बुधवार, 24 जून 2009

बहुत दिनों बाद .........फिर से.कुछ क्षणिकाएँ .......

.अपने दाँत का दर्द कुछ कम है  
इसीलिए फिर से क्षणिकाओं का  
मौसम गर्म है ....................
 
जड़ें ...............१
 
राजनीति की
अजब सी यह
परिपाटी है ,
दूसरों की
जड़ों को
जितना खोदो
उतना ,
अपनी गहरी
होती जाती हैं
 
जड़ ..........२
 
वे ,
नित नए
दाँव पेचों
से
विरोधियों के
पैरों तले
ज़मीन
खिसका
जाते हैं
इसीलिए ,
स्वयं
ज़मीन से
जुड़े हुए
रह पाते हैं
 
जड़ ............३
 
उनहोंने ,
खुद को सदा 
ज़मीन से 
जुड़ा हुआ
नेता बताया
कितनी ज़मीन
जोड़ ली
पूछा तो ,
गिनना  ही
नहीं आया
केलकुलेटर से
हिसाब लगाया ...