शुक्रवार, 29 अक्तूबर 2010

कृपया ब्लॉग जगत के साथी मेरी मदद करें...

मैं ब्लॉग जगत के उन सभी साथियों का आभार प्रकट करती हूँ, जिन्होंने मुझे मेरे जन्मदिन पर शुभकामनाएं  प्रेषित की, और मुझे मेरी बढ़ती उम्र का एहसास दिलाया | मैं उन साथियों की इससे ज्यादा आभारी हूँ जिन्होंने मुझे शुभकामनाएँ प्रेषित नहीं की, जिससे मुझे उम्र संबंधी तनाव का सामना नहीं करना पड़ा |
 
इससे पहले कि महापुरुषों की तरह  मेरी जन्मतिथि पर विवाद खड़ा हो जाए, भविष्य में मुझ पर रिसर्च करने वालों को किसी असुविधा का  सामना  करना पड़  जाए,  बिना किसी प्रयास के प्रसिद्द हो जाऊं, मैं अपनी सही जन्मतिथि के विषय में  कुछ खुलासा करना चाहती हूँ, ताकि अगले वर्ष बधाई देने वालों को कन्फ्युज़ियाने  का मौका ना मिल पाए |
 
साथियों मेरे जन्म के विषय में इतना पक्का है कि मेरा जन्म धरती पर उस दिन हुआ था जब रावण मरने के पश्चात पैदा होने के लिए अगला शरीर ढूंढ रहा था, अर्थात दशहरे के अगले दिन | सत्ताईस अक्टूबर की रात एक बजकर पचपन मिनट पर [ ज्योतिष भाई इसके आधार पर भविष्यवाणी करने की कोशिश ना करें, क्यूंकि सरकारी अस्पताल में एच. एम्. टी. की घड़ी में समय देखने वाली डॉक्टर या नर्स की जानकारी की विश्वसनीयता के विषय में मुझे सदा संदेह रहा है, क्यूंकि  मेरे  विषय की गई कोई भी  कभी भी  भविष्यवाणी सही सिद्ध नहीं  हो पाई  ] हुआ था |
 
मेरे जन्म के विषय की कथा भी बहुत रोचक है | मैं फ़िल्मी माहौल में आँखें खोलते खोलते रह गई | आजकल जब किसी अभिनेता या अभिनेत्री को यह कहते हुए सुनती हूँ कि उसने फ़िल्मी वातावरण में आँखें खोलीं हैं तो बहुत कोफ़्त होती है | पाँच सितारा अस्पतालों में जन्म लेने वाली ये पीढ़ी क्या जाने कि वास्तव में फ़िल्मी माहौल में आँख खोलना क्या होता है | मेरी माँ की पूरी कोशिश थी कि मैं फ़िल्मी माहौल में ही पहली बार आँखें खोलूं |
 
  स्पष्ट  कर दूं  कि  माँ  की  दूर - दूर तक फ़िल्मी दुनिया में  कोई रिश्तेदारी नहीं थी | माँ हिन्दी फिल्मों की घनघोर शौक़ीन थी | पिताजी उस समय '' बागेश्वर'' जैसी छोटी सी जगह पर पोस्टेड थे |उस समय वह वाकई बहुत छोटा हुआ करता था, जहाँ ढंग का एक सिनेमाहाल तक नहीं था | इसीलिये माँ को कोई भी नई फिल्म देखने १० - १२ घंटे का पहाड़ का सफ़र तय करके अपने मायके ''हल्द्वानी'' आना पड़ता था | नाना जी कुमायूं मोटर ओनर्स यूनियन में काम करते थे | '' नवीन बाबू की लडकी हूँ '' कह देने मात्र से ही कंडक्टर आगे की सीट दिलवा देता था | पास मांगने का तो सवाल ही नहीं उठता था | नाना जी के रिटायर होने के बाद इस बात का खुलासा हुआ कि उनके तमाम रिश्तेदार और यहाँ तक कि दूर के परिचित भी नवीन बाबू की बेटियां या बेटे बन कर मुफ्त यात्रा किया करते थे | 
 
मेरे पैदा होने से करीब हफ्ता भर  पहले माँ को खबर लगी कि हल्द्वानी में राजेश खन्ना की कोरा कागज़ पिक्चर लगने वाली है | मुझे पेट में  और भाई को गोद में लेकर माँ हल्द्वानी आ गई | अपने मायके के कुछ रिश्तेदारों को साथ लेकर [ जिनका टिकट वही देती थी, जो  उसे  नई  नई  पिक्चरों  के लगने  की  सूचनाएं  उन्हीं  कंडक्टरों  के हाथ  भिजवाया  करते  थे,  ] वह राजेश खन्ना के दीदार करने आ गई | उसी रात प्रसव पीड़ा के चलते अस्पताल में भर्ती हुई और मेरा जन्म हुआ | मेरे पैदा होने के दो दिन  बाद हाल में '' सगीना'' लग गई थी, जिसे देखने जाने से माँ को बहुत मुश्किल से रोका गया |
 
पैदा हुई तो बड़ा भी होना ही था | बड़ा होना था तो कभी न कभी विवाह भी होना ही था | विवाह होने के लिए हमारे समाज में सबसे अनिवार्य  शर्त  आज  भी जन्मपत्रियो   का मिलान  ही है | जब मेरी जन्मपत्री  मेरी संभावित  ससुराल  भेजी  गई, तब  पता  चला  कि मैं अभी  तक जिसे अपना  जन्मदिन यानी  कि 27 अक्टूबर मान रही  थी, वह 27 ना होकर  28 अक्टूबर है, क्यूंकि अंग्रेज़ी  कलदार  में रात्रि बारह  बजे  के बाद अगला दिन लग जाता  है | धत्त  तेरे  की !  बकौल पति के अनगिनत  दावतें  इस गलत  तिथि  पर कुर्बान  हो गई थी |
 
खैर ! बहुत बहस हुई [ विवाहोपरांत, अन्यथा  विवाह  नहीं होता  ] | इन बहसों का निष्कर्ष यही निकला कि दोनों ही जन्मतिथियाँ  मेरी मानी जाएं, और जिस भी दिन रविवार पड़ेगा, उसी दिन जन्मदिन मनाया जाएगा | यह भी अदभुद  संयोग ही था कि जिस दिन मेरी शादी हुई उसके अगले दिन यानी २७ अक्टूबर को पड़ने वाला मेरा जन्मदिन मेरा बर्थडे  भी था, यानि कि हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों कैलेंडरों  में पहली बार एकता | शायद  यह संयोग इसीलिये  हुआ कि मुझे  निहार  रंजन  पांडे  जैसा सुलझा हुआ  [ पोस्ट की सूचना उनके  ई  मेल  पर जाएगी ]  जीवन  साथी  मिला |
 
दुनिया ने कंप्यूटर  युग में चाहे सालों पहले कदम रख दिया हो, लेकिन मैंने सन् २००८ में रखा | सर्वप्रथम ऑरकुट पर नज़र गई | वाह ! कई ऐसे लोगों से भी दोस्ती हुई जिनसे  रोज़ सड़क में मिलते थे, पर कभी नमस्कार तक नहीं होती थी | ऑरकुट से बाहर अभी भी नहीं होती |   प्रोफाइल  पति ने बनाई, सो २८ अक्टूबर दर्ज कर दी | समय बीतने के साथ मैंने कंप्यूटर को स्वयं फेस  करना सीख लिया, और फेसबुक  पर २७ अक्टूबर दर्ज करने से वे मुझे  रोक न  सके |
 
सन् २००८ से शुरू हुआ यह  हिन्दी और अंग्रेज़ी के कलेंडरों  के मध्य  छिड़ा हुआ विवाद विवाद आज तक जारी है , जिसे सुलझाने में कृपया ब्लॉग जगत के साथी मेरी मदद करें |   

गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

श्राद्ध पक्ष के पंडित .......

 
श्राद्ध पक्ष के पंडित .......
श्राद्ध पक्ष ख़त्म हो चुके हैं | कॉमनवेल्थ खेल ख़त्म होने वाले हैं | श्राद्ध पक्ष के पंडित, जिसके आगे जी आप ना भी लगाना चाहें, तो भी स्वतः ही लग जाता है    हैं,  में और आम दिन के पंडित में उतना ही फर्क होता है जितना कॉमनवेल्थ खेलों के दौरान होने वाले घोटालों में और रोज़मर्रा की ज़िंदगी में सामने आने वाले घोटालों में |
 
हमारे देश में कई तरह के लोग रहते हैं | कुछ लोग अपने माता - पिता का जीते जी बहुत अच्छा श्राद्ध करते हैं | उनके मर जाने के बाद उससे कई गुना शानदार  श्राद्ध करते हैं | उनसे आस पड़ोस, समाज, नातेदार, रिश्तेदार और  पंडित बहुत प्रसन्न रहते हैं | बुजुर्ग मुक्त कंठ से उसकी प्रशंसा करते हैं और 'ऐसा श्रवण कुमार जैसा लड़का सबको दे' कहकर आशीर्वाद देते नहीं थकते  हैं |  कुछ लोग माता पिता का ना जीते जी श्राद्ध करते हैं ना उनके मर जाने के बाद | वे मानते हैं कि माता - पिता की जीते जी सेवा करनी चाहिए | मरने के बाद कौन कहाँ गया किसने देखा ? | ऐसी सोच रखने वाले लोगों को समाज में  अच्छी  नज़र से नहीं देखा जाता  | कंजूस, मक्खीचूस, नास्तिक,नरकगामी 'भगवान् ऐसा कपूत किसी को न दे '  जैसे  कई विशेषण उनके आगे स्वतः जुड़ते चले  जाते हैं |     
 
इधर  श्राद्ध पक्ष में पंडित ढूंढना उतना ही मुश्किल हो गया है जितना एक हिन्दी माध्यम के सरकारी स्कूल में पढ़ी हुई लडकी के लिए वर का मिलना | घर में बुजुर्ग लोग उन सुनहरे दिनों को याद करते हैं,  जब पंडित लोग घर - घर दान की पोटली लेकर घूमा करते थे और श्रद्धा से जजमान जो कुछ भी दे देता था उसे लेकर संतुष्ट होकर आशीर्वाद देकर चले जाते   थे  | वैसे सभी बुजुर्ग लोग पुराने दिनों को याद करने का काम बहुत शिद्दत से करते हैं | सिर्फ़ यही काम वे तन और मन लगाकर करते हैं | कभी - कभार पुरानी बातों को सुनने वाले के ऊपर चाय या समोसे खिलाकर  धन भी खर्च किया कर देते हैं |
 
इधर कुछ वर्षों  से यह होने लगा है कि श्राद्ध पक्ष आने से कई महीने पहले से  पंडित की खोज में   ऐढ़ी -  चोटी  में  का जोर  लगाना पड़ता है  | यहाँ तक की कभी कभी किसी बड़े नेता या मंत्री की सिफारिश भी लगानी पड़ती है | इतना प्रयत्न करने के बाद  वह जिस तरह  से आपके स्वर्गीय माता - पिता या पितरों का श्राद्ध  करवाता है उसे देख कर अक्सर यही महसूस होता है कि हो न हो  इसी  प्रकार की दिक्कतों  के मद्देनज़र  ही आदमी  अमर होने के लिए प्राचीन काल से लेकर आज तक प्रयासरत  है  |  त्रिशंकु भी शायद ऐसे ही किसी श्राद्ध पक्ष के पंडित का सताया हुआ होगा, तभी उसने सशरीर स्वर्ग जाने का निर्णय किया होगा | 
 
श्राद्ध पक्ष का पंडित आपसे कहता है कि '' आचमन कीजिये यजमान  '' आप  श्रद्धा पूर्वक आचमन ग्रहण करते हैं | इतने में उसका मोबाइल  बजने लगता है | वह फ़ोन में व्यस्त हो जाता है |   इसके बाद उसे जिस घर में जाना है वहाँ की लोकेशन समझने लगता है | आप इतनी देर में चार बार आचमन ग्रहण कर लेते हैं | पूरी ज़मीन गीली हो जाते है लेकिन पंडित जी का दिल नहीं पसीजता | जो मोबाइल कल तक आपको वरदान लगता था, जिसकी तारीफ करते नहीं अघाते थे | वही आज अचानक से अभिशाप लगने लगता है |
 
पहले वह स्वयं मन्त्र पढ़ता है [ अगर वाकई पढ़ता है तो, और अगर पढ़ता  है तो सही पढ़ता है या नहीं, आपको नहीं पता   ] फिर आपसे उसी  मन्त्र का जाप करने के लिए कहता है | आप ज्यूँ ही जाप करने लगते हैं वह आपसे अपना दुखड़ा रोने लगता है | उसे दुःख व आश्चर्य दोनों साथ - साथ है कि कल रात  जिस पंडित से उसकी बात हुई उसने एक ही दिन में चौबीस श्राद्ध करवा दिए, वह भी सुबह के छः बजे से शुरू करके रात के आठ बजे तक  |  वह स्वयं सुबह के तीन बजे से उठकर श्राद्ध करवा रहा है फिर भी उनकी आधी संख्या के बराबर भी नहीं पहुँच पाया | आप मन्त्र भूल कर उसके ग़मगीन मुखड़े, और उसके पास रखे हुए बड़े - बड़े थैलों की ओर  देखने लग जाते हैं, और मन ही मन हिसाब लगाने लग जाते  हैं कि सुबह से इसने  कितनी दक्षिणा कमा ली होगी | इस दौरान आपके मन से माता - पिता के लिए उमड़ने वाली श्रद्धा गायब हो जाती है और आप अपनी थोक के भाव ली गई डिग्रियों, एक आध स्वर्ण पदक, जो कि माता पिता की इच्छा के चलते कभी आपके गले में लटके थे, और उन को हजारों जगह दिखा कर बहुत मुश्किल से एक जगह  प्राप्त हुई अदना सी नौकरी  को धिक्कारने लगते हैं |  आपको याद आते हैं अपने हाई स्कूल के दिन, जब संस्कृत पढ़ने में नानी याद आ जाया करती  थी | आप भगवान् से मनाते  थे कि कोई चमत्कार हो जाए और आपको लकार याद हो जाएं | सारे भगवानों की भक्ति के बावजूद आपको विभक्ति याद नहीं होती थी | पुरुष कंठस्त नहीं करने में  जब हथेलियों में मोटे - मोटे डंडे पड़ते थे, तब आपको संस्कृत पढ़ाने वाले उस पुरुष अध्यापक से ही घृणा  हो गई थी | आपने अंग्रेज़ी  के कालों और डायरेक्ट - इनडायरेक्ट, एक्टिव - पेसिव   को याद करना बेहतर समझा और अंग्रेज़ी की कक्षा में जाकर बैठ गए | जिसकी वजह से आप  आज   डायरेक्टली यह महसूस करते हैं  कि जबसे नौकरी लगी है 'यस  सर'', ''नो सर'', ''सौरी सर'' के आलावा आपने अंग्रेज़ी का कहीं और कोई प्रयोग  नहीं किया है  | आपको ऑफिस में बॉस की छोटी - छोटी  सी बात में मिलने वाली बड़ी - बड़ी  फटकार और पिए गए सारे अपमान के घूँट याद आने लगते  है | आपके गले में कुछ फंसने लगता है, जिसे आप पानी पी कर निगल लेते हैं |
 
श्राद्ध पक्ष का पंडित वह होता है जिसकी ज़ुबान पर मन्त्र और निगाह में वह थैला  होता  है जिस पर आपने दान देने वाली  सामग्री रखी होती है | वह चावलों की किस्म और कपड़े की क्वालिटी का बारीकी से निरीक्षण करता है | वह मन्त्रों के बीच - बीच में आपको हिंट भी देता रहता है कि '' आजकल लोग अपने वस्त्रों और भोजन के ऊपर चाहे हजारों खर्च कर दें लेकिन अपने मात - पिता के निमित्त पंडित को देने के लिए वही थोक वाला मोटा चावल और मारकीन का पतला कपडा लाते हैं | जबकि यह सामान सीधा पितरों तक पहुँचता है, जिनकी वजह से आज सब कुछ आपके पास है |  जाने  क्या करेंगे इतना पैसा जमा करके ? जाना सबको खाली हाथ ही होता है " |  आप डर जाते हैं और जैसे ही पंडित अगला फ़ोन अटेंड  करने के लिए बाहर जाता है आप थोक वाले चावल की जगह  वह बासमती चावल, जो आपने बॉस की दावत के लिए मंगाया था,  थैले में रख देते हैं |
 
 जितनी दक्षिणा आपने लिफाफे में रखी है, उससे दोगुनी वह रेजगारी के रूप में  विभिन्न कार्यों के निमित्त   रखवा लेता है | आप पिछले एक महीने से एक - एक रूपये के सिक्के जमा करके रखते है, वह कहता है पाँच का सिक्का रखिये | अपनी नाक बचे रखने के लिए मजबूरन आपको सब जगह पाँच -  पाँच के सिक्के  रखने पड़ते हैं | आपका  श्राद्ध के लिए बनाया  हुआ बजट सरकारी  बजट की तरह घाटे में चला जाता है |
 
श्राद्ध पक्ष के धुरंधर पंडित वे होते हैं जो यजमान  के कम से कम बीस बार फ़ोन करने  पर  आते हैं | उन्हें लाने ले जाने के लिए आपको गाड़ी भेजनी पड़ती है | खुद की हुई तो ठीक वर्ना किसी से भी मांग कर आपको उन्हें ससम्मान लाना पड़ता है | आपने अपने किसी भी कार्य  के लिए चाहे पड़ोसी से गाड़ी ना मांगी हो लेकिन इस कार्य के लिए आपको उनके आगे हाथ फैलाना पड़ता है | आपके स्वाभिमान की धज्जियां उड़ जाती हैं | इस किस्म के पंडित  किसी यजमान के घर खाना नहीं खाते हैं | वे लंच को पैक करवा के ले जाते हैं |
 
पूर्व में बुक किया हुआ पंडित अगर अत्यंत व्यस्तता के कारण  ना आ पाए  तो आप जिस पंडित को  अर्जेंट श्राद्ध करने के लिए बुलाते हैं वह बहुत स्पष्टवादी होता है | वह हँसते हुए कहता देता है  ''वैसे तो अर्जेंट काम की दक्षिणा दोगुनी होती है, आगे जैसी आपकी मर्जी '' | यहां पर आपकी मर्जी चाह कर भी नहीं चल पाती है, और आपको दोगुनी दक्षिणा देनी पड़ती है |
 
श्राद्ध पक्ष का असली  पंडित वह होता है जो आपको सुबह आठ बजे का समय दे और रात के आठ बजे आए | जिस माँ ने आपको बचपन से लेकर जवानी  तक एक भी पल भूखा न रखा हो, उसी माँ के श्राद्ध में आपको पूरे दिन भूखा रहना पड़ता है | आप बार बार फ़ोन मिलाते हैं, वह बार बार यही कहता है '' अभी पाँच मिनट में आ रहा हूँ '' | बाद में तो वह फ़ोन उठाने की जहमत भी नहीं उठाता |
 
जैसा कि हर वर्ग में होता है कुछ लोग समय से आगे निकल जाते हैं और कुछ लोग पिछड़ जाते हैं | श्राद्ध पक्ष के पिछड़े पंडित वे होते हैं जो पूरी श्रद्धा से श्राद्ध कर्म करवाते हैं जिसमे तीन घंटे  लगें या चार, उनके स्थाई यजमान  उनके बदले किसी और की सेवाएं ले लें , उन्हें कोई चिंता नहीं होती | ऐसे पंडितों से यजमान  प्रसन्न रहते हैं, लेकिन उनके  घर में सदा कलह का वातावरण रहता है, बीबी - बच्चे चौबीसों घंटे मुँह फुलाए रहते हैं, माता - पिता हर घड़ी कोसते हैं  |  ऐसा पंडित घरों से खाना खाकर ही जाता है | सिर्फ़  श्राद्ध के लिए ज़रा सा भोजन बनाने वालों के लिए यह कठिन संकट का समय होता है | ऐसा पंडित अगले दो घंटे तक खाना बनने तक  इंतज़ार कर लेता है, लेकिन भूखा नहीं जाता | इधर काफ़ी वर्षों  से उसके अन्दर भी परिवर्तन आने लगा है | वह यजमानों  की नस पहचानने लगा है | उसने  लिफाफों के अन्दर  रखी हुई दक्षिणा का अनुमान लगाना सीख लिया  है | जिस दौरान वह आपसे पिंड बंधवाता है, आपको बातों - बातों में कह देता है कि '' जब लोग दक्षिणा कम देते हैं तो मैं उनसे कुछ नहीं कहता, बस मन ही मन भगवान् से शिकायत करता हूँ कि मैंने तो पूरी श्रद्धा से  श्राद्ध करवाया फिर भी यजमान ने मात्र सौ के नोट में टरका दिया |  भगवान् कहीं ना कहीं हिसाब बराबर कर देता है, इसीलिये यजमान ! मैं  कम दक्षिणा की  शिकायत किसी से  नहीं करता'' |  यजमान  से इतना कह देना ही काफ़ी होता है | आप पंडित की इतनी ऊँची पहुँच से घबराकर चुपके से एक सौ का नोट और जेब से निकालकर  लिफाफे में डाल देते  हैं |
 
इधर समाज के धनाढ्य वर्ग के प्रेमियों के अन्दर अपनी  प्रेमिकाओं  के जन्मदिन या ऐसे  ही कोई दिन क्यूंकि  प्रेमिकाओं  का हर दिन प्रेमी के लिए ख़ास होता है, के लिए पूरा मल्टीप्लेक्स होटल या रेस्टोरेंट  बुक करने की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ रही है | ये लोग श्राद्ध के दिनों में  पंडित का पूरा दिन बुक करा लेते हैं | ऐसे श्राद्ध में दक्षिणा कितनी होती है यह पूछना भी फ़िज़ूल है | हमारे ज्ञान चक्षुओं  के खुलने के लिए बस इतना समझ लेना काफ़ी  है कि  श्राद्ध पक्ष ही वह पक्ष होता है जब आपको देवभाषा के महत्त्व का पता चलता है, और पंडित ही वह माध्यम है जिसके द्वारा हम इसके  महत्त्व को जान पाते हैं  |
 
 
 
 
 
 
 
 
 

रविवार, 10 अक्तूबर 2010

साठ की उम्र में माँ बनना और सास - बहू संवाद......

साठ की उम्र में माँ बनना  और सास - बहू संवाद......
 
किया है  तूने मुझे ज़िंदगी भर तंग
जी भर के अब बदले चुकाउंगी | 
दादी और नानी तो मैं पहले  ही से थी
माँ बन के तुझको फिर से दिखाउंगी |
डाल के तेरी गोद में ननद और देवर
क्लब और पार्टियों में मौज उड़ाउंगी |
 
कहा था मैंने एक दिन जब बहू !
हो गया है मुझको तो गठिया
तूने कहा था पागल तो पहले ही से थी
अब गई हो पूरी की पूरी  सठिया
 देख लेना जी भर के अब
 शुगर और बी. पी. तेरा. कैसे मैं बढ़ाउंगी |
 
सोचा था तूने इकलौती हूँ बहू
जायदाद का मज़ा अकेले ही उड़ाउंगी |
अभी तो हूँ बहूरानी! साठ ही की 
सत्तर पे आउंगी तो लाइन लगाउंगी |  
 
रात भर करती हो चेटिंग
दिन भर भेजो तुम स्क्रेप |
तेरी उन सेटिंगों में
सेंध अब लगाउंगी |
तेरे बॉय फ्रेंडों को पटाकर 
हालत पे तेरी एक ब्लॉग मैं बनाउंगी |
 
 

शनिवार, 2 अक्तूबर 2010

नई दिल्ली से कॉमनवेल्थ स्पीकिंग .....शेफाली

नई दिल्ली से कॉमनवेल्थ स्पीकिंग .....
 
 
मैं नई दिल्ली से कॉमनवेल्थ बोल रहा हूँ | मुझ पर मीडिया ने और लोगों ने  तरह - तरह के आरोप लगाए | लेट लतीफी और भ्रष्टाचार के कारण मुझे और मेरे परम मित्र काल- दाड़ी को  बदनाम करने में किसी ने कोर कसर नहीं छोड़ी | अब जब खेल शुरू होने में कुछ ही समय बाकी रह गया है, मैं इस बात का खुलासा करना चाहता हूँ कि ऐसा क्यूँ हुआ ? और इसके पीछे  कौन - कौन से कारण जिम्मेवार थे ? 
 
भारत वर्ष में  घोटाले ना हों, भ्रष्टाचार ना हों तो आम जनता के पास बात करने के विषय ख़त्म हो जाएंगे |  हमने आम जनता को बोलने का अवसर प्रदान किया | तमाम लेखकों, व्यंग्यकारों, कार्टूनिस्टों, स्वतंत्र, परतंत्र  पत्रकारों को लिखने का प्लेटफोर्म उपलब्ध कराया | बरसों से कुंद पड़ी हुई कलमकारों की कलमों को  नई  धार मिली | ईमानदार लोगों को खुल कर बेईमान लोगों गाली देने  का  मौका दिया | जिन लोगों की ईमानदारियां सालों से ए. टी. एम्. में पड़ी - पड़ी सड़ रही थीं, जो कि मजबूरियों की  पैदाइश  थीं, क्यूंकि उनके पास खाने - पीने का विभाग नहीं थे, उन लोगों ने इस मौके को जम कर कैश किया  | 
 
हमने देशवासियों को कई महीनों तक मुफ्त नॉन - स्टॉप मनोरंजन प्रदान किया | सोचिये,  अगर कॉमनवेल्थ खेल यूँ ही आते और यूँ ही  चले जाते तो किसी को आनंद नहीं आता |  सच्चा  आननद तभी संभव होता है जब आयोजन में ज्यादा से ज्यादा कमियाँ उजागर हो, विदेशी थू - थू करें | दुनिया तमाशा देखे | चारों ओर से छीछालेदर का कोई मौका ना छूटने पाए  | लानतें, मलामतें भेजने में सब अपना योगदान दें, तभी हमें असीम आनंद की प्राप्ति हो पाती है |  
 
कितना अफ़सोस होगा मेरे देश वालों को, जब अमेरिका भ्रष्टाचार की सूची जारी करे और हमारे देश का कहीं  नामो - निशान तक ना हो | हम भारत का नाम ढूंढते रह जाएं, और हमारा पड़ोसी देश हमसे बाजी मार ले जाए | हमारे सच्चे मेडल  इन्हीं सूचियों में छिपे हुए हैं |
 
 हकीकत तो यह है देशवासियों, वो हम ही हैं जिनके माध्यम से आपने देश के लिए भिखारियों की ज़रुरत और अहमियत को पहचाना |  गौ माताओं  के महत्त्व को स्वीकार किया |  
 
 हम पर इलज़ाम है कि हम खेल गाँव और दिल्ली की गन्दगी को दूर नहीं कर पाए | असल बात तो यह है कि हम भारत वासी सदियों से आत्मा की सफाई के विषय में चिंतित रहा करते हैं | हमने सदैव शारीरिक, मानसिक, सामाजिक विकास की अपेक्षा व्यक्ति के आध्यात्मिक   विकास पर बल दिया है | हमारा मानना है कि अगर आपकी आत्मा साफ़ है तो आपको सर्वत्र साफ़ - सफाई दिखेगी | अगर आत्मा मैली - कुचैली है तो आपको सब तरफ कूड़ा - करकट ही नज़र आएगा | जिस तरह से पश्चिमी देश के  प्रतिनिधियों  ने यहाँ आकर गन्दगी के दर्शन किये इससे यह स्पष्ट हो गया कि उनकी आत्माओं को साफ़ - सफाई एवं शुद्धिकरण की बहुत ज़रुरत है | यहाँ पश्चिमी देशों से मेरा अभिप्राय वे  सभी  देश हैं जो भारत की गन्दगी के विषय में आलोचना कर रहे हैं, चाहे वे किसी भी दिशा में क्यूँ ना स्थित हों | भारत सरकार को चाहिए कि इन मेहमानों की अशुद्ध  आत्माओं को शुद्ध करने  के लिए इनके साथ वापसी में बाबाओं को ज़रूर  भेजा जाए | यह तय है कि हमारे बाबा लोग उनकी और उनके देशवासियों की  आत्माओं की ऐसी सफाई करेंगे कि आने वाले समय में   हमारे देश में और उनके देश में कोई फर्क ढूंढें से भी नहीं मिलेगा |
 
हम पर इलज़ाम है कि हम गन्दगी के ढेर में रहने वाले गरीब मुल्क के वासी हैं, हम क्या ख़ाक मेहमाननवाजी करेंगे | जबकि असलियत यह है कि जब आदमी गरीब होता है, वह बहुत बढ़िया मेहमाननवाज़ होता है |  जैसे - जैसे उसके पास पैसा आता जाता है  वह , मेहमाननवाजी से मुँह मोड़ने लगता है | गरीब की झोंपड़ी में आने वाले मेहमान को छप्पन व्यंजन मिल सकते हैं, चाहे वे उधार लेकर ही क्यूँ ना बनाए गए हों |  इसीलिये राहुल गाँधी ने  सदा गरीब की झोंपड़ी को खाना - खाने के लिए प्राथमिकता दी | गरीब आदमी मेहमान के  जाते समय स्वागत सत्कार में कमी - बेशी  के लिए जहाँ हाथ  - जोड़कर माफी भी मांगता है,  वहीं अमीर आदमी एक कप चाय और दो बिस्किट में मेहमान को टरका देने में संकोच नहीं करता है |
 
 
''अतिथि देवो भव'' आदिकाल से  भारत की परंपरा रही है | चूँकि इस बार कॉमनवेल्थ भारत में हो रहे हैं, इस कारण से तय्यारियों  की सारी कमान स्वयं देवताओं ने संभाली है, ताकि उनके भाई - बंधुओं का उचित प्रकार से स्वागत सत्कार हो सके  | जिसे  लोग कमरे में पाया  गया  मामूली साँप कह कर दुष्प्रचारित कर रहे थे, वह साँप नहीं था, असल में  भगवान् शिव द्वारा भेजा गया उनका प्रतिनिधि सर्प था | आने वाले दिनों में अगर श्वान, वानर, मूषक, उलूक, वृषभ,  भी व्यवस्था का जायजा लेने के लिए आएं  तो कतई आश्चर्य मत कीजियेगा | जानवरों के नाम संस्कृत में लिख देने से उनके आदरणीय हो जाने की  गुंजाइश प्रबल हो गई है  | 
 
मेरा  स्पष्ट रूप से यह मानना है कि भारत के पदक तालिका में सबसे ऊपर आने की संभावनाओं से डरे हुए विदेशी मुल्कों  ने भारत के विषय में कुप्रचार किया | कहा गया कि फुट ब्रिज बनने से पहले ही टूट गया | अन्दर की बात यह है कि  लम्बी कूद के लिए आने वाले  खिलाड़ियों की परख करने के  लिए उसे जान बूजकर तोड़ा गया था | यह भी अफवाह फैलाई गई कि मुक्केबाज बिजेंद्र सिंह पलंग से गिर गए | जबकि वह पलंग ख़ास तौर से उनके लिए बनवाया गया था | वह उनका प्रतियोगिता के लिए क्वालिफाइंग राउंड था | ऐसा चोरी - छिपे इसलिए करना पड़ा क्यूंकि एक बार ओलम्पिक जैसे खेल का मेडल मिल जाए तो कोई भी भारतीय  खिलाड़ी क्वालिफाइंग राउंड पास करना अपनी शान के खिलाफ समझता  है  | 
 
भारत की जनता को को हमारा शुक्रगुज़ार होना चाहिए कि हमारी वजह से लोगों इस साल की रिकोर्ड तोड़ बारिश,  बाढ़,  भूस्खलन, भूकंप ,मलेरिया, डेंगू इत्यादि के विषय में सोचने का मौका ही नहीं मिला | हमारी  वजह से देश में अयोध्या मामले जैसे अति  संवेदनशील मुद्ददे पर भी  साम्प्रदायिक सौहार्द कायम रहा | विभिन्न पार्टियों के नेतागण फ़ैसला आने के बाद होने वाले दंगों का इंतज़ार करते रह गए और आम जनता सुबह - शाम कॉमनवेल्थ - कॉमनवेल्थ रटती रही |