गुरुवार, 7 नवंबर 2013

, ''एक नेता ने टिकट ना मिलने के कारण आत्महत्या कर ली ''

आज अचानक टेलीविज़न  के खबरिया चैनल बदलते - बदलते, सहसा एक ख़बर पर नज़र पड़ गई | यूँ आजकल नज़रें या तो मोदी पर पड़ती हैं या राहुल पर ।  लेकिन इस अप्रत्याशित खबर पर नज़र क्या पड़ी, वहीं अटक कर रह गई | खबर थी, ''एक नेता ने टिकट ना मिलने के कारण आत्महत्या कर ली '' । इस तरह की ख़बरें विरले ही देखने को मिलती हैं । एक बार कुछ साल पहले भी ऐसी ही अखबार में पढ़ने को मिली थी । तब खबर दूसरे तरह की थी । उसमे नेताजी ने अपनी पत्नी को टिकट न मिल पाने के कारण आत्महत्या कर ली थी | पेज-थ्री की नग्न तस्वीरों और तथाकथिक सोशलाइट्स की आये दिन होने वाली पार्टियों की  चकाचौंध को देखने की आदी नज़रें इस ख़बर को देखकर ठिठक कर रह गईं | लगा कि भारत - वर्ष में एक नई और स्वस्थ परंपरा की शुरुआत हो गई है |
 
आज तक लोगों ने आत्महत्या के परम्परागत कारण ही सुने होंगे, यथा - ग़रीबी और बेकारी से तंग नौजवान; किसानों द्वारा फसल न होने या क़र्ज़ न चुका पाने की स्थिति में सामूहिक रूप से; ससुराल से तंग या दहेज़ की मांग पूरी न हो पाने के कारण सदियों से प्रताड़ित बहुएँ; साथी  की बेवफ़ाई के कारण;  कुंवारी,  गरीब लड़कियों की सामूहिक तौर पर और एक्ज़ाम में फ़ेल होने पर तो लोग अक्सर आत्महत्या कर लेते हैं | इधर बीते कुछ सालों से लेटेस्ट मोबाईल या बाइक न मिल पाने के कारण; घर में माँ - बाप की ज़रा सी डांट खाकर; स्कूलों में टीचर द्वारा फटकार दिए जाने पर,और  डिप्रेशन जैसी अत्याधुनिक बीमारी, जिसे हमने विदेशों से खासतौर पर देश के ख़ास लोगों के लिए एक्सपोर्ट किया है, के कारण  भी युवा वर्ग आत्महत्या  करने  लगा है | हां, प्रेम में असफल लोगों द्वारा मौत को गले लगाने का ग्राफ तेजी से नीचे  गिर रहा है | प्रेम समझदार हो चला है, असफल रहने पर आत्महत्या करने की आवश्यकता नहीं समझता, अपितु प्रेम  में जितनी ज्यादा असफलताएं  मिलती हैं, व्यक्तित्व उतना निखरता जाता है.  
   

बंधुओं, सदियों से आम लोगों को नेतागणों  से यह शिकायत रही है कि हमेशा उन्हें ही नेताओं के द्वारे जा-जाकर आत्महत्या करनी पड़ती है, किसी नेता को कभी किसी ने आत्महत्या करते न देखा न सुना | ऐसे, सदा-शिकायती लोगों की ज़ुबान को नेताजी ने अपने  अमूल्य जीवन का  बलिदान देकर सदा के लिए चुप करा  दिया है | आम जन को इस शहीद नेता की नीयत  पर ज़रा भी शक नहीं करना चाहिए | हमारे देशवासियों की यह बहुत ही ग़लत आदत है कि नेता के अच्छे काम को भी  वे शक की नज़र  से ही देखते हैं | हो न हो यह स्वर्गीय नेता अपनी पत्नी से बेपनाह मुहब्बत करता होगा और आजकल की पत्नियां किस पल क्या मांग बैठें, कुछ नहीं कहा जा सकता । नेता  जी ने अपनी पत्नी से पूछा होगा,  ''कहो प्रिये! तुम्हें क्या लाकर दूँ? कहो तो आसमान में जाकर चाँद-तारे तोड़ लाऊं''? पत्नी ने कहा होगा, ''चाँद का क्या अचार डालूंगी ? और तारों से मेरा क्या भला होगा? मुझे तो तुम फ़लानी पार्टी का टिकट लाकर दो, तभी मानूंगी कि तुम मुझसे सच्चा प्यार करते हो |'' पति चाँद-तारों को तोड़ने की तैयारी  कर रहा होगा कि अचानक चुनाव का टिकट बीच  में आ गया | कहना न होगा कि पति ने तरह-तरह के प्रलोभन दिए होंगे - होनोलूलू से लेकर टिम्बकटू तक का टिकट सेवा में प्रस्तुत किया होगा | मल्टीप्लेक्स का महंगा से महंगा टिकट भी पत्नी की इस अनोखी मांग को रिप्लेस नहीं कर पाया होगा । ''सारी खुदाई एक तरफ, पार्टी की टिकट कटाई एक तरफ'' सच है कि राजनीति का दुनिया की कोई भी भौतिक वस्तु मुकाबला नहीं कर सकती । जन सेवा की भावना ऐसी ही होती है, जब उछाल मारती है तो उसे दुनिया का कोई प्रलोभन नहीं रोक सकता ।

 

लेकिन टिकट काटने वालों ने यानी हाईकमान ने पत्नी के प्रति उनका समर्पण और निष्ठा को  नहीं देखा होगा | टिकट उसी का कटा जिसने  काटा होगा । चेक जितना बड़ा कटता है, पार्टी के प्रति  निष्ठा उतनी बड़ी समझी जाती है | चेक की बड़ी राशि की निष्ठा ने पत्नी के प्रति छोटी निष्ठा को धराशाही कर दिया होगा |


सरकार को इस प्रेमपुजारी, शहीद नेता की याद में डाक टिकट जारी करना चाहिए, उसकी पत्नी के लिए हर पार्टी अपने द्वार खुले रखे, वो चाहे तो किसी पार्टी का दामन थाम सकती है या चाहे तो निर्दलीय चुनाव लड़ सकती है, क्यूंकि भारतीय लोकतंत्र में उसकी जीत हर हाल में तय है ।