीय सांसदों को इतने वर्षों का मजबूरी भत्ता मय एरियर के दिया जाने की व्यवस्था होनी चाहिए |
 
माननीय सांसदों को एक भत्ता और दिए जाने की मैं पुरज़ोर सिफारिश करती हूँ | इसका नाम है आकस्मिक या केजुअल भत्ता |   आकस्मिक रूप से होने वाली पिटाई, यदा - कदा सामूहिक रूप से जनता द्वारा  गालियाँ पड़ने पर यह भत्ता दिया जाना चाहिए |जैसा कि मैं पहले ही बता चुकी हूँ कि इस काम में अब सुरक्षा नहीं रह गई | बीते दिनों एक विधायक को किसी ने सरे कैमरा   थप्पड़ लगा दिया | वह रो रहा था और जनता पहली बार किसी नेता के रोने का लाइव टेलीकास्ट  देखकर प्रसन्न हो रही थी | सदा मिस कॉल देने वाले भी फोन या मेसेज करके  इस  आश्चर्य मिश्रित खुशी की  सूचना एक दूसरे को दे रहे  थे  | क्वीन   बेटन  के  स्वागतार्थ  झाँकने के लिए आँगन में तक नहीं आने वाली जनता  इस ऐतिहासिक एवं दुर्लभ क्षण का गवाह बनने  की चाह में सड़कों पर टूटी  पड़ रही थी  |  
 
जिस तरह से सुप्रीम  कोर्ट को देश के हर मामले में चाहे वह व्यक्तिगत हो या सार्वजनिक, फटकार लगानी  पड़ती है, आने वाले दिनों में वह बात पर भी सरकार को फटकार लगा सकता  है कि गेहूँ की तरह बैंकों में भी पैसा पड़े - पड़े सड़ रहा है, इसे गरीबों में बाँट दो | बहुसंख्य जनता  इसे सुझाव जैसा  कुछ मान रही हैं, कुछ को यह फटकार लग रही है तो  कुछ  इसे आदेश कह रहे हैं  | इस पर एक कमेटी बैठा दी गई है | पता लगाया जाएगा कि क्या कारण है  जब सुप्रीम कोर्ट आदेश करता  है तो लगता है कि सुझाव दे रहा है, वहीं सोनिया गाँधी सुझाव भी देती है तो वह आदेश लगता है | 
 
कई लोगों का सदियों से यह मानना रहा है कि अगर गरीबों के हाथ में पैसा आ गया तो निश्चित तौर से वे इस पैसे का दुरूपयोग करेंगे | वे पेट भर के खाएंगे | तन ढकेंगे | बाद में सिर ढकने का इंतजाम भी करना चाहेंगे | गरीबों के पास सौन्दर्य बोध जैसी चीज़ नहीं होती अतः वे रोटी, कपडा और हो सके तो मकान पर खर्च करके  अंततः रुपयों का दुरुपयोग ही करते हैं | इससे पहले कि सुप्रीम कोर्ट इस सड़ते हुए पैसों को भी गरीबों में बंटवाने का [मान लिया तो आदेश अन्यथा सुझाव] दे,   - सरकार को  यह सड़ता हुआ पैसा अविलम्ब सांसदों को बंटवा देना चाहिए | उनके पास सौन्दर्य बोध और गरीबी, दोनों  प्रचुर मात्रा में मौजूद  है |
 
विचारणीय प्रश्न यह है कि  जिस तरह हम मास्टरों का वेतन बढ़ने के साथ हमारे ऊपर सरकार का शिकंजा कसता जा रहा है,  आये दिन छापामारी अभियान, सूक्ष्म निरीक्षण, गहन निरीक्षण, सतत निरीक्षण और नाना प्रकार के विविध  नामों के  निरीक्षण और इतने ही नामों से मूल्यांकन शुरू हो गए हैं | जल निगम, विद्युत् विभाग, क्षेत्र का पटवारी, ग्राम प्रधान से लेकर  किसी भी विभाग का कोई भी कर्मचारी जब चाहे आ कर हमारे  विद्यालयों का निरीक्षण करके अपने बहुमूल्य सुझाव या अमूल्य फटकार दे सकता है | हमारे विद्यालयों में आए दिन धमक जाने वाले  अधिकारी और  सरकारी आदेश बिना किसी लाग लपेट के इसी एक वाक्य से  शुरूआत  करते  है '' चूँकि आपको केंद्र के बराबर वेतन दिया जा रहा है '',  इसीलिये आपको वे सभी सरकारी काम करने पड़ेंगे  जो हम आदेश करेंगे  |  गौरतलब है कि उनके मुंह से  कभी हमको नहीं निकलता | इससे हमें लगता है कि तनखाह बढ़ोत्तरी पर सिर्फ अफसरों का हक़ होना चाहिए था | शिक्षक को अवैतनिक सेवा करनी  चाहिए, तनखाह जैसी तुच्छ चीज़ के लिए लालच नहीं करना  चाहिए | कतिपय शिक्षकों ने  हस्ताक्षर अभियान शुरू किया है जिसमे यह कहा गया है  कि इस तरह के आए दिन होने वाले  उत्पीड़न  को सहने से अच्छा तो यह है कि तनखाह की बढ़ोत्तरी वापिस हो  जाए  | ये लोग रोज़ कक्षा में जाकर पढ़ाने को भी उत्पीड़न की श्रेणी  में रखते हैं | क्या  सांसदों का वेतन बढ़ने पर उनके कार्यों का भी  इसी  तरह मूल्यांकन संभव होगा ? उनके कार्यों की भी सघन जांच करी जाएगी ?  

गुरुवार, 2 सितंबर 2010

तेरी याद .....

तेरी याद .....
आज भी जब तेरी याद
मुझको गले से लगाती है
मैं बैचैन हो जाती हूँ | 
इधर - उधर टकराकर 
खुद को चोट लगा लेती हूँ |
कभी गर्म कढ़ाई के तेल के छींटों से 
 हाथ जला लेती हूँ |
आईने के रूबरू होने से
डरती हूँ, भाग जाती हूँ | 
तुझे सोचकर, तुझे देखकर 
तुझे बोलकर, तुझे लिखकर 
तेरी यादों से खुद को लपेटकर 
तेरी हर सांस को अपने आस - पास  
महसूस करती हूँ |
काश ! तुम मेरे पास होते |
पर, अगर तुम सचमुच होते 
तो क्या मैं तुम्हें इतना प्यार कर पाती 
इतनी शिद्दत से याद कर पाती ? 

गुरुवार, 26 अगस्त 2010

कितने कब्रिस्तान ?

 
कितने कब्रिस्तान ?
मेरी आँखें बहुत सुखद सपना देख रही हैं | सरकारी स्कूलों में जगह - जगह पड़े गड्ढे वाले फर्श के स्थान पर सुन्दर टाइल वाले फर्श हैं |  उन गड्ढों में से साँप, बिच्छू, जोंक इत्यादि  निकल कर कक्षाओं में भ्रमण नहीं कर रहे हैं | जर्जर, खस्ताहाल, टपकती दीवारों की जगह  मज़बूत और सुन्दर रंग - रोगन करी हुई दीवारों ने ले ली है |  दीवारों का चूना बच्चों की पीठ में नहीं चिपक रहा है | दीमक के वजह से भूरी हो गई दीवारें अब अपने असली रंग में लौट आई हैं | अब बरसात के मौसम में कक्षाओं के अन्दर छाता लगाकर नहीं बैठना पड़ता | खिड़की और दरवाज़े तक आश्चर्यजनक रूप से सही सलामत हैं | कुण्डियों में ताले लग पा रहे हैं | बैठने के लिए फटी - चिथड़ी चटाई की जगह सुन्दर और सजावटी फर्नीचर कक्षाओं की शोभा बढ़ा रहे हैं | पीले मरियल बल्ब जो हर हफ्ते तथाकथित अदृश्य ताकतों द्वारा गायब कर दिए जाते हैं,  की जगह कभी ना निकलने वाली हेलोज़न लाइटें जगमगाने लगी  है | बाबा आदम के ज़माने के पंखे, जिनका होना न होना बराबर है, बरसात में जिनके नीचे बैठने के लिए बच्चों को मना किया जाता है कि  ना जाने कब सिर पर गिर पड़े, की जगह आधुनिक तेज़ हवा वाले पंखो ने ले ली है |  मेरे सपने भी इतने समझदार हैं कि कूलर और ए. सी. के बारे में भूल कर भी नहीं सोच रहे हैं |
 
इन भविष्य के निर्माताओं  की झुकी हुई गर्दन और रीढ़ की हड्डी कुर्सी - मेज में बैठने के कारण सीधी हो गई  है | कुर्सियों  से निकलने वाली बड़ी - बड़ी कीलें कपड़ों  को फाड़ना भूल चुकी  हैं | बैठने पर शर्म से मुँह छिपा रही हैं | ब्लेक बोर्ड मात्र नाम का ब्लैक  ना होकर वास्तव में ब्लैक हो गया है | कक्षाओं में रोज़ झाड़ू लगता है |शौचालय साफ़ सुथरे हैं | अब उनमे आँख और नाक बंद करके नहीं जाना पड़ता |
 
कक्षा - कक्षों  में इतनी जगह हो गई है कि  इन भविष्य के नागरिकों के सिरों ने एक दूसरे से  टकराने से इनकार कर दिया  है | जुओं का पारस्परिक आवागमन  बंद हो गया है |
 
स्कूलों के लिए आया हुआ धन वाकई स्कूल के निर्माण और मरम्मत के कार्य में लग रहा है | उन रुपयों से प्रधानाचार्य के बेटे की मोटर साइकिल, इंजीनियर की नई कार, ठेकेदार की लड़की की शादी, निर्माण समिति के सदस्यों के  कैमरे  वाले मोबाइल नहीं आ रहे हैं | सबसे आश्चर्य की बात यह रही कि स्थानीय विधायक, जिनकी कृपा से धन अवमुक्त हुआ, का दस प्रतिशत के लिए आने वाला अनिवार्य  फ़ोन नहीं आया |    
 
 कीट - पतंगों के छोंके के बिना रोज़ साफ़ - सुथरा मिड डे मील  बन रहा है | विद्यालय के चौकीदार की पाली गई बकरियां और मुर्गियां, दाल और चावल पर मुँह नहीं मार रही हैं | इन्हें  वह उसी दिन खरीद कर लाया था जिस दिन से स्कूल में भोजन बनना शुरू हुआ था  | सवर्ण जाति के बच्चे अनुसूचित जाति  की भोजनमाता के हाथ से बिना अलग पंक्ति बनाए और बिना नाक - भौं  सिकोड़े  खुशी - खुशी भोजन कर रहे हैं | 
 
अध्यापकगण  जनगणना, बालगणना, पशुगणना, बी. पी. एल. कार्ड, बी.एल. ओ. ड्यूटी, निर्वाचन नामावली, फोटो पहचान  पत्र, मिड डे मील का रजिस्टर भरने के बजाय  सिर्फ़ अध्यापन का कार्य कर रहे हैं | कतिपय अध्यापकों ने  एल. आई. सी.  की पोलिसी, आर. डी. , म्युचुअल फंडों के फंदों  में साथी अध्यापकों को कसना छोड़ दिया है  | ट्यूशन खोरी लुप्तप्राय हो गई है | ब्राह्मण अद्यापकों द्वारा जजमानी  और कर्मकांड करना बंद कर दिया गया है |  नौनिहालों  को  ''कुत्तों,  कमीनों, हरामजादों, तुम्हारी बुद्धि में गोबर भरा हुआ है, पता नहीं कैसे - कैसे घरों से आते हो '' कहने के स्थान पर  ''प्यारे बच्चों'', ''डार्लिंग'', ''हनी'' के संबोधन से संबोधित किया जा रहा है  | अध्यापकों के चेहरों पर चौबीसों घंटे टपकने वाली मनहूसियत का  स्थान आत्मीयता से भरी  प्यारी सी मुस्कान ने ले लिया है | डंडों की जगह हाथों में  फूल बरसने लगे हैं | कक्षाओं में यदा - कदा ठहाकों की आवाज़ भी सुनाई दे रही है | पढ़ाई के समय मोबाइल पर बातें  करने के किये  अंतरात्मा स्वयं को धिक्कार रही है | स्टाफ ट्रांसफर, इन्क्रीमेंट, प्रमोशन, हड़ताल, गुटबाजी, वेतनमान, डी. ए. के स्थान पर शिक्षण की नई तकनीकों और पाठ को किस तरह सरल करके पढ़ाया जाए, के विषय में चर्चा और बहस  कर रहे हैं |  अधिकारी वर्ग मात्र खाना - पूरी करने के लिए आस  - पास के स्कूलों का दौरा करने के बजाय दूर - दराज के स्कूलों पर भी दृष्टिपात करने का कष्ट उठा रहे  हैं |
 
सब समय से स्कूल आ रहे हैं | फ्रेंच लीव मुँह छिपा कर वापिस फ्रांस चली गई है | निर्धन छात्रों  के लिए आए हुए रुपयों से दावतों का दौर ख़त्म हो चुका है | अत्यधिक निर्धन  बच्चों की फीस सब मिल जुल कर भर रहे हैं | पैसों   के अभाव  में  किसी को स्कूल छोड़ने की ज़रुरत नहीं रही  | सारे बच्चों के तन पर बिना फटे और उधडे हुए कपड़े हैं | पैरों में बिना छेद  वाले  जूते - मोज़े विराजमान हैं | सिरों  में तेल डाला हुआ है और बाल जटा जैसे ना होकर करीने से बने हुए हैं | कड़कते  जाड़े  में  कोई  बच्चा  बिना स्वेटर के दांत  किटकिटाता नज़र नहीं आ  रहा है | फीस लाने में देरी हो जाने पर  बालों को काटे जाने की प्रथा समाप्त हो चुकी है |
 
माता - पिता अपने बच्चों के भविष्य के लिए चिंतित हो गए हैं | हर महीने स्कूल आकर उनकी प्रगति एवं गतिविधियों की जानकारी ले रहे हैं |बच्चों के बस्ते रोजाना चेक हो रहे हैं | एक हफ्ते में धुलने वाली यूनिफ़ॉर्म  रोज़ धुल रही है | उन पर प्रेस भी हो रही है | भविष्य के नागरिक  ''भविष्य में क्या बनना चाहते हो?" पूछने पर मरियल स्वर में  ''पोलीटेक्निक, आई. टी. आई., फार्मेसी  या  बी.टी.सी. करेंगे'' कहने के स्थान पर जोशो - खरोश के साथ  ''बी. टेक., एम्.बी. ए., पी.एम्.टी. करेंगे'' कह रहे हैं  | 
 
 भारत के भाग्यविधाताओं को अब खाली पेट  स्कूल नहीं आना  पड़ता | प्रार्थना स्थल पर छात्राएं धड़ाधड करके  बेहोश नहीं हो रही हैं | उनके शरीर पर देवी माताओं ने आकर कब्जा करना बंद कर दिया है,  ना ही कोई विज्ञान का अध्यापक उनकी झाड़ - फूंक, पूजा - अर्चना करके उन्हें  भभूत लगा कर शांत कर रहा है |
 
एक और सपना साथ - साथ चल  रहा है |
 
 मलबे में दबे हुए अठारह मासूम बच्चों के लिए सारे स्कूलों में शोक सभाएं की जा रही हैं | स्कूलों में छुट्टी होने पर कोई खुश नहीं हो रहा है | लोग  ह्रदय से दुखी हैं | दूसरे धर्मों को मानने वाले  स्कूल यह नहीं कह रहे हैं  ''इस स्कूल के बच्चे वन्दे - मातरम्  गाते थे अतः  हम इनके लिए शोक नहीं करेंगे '' ना ही किसी के मुँह से यह सुनाई दे रहा है कि '' अरे! बच्चे पैदा करना तो  इनका कुटीर उद्योग है,  फिर कर लेंगे | इन्हें मुआवज़े की इतनी तगड़ी रकम मिल गई यही क्या कम है''
 
विद्यालय  कब्रिस्तान के बजाय फिर से विद्या के स्थान बन गए हैं, जहाँ से वास्तव में विद्यार्थी निकल रहे हैं, विद्यार्थियों की अर्थियां नहीं |

शुक्रवार, 20 अगस्त 2010

कामवालियां बनाम घरवालियाँ ...

 
 
काम वाली बाई  की तलाश में मैंने अपने कई रविवार शहीद कर डाले | घरवालों के लाख ताने कसने के बावजूद कि '' कामवालों का कोई भरोसा नहीं होता, कब किस को लूट लें और काट डालें, कह नहीं सकते", मैंने कामवाली को ढूंढना नहीं छोड़ा | मुझे लुट जाना  और मर जाना मंज़ूर था पर कामवाली के बिना रहना मंज़ूर नहीं था  |  इस मिशन के तहत मैंने हर आने - जाने वाली महिला को गौर से देखा |  उनके चेहरे की भावभंगिमाओं का सूक्ष्मता से अध्ययन किया | इस गहन अध्ययन के उपरान्त कुछ निष्कर्ष निकाले जिन्हें सबके सामने प्रस्तुत कर रही हूँ |
 
 कामवाली .................
वह  सदा सिर उठाकर चलती है | दिन भर कमरतोड़ मेहनत करने के बाद भी उसके  चेहरे पर राई - रत्ती शिकन भी ढूँढने से नहीं मिलती |
 सदा चाक - चौबंद रहती है | कैसी भी परेशानी क्यूँ ना आए वह सदा हँसती मुस्कुराती, पान, सुपारी  चबाती रहती है |उसकी रग - रग से बला का आत्मविश्वास टपकता है | वह ज़रा सा ऊँचा बोलने पर या कल क्यूँ नहीं आई कहने पर बेझिझक कह देती है ''मेरे पास बहुत काम है, आप कोई और  ढूंढ लो" | उसके ऐसा कहते ही कहने वाली घरवाली  खिसियाकर चुप हो जाती  है और डर के मारे खालिस दूध वाली बढ़िया सी चाय बना कर उसके हाथ में थमा देती है, जाते समय अपना पिछले हफ्ते खरीदा नया सूट भी हँसते हँसते दे देती है |  
 
वह रोज़ शाम को मसालेदार चिकन, मटन या मछली बनाती है | महंगाई का विचार किये बिना  थोडा - थोडा पड़ोसियों और आस - पास रहने वाले रिश्तेदारों को भी भिजवाती है  | उसके दरवाजे से कोई भी भूखा नहीं जाता |
 
 कई बच्चे होने के बावजूद उसे किसी के भविष्य के विषय में चिंता नहीं होती ना ही किसी को को लेकर अस्पताल जाने की नौबत आती है |
 
 बिना किसी संकोच के वह अपने शरीर पर लगे हुए  चोट के निशानों के सन्दर्भ में बताती  है '' आदमी ने मारा , बहुत कमीना है साला, मैंने भी ईंटा उठा कर सिर फोड़ दिया साले का , आइन्दा से मारेगा तो दूसरा घर कर लूंगी "  |
 
 वह महीने के पहली तारीख को अधिकारपूर्वक एडवांस तनख्वाह  मांग लेती है |  महीने की आठ छुट्टियों पर  बिना किसी जी. ओ . के  उसका अधिकार होता है, जिसे लेने के  लिए उसे  किसी  किस्म का बहाना नहीं बनाना पड़ता है, ना ही घरवालों में से किसी को अचानक बीमार घोषित करना पड़ता है , और तो और ना ही इन छुट्टियों को  पूर्व में स्वीकृत  करवाना पड़ता है | साल में दो बार यात्रावाकाश लेने में उसे किसी किस्म का संकोच नहीं होता, ना ही सुबूत के तौर पर यात्रा का टिकट प्रस्तुत करना पड़ता है | 
 
घरवाली ..................
 
वह  आटे - दाल के भाव पर दुकानदार से घंटों तक बहस करने की क्षमता रखती है, बहस के परिणामस्वरूप बचे हुए दो रूपये पाकर निहाल हो जाती है | घर में  ज़रा - ज़रा सी बात पर ताव खा जाती  है, बच्चों को पीट डालती है |  बिना महंगाई का रोना रोए  हुए सास - ससुर और पति को खाना नहीं परोसती   |
 
वह चोटों के निशान को छुपाने की कला में पारंगत होती है, चेहरे पर नील के निशान को '' बाथरूम में फिसल गई थी" कहकर  मुस्कुरा देती  है | साथियों, बार - बार चेहरे के बल गिरना कोई आसान बात नहीं होती है |
 
 वह  छुट्टी के दिन भी बड़ा सा पर्स लेकर मुँह लटकाए हुए पंद्रह सौ रुपयों के लिए स्कूल जाती है | अचानक बीमार पड़ने पर भी उसे केजुअल लीव नहीं मिलती, क्यूंकि वह पूर्व में स्वीकृत नहीं होती | वह विरोध करने में सक्षम नहीं होती और उसकी तनख्वाह काटने में अधिकारी  कतई संकोच नहीं करता | 
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उसका  मात्र एक बच्चा होता है | हजारों टन कोम्प्लान, बोर्नविटा पीने और महंगे से महंगे टोनिक को पीने के बाद भी जिसे हर हफ्ते अस्पताल ले जाना पड़ता है ,जिसके भविष्य की चिंता में उसे अभी से नींद नहीं आती, ब्लड प्रेशर हाई और भरी जवानी में शुगर की बीमारी हो जाती है | पिछले कई सालों  से नींद की गोली खाए बिना वह सो नहीं सकती है  |
 
इस कामवाली खोज अभियान के तहत एक बार जिस औरत के अत्यंत साधारण से कपड़े देखकर मैं गलती से पूछ बैठी थी कि '' झाड़ू - पोछे का कितना लोगी ?" वह बुद्धिजीवी महिला निकल गई | उसने  बिना झाड़ू के मुझे सिर से लेकर पैर तक झाड़ दिया |   अपनी पूरी डिग्रियों सहित उसने मुझ पर आक्रमण कर दिया | उसने मुझे बताया कि उसकी औकात मेरे जैसी दस को खड़े - खड़े खरीदने की है |  ''सादा जीवन उच्च  विचार'' की पूरी फिलोसोफी  मिनटों में समझा दी | मुझे आँख होते हुए भी अंधी ठहराते हुए उसने गुस्से में  यह बताया  कि उसने पाँच  विषयों से एम्. ए. किया है, दो से पी. एच. डी. और एक से डी.लिट.| किस - किस यूनिवर्सिटी से उसे कौन कौन से पदक मिले, जाते जाते यह बताना वह नहीं भूली | मैं उसकी डिग्रियों के बोझ तले दब गई | उस दिन से मैंने तौबा कर ली कि किसी के बारे में कपड़े देखकर राय नहीं बनानी चाहिए | एक बार  मेरे साथ ऐसा भी हुआ है कि वह महिला जिसे मैं उसके द्वारा पहिने हुए शानदार कपड़ों  को देखकर सोचती थी ज़रूर कोई अमीर और संभ्रांत घर से ताल्लुक रखती  होगी और बड़ी श्रद्धा से  सुबह - शाम नमस्ते [उसे कम और उसके कपड़ों को ज्यादा] किया करती थी, वह कामवाली बाई निकली |
 
साथियों अपने इस खोज अभियान में मैंने अंतिम रूप से यह निष्कर्ष निकाला कि वर्तमान समय में यदि कोई स्वाभिमान की ज़िंदगी बिता सकती है तो वह कामवाली बाई है | 

रविवार, 18 जुलाई 2010

लाल, बॉल और पॉल .......

लाल, बॉल और पॉल .......

फ़ुटबाल के विश्वकप के दौरान तुम्हारी निरंतर सच होती भविष्य वाणियों  ने मुझे महंगाई को छोड़कर तुम्हारे विषय सोचने  पर मजबूर कर दिया है | आज से पहले मैं तुम्हें मात्र एक घिनौने से दिखने वाले सी फ़ूड के तौर पर देखती थी और आश्चर्य करती थी कि लोगों को तुम्हारे आठ पैरों को खाने में कितना परिश्रम करना पड़ता होगा |

 

उधर जर्मनी में तुम्हारे दुश्मन तुम्हें मारने की कोशिश में जुट गए हैं | तुम्हें यहाँ भारत आकर अपना धंधा ज़माने के विषय में सोचना चाहिए  | यहाँ तुम्हारा धंधा जम गया तो तुम्हारी सात पुश्तों को समुद्र में जाकर खाना जुटाने  की ज़रुरत नहीं रहेगी |

 

हे आठ पैरों वाले प्राणी ! यहाँ तुम्हारी भविष्यवाणी  कभी गलत साबित नहीं होंगी, अगर कभी गलत हुई भी तो तुम कह सकोगे कि तुम्हारी भविष्यवाणी तो सही थी पर जातक की कुण्डली ठीक नहीं बनी थी | पंडित ने जल्दबाजी करके कुण्डली बनाई है | सारा दोष उस पंडित पर मढ़ कर हम उसकी नई कुण्डली बनाएँगे, और उसके अलग से पैसे वसूलेंगे |
 

हमारे यहाँ यह ख़ास बात है कि एक डॉक्टर सदा दूसरे डॉक्टर के बनाए हुए पर्चे को, और एक ज्योतिषी दूसरे ज्योतिषी की बनाई  हुई कुण्डली को गलत ठहराता  हैं | हमारे पास बचने के और भी कई उपाय रहेंगे | हम उस समय की घड़ियों, डॉक्टरों या नर्सों पर  आसानी से  शक कर सकते हैं | घर पर हुए प्रसव   तो हमारे धंधे में सबसे अच्छे माने जाते हैं  क्यूंकि इसमें  समय के गलत नोट होने  की प्रबल संभावना होती है |

 

हम बिना किसी संकोच के  ग्राहक से कह सकेंगे कि आपने हमें गुमराह किया | हम सूर्य के हिसाब से गणना कर रहे थे और आप हमें चन्द्र कुण्डली दिखा रहे थे |

 

हम दोनों मिलकर कुछ  ऐसा करेंगे कि आने वाला कोई भो होराहू -केतु या शनि का दान किये बिना जाने ना  पाए दान लेने के लिए भी हमारे अपने एजेंट होंगे दान केवल उन्हीं को दिया जाएगा क्यूंकि  कुपात्र के हाथ में दान चले जाने से फल उलटा भी हो सकता है हम भी  डॉक्टर की तरह काम करेंगे जो  उसी पेथोलोजी की रिपोर्ट को सही मानते हैं  जहाँ से उनका  कमीशन बंधा होता है | हम नाना प्रकार की अफवाहें फैलाएंगे कि फलाने ने बाबाजी का कहा  नहीं माना  और हमारे बताए हुए इंसान को दान नहीं दिया तो तो आज वह अर्श से फर्श पर आ गया |

 

इन सब के अतिरिक्त हमारे पास काल सर्प, अकाल सर्प, साढ़े साती, राहू केतु की कुदृष्टि, अंतर पर प्रत्यंतर दशा, नक्षत्र , मूल और एक हज़ार नाना प्रकार की दशाओं पर दोषारोपण करने की सुविधा मौजूद रहेगी | नेताओं की तरह हमारे यहाँ बाबाओं के बचने के भी बहुत उपाय होते  हैं हमारा धंधा चलने से कोई नहीं रोक सकता | तुम्हारे आठों पैर घी में और सिर कढ़ाई में रहेगा |

 

 

सुनो हे अष्टपाद ! तुम भारत भूमि में बहुत सफल रहोगे, क्यूंकि तुम्हारे पास आठ हाथ हैं, जिन पर तुम नाना प्रकार के रत्न धारण कर सकते हो | हम इंसानों  की उँगलियों में दो या तीन से ज्यादा अंगूठियाँ पहिनने की ही गुंजाइश होती है, उन्हीं के बल पर हमारे बाबा लोगों का धंधा चल निकलता है | जितनी ज्यादा अंगूठियाँ, उतना ज्यादा ज्योतिष ज्ञान | लेकिन तुम्हारे हाथ कानून से भी लम्बे होने के कारण  तुम उनमे कई प्रकार के रत्न धारण कर सकते हो हमारी  पहली कोशिश यही होंगी कि आने वाला रत्नों की चकाचौंध  से   अँधा हो जाए | हम पहले जातक की कुण्डली बाचेंगे फिर रत्नों को पहिनने की अनिवार्यता के विषय में नाना प्रकार की  अफवाहें फैलाएंगे  | चमत्कार के विषय में अफवाह फैलाने वाले एजेंटों  को नियुक्त करेंगे | हमारी कोशिश यही रहेगी कि आने वाला आए तो खाली हाथ, लेकिन जाते समय उसकी हर अंगुली  विविध प्रकार की अंगूठियों से सुसज्जित  हो |

 

  इन सब के अलावा हम वास्तु शास्त्र या फेंगशुई पर भी थोडा -बहुत दोष डाल सकते हैं | हम कहेंगे कि आपका भाग्य तो बहुत प्रबल था पर घर में वास्तु दोष होने के कारण आपका पतन हो गया | वास्तु दोष दूर करने  के लिए हम उनके घरों को फिर से तोड़ - फोड़ करवाएंगे  | जितना मकान बनवाने में उसका खर्चा नहीं हुआ होगा उससे ज्यादा  उसकी तोड़ - फोड़ में करवा देंगे | ज़ाहिर सी बात है कि इस काम के लिए भी हमारे अपने ठेकेदार होंगे | हम तब तक उसे विभिन्न दशाओं में उलझाए रहेंगे जब तक हमारी  दशा ना सुधर जाए |
 
हमारे  भारत  में  आसामी की जेब जितनी मोटी दिखती  है गृह चाल उतनी ही तीव्र हो जाती है नाना प्रकार के  दोष और उतने ही  निवारण के उपाय निकल जाते हैं |

 

 हे पॉल ! तुम्हारी भविष्यवाणियों से खार खाए हुए ज़र्मनी  वासी तुम्हारी जान के पीछे हाथ धोकर पड़ गए हैं | यहाँ भारत आने पर तुम्हें हमारी सरकार जेड प्लस की सुरक्षा प्रदान करेगी | हमारे यहाँ बाबाओं का आदिकाल से ही बहुत सम्मान होता है | इधर - उधर से भागे हुए चोर, बदमाश, कातिल , डाकू, लुटेरेबाबाओं का वेश धारण करके पहाड़ों की गोद में बसे  किसी भी गाँव में जाकर अपनी धूनी रमा लेते हैं | जनता उनके चरणों में शीश नवाती है | भूख से आम आदमी  भले ही मर जाए लेकिन बाबाओं को कभी भूखा नहीं सोना पड़ता | उन्हें भगवान् का दर्जा दिया जाता है | दुनिया की कोई भी पुलिस उसको नहीं ढूंढ सकती है | भला भगवान् पर कोई इंसान  कैसे हाथ डाल सकता है | फिर कभी ऐसा भी होता है कि पुलिस पक्के सुबूत लेकर आती है और तब गाँव वाले बाबाजी को पुलिस के सामने आम आदमी की तरह गिड़गिड़ाते   हुए देखते हैं | 

 

तुम्हारे लम्बे - लम्बे आठ पैर होने के एक सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि मुफ्त में जन्मपत्री दिखाने वाले फोकटियों, जो पुरानी पहचान का वास्ता देते हुए बिना जेब ढीली किये हुए ही - ही करके कुण्डली दिखाने चले आते हैंउनकी जेब से तुम आराम से पैसा निकाल सकते हो | चूँकि तुम्हारे हाथ कानून से भी ज्यादा लम्बे होते हैं इसीलिये उनका सदुपयोग भी कानून की तरह ही होना चाहिए |

 

हे ऑक्टोपस ! तुम समुद्री जीव  हो, अतः समुद्र के अन्य जीवों  के प्रति भी तुम्हारा कुछ दायित्व  होना चाहिए | सदियों से हमारे यहाँ के पंडित  मछलियों को गृह शान्ति के नाम पर चारा डलवाते रहे | मछलियों को चारा डलवाने में उन्हें यह सुविधा होती थी कि शाम को उसकी स्वादिष्ट पकौड़ियाँ मिल जाया करती  थीं  | अब समय आ गया है कि चारे से मछलियों का एकाधिकार समाप्त किया जाए और अन्य समुद्री जीवों यथा - केकड़े, साँप, झींगा आदि को भी चारे की परिधि के अन्दर लाया जाए | हम इसकी एवज़ में उनसे हफ्ता वसूलेंगे हफ्ते में एक दिन जब तुम समुद्र के अन्दर वसूली के लिए जाओगे, उस दौरान हम यह प्रचारित करेंगे कि बाबा ध्यान करने और अपनी समुद्री शक्तियों को रीचार्ज करने गए हैं |

 

 

तुम्हें जर्मनी वासियों से भयभीत होने की कोई ज़रुरत नहीं है | वैसे भी वहाँ तुम्हारी असीमित प्रतिभा को सिर्फ़ फुटबाल तक सीमित करने की साज़िश रची जा रही हैसदियों से भारत को बाबाओं का और साधु - संतों का देश कहा जाता है, इसीलिये तुम पर पहला अधिकार हमारा बनता है |  इसीलिये हे पॉल ! तुम बिलकुल  चिंता  मत  करो  क्यूंकि हम तुम्हें यहाँ लाने के हर संभव उपाय करेंगे |