कल का दिन
बहुत ख़ास था
सभी पोस्टों का
एक ही सुर
एक ही साज़ था
हर ब्लॉग में
बह रही मीठी
बयार थी
थके, बुझे चेहरों
में भी
छाई हुई बाहर थी
ना कोई विरोध
का स्वर गूंजा
ना कहीं पर
कीचड़ उछला
हर पंक्ति जैसे
जीवंत हो जाना
चाहती थी
हर आँख मानो
भीग जाना चाहती थी
शब्द सारे के सारे
एक और मुड़ गए
सबके दिलों के तार
एक तार से जुड़ गए
उससे गले
हम भले ही
ना लग पाए हों
कोई तोहफा, कोई फूल
खरीद ना पाए हों
हर पोस्ट, हर टिप्पणी में
वो सांस बनके छा गयी
चारों दिशाओं से
निकल कर माएँ
एक ही जगह पे आ गईं
ऐसे में साथियों
मुझको एक और माँ की
सहसा याद आ गयी
जिसको हम माँ
भले ही कह जाते हैं
उसके साथ खुद को
लेकिन
कभी जोड़ नहीं पाते हैं
उसके आंसुओं को कभी
पोछ नहीं पाते हैं
उस भारत माँ के नाम पर
हम कभी क्यूँ
एक नहीं हो पाते हैं ????